मुंबई ब्लास्ट----- ताजमहल होटल आतंकी निशाने पर----------जयपुर ब्लास्ट--------अक्षरधाम---------संसद पर हमला----------अब हाइकोर्ट भी खून से सना-------सुप्रीमकोर्ट पर हमले की धमकी---------तो बचा क्या -----------राष्ट्रपति भवन!!!!!!
क्यों नहीं लगा सकते यहाँ आतंकी सैंध-------- जान की क्षति न हो पर इस ऐतिहासिक इमारत को तो खंडहर में बदला जा सकता है? जब आतंकियों का हौसला इतना था कि वे पेंटागन पर कर आक्रमण कर सकते हैं और वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर सफलता से तो पूरा विश्व किंकर्तव्यविमूढ़ रह गया था, तो उनके ज़ज़्बे के लिए फिर कुछ भी कर गुज़रना संभव है। चोर-चोर मौसेरे भाई। आतंकी किसी भी आतंकी गुट से मदद ले कर एक ऐतिहसिक दुर्घटना को कभी भी अंजाम दे सकते हैं।
आज प्रधान मंत्री क्यों मानते हैं कि हमारी सुरक्षा व्यवस्था में खामी है---- सुरक्षा व्यवस्था में आज से नहीं लंबे समय से खामियाँ बदस्तूर जारी हैं----- तो फिर क्या शेष रह गया?
डाक्टर अस्पतालों में मरीजों का इलाज नहीं करते, बल्कि परीक्षण पर परीक्षण करते हैं, क्योंकि आज एक आम बात हो गयी हैं, यदि बीमारी समझ में नहीं आई, तो मरीज से टेस्ट पर टेस्ट करवाना उनका एक उसूल बन गया है। जाँच करना हो तो समिति पर समितियाँ बन जाती हैं सरकारी महकमों में----गवाह तोड़े मरोड़े जाते हैं---साक्ष्य मिटाये जाते हैं----बयान बदले जाते हैं—अदालतों में तारीख पर तारीख बदलती जाती हैं--------और पुलिस महकमे में छोटा मोटा आतंकी पकड़ लिया, तो उसके लिंक के लिए पहले रिमाण्ड, फिर दूर दूर तक ख़ोज, जैसे कि विश्व का पूरा आतंकवाद एक दिन में खत्म कर देंगे----आतंकियों की सुरक्षा पर सारा ध्यान केंद्रित कर दिया जाता है, ताकि लिंक के लिए किये गये प्रयास बीच में खत्म न हो जायें। यहीं कारण है की स्व0 राजीवगाँधी के हत्यारों को अभी तक फाँसी नहीं दी जा सकी है-----अफ़जल का यह कहना की वह माफ़ी नहीं चाहता----तो उसके जवाब में यह क़हर क्यों -------क्या आतंकियों के लिए अफ़जल की कोई अहमियत है, जो यह अंज़ाम--?
हमारे देश के नागरिकों को एक स्वर में इसका विरोध करना चाहिए कि न तो कोई सरकारी वकील और न ही कोई निजी वकील ऐसे आतंकियों की पैरवी करे जो देश के लिए ख़तरा बना हो------कानून को भी ऐसे आतंकियों के लिए लोक दालत जैसी प्रक्रिया अपनाने सम्बंधी व्यवस्थायें बनानी चाहिए ताकि बुद्धिजीवी वकीलों को अपनी कानूनी बुद्धिमानी जैसी वकालत झाड़ने का मौका न मिल सके और आतंकियों और संगीन अपराधियों को जल्दी से जल्दी सज़ा मिले ताकि दूसरे अपराधियों को एक नसीहत मिल सके। इतना मौका मिलने से ही आतंकियों का सुप्रीम कोर्ट को धमकी देने का हिम्मात और हौसला बढ़ता है।
हमें अपनी सड़ी गली कानूनी व्यवस्थायें बदलनी होंगी।
इस घटना से पूरा देश फिर एक आशंका से दो चार हो रहा है। सामने दशहरा दीपावली जैसे त्योहार आ रहे हैं जहाँ गली-गली चौराहे-चौराहे पर भीड़भाड़ का माहौल रहेगा-----ऐसे में हमारी व्यवस्था क्या होगी यह अहम सवाल देश के कर्णधारों को देखना है सोचना है। पुलिस वालों को चाहिए कि वे देश के हालात को गंभीरता से लें। सरकार को चाहिए कि सेना की एक विंग, बटालियन, टुकड़ी सिविल सेवा के लिए भी तय कर तत्काल देश की सुरक्षा के लिए संवेदनशील स्थानों पर तैनात करे। आज बोर्डर्स से ज्यादा अंदर के हालात नाज़ुक हैं---उन्हें कठोर निर्णय लेने होंगे।
अब और कई क्षति नहीं------अब कोई और हताहत नहीं--------अब और ज्यादा बर्दाश्त नहीं--------- करारा जवाब देना होगा इस वहशियत का----------हमारे कानूनदाँओं को--------- हम फिर भी यह तो सहन कर लेंगे---------लेकिन कितने इस ज़ख्म को नासूर की तरह झेलेंगे---और कितने युवा इससे क्या सीख लेंगे------या तो ईश्वर जाने या भविष्य-------------कोई आम आदमी हाथों में बारूद न उठा ले---------घर में ही आतंकी न पनपने लग जायें---------------हमें धैर्य रखना होगा-------हमें अपनी संस्कृति को बचाना होगा-----------हमें सत्यमेव जयते के लिए फिर संघर्ष करना होगा----------------आइये हताहतों के लिए ईश्वर से प्रार्थना करें--------उन्हें शांति दे--------------किमधिकम्--------------- अब क़लम नहीं चल पायेगी----------!!!!!!!
क्यों नहीं लगा सकते यहाँ आतंकी सैंध-------- जान की क्षति न हो पर इस ऐतिहासिक इमारत को तो खंडहर में बदला जा सकता है? जब आतंकियों का हौसला इतना था कि वे पेंटागन पर कर आक्रमण कर सकते हैं और वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर सफलता से तो पूरा विश्व किंकर्तव्यविमूढ़ रह गया था, तो उनके ज़ज़्बे के लिए फिर कुछ भी कर गुज़रना संभव है। चोर-चोर मौसेरे भाई। आतंकी किसी भी आतंकी गुट से मदद ले कर एक ऐतिहसिक दुर्घटना को कभी भी अंजाम दे सकते हैं।
आज प्रधान मंत्री क्यों मानते हैं कि हमारी सुरक्षा व्यवस्था में खामी है---- सुरक्षा व्यवस्था में आज से नहीं लंबे समय से खामियाँ बदस्तूर जारी हैं----- तो फिर क्या शेष रह गया?
डाक्टर अस्पतालों में मरीजों का इलाज नहीं करते, बल्कि परीक्षण पर परीक्षण करते हैं, क्योंकि आज एक आम बात हो गयी हैं, यदि बीमारी समझ में नहीं आई, तो मरीज से टेस्ट पर टेस्ट करवाना उनका एक उसूल बन गया है। जाँच करना हो तो समिति पर समितियाँ बन जाती हैं सरकारी महकमों में----गवाह तोड़े मरोड़े जाते हैं---साक्ष्य मिटाये जाते हैं----बयान बदले जाते हैं—अदालतों में तारीख पर तारीख बदलती जाती हैं--------और पुलिस महकमे में छोटा मोटा आतंकी पकड़ लिया, तो उसके लिंक के लिए पहले रिमाण्ड, फिर दूर दूर तक ख़ोज, जैसे कि विश्व का पूरा आतंकवाद एक दिन में खत्म कर देंगे----आतंकियों की सुरक्षा पर सारा ध्यान केंद्रित कर दिया जाता है, ताकि लिंक के लिए किये गये प्रयास बीच में खत्म न हो जायें। यहीं कारण है की स्व0 राजीवगाँधी के हत्यारों को अभी तक फाँसी नहीं दी जा सकी है-----अफ़जल का यह कहना की वह माफ़ी नहीं चाहता----तो उसके जवाब में यह क़हर क्यों -------क्या आतंकियों के लिए अफ़जल की कोई अहमियत है, जो यह अंज़ाम--?
हमारे देश के नागरिकों को एक स्वर में इसका विरोध करना चाहिए कि न तो कोई सरकारी वकील और न ही कोई निजी वकील ऐसे आतंकियों की पैरवी करे जो देश के लिए ख़तरा बना हो------कानून को भी ऐसे आतंकियों के लिए लोक दालत जैसी प्रक्रिया अपनाने सम्बंधी व्यवस्थायें बनानी चाहिए ताकि बुद्धिजीवी वकीलों को अपनी कानूनी बुद्धिमानी जैसी वकालत झाड़ने का मौका न मिल सके और आतंकियों और संगीन अपराधियों को जल्दी से जल्दी सज़ा मिले ताकि दूसरे अपराधियों को एक नसीहत मिल सके। इतना मौका मिलने से ही आतंकियों का सुप्रीम कोर्ट को धमकी देने का हिम्मात और हौसला बढ़ता है।
हमें अपनी सड़ी गली कानूनी व्यवस्थायें बदलनी होंगी।
इस घटना से पूरा देश फिर एक आशंका से दो चार हो रहा है। सामने दशहरा दीपावली जैसे त्योहार आ रहे हैं जहाँ गली-गली चौराहे-चौराहे पर भीड़भाड़ का माहौल रहेगा-----ऐसे में हमारी व्यवस्था क्या होगी यह अहम सवाल देश के कर्णधारों को देखना है सोचना है। पुलिस वालों को चाहिए कि वे देश के हालात को गंभीरता से लें। सरकार को चाहिए कि सेना की एक विंग, बटालियन, टुकड़ी सिविल सेवा के लिए भी तय कर तत्काल देश की सुरक्षा के लिए संवेदनशील स्थानों पर तैनात करे। आज बोर्डर्स से ज्यादा अंदर के हालात नाज़ुक हैं---उन्हें कठोर निर्णय लेने होंगे।
अब और कई क्षति नहीं------अब कोई और हताहत नहीं--------अब और ज्यादा बर्दाश्त नहीं--------- करारा जवाब देना होगा इस वहशियत का----------हमारे कानूनदाँओं को--------- हम फिर भी यह तो सहन कर लेंगे---------लेकिन कितने इस ज़ख्म को नासूर की तरह झेलेंगे---और कितने युवा इससे क्या सीख लेंगे------या तो ईश्वर जाने या भविष्य-------------कोई आम आदमी हाथों में बारूद न उठा ले---------घर में ही आतंकी न पनपने लग जायें---------------हमें धैर्य रखना होगा-------हमें अपनी संस्कृति को बचाना होगा-----------हमें सत्यमेव जयते के लिए फिर संघर्ष करना होगा----------------आइये हताहतों के लिए ईश्वर से प्रार्थना करें--------उन्हें शांति दे--------------किमधिकम्--------------- अब क़लम नहीं चल पायेगी----------!!!!!!!
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