मंगलवार, 28 मई 2013

दृढ़ व्‍यक्तित्‍व के धनी हैं डा0 रघुनाथ मिश्र

    डा0 रघुनाथ मिश्र पर लिखने को जब-जब भी क़लम उठाई है, वह जड़ हो गयी। कुछ लोगों पर लिखना आसान नहीं होता, क्‍योंकि मेरी आँखों के आगे रघुनाथ मिश्र एक रूप नहीं, अनेकों रूपों में, मैंनें उनको देखा ही नहीं, मैंनें उन्‍हें जिया भी है। व़े दृढ़ व्‍यक्तित्‍व के धनी हैं, वे उत्‍कर्ष के सोपान हैं, वे सहज मार्ग के अनुयायी संत नज़र आते हैं, कंटकीर्ण उनके जीवन में कुछ है ही नहीं, वे सफल सामाजिक प्राणी हैं, वे प्रेमी हैं, वे बहुत भावुक भी हैं। वे दम्‍भी नहीं, सत्‍य को स्‍वीकार करने में वे पहल करने वालों में हैं। वह सहज में विचलित हो जाने वाले, बाल स्‍वभाव वाले भी हैं। वे हठी भी हैं, क्‍योंकि वे सच्‍चे हैं। सिंहावलोकन उनकी ऊर्जा है। यही कारण है कि वे कोई कार्य अधूरा नहीं छोड़ते। वार्तालाप उनका कुलिश प्रभंजन है, जिसकी तपन से लोग उनसे दूर भागते हैं। उन जैसा बनने के लिए कितने समर्पण की आवश्‍यकता होती है, यह कोई उनके साथ रह कर धैर्य से सीखे। यह कमी मेरे भीतर भी है, पर जब भी विचलित होता हूँ, उनसे अवश्‍य मिलता हूँ, एक अनोखी ऊर्जा मुझे मिलती है तब मुझे। वे कभी बाल सखा बन कर मुझसे पेश आते हैं, तो कभी मुझे जरूरत से ज्‍यादा सम्‍मान देते हैं। कभी मुझे अपने जैसा जीने का साहस देते दृष्टिगत होते हैं, तो कभी अपना दर्द बाँटते मेरे सामने रो पड़ते है। उनके सामने मुझ में धैर्य न जाने कहाँ से आ जाता है। वो अलग बात है कि जलेस की हमारी योजनायें बनती बिगड़ती रहती हैं, किन्‍तु उसे अमली ज़ामा पहनाने के लिए हम मूर्तरूप नहीं दे पाते। यही कारण है कि जिस शख्‍स ने मज़दूर संघों मे चेतना की मशाल
जलाई और कंधे से कंधा मिला कर न्‍याय के लिए सत्‍ता तक को चुनौती दी, आज अकेला न हो कर भी अकेला है, यह कड़वा सच है। जनवादी लेखक संघ के संस्‍थापक सदस्‍यों में से हैं वे। आज उन सब से दूर रह कर भी, हाड़ौती अंचल में अपनी एक अलग पहचान बनाये हुए हैं, कोई उन्‍हें आज तक डिगा नहीं पाया। ‘जनवाद के पुरोधा’ रघुनाथ सहाय मिश्र, प्‍यार से जिन्‍हें रघुनाथ मिश्र और साहित्‍य संसार उन्‍हें डा0
रघुनाथ मिश्र के नाम से जानता है।
यूँ ही नहीं बन जाता कोई पुरोधा। उनमें ये गुण मैंने तब देखे, जब मुझे सौभाग्‍य मिला, उनकी रचनाओं का सम्‍पादन कर, उनकी पहली और एक मात्र पुस्‍तक बनाने का। डा0 मिश्र ने दशकों तक रचनायें लिखीं थीं, जिन्‍हें ढूँढ़-ढूँढ कर निकाला गया। उनकी पहली पुस्‍तक ‘सोच ले तू किधर जा रहा है’। यह पुस्‍तक, एक चुनौती देती है, जीने का मार्ग चयन करने की। पूरी तरह जनवाद से ओतप्रोत, पर रचना कर्मी श्री मिश्र मशगू़ल रहे, जनवादी क्रांति में आम आदमी की समस्‍याओं में जूझते, उनसे जुड़ते, लोगों को जोड़ने में, एक राह प्रशस्‍त करने में, जो कंटकीर्ण हो या फूलों से भरी, उन्‍होंने न मौसम देखा, न उम्र; न वक्‍त देखा, न वाक़या, बस रचनाधर्मिता की राह पर चलते रहे, चाहे वह राह, एक स्‍वस्‍थ और जागरूक समाज की संरचना की हो या साहित्‍य सृजन की। कभी नहीं सोचा कि प्रतिष्‍ठा के लिए एकाध पुस्‍तक का प्रकाशन करूँ। सैंकड़ों नुक्‍कड़ नाटक खेले, रंगमच पर हर रूप जिया, किंतु साहित्‍य के क्षेत्र में किसी प्रतिष्‍ठा की अभिलाषा उन्‍हें कभी नहीं रही। उनका जीवन दर्शन था मुफ़लिसों के बीच बैठ कर उनके दुख-सुख की सुनना। फ़ाक़ाकशी के मंज़र भी देखे उन्‍होंने।
डा0 रघुनाथ मिश्र, ग़ज़लों के प्रतिनिधि रचनाकार हैं, ग़ज़ल उनका शग़ल है। हिंदी ग़ज़ल पर वह लंबी बात कर सकते है। वे मुक़म्‍मल दोहाकार भी हैं। किसी भी विषय पर बिना तैयारी किये बोलना, उनकी स्‍वाभाविक प्रकृति है, जो ज्ञान और अनुभव की देन है। वे बहुत ही सफल अधिवक्‍ता, अभिभाषक और वकील रहे हैं। अर्थ भले ही तीनों के एक ही हों पर प्रकृति हर शब्‍द की शब्‍दार्थ की तरह अलग-अलग है। श्री मिश्रा ने आजीविका के इन तीनों प्ररूपों में सफलता प्राप्‍त की है। वे शहर के वरिष्‍ठ अभिभाषक ही नहीं, वरिष्‍ठ साहित्‍यकार के रूप में भी जाने जाते हैं। युवा कवियों को हमेशा वे प्रेरणा देते हैं, वे असफलता को भी सफलता के आईने से देख कर, चतुराई से सँभल जाते हैं, यह विशेषता प्राय: कम लोगों में देखने को मिलती है। डा0 मिश्र का इसमें सानी नहीं। अपनी बात मनवाने में वे उस्‍ताद हैं। बहुत कुछ लिखा जा सकता है उन पर, इसलिए इतना लिख कर ही इतिश्री कर रहा हूँ-
      बचा के रखा है मैंनें / उनके लिए कुछ क़तरों को /कब काम आ जाय / उनसे वफ़ा न कर सकूँ / तो जफ़ा भी / न हो जाये कहीं मुझसे।
श्री पंकज पटेरिया सम्‍पदित 'शब्‍द ध्‍वज' में श्री रघुनाथ मिश्र पर प्रकाशित मेरे मूल आलेख के प्रकाशित अंश। 'शब्‍द ध्‍वज' का 27 मार्च 2013 को प्रकाशित अंक डॉ0 रघुनाथ मिश्र पर आधारित था।- आकुल     

मंगलवार, 14 मई 2013

ऐसे रचनाकारों का बहिष्‍कार करें

   ऐसा सुना भी था कि लोग गोष्ठियों में दूसरों की रचना पढ़ कर वाहवाही लूटते हैं। लाइब्रेरी से पुस्‍तकें चुराते हैं। यह उनका जुनून हो सकता है, साहित्‍य के प्रति उनका बेहद रुझान हो सकता है, किंतु किसी की रचना को अपने नाम से प्रकाशित करवाना (भले तोड़ मरोड़ कर) कदापि उचित नहीं है। ऐसे रचनाकारों का बहिष्‍कार होना चाहिए। आप भी श्री आर0 सी0 शर्मा 'आरसी' के इस संदेश को पढ़ कर 'सुरेंद्र शर्मा, जयपुर' को अपने विचार प्रेषित करें, उन्‍हें आगाह करें, यह चोरी एक ऐसा अपराध है जिसकी सज़ा ताउम्र उन्‍हें छलनी करती रहेगी। वे साहित्‍य समाज में अपना मुँह छिपाते फि‍रेंगे और एक रचनाकार अपनी मौत से पहले मर जाएगा। स्‍वस्‍थ रचना करें और अपना अलग स्‍थान बनायें। 'मधुमती' जैसी साहित्‍य अकादमी की पत्रिका में ऐसी त्रुटि जबकि यह कविता पहले श्री आर0 शर्मा0 आरसी के नाम से छप चुकी है, वहाँ के सम्‍पादकीय मंडल पर प्रश्‍नचिह्न खड़ा करती है। सभी पत्र पत्रिकाओं के सम्‍पादक इससे सचेत हों और बिना तसदीक किये, बिना स्‍वरचित का प्रमाण लिए, रचनाएँ कितनी भी उत्‍कृष्‍ट क्‍यों न हों, नहीं छापें। ऐसे दुष्‍कृत्‍यों से मूल लेखक के मन को आघात पहुँचता है। कोटा से प्रकाशित प्रतिष्ठिति पत्रिका 'दृष्टिकोण' में ऐसा हो चुका है, प्रकाशन से पूर्व संदेह होने पर उसे प्रकाशित नहीं किया गया। रचनाकर्म में संलग्‍न रचनाकार को कहाँ फुरसत है कि विशाल साहित्‍य और प्रकाशन की दुनिया की प्रत्‍येक पत्रिका को जाँचता, पढ़ता रहे कि कहीं उसकी रचना का दुरुपयोग तो नहीं हो रहा। यह सुधि पाठकों व सम्‍पादकों का विशेष उत्‍तरदायित्‍व है कि वह ऐसे  चोर रचनाकारों पर नज़र रखें और उनका बहिष्‍कार करें। सुरेन्‍द्र शर्मा को भी चाहिए कि वे हृदय में स्‍वयं को टटोलें और यदि ऐसा कृत्‍य सही है तो श्री 'आरसी' से क्षमा माँगे और उनके ब्‍लॉग पर खेद व्‍यक्‍त करते हुए साहित्‍य की गरिमा को क्षति पहुँचाने के लिए सभी साहित्‍यकारों से रूबरू हों-आकुल

     दोस्तों आज थोड़ा मन दुखी है,कारण कोइ विशेष नहीं परन्तु आज मन केवल इस बात से दुखी हो रहा है की कुछ लोग केवल छपने की खातिर (छपास )रचनाकारों की रचनाएं चोरी करके या तो उसमें थोड़ा सा रद्दोबदल करके या हूबहू प्रतिष्ठित पत्रिकाओं को भेज देते है और सम्पादक भी उनको छापने में गुरेज नहीं करते |आज राज० साहित्य अकादमी की प्रतिष्ठित मासिक पत्रिका "मधुमती "का मई २०१३ का अंक देखा और अचानक पेज संख्या १०९ पर आकर निगाह ठिठक गयी और देखा तो जयपुर के किसी सुरेन्द्र शर्मा के नाम से एक गीत छपा था जो कि मेरे गीत
आर0 सी0 शर्मा0 'आरसी'
की नक़ल के अलावा और कुछ नहीं थाऔर यही गीत आज सेकुछ पूर्व इसी पत्रिका में मेरे नाम से छप चुका है जब डा० श्रीमती अजित गुप्ता अध्यक्ष थीं
|पता नहीं सुरेन्द्र शर्मा मधूमती के नियमित पाठक हैं या नहीं परन्तु मैं ८-१० वर्षों मधुमती का नियमित पाठक हूँ व् प्रतिमाह मेरे घर आती है|अगर उनको इतना पसंद था मेरा गीत तो मुझसे कह देते मैं उनके नाम कर देता अपना गीत |परन्तु साहित्यकार होकर चोरी शोभा नहीं देती |

मैं कोटा व जयपुर के समस्त साहित्यकार बंधुओं से इस मंच से (फेसबुक)अपील करता हूँ की ऐसे व्यक्ति(सुरेन्द्र शर्मा ) का बहिष्कार करें जो चोरी के साहित्य से नाम कमाना चाहते हैं |मैं यहाँ उनका फोन न० व पता दे रहा हूँ साथ ही अपना गीत (जो ५०--६० पत्रिकाओं में छप भी चुका है) भी आप लोगों के साथ शेयर कर रहा हूँ ताकि आप ऐसे व्यक्ति को फोन द्वाराएवं व्यक्तिगत रूप से समझा सकें की वो अच्छा काम नहीं कर रहे|उनका फोन न० है ०9314445539 पता है :-सुरेन्द्र शर्मा 54-Aविजय नगर प्रथम -करतारपुर जयपुर- 302006 .फैसला आप सभी पर छोड़ते हुए |आर० सी० शर्मा "आरसी"

श्री आर सी शर्मा 'आरसी' के फेसबुक खाते से साभार।   

शुक्रवार, 3 मई 2013

भारतीय फि‍ल्‍म इतिहास के सौ बरस पर मेरे पसंदीदा चुनिंदा सौ गीत



भारतीय सिनेमा नेआज सौ बरस पूरे कर लिये। मूक फि‍ल्‍मों से बोलती फि‍ल्‍मों और संगीतमय
फि‍ल्‍मों से आज तक का संगीत सफर दिन दूनी रात चौगुनी सफलता के साथ आगे बढ़ रहा है।
भारतीय सिनेमा के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्‍य में
 मुंबई में दादा साहब फालके की प्रतिमा के साथ
एक समारोह में ए0 आर0 रहमान व अन्‍य फि‍ल्‍मी हस्तियाँ 
आज भारतीय फि‍ल्‍मों और अदाकारों को आज अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर ख्‍याति प्राप्‍त हो रही है। कौन भूल सकता है आज भी 'मुगल-ए-आज़म, मेरा नाम जोकर, शोले, जंजीर, वक्‍त, गाँधी, हक़ीक़त, हीर-राँझा, नागिन, लैला-मजनूँ, क्रांतिवीर, सौदागर, घातक, देवदास, हिना,  वीर-ज़ारा आदि।  आज बॉलिवुड को दुनिया में कौन नहीं जानता। दुनिया के हर कोने में भारतीय मौजूद है, वह भारत की हिन्‍दी फि‍ल्‍मों का दीवाना है। पड़ौसी देश पाकिस्‍तान के साथ हमारे भले ही हमारे राजनीति और कूटनीति सम्‍बंध कैसे भी हों किंतु कला और संगीत को कोई सीमाओं में नहीं बाँध सका है।
मेरी संगीत यात्रा के 25 बरस बॉलिवुड के संगीत का समर्पित रहे हैं। 1980 से 2005 तक का मेरा संगीत सफर आर्केष्‍ट्रा के माध्‍यम से आज भी मेरी स्‍मृति में संग्रहीत है। यहाँ प्रस्‍तुत हैं, वे गीत जो मैंने आर्केस्‍ट्रा समूहों के साथ बजाये और आज भी मेरे पसंदीदा गीतों में हैं। आप भी सुनिये और सोचिए कि कितना अनुपम संगीत है, हमारी भारतीय फि‍ल्‍मों का जिनमें अनुकरणीय योगदान है संगीतकार नौशाद,मदनमोहन, एस0 डी0 बर्मन, आर0 डी0 बर्मन,  लक्ष्‍मीकांत प्‍यारेलाल, कल्‍याणजी आनंदजी, सलिल चौधरी, शंकर जयकिशन,खैयाम, सपन जगमोहन, सोनिक ओमी, शिव हरि, नदीम श्रवण, बप्‍पी लाहिरी, पं0रविशंकर आदि शख्सियतों का, जिनका अवदान चिर स्‍मरणीय रहेगा, और उन गीतकारों का जिन्‍होंने यादगार गीत दिये  कवि प्रदीप, नीरज, हसरत जयपुरी, शैलेंद्र, मजरूह सुल्‍तानपुरी, कैफ़ी आज़मी,आनंद बख्‍शी, राजा मेंहदी अली खाँ, आनंद बख्‍शी, गुलज़ार आदि जिनके गीतों को गाया और उनकी आवाज अमर हो गयी जैसे मोहम्‍मद रफी, मुकेश, किशोर, शमशाद बेगम, बेगम अख्‍तर, मदन मोहन आदि। आज बॉलिवुड में ऐसा रत्‍न मोज़ूद है जो आज हॉलिवुड में भी नहीं, वह है स्‍वर सम्राज्ञी भारत रत्‍न लता मंगेशकर
आइये उन गीतों को यू ट्यूब पर सुनें और संग्रह करें, मेरे पसंदीदा सौ गीत, आशा है आपको भी पसंद आएँगे-  1- सौ साल पहले मुझेतुमसे प्‍यार था 2- मेरे मेहबूब कयामत होगी 3- हँसता हुआ नूरानी चेहरा 4- वो जबयाद आए बहुत याद आए 5- तू छुपी है कहाँ मैं तड़पता यहाँ 6- मुझे तेरी मुहब्‍बत कासहारा मिल गया होता 7- ये परबतों के दायरे ये शाम का धुँआ 8- बहारो फूल बरसाओ 9- इक प्‍यार का नग्‍मा है 10- पानी रे पानी 11- पंख होते तो उड़ आती रे 12- सुनो सजना पपीहे ने 13- याद न जाये बीते दिनों की 14- ये दुनिया ये महफि‍ल मेरे काम की नहीं 15- चले जाना जरा ठहरो किसी का दिल मचलता है 16- ऐ भाई जरा देख के चलो 17- जानेकहाँ गये वो दिन 18- जीना यहाँ मरना यहाँ 19- दिल करे रुक जा रे रुक जा यहीं पेकहीं 20- रहा गर्दिशों में हर दम 21- चलो इक बार फि‍र से अजनबी बन जायें हम दोनों 22- आज इस दर्ज पिला दे कि न कुछ याद रहे 23- झनक झनक तोरे बाजे पायलिया 24- गीतगाता हूँ मैं गुनगुनाता हूँ मैं 25- आजा तुझको पुकारे मेरे गीत रे 26- आजा रे प्‍यारपुकारे 27- दिल ने फि‍र याद किया 28- दिल आज शायर है ग़म आज नग्‍मा है शब ये ग़ज़ल हैसनम 29- चूड़ी नहीं मेरा दिल है 30- ओ मेरी ओ मेरी ओ मेरी शर्मीली 31- मेघा छायेआधी रात 32- मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरा न कोई 33- हमको मन की शक्ति देना मन विजयकरें 34- जागो मोहन प्‍यारे 35- मीत ना मिला रे मन का 36- मैं तो चला जिधर चले रस्‍ता 37- चला जाता हूँ किसी की धुन में धड़कते दिल के तराने लिए 38- जिन्‍दगी इक सफर हैसुहाना 39- मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू 40- रूप तेरा मस्‍ताना प्‍यार मेरादीवाना 41- ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं हम क्‍या करें 42- बहारो मेरा जीवन भीसँवरो 43- हे तेरे साथ मेरी वफ़ा मैं नहीं तो क्‍या 44-तू चंदा मैं चाँदनी 45- दिल क्‍या करे जब किसी को किसी से प्‍यार हो जाये 46- कि आजा तेरी याद आई 47- मार दिया जाये कि छोड़ दिया जाये 48- हाय शरमाऊँ किस किस को बताऊँ 49- अकेले अकेले कहाँ जा रहे हो 50- पत्‍थर केसनम तुझे हमने मुहब्‍बत का खुदा माना 51- ये समाँ समाँ है ये प्‍यार का किसी केइंतज़ार का, दिल न चुरा ले कहीं मेरा मौसम बहार का 52- तू जहाँ जहाँ चलेगा मेरासाया साथ होगा 53- दीवानों से ये मत पूछो दीवानों पे क्‍या गुजरी है 54- ये तो सचहै कि भगवान है 55- बाबूजी धीरे चलना प्‍यार में जरा सम्‍हलना 56- सुहानी चाँदनीरातें हमें सोने नहीं देती 57- होठों पे ऐसी बात में छुपा के चली आई 58- हुस्‍नहाजिर है मुहब्‍बत की सज़ा पाने को, कोई पत्‍थर से ना मारे मेरे दीवाने को 59- मैंशायर तो नहीं 60- न तुम हमें जानो न हम तुम्‍हें जाने 61- तुझसे नाराज नहीं जिन्‍दगीहैरान हूँ 62- आजा रे अब मेरा दिल पुकारा रो रो के ग़म भी हारा 63- छोड़ दे सारीदुनिया किसी के लिए 64- चंदन सा बदन चंचल चितवन 65- दुनिया बनाने वाले क्‍या तेरेमन में समाई काहे को दुनिया बनाई 66- चला भी आ आजा रसिया ओ जाने वाले आजा तेरी यादसताये 67- खुदा भी आसमा से जम जमीं पर देखता होगा 68- कहीं दीप जले कहें दिल 69-मेरे नैना सावन भादों फि‍र भी मेरा मन प्‍यासा 70- हमें और जीने की चाहत न होती 71- आजा आई बहार दिल है बेकरार ओ मेरे राजकुमार तेरे बिन रहा न जाये 72- मेरा प्‍यारभी तू है ये बहार भी तू है 73- याहू चाहे कोई मुझे जंगली कहे 74- जिन्‍दगी कैसी हैपहेली हाए  75- रोते हुए आते हैं सब 76- ना मुँह छिपा के जियो और न सर झुका के जियो  77- छलकायें जाम आइये आपकी आँखों के नाम 78- इक दिन बिकजाएगा माटी के मोल 79- छू कर मेरे मन को किया तूने क्‍या इशारा 80- नीले नीले अंबरपे चाँद जब आए 81- तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं 82- सुहानी रात ढल चुकीना जाने तुम कब आओगी 83- मैं हूँ खुशरंग हिना 84- देर न हो जाये कहीं देर न हो जाए 85- वादा करले साजना तेरे बिन मैं न रहूँ 86- जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा 87-परदेसी परदेसी जाना नहीं 88- नैनों में बदरा छाये 89- यारा सिली सिली 90- ये शहरहै अमन का 91- ऐ मेरे हमसफर 92- आया तेरे दर पर दीवाना 93- धरती सुनहरी अंबर नीलाहर मौसम रंगीला ऐसा देश है मेरा 94- हम तुम युग युग से ये गीत मिलन के  95- तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रकखा क्‍याहै 96- ये रेशमी जुल्‍फ़ें ये शरबती आँखें 97- आके तेरी बाहों में हर शाम लगेसिंदूरी 98- चुरा लिया है तुमने जो दिल को 99- ओ बेकरार दिल हो चुका है मुझकोआँसुओं से प्‍यार 100- अच्‍छा तो हम चलते हैं

ऐसे ही बढ़ता रहे हमारा सिनेमा । मेरी शुभकामनायें।


u tube , wikipidia और सुलेखा डॉट कॉम से साभार।