आश्विन शुक्ल दशमी मास के शुक्ल पक्ष के शुरुआती नौ दिन भारतीय संस्कृति में नवरात्र के नाम से शक्ति की पूजा के लिए निर्धारित है
इन दिनों शक्ति की अधिष्ठात्री देवी माता दुर्गा की आराधना, उपासना व अर्चना की जाती है। 1- शैलपुत्री 2- ब्रह्मचारिणी 3-चंद्रघंटा 4-कूष्मादण्डा 5-स्कन्दमाता 6- कात्यायनी 7- कालरात्रि 8- महागौरी 9- सिद्धिदात्री। ये नौ रूप दुर्गा के ही अन्य प्रतीक हैं, जो शक्ति के सशक्त संबल हैं। दुर्गा का अर्थ ही है-दुर्गम, कठिनता से प्राप्ति के योग्य शक्ति।
दुर्गा के आठ हाथों में से सात हाथों में शक्ति के प्रतीक चिह्न हैं। शंख, चक्र, गदा, पद्म, त्रिशूल, खड्.ग व धनुषबाण। आठवाँ हाथ ऊँ से अंकित खाली व आशीर्वाद का प्रतीक है। आशीर्वाद भी स्वयं एक महाशक्ति है, जो प्रेरिका व निर्माण करने वाली है। योग दर्शन में आठ प्रकार की सिद्धियाँ, शक्तियाँ मानी गईं हैं- अणिमा, गरिमा, लघिमा, महिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, एवं वशित्व। ये सब अनादि,अनंत व अखण्ड स्वरूपा, आदितिनमिका माता दुर्गा के ही प्रतिरूप हैं।
इस शक्ति स्वरूपा माता की हुंकार को वैदिक ऋचाओं में भी सुना जा सकता है। ‘वागाम्भृतणी सूक्तं (ऋग्वेद) के आठ मंत्र दुर्गा माँ के निखिल स्वरूप व समस्त शक्तियों के प्रतिनिधि रूप है। ब्रह्मा,विष्णु व महेश, जो जगत् के क्रमश: निर्माता, पालयिता व संहर्ता के रूप में जाने जाते हैं- इन सब देवताओं की शक्ति को माता दुर्गा ने अपने हाथों में समेट रखा है। ब्रह्मा के चारों अस्त्र-शस्त्र, शंख-चक्र, गदा-पद्म, दुर्गा के नियंत्रण में हैं।
शंख- शंख प्रतीक है स्फूर्ति एवं चेतना का। शंखनाद युवाओं में प्राण फूँक देता है। कुरुक्षेत्र के समरांगण में भी सभी ने अपने शंखों को फूँका था। ‘शंख दध्मौ प्रतापवान्।‘ (गीता) श्रीकृष्ण का पांचजन्य समाज के (पाँचों जनों)(पाँच पाण्डखवों) को जागरूक करता था।
चक्र- चक्र काल व गति का प्रतीक है। केन्द्र बिन्दु व केन्द्र के चारों ओर की परिधि के माध्यम से सम्पूर्ण जगत् व ब्रह्माण्ड का प्रतिनिधि रूप है चक्र। अखण्ड कराल ‘काल’ जो सबको पीछे छोड़ जाता है, महाशक्तिज का रूप है।
गदा- गदा को त्रोटक, प्रस्फोटक, भंजक व विध्वंसकारी माना गया है, अत: यह शक्ति भी महामाया में ही निहित है।
त्रिशूल व धुनष- त्रिशूल व धनुष, पिनाकपाणि, त्रिशूलधारी शिव के अस्त्र हैं। त्रिनेत्र भगवान् शिव को त्रिशूल त्रिलोक के तीनों दु:खों का संहारक है। रुद्र शिव के लिए, दुर्गा धनुष की डोर खींच लेती हैं- ‘अहं रुद्राय धनुरातनोमि’ (ऋग्वेद) के इस मंत्र की छाया में दुर्गा के स्वरूप को देखा जा सकता है, जिसके बिना शिव शव के रूप में परिणत है। यजुर्वेद का रुद्राध्यामय भी रुद्र की महिमा का द्योतक है।
पद्म- पद्म यानि कमल खिलता हुआ सौंदर्य है। विध्वंस के पश्चात् सुंदरतम निर्माण का यह प्रतीक है। यह शक्तिमाँ दुर्गा में ही निहित है।
खड्.ग- यानि तलवार भी तुरंत वार का प्रतीक है। राक्षसों के झुंडों के मुंडों का कर्तक होने के कारण यह दुर्गा माता के हाथ की शोभा व शृंगार है। अष्टभुजाधारिणी, राक्षसमर्दिनी, आशीर्वाददात्री, माता दुर्गा सिंहासना है, यानि सिंह पर आसीन है। सिंह पशुराज है। मानवेतर प्राणियों की भी वे कर्त्री-धर्त्री हैं। इस तथ्य को इससे दर्शाया गया है- समग्रत: विविध अस्त्र-शस्त्रों के माध्यम से दुर्गा माता का जो शक्ति स्वरूप उभारा गया है, वह अप्रतिम व अनुपम है।
नवरात्र में दुर्गा पूजा के माध्यम से वस्तुत: शक्ति का ध्यान किया जाता है, क्योंकि ‘शक्तिर्यस्त्र विराजते से बलवान् स्थूलेषू क: प्रत्यय:’ अर्थात् जो व्यक्ति शक्तितमान् है, वही बलवान् व विजयवान् है।
(नवरात्र उपासना, फ्रेण्ड्स हेल्पलाइन, कोटा के प्रकाशन से साभार)
इन दिनों शक्ति की अधिष्ठात्री देवी माता दुर्गा की आराधना, उपासना व अर्चना की जाती है। 1- शैलपुत्री 2- ब्रह्मचारिणी 3-चंद्रघंटा 4-कूष्मादण्डा 5-स्कन्दमाता 6- कात्यायनी 7- कालरात्रि 8- महागौरी 9- सिद्धिदात्री। ये नौ रूप दुर्गा के ही अन्य प्रतीक हैं, जो शक्ति के सशक्त संबल हैं। दुर्गा का अर्थ ही है-दुर्गम, कठिनता से प्राप्ति के योग्य शक्ति।
दुर्गा के आठ हाथों में से सात हाथों में शक्ति के प्रतीक चिह्न हैं। शंख, चक्र, गदा, पद्म, त्रिशूल, खड्.ग व धनुषबाण। आठवाँ हाथ ऊँ से अंकित खाली व आशीर्वाद का प्रतीक है। आशीर्वाद भी स्वयं एक महाशक्ति है, जो प्रेरिका व निर्माण करने वाली है। योग दर्शन में आठ प्रकार की सिद्धियाँ, शक्तियाँ मानी गईं हैं- अणिमा, गरिमा, लघिमा, महिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, एवं वशित्व। ये सब अनादि,अनंत व अखण्ड स्वरूपा, आदितिनमिका माता दुर्गा के ही प्रतिरूप हैं।
इस शक्ति स्वरूपा माता की हुंकार को वैदिक ऋचाओं में भी सुना जा सकता है। ‘वागाम्भृतणी सूक्तं (ऋग्वेद) के आठ मंत्र दुर्गा माँ के निखिल स्वरूप व समस्त शक्तियों के प्रतिनिधि रूप है। ब्रह्मा,विष्णु व महेश, जो जगत् के क्रमश: निर्माता, पालयिता व संहर्ता के रूप में जाने जाते हैं- इन सब देवताओं की शक्ति को माता दुर्गा ने अपने हाथों में समेट रखा है। ब्रह्मा के चारों अस्त्र-शस्त्र, शंख-चक्र, गदा-पद्म, दुर्गा के नियंत्रण में हैं।
शंख- शंख प्रतीक है स्फूर्ति एवं चेतना का। शंखनाद युवाओं में प्राण फूँक देता है। कुरुक्षेत्र के समरांगण में भी सभी ने अपने शंखों को फूँका था। ‘शंख दध्मौ प्रतापवान्।‘ (गीता) श्रीकृष्ण का पांचजन्य समाज के (पाँचों जनों)(पाँच पाण्डखवों) को जागरूक करता था।
चक्र- चक्र काल व गति का प्रतीक है। केन्द्र बिन्दु व केन्द्र के चारों ओर की परिधि के माध्यम से सम्पूर्ण जगत् व ब्रह्माण्ड का प्रतिनिधि रूप है चक्र। अखण्ड कराल ‘काल’ जो सबको पीछे छोड़ जाता है, महाशक्तिज का रूप है।
गदा- गदा को त्रोटक, प्रस्फोटक, भंजक व विध्वंसकारी माना गया है, अत: यह शक्ति भी महामाया में ही निहित है।
त्रिशूल व धुनष- त्रिशूल व धनुष, पिनाकपाणि, त्रिशूलधारी शिव के अस्त्र हैं। त्रिनेत्र भगवान् शिव को त्रिशूल त्रिलोक के तीनों दु:खों का संहारक है। रुद्र शिव के लिए, दुर्गा धनुष की डोर खींच लेती हैं- ‘अहं रुद्राय धनुरातनोमि’ (ऋग्वेद) के इस मंत्र की छाया में दुर्गा के स्वरूप को देखा जा सकता है, जिसके बिना शिव शव के रूप में परिणत है। यजुर्वेद का रुद्राध्यामय भी रुद्र की महिमा का द्योतक है।
पद्म- पद्म यानि कमल खिलता हुआ सौंदर्य है। विध्वंस के पश्चात् सुंदरतम निर्माण का यह प्रतीक है। यह शक्तिमाँ दुर्गा में ही निहित है।
खड्.ग- यानि तलवार भी तुरंत वार का प्रतीक है। राक्षसों के झुंडों के मुंडों का कर्तक होने के कारण यह दुर्गा माता के हाथ की शोभा व शृंगार है। अष्टभुजाधारिणी, राक्षसमर्दिनी, आशीर्वाददात्री, माता दुर्गा सिंहासना है, यानि सिंह पर आसीन है। सिंह पशुराज है। मानवेतर प्राणियों की भी वे कर्त्री-धर्त्री हैं। इस तथ्य को इससे दर्शाया गया है- समग्रत: विविध अस्त्र-शस्त्रों के माध्यम से दुर्गा माता का जो शक्ति स्वरूप उभारा गया है, वह अप्रतिम व अनुपम है।
नवरात्र में दुर्गा पूजा के माध्यम से वस्तुत: शक्ति का ध्यान किया जाता है, क्योंकि ‘शक्तिर्यस्त्र विराजते से बलवान् स्थूलेषू क: प्रत्यय:’ अर्थात् जो व्यक्ति शक्तितमान् है, वही बलवान् व विजयवान् है।
(नवरात्र उपासना, फ्रेण्ड्स हेल्पलाइन, कोटा के प्रकाशन से साभार)
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