शनिवार, 17 जनवरी 2015

श्री मौजीबाबा प्राकट्योत्‍सव समारोह में रम्‍मू भैया की पुस्‍तक ‘रोकड़खाते सावन के’ का विमोचन

ब्र0मू0 श्री मौजी बाबा लोक कल्‍याण ट्रस्‍ट द्वारा समारोह का आयोजन महामण्‍डलेश्‍वर श्री हेमा सरस्‍वतीजी महाराज द्वारा की गई कन्‍या गुरुकुल खोले जाने की घोषणा
मंचासीन अतिथि बायें से श्री कैलाशचंद सर्राफ, श्री बशीर अहमद मयूख, महामण्‍डलेश्‍वर श्री हेमा सरस्‍वती महाराज, आयकर आयुक्‍त श्री मोहन स्‍वरूपजी, ट्रस्‍ट के अध्‍यक्ष गोविनदराम मित्‍तल
कोटा। 14 जनवरी, 2015। दिन था मकरसंक्रांति का। दोपहर दो बजे। ब्रह्ममूर्ति आचार्य मौजी बाबा के प्राकट्योत्‍सव के अवसर पर ब्र0मू0 श्री मौजी बाबा लोक कल्‍याण ट्रस्‍ट द्वारा आयोजित इस समारोह  में साहित्‍यानुरागियों, ट्रस्‍ट के पदाधिकारियों और उनके परिवार के सदस्‍य उपस्थित थे, जिनके बीच पुस्‍तक ‘रोकड़-खाते सावन के’ का भी विमोचन होना था। श्री राम मंदिर के प्रांगण में आयोजित इस समारोह में मंच पर विराजमान थे विशिष्‍ट अतिथि कोटा के आयकर आयुक्‍त श्री मोहन स्‍वरूप जी, अध्‍यक्ष श्री गोविंदराम मित्‍तल जो ट्रस्‍ट के अध्‍यक्ष भी हैं, ट्रस्‍ट के उपाध्‍यक्ष श्री मेहता, मुख्‍य अतिथि सर्वश्री महामंडलेश्‍वर श्री हेमासरस्‍वतीजी महाराज, प्रख्‍यात शायर श्री बशीर अहमद मयूख, श्री कैलाश चंद सर्राफ और पुस्‍तक के रचयिता रम्‍मू भैया।

सर्वप्रथम रम्‍मूभैया ने पधारे सभी मंचासीन अतिथियों व साहित्‍यकार व परिवारों का स्‍वागत किया। सर्वप्रथम मंचासीन अतिथियों ने माँ सरस्‍वती के चित्र पर पुष्‍पार्पित कर एवं दीपक प्रज्‍ज्‍वलित कर ब्र0मू0 श्री मौजीबाबा के चित्र पर माल्‍यार्पण किया। सरस्‍वती वंदना की गई। तत्‍पश्‍चात  ट्रस्‍ट के पदाधिकारियों ने मंचासीन सभी अतिथियों का माल्‍यार्पण कर सम्‍मान किया। सर्वप्रथम रम्‍मूभैया की पुस्‍तक का सभी मंचासीन विद्वानों ने विमोचन किया। तत्‍पश्‍चात् ट्रस्‍ट के पदाधिकारियों द्वारा लेखक रम्‍मूभैया का पीताम्‍बर पहना कर सम्‍मान किया गयाा। श्री कैलाशचंद सर्राफ द्वारा श्री रम्‍मू भैया को पगड़ी पहना कर सम्‍मानित कियाा
ट्रस्‍ट के पदाधिकारियों द्वारा सम्‍मानित होते रम्‍मू भैया 
साहित्‍यकार भगवती प्रसाद गौतम ने पुस्‍तक ‘रोकड़-खाते सावने के’ का समीक्षात्‍मक परिचय कराया । उन्‍होने पुस्‍तक के बहुआयामी छंदों का वर्णन किया। उन्‍होंने रम्‍मू भैया के कृतित्‍व और व्‍यक्तित्‍व का भी वर्णन किया- चाहे कूँची वाला चितेरा हो, या कलम वाला सृजनहार, उसका दिल बड़ा संवेदनशील होता है। यह लाजमी है। वेदना वैयक्तिक होती है। संवेदना उभयपक्षी होती है, जो इधर है वो उधर भी हो, वह संवेदना है। ऐसे में कवि की दृष्टि उस छोर पर भी पहुँचती है जहाँ सावन आपदा का कारण ही बन जाता है। उन्‍होंने रामेश्‍वर की पुस्‍तक के कुछ अंश सुनाये-

कैलाशचंद सर्राफ के साथ रम्‍मू भैया
सगा नहीं होता है भैया, सावन यार गरीबों का।
बनते ही देखा है उसको, बनगी भार गरीबों का।
बयाँ कलम भी कर न पाती, हाहाकार गरीबों का।
अस्‍त व्‍यस्‍त कर देता सावन, घर संसार गरीबों का।1।
उन्‍होंने एक और टीस भरी हक़ीकत इन पंक्तियों में बताई-
खड़ी फसल तो आड़ी पड़ती, कटी फसल बह जाती है।
कौन जानता तब किसान की छाती क्‍या सह जाती है।
सूनी आँखें, मौनी जिह़वा, वह मंजर कह जाती है।
कानों तक आई भी बेटी, बिन ब्‍याही रह जाती है।2।

परिचय के आखिरी सोपान में वे कहते हैं- यह हमारी अनुभूत पीड़ा है, हमारे घर परिवेश की। फि‍र भी सावन तो सावन है। सुमित्रानंदन पंत ने लिखा था-
पुस्‍तक परिचय देते साहितयकार भगवती प्रसाद गौतम





न जाने नक्षत्रों से कौन।  
निमंत्रण देता मुझको मौन।
और इसी तरह के छायावाद के दौर में रह कर उन्‍होने रचनायें की, किंतु रामेश्‍वर की कलम ने जो लिखा वह यथार्थ है। वे उनकी पुस्‍तक की शीर्षक छंदोबद्ध पंक्तियों को सुनाते हैं-
कौन खोल कर बैठा रहता, रोकड़ खाते सावन के,
महामण्‍डलेश्‍वर श्री हेमा सरस्‍वती महाराज प्रवचन देते हुए
किसने यार बनाये हमसे, सारे नाते सावन के। 
किसके दर से आते बादल, रस बरसाते सावन के, 
कौन छिपा बैठा है पीछे, आते जाते सावन के।  
अपने विचार प्रकट करते आयकर आयुक्‍त श्री मोहन स्‍वरूप जी

सावन की नज़र में न कोई छोटा है न कोई बड़ा, न कोई तुच्‍छ है न काई विशाल, वो तो एक दम खरा है, एक दम निष्‍पक्ष। हमने शब्‍द को ब्रह्म माना है, तो शब्‍दकार यहाँ स़ृष्‍टा हो जाता है, ऐसे में कवि के चिन्‍तन का विस्‍तार उस विराट़ सत्‍ता से जोड़ देता है। ऐसी ही रचनाओं से सराबोर रम्‍मू भैया की रचनाओं पर कवि भगवती प्रसाद गौतम ने उनकी पुस्‍तक का परिचय दिया। परिचय के बाद  सभी मंचासीन अतिथियों ने कवि रामेश्‍वर रम्‍मू भैया के बारे में अपने अपने विचार व्‍यक्‍त कर पुस्‍तक पर छंदों की माला प्रस्‍तुत करने पर बधाइयाँ दी। ट्रस्‍ट के अध्‍यक्ष श्री मित्‍तल ने तो यहाँ तक कहा कि व्‍यवसायियों को अपनी रोकड़ बही रखने में परेशानियाँ आती हैं, मगर रम्‍मू भैया ने आसानी से सावन का लेखाजोखा बता कर आम जन जीवन की परेशानियों का बहुत ही सुंदर वर्णन कर एक ऐतिहासिक दस्‍तावेज बनाया है। मुख्‍य अतिथि महामंडलेश्‍वर श्री हेमा सरस्‍वतीजी महाराज ने अपने भाषण में रामेश्‍वर रम्‍मू भैया को बधाइ्र देते हुए कहा संत ग्रंथ और साहित्‍य से इतिहास बनता है। संत से परम्‍पराओं का निर्वाह, ग्रंथों में इतिहास रचा जाता है और साहित्‍य हमेशा जीवित रहता है। प्राकृतिक सावन तो हर वर्ष आता है किंतु रम्‍मू भैया ने जो सावन रचा है वह एक इतिहास बनेगा। उन्‍होंने ट्रस्‍ट की प्रतिष्‍ठापना पर संतोष व्‍यक्‍त करते हुए कहा कि अब मुझे लगता है कि पूरी ऊर्जा से हम काम कर सकेंगे और आप सब के सहयोग से शीघ्र ही कन्‍या गुरुकुल की स्‍थापना का हमारा सपना साकार होगा। जिसमें गरीब, अनाथ लड़कियों को संस्‍कार दिये जायेंगे, गुरुकुल की परम्‍पराओं, भारतीय संस्‍कृति को साकार किया जायेगा ताकि योग्‍य पढ़ लिख कर वे अपना जीवन सँवार सकें। 
पधारे साहित्‍यकार बायें से श्री भगवती प्रसाद गौतम,डा0 इंद्रबिहारी सक्‍सैन, श्री निर्मल पाण्‍डे,श्री भगवत सिंह जादौन मयंक, डा0 रघुनाथ मिश्र सहज, श्री नंदन चतुर्वेदी, श्रीमती प्रमिला आर्य, श्रीमती गीता जाजपुरा, ट्रस्‍ट के परिवार व पदाधिकारीगण आदि 
       कार्यक्रम के अंत में पधारे शहर के ख्‍यातनाम साहित्‍यकार भगवत सिंह जादौन मयंक, डा0 नलिन, निर्मल पांडेय, डा0 इन्‍द्रबिहारी सक्‍सैना, डा0 रघुनाथ मिश्र ‘सहज’, डा0 गोपाल कृष्‍ण भट्ट ‘आकुल’, प्रमिला आर्य, गीता जाजपुरा, ओम नागर, भगवती प्रसाद गौतम, आदि, सभी नागरिकों, ट्रस्‍ट के परिवारों का आभार व्‍यक्‍त किया ट्रस्‍ट के उपाध्‍यक्ष श्री मेहता ने। 
आश्रम के कर्मचारियों के साथ महामंडलेश्‍वर 
आश्रम के बच्‍चों के साथ महामण्‍डलेश्‍वर
   
     कार्यक्रम के अंतिम दौर में आश्रम में कार्यरत छोटे छोटे बच्‍चों को ऊनी वस्‍त्र दिये गये। कर्मचारियों को कम्‍बल बाँटे गये। आश्रम की ओर से मकर संक्रांति पर आयोजित भंडारे में सभी पधारे अतिथियों व साहित्‍यकारों, परिवारों ने भोजन ग्रहण किया।

शनिवार, 10 जनवरी 2015

श्रीनाथद्वारा में अ. भा. राष्ट्रभाषा प्रतिष्ठापन समारोह एवं कवि सम्मेलन सम्पन्न

हिंदी को राष्‍ट्रभाषा का संवैधानिक  सम्‍मान
मिले, उद्बोधन करते डा0 रघुनाथ मिश्र, कोटा 
दो दिवसीय समारोह में पहुँचे अतिथिगण
राजस्थान की तीर्थ नगरी श्रीनाथद्वारा में दो दिवसीय साहित्यिक समारोह के अन्तर्गत 6-7 जनवरी को अ. भा. कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। साहित्य मंडल श्रीनाथद्वारा के संस्थापक स्व. भगवती प्रसाद देवपुरा की प्रथम पुण्यतिथि पर सम्पन्न हुए कवि सम्मेलन के अन्तर्गत देश के कोने कोने से आये  कवियों ने बढ़चढ़ कर भाग लिया। जिसकी अध्यक्षता जयपुर के आशुकवि डॉ. नाथूलाल महावर एवं संचालन गाफिल स्वामी व सुशील सरित ने संयुक्त रूप से किया। काव्यपाठ करने वाले कवियों में डॉ. रघुनाथ मिश्र (कोटा), हरिओम तरंग (मेड़ता सिटी), डॉ. राजेन्द्र मिलन - अशोक अश्रु - सुशील सरित (आगरा), प्रो. यश कुमार ढाका - जयवीर सिंह यादव (मेरठ), हीरालाल सहनी (दरभंगा),
श्री अवशेष कुमार 'विमल', हाथरस सम्‍मानित
डा0 रघुनाथ मिश्र, कोटा सम्‍मानित
हरीलाल मिलन (कानपुर), अवशेष कुमार विमल - श्यामबाबू चिन्तन (हाथरस), सत्यनारायण मधुप - वंशीलाल पारस (भीलवाड़ा), रमेश कटारिया पारस – कमलेश कमल (ग्वालियर), डॉ. मंजुलादास (दिल्ली), सुनीता शर्मा (गुड़गाँव), सुधीर खरे कमल (बाँदा), डॉ. सरोज गुप्ता (आगरा), मनोज फगबाड़वी, विकास मिश्र, कमल किशोर शर्मा आदि के नाम प्रमुख हैं। दूसरे दिन 7 जनवरी को समस्त आमन्त्रित साहित्यकारों को उमाशंकर मिश्र एवं श्याम देवपुरा आदि आयोजकों ने प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिह्न एवं उपहार देकर ससम्मान विदा किया। स्मरण रहे कि यह दो दिवसीय आयोजन प्रतिवर्ष अ. भा. राष्ट्रभाषा प्रतिष्ठापना समारोह के रूप में मनाया जाता है।
श्री अवशेष कुमार 'विमल', सम्‍पादक 'शेषामृत', सरौठ, हाथरस) द्वारा प्रेषित

मंगलवार, 6 जनवरी 2015

मैं खिज़ाओं से दामन बचाता नहीं । मौसमे गुल मुझे रास आता नहीं।। -फ़रीद

‘शेषामृत’ के सम्‍पादक अवशेष ‘विमल’, कवि श्‍याम बाबू ‘चिंतन’ और
प्रख्‍यात दोहाकार गाफ़ि‍ल स्‍वामी के कोटा आगमन पर
जलेस की गोष्‍ठी डा0 मिश्रजी के निवास पर सम्‍पन्‍न
 बायें से दायें- श्री श्‍याम बाबू 'चिन्‍तन', श्री अवशेष कुमार 'विमल', डा0 रघुनाथ मिश्र 'सहज' और श्री गाफ़ि‍ल स्‍वामी 
कोटा। 5 जनवरी, 2015। प्रख्‍यात त्रैमासिक पत्रिका ‘शेषामृत’ के सम्‍पादक अवशेष कुमार ‘विमल’, कवि श्‍याम बाबू ‘चिन्‍तन’ और इगलास अलीगढ़ से दिनांक 5-1-2015 को पधारे प्रख्‍यात दोहाकार गा‍फ़ि‍ल स्‍वामी के कोटा आगमन पर आनन-फानन सजायी गयी काव्‍यगोष्‍ठी में कोटा के नामवर ग़ज़लकारों, साहित्‍यकारों, कवियों ने जोशोखरोश के साथ अपने अपने मिजाज की रचनायें पढ़ीं और गोष्‍ठी को यादगार बना दिया।
डा0 रघुनाथ मिश्र ‘सहज’ ने पधारे अतिथियों का परिचय कराया और कार्यक्रम का संचालन सम्‍हाला। गोष्‍ठी का आरंभ सूफ़ी शायर डा0 फ़रीद अहमद फ़रीद की सरस्‍वती वंदना से हुआ-
उन्‍ही का सच्‍चा हुआ समर्पण, जो तरे चरणों में आ गये हैं।
शरण तुम्‍हारी जो आ गये हैं, लिया नहीं था वो पा गये हैं।‘
अवशेष कुमार ‘विमल’ ने जनवादी तेवर की रचनाओं से गोष्‍ठी का शुभारंभ किया-
मौत में ज़िन्‍दगी की शर्त जारी है।
कोई इन्‍कम है नहीं पर खर्च जारी है।

सदी इक्‍कीसवीं है कोई हथकण्‍डा नहीं होगा।
धर्म के नाम पर आपका चंदा नहीं होगा।
अपने गीत ‘ये बता मुझको कि हिन्‍दी की ख़ातिर क्‍या लिखा’ सुना कर उन्‍होंने विश्राम लिया।
इसके बाद आये जनवादी कवि डा0 योगेन्‍द्र मणि कौशिक-
ये लेखनी स्‍वतंत्र है, अंतिम क्षण तक संघर्ष करेगी।
लेकिन तिजोरी की कैद कभी स्‍वीकार नहीं करेगी।' से गोष्‍ठी को ऊँचाइयाँ प्रदान की। यू0पी0 से ही पधारे कवि शयाम बाबू 'चिंतन' ने पर्यावरण की चिंता और व्‍यसन करने वालों को निशाना साधते हुए अपनी रचना-
‘जीवन सुगम बनने को तुम हरियाली की बात करो।
व्‍यसनियो, मजहब, त्‍याग प्रेम की प्‍याली की बात करो।
तुम मानवता विकसित करके खुशहाली की बात करो।

सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारत की दुर्दशा पर उन्‍होंने अपनी अगली रचना कही-
‘सोने की चिड़िया बन बहुत लुटा देश,
मगर अब देश को सोने का शेर होना चाहिए।
बायें से दायें- गा‍फि‍ल स्‍वामी, डा0 रघुनाथ मिश्र, डा0 फ़रीद, वेदप्रकाश परकाश, डा0 योगेन्‍द्रमणि कौशिक

कोटा के बुलंद आवाज के धनी शायर वेद प्रकाश ‘परकाश’ ने अपनी ग़ज़ल अपने चिरपरिचित अंदाज में सुनाई-
‘उनकी जुबां खामोश सही, जब नज़र मिली,
मेरे पयामे इश्‍क का जवाब हो गयी।
सूरत किसी की सूरते गुलाब हो गयी,
मिलकर नज़र वो माइले खि़ज़ाब हो गयी।
परकाश और कितना पियोगे ये ज़हरे ग़म,
कि पीते पीते ज़िन्‍दगी अजाब हो गयी।
डा0 फ़रीद ने भी अपने सूफ़ी अंदाज़ में गोष्‍ठी को एक मक़ाम दिया-
मैं ख़िजाओं से दामन बचाता नहीं।
मौसमे गुल मुझे रास आता नहीं।
घर तो घर के चराग़ों से ही जल गया,
और हँसी ही हँसी में कोई छल गया,
दिल्‍लगी बन गयी यार दिल की लगी,
फि‍र ये शिकवा कि मैं मुस्‍कुराता नहीं।
मैं ख़िजाओं से दामन बचाता नहीं।
संचालन कर रहे डा0 रघुनाथ मिश्र ने भी अपनी जनवादी रचना सुनाई-
कहा अलविदा है विगत को सदा।
ये है सभ्‍यता सांस्‍कृतिक कायदा।
अलीगढ़ से पधारे प्रख्‍यात दोहाकार ग़ाफ़ि‍ल स्‍वामी ने अपने दोहों से जनवादी तेवर दिखाये-
महँगे कपड़े पहन कर, बने न रंक अमीर।
गाफ़ि‍ल वही अमीर है, जिसका रंग अमीर।।
कई दोहे सुना कर अंत में उन्‍होंने एक मुक्‍तक से गोष्‍ठी को समापन की ओर अग्रसर किया-
हम वतन में अमन लाना चाहते है।
चैन की वंशी बजाना चाहते है।
कुछ सियासी लोग कुर्सी के लिए
आग मजहब की लगाना चाहते हैं।
 बायें से दायें- श्री श्‍याम बाबू 'चिन्‍तन', डा0 गोपाल कृष्‍ण भट्ट 'आकुल', , डा0 रघुनाथ मिश्र 'सहज' और श्री गाफ़ि‍ल स्‍वामी 

गोष्‍ठी के समापन के बाद मिलने मिलाने, अल्‍पाहार का दौर आरंभ हुआ। शेषामृत के सम्‍पादक श्री विमल ने शेषामृत का हाल ही में जारी हुआ 'मुक्‍तक बानगी' विशेषांक सभी कवियों साहित्‍यकारों को बाँटा। गोष्‍ठी के बाद अपरिहार्य कारणों से विलम्‍ब से पधारे जलेस के कोटा शहर इकाई अध्‍यक्ष डा0 गोपाल कृष्‍ण भट्ट ‘आकुल’ ने पधार कर तीनों अतिथियों से कुशलक्षेम पूछ कर अपना परिचय दिया और अपने देशभक्ति गीत ‘मेरा भारत महान्’ रचना सुनाई- 
छिन्‍न-भिन्‍न ना हो यह संस्‍कृति, अस्मिता की पहचान रहे।
याद दिलाता रहे हमेशा, हमको यह अभिमान रहे।
नभ जल थल पर आन है अपनी, ध्‍वज निर्भय गणमान्‍य रहे।
वेदों से अभिमंत्रित मेरा, भारतवर्ष महान् रहे।
श्री आकुल ने तीनों अतिथियों को अपनी लघुकथा संग्रह ‘अब रामराज्‍य आएगा !! भेंट की। श्रीनाथद्वारा की साहित्यिक, सांस्‍कृतिक और धार्मिक यात्रा के लिए उन्‍होंने तीनों अतिथियों और डा0 मिश्र को रात्रि नौ बजे सिद्धि विनायक ट्रावेल में बैठा कर श्री नाथद्वारा के लिए विदा किया।