‘शेषामृत’ के सम्पादक अवशेष ‘विमल’, कवि श्याम बाबू ‘चिंतन’ और
प्रख्यात दोहाकार गाफ़िल स्वामी के कोटा आगमन पर
जलेस की गोष्ठी डा0 मिश्रजी के निवास पर सम्पन्न
बायें से दायें- श्री श्याम बाबू 'चिन्तन', श्री अवशेष कुमार 'विमल', डा0 रघुनाथ मिश्र 'सहज' और श्री गाफ़िल स्वामी |
डा0 रघुनाथ मिश्र ‘सहज’ ने पधारे अतिथियों का
परिचय कराया और कार्यक्रम का संचालन सम्हाला। गोष्ठी का आरंभ सूफ़ी शायर डा0 फ़रीद
अहमद फ़रीद की सरस्वती वंदना से हुआ-
उन्ही का सच्चा हुआ समर्पण, जो तरे चरणों
में आ गये हैं।
शरण तुम्हारी जो आ गये हैं, लिया नहीं था वो
पा गये हैं।‘
अवशेष कुमार ‘विमल’ ने जनवादी तेवर की रचनाओं
से गोष्ठी का शुभारंभ किया-
मौत में ज़िन्दगी की शर्त जारी है।
कोई इन्कम है नहीं पर खर्च जारी है।
सदी इक्कीसवीं है कोई हथकण्डा नहीं होगा।
धर्म के नाम पर आपका चंदा नहीं होगा।
अपने गीत ‘ये बता मुझको कि हिन्दी की ख़ातिर
क्या लिखा’ सुना कर उन्होंने विश्राम लिया।
इसके बाद आये जनवादी कवि डा0 योगेन्द्र मणि कौशिक-
ये लेखनी स्वतंत्र है, अंतिम क्षण तक संघर्ष
करेगी।
लेकिन तिजोरी की कैद कभी स्वीकार नहीं
करेगी।' से गोष्ठी को ऊँचाइयाँ प्रदान की। यू0पी0 से ही पधारे कवि शयाम बाबू 'चिंतन' ने पर्यावरण की चिंता और व्यसन करने वालों को निशाना साधते हुए अपनी रचना-
‘जीवन सुगम बनने को तुम हरियाली की बात करो।
व्यसनियो, मजहब, त्याग प्रेम की प्याली की
बात करो।
तुम मानवता विकसित करके खुशहाली की बात करो।
सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारत की दुर्दशा
पर उन्होंने अपनी अगली रचना कही-
‘सोने की चिड़िया बन बहुत लुटा देश,
मगर अब देश को सोने का शेर होना चाहिए।
बायें से दायें- गाफिल स्वामी, डा0 रघुनाथ मिश्र, डा0 फ़रीद, वेदप्रकाश परकाश, डा0 योगेन्द्रमणि कौशिक |
कोटा के बुलंद आवाज के धनी शायर वेद प्रकाश ‘परकाश’
ने अपनी ग़ज़ल अपने चिरपरिचित अंदाज में सुनाई-
‘उनकी जुबां खामोश सही, जब नज़र मिली,
मेरे पयामे इश्क का जवाब हो गयी।
सूरत किसी की सूरते गुलाब हो गयी,
मिलकर नज़र वो माइले खि़ज़ाब हो गयी।
परकाश और कितना पियोगे ये ज़हरे ग़म,
कि पीते पीते ज़िन्दगी अजाब हो गयी।
डा0 फ़रीद ने भी अपने सूफ़ी अंदाज़ में गोष्ठी
को एक मक़ाम दिया-
मैं ख़िजाओं से दामन बचाता नहीं।
मौसमे गुल मुझे रास आता नहीं।
घर तो घर के चराग़ों से ही जल गया,
और हँसी ही हँसी में कोई छल गया,
दिल्लगी बन गयी यार दिल की लगी,
फिर ये शिकवा कि मैं मुस्कुराता नहीं।
मैं ख़िजाओं से दामन बचाता नहीं।
संचालन कर रहे डा0 रघुनाथ मिश्र ने भी अपनी
जनवादी रचना सुनाई-
कहा अलविदा है विगत को सदा।
ये है सभ्यता सांस्कृतिक कायदा।
अलीगढ़ से पधारे प्रख्यात दोहाकार ग़ाफ़िल स्वामी
ने अपने दोहों से जनवादी तेवर दिखाये-
महँगे कपड़े पहन कर, बने न रंक अमीर।
गाफ़िल वही अमीर है, जिसका रंग अमीर।।
कई दोहे सुना कर अंत में उन्होंने एक मुक्तक
से गोष्ठी को समापन की ओर अग्रसर किया-
हम वतन में अमन लाना चाहते है।
चैन की वंशी बजाना चाहते है।
कुछ सियासी लोग कुर्सी के लिए
आग मजहब की लगाना चाहते हैं।
बायें से दायें- श्री श्याम बाबू 'चिन्तन', डा0 गोपाल कृष्ण भट्ट 'आकुल', , डा0 रघुनाथ मिश्र 'सहज' और श्री गाफ़िल स्वामी |
गोष्ठी के समापन के बाद मिलने मिलाने, अल्पाहार
का दौर आरंभ हुआ। शेषामृत के सम्पादक श्री विमल ने शेषामृत का हाल ही में जारी
हुआ 'मुक्तक बानगी' विशेषांक सभी कवियों साहित्यकारों को बाँटा। गोष्ठी के बाद
अपरिहार्य कारणों से विलम्ब से पधारे जलेस के कोटा शहर इकाई अध्यक्ष डा0 गोपाल
कृष्ण भट्ट ‘आकुल’ ने पधार कर तीनों अतिथियों से कुशलक्षेम पूछ कर अपना परिचय
दिया और अपने देशभक्ति गीत ‘मेरा भारत महान्’ रचना सुनाई-
छिन्न-भिन्न ना हो यह संस्कृति, अस्मिता की
पहचान रहे।
याद दिलाता रहे हमेशा, हमको यह अभिमान रहे।
नभ जल थल पर आन है अपनी, ध्वज निर्भय गणमान्य
रहे।
वेदों से अभिमंत्रित मेरा, भारतवर्ष महान्
रहे।
श्री आकुल ने तीनों अतिथियों को अपनी लघुकथा
संग्रह ‘अब रामराज्य आएगा !! भेंट की। श्रीनाथद्वारा की साहित्यिक, सांस्कृतिक
और धार्मिक यात्रा के लिए उन्होंने तीनों अतिथियों और डा0 मिश्र को रात्रि नौ बजे
सिद्धि विनायक ट्रावेल में बैठा कर श्री नाथद्वारा के लिए विदा किया।
बहुत सुन्दर कवरेज है. आकुल को बधाई .
जवाब देंहटाएं-डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'