ब्र0मू0 श्री मौजी बाबा लोक कल्याण ट्रस्ट द्वारा समारोह का आयोजन महामण्डलेश्वर श्री हेमा सरस्वतीजी महाराज द्वारा की गई कन्या गुरुकुल
खोले जाने की घोषणा
मंचासीन अतिथि बायें से श्री कैलाशचंद सर्राफ, श्री बशीर अहमद मयूख, महामण्डलेश्वर श्री हेमा सरस्वती महाराज, आयकर आयुक्त श्री मोहन स्वरूपजी, ट्रस्ट के अध्यक्ष गोविनदराम मित्तल |
कोटा। 14 जनवरी, 2015। दिन था मकरसंक्रांति
का। दोपहर दो बजे। ब्रह्ममूर्ति आचार्य मौजी बाबा के प्राकट्योत्सव के अवसर पर
ब्र0मू0 श्री मौजी बाबा लोक कल्याण ट्रस्ट द्वारा आयोजित इस समारोह में साहित्यानुरागियों, ट्रस्ट के
पदाधिकारियों और उनके परिवार के सदस्य उपस्थित थे, जिनके बीच पुस्तक ‘रोकड़-खाते
सावन के’ का भी विमोचन होना था। श्री राम मंदिर के प्रांगण में आयोजित इस समारोह
में मंच पर विराजमान थे विशिष्ट अतिथि कोटा के आयकर आयुक्त श्री मोहन स्वरूप
जी, अध्यक्ष श्री गोविंदराम मित्तल जो ट्रस्ट के अध्यक्ष भी हैं, ट्रस्ट के
उपाध्यक्ष श्री मेहता, मुख्य अतिथि सर्वश्री महामंडलेश्वर श्री हेमासरस्वतीजी
महाराज, प्रख्यात शायर श्री बशीर अहमद मयूख, श्री कैलाश चंद सर्राफ और पुस्तक के
रचयिता रम्मू भैया।
सर्वप्रथम रम्मूभैया ने पधारे सभी मंचासीन
अतिथियों व साहित्यकार व परिवारों का स्वागत किया। सर्वप्रथम मंचासीन अतिथियों
ने माँ सरस्वती के चित्र पर पुष्पार्पित कर एवं दीपक प्रज्ज्वलित कर ब्र0मू0
श्री मौजीबाबा के चित्र पर माल्यार्पण किया। सरस्वती वंदना की गई। तत्पश्चात ट्रस्ट के पदाधिकारियों ने मंचासीन सभी
अतिथियों का माल्यार्पण कर सम्मान किया। सर्वप्रथम रम्मूभैया की पुस्तक का सभी
मंचासीन विद्वानों ने विमोचन किया। तत्पश्चात् ट्रस्ट के पदाधिकारियों द्वारा लेखक रम्मूभैया का पीताम्बर पहना कर सम्मान किया गयाा। श्री कैलाशचंद सर्राफ द्वारा श्री रम्मू भैया को पगड़ी पहना कर सम्मानित कियाा
ट्रस्ट के पदाधिकारियों द्वारा सम्मानित होते रम्मू भैया |
साहित्यकार भगवती प्रसाद गौतम ने पुस्तक
‘रोकड़-खाते सावने के’ का समीक्षात्मक परिचय कराया । उन्होने पुस्तक के
बहुआयामी छंदों का वर्णन किया। उन्होंने रम्मू भैया के कृतित्व और व्यक्तित्व
का भी वर्णन किया- चाहे कूँची वाला चितेरा हो, या कलम वाला सृजनहार, उसका दिल बड़ा
संवेदनशील होता है। यह लाजमी है। वेदना वैयक्तिक होती है। संवेदना उभयपक्षी होती
है, जो इधर है वो उधर भी हो, वह संवेदना है। ऐसे में कवि की दृष्टि उस छोर पर भी
पहुँचती है जहाँ सावन आपदा का कारण ही बन जाता है। उन्होंने रामेश्वर की पुस्तक
के कुछ अंश सुनाये-
कैलाशचंद सर्राफ के साथ रम्मू भैया |
सगा नहीं होता है भैया,
सावन यार गरीबों का।
बनते ही देखा है उसको,
बनगी भार गरीबों का।
बयाँ कलम भी कर न पाती, हाहाकार
गरीबों का।
अस्त व्यस्त कर देता सावन, घर संसार गरीबों का।1।
अस्त व्यस्त कर देता सावन, घर संसार गरीबों का।1।
उन्होंने एक और टीस भरी
हक़ीकत इन पंक्तियों में बताई-
खड़ी फसल तो आड़ी पड़ती,
कटी फसल बह जाती है।
कौन जानता तब किसान की
छाती क्या सह जाती है।
सूनी आँखें, मौनी
जिह़वा, वह मंजर कह जाती है।
कानों तक आई भी बेटी,
बिन ब्याही रह जाती है।2।
पुस्तक परिचय देते साहितयकार भगवती प्रसाद गौतम |
न जाने नक्षत्रों से कौन।
निमंत्रण देता मुझको मौन।
महामण्डलेश्वर श्री हेमा सरस्वती महाराज प्रवचन देते हुए |
किसने यार बनाये हमसे, सारे
नाते सावन के।
किसके दर से आते बादल, रस बरसाते सावन के,
कौन छिपा बैठा है पीछे, आते जाते सावन के।
अपने विचार प्रकट करते आयकर आयुक्त श्री मोहन स्वरूप जी |
सावन की नज़र में न कोई छोटा है न कोई बड़ा, न कोई तुच्छ है न काई विशाल, वो तो एक दम खरा है, एक दम निष्पक्ष। हमने शब्द को ब्रह्म माना है, तो शब्दकार यहाँ स़ृष्टा हो जाता है, ऐसे में कवि के चिन्तन का विस्तार उस विराट़ सत्ता से जोड़ देता है। ऐसी ही रचनाओं से सराबोर रम्मू भैया की रचनाओं पर कवि भगवती प्रसाद गौतम ने उनकी पुस्तक का परिचय दिया। परिचय के बाद सभी मंचासीन अतिथियों ने कवि रामेश्वर रम्मू भैया के बारे में अपने अपने विचार व्यक्त कर पुस्तक पर छंदों की माला प्रस्तुत करने पर बधाइयाँ दी। ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री मित्तल ने तो यहाँ तक कहा कि व्यवसायियों को अपनी रोकड़ बही रखने में परेशानियाँ आती हैं, मगर रम्मू भैया ने आसानी से सावन का लेखाजोखा बता कर आम जन जीवन की परेशानियों का बहुत ही सुंदर वर्णन कर एक ऐतिहासिक दस्तावेज बनाया है। मुख्य अतिथि महामंडलेश्वर श्री हेमा सरस्वतीजी महाराज ने अपने भाषण में रामेश्वर रम्मू भैया को बधाइ्र देते हुए कहा संत ग्रंथ और साहित्य से इतिहास बनता है। संत से परम्पराओं का निर्वाह, ग्रंथों में इतिहास रचा जाता है और साहित्य हमेशा जीवित रहता है। प्राकृतिक सावन तो हर वर्ष आता है किंतु रम्मू भैया ने जो सावन रचा है वह एक इतिहास बनेगा। उन्होंने ट्रस्ट की प्रतिष्ठापना पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि अब मुझे लगता है कि पूरी ऊर्जा से हम काम कर सकेंगे और आप सब के सहयोग से शीघ्र ही कन्या गुरुकुल की स्थापना का हमारा सपना साकार होगा। जिसमें गरीब, अनाथ लड़कियों को संस्कार दिये जायेंगे, गुरुकुल की परम्पराओं, भारतीय संस्कृति को साकार किया जायेगा ताकि योग्य पढ़ लिख कर वे अपना जीवन सँवार सकें।
कार्यक्रम के अंत में पधारे शहर के ख्यातनाम साहित्यकार भगवत सिंह जादौन
मयंक, डा0 नलिन, निर्मल पांडेय, डा0 इन्द्रबिहारी सक्सैना, डा0 रघुनाथ मिश्र
‘सहज’, डा0 गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’, प्रमिला आर्य, गीता जाजपुरा, ओम नागर, भगवती
प्रसाद गौतम, आदि, सभी नागरिकों, ट्रस्ट के परिवारों का आभार व्यक्त किया ट्रस्ट
के उपाध्यक्ष श्री मेहता ने।
आश्रम के कर्मचारियों के साथ महामंडलेश्वर |
आश्रम के बच्चों के साथ महामण्डलेश्वर |
कार्यक्रम के अंतिम दौर में आश्रम में कार्यरत छोटे छोटे बच्चों को ऊनी
वस्त्र दिये गये। कर्मचारियों को कम्बल बाँटे गये। आश्रम की ओर से मकर संक्रांति
पर आयोजित भंडारे में सभी पधारे अतिथियों व साहित्यकारों, परिवारों ने भोजन ग्रहण
किया।
बहुत शानदार समाचार कवरेज मय चित्र अति सराहनीय है. हार्दिक बधाई भाई आकुल .
जवाब देंहटाएं-डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'