मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

सान्निध्य: आगत का स्‍वागत करो, विगत न जाओ भूल


सान्निध्य: आगत का स्‍वागत करो, विगत न जाओ भूल: 1- आगत का स्‍वागत करो, विगत न जाओ भूल उसको भी सम्‍मान से, करो विदा दे फूल करो विदा दे फूल, सीख लो जाते कल से तोड़ दिये यह भ्रम, बँध...

रविवार, 15 दिसंबर 2013

'आकुल' के लघुकथा संग्रह 'अब रामराज्‍य आएगा !!' का विमोचन उज्‍जैन में सम्‍पन्‍न

पुस्‍तक 'अब राम राज्‍य आएगा' !!' का विमोचन करते अतिथि मंचासीन अतिथिगण 
'आकुल' को 'भारतीय भाषा रत्‍न' से सम्‍मानित करते पीठ
के कुलाधिपति श्री सुमनभाई संत एवं प्रतिकुलपति
 'सहज' को 'विद्यासागर' से
सम्‍मानित करते प्रतिकुलपति
उज्‍जैन।14-12-2013। चक्रतीर्थ के नाम से प्रख्‍यात महाकाल की नगरी उज्‍जैन के प्रख्‍यात मौनतीर्थ आश्रम के चित्रकूट प्रांगण में आयोजित विक्र‍मशिला हिन्‍दी विद्यापीठ, ईशीपुर, गांधीनगर, भागलपुर बिहार के 18वें अधिवेशन में पूरे भारत से पधारे सैंकड़ों साहित्‍यकारों, विद्वानों के मध्‍य 'आकुल' की पुस्‍तक 'अब रामराज्‍य आएगा का लोकार्पण हुआ। कोटा राजस्‍थान से डा0 रघुनाथ मिश्र 'स‍हज' को विद्यासागर से सम्‍मानित किया गया। 'आकुल' को भी इस समारोह में 'भारतीय भाषा रत्‍न' से सम्‍मानित किया गया। 12 दिसम्‍बर से 14 दिसम्‍बर तक चले इस अधिवेशन में पूरे देश से पधारे साहित्‍यकारों को भारत गौरव, समाजसेवी रत्‍न, विद्या  वाचस्‍पति, साहित्‍य शिरोमणि, महाकवि आदि सम्‍मानों से सम्‍मानित किया गया। इस अधिवेशन में कई साहित्‍यकारों की स्‍वरचित, सम्‍पादित पुस्‍तकों, पत्र-पत्रिकाओं, शोधग्रंथों आदि का भी विमोचन किया गया। सम्‍मानस्‍वरूप उन्‍हें प्रशस्तिपत्र, पीठ की शोध पत्रिका 'पीठ वार्ता', आश्रम की पत्रिका मानस वंदन एवं स्‍वर्ण, रजत व ताम्र पदक प्रदान किये गये। 
पीठ के 18वें अधिवेशन में पूरे भारत से पधारे साहित्‍यकार
    

शनिवार, 7 दिसंबर 2013

एक और गाँधी चला गया

नेल्‍सन मंडेला 
जैसे ही समाचार मिला मंडेला नहीं रहे। सारी दुनिया स्‍तब्‍ध रह गयी। महात्‍मा गाँधी के आदर्श पर चले दक्षिण अफ्रीकी अश्‍वेत नेता का छवि वहाँ ही नहीं सारी दुनिया में दूसरे गाँधी की थी। इसीलिए उनसे प्रभावित हो कर हमने उन्‍हें भारत रत्‍न से अलंकृत किया था। बापू ने रंगभेद की अपनी यात्रा दक्षिण अफ्रीका से आरंभ की थी। और पूरे विश्‍व मे यह लड़ाई एक क्रांति लाई और विश्‍व का परिदृश्‍य बदल गया। 5 दिसम्‍बर 2013 को अपनी अनंत या्त्रा को रवाना हुए इस नेता ने अपना आदर्श दुनिया को दिया और जीने का नया मार्ग दिखलाया जिस पर आज शक्तिमान अमेरिका भी चल रहा है। उनके इस सम्‍मान को 1990 में भारत ने अपने सर्वोच्‍च नागरिक सम्‍मान भारत रत्‍न से नवाज़ा। सत्‍य और अहिंसा का यह पुजारी 27 साल जेल में रह कर भी नहीं झुका। उनका आंदोलन जेल से भी प्रतिनिधित्‍व करता रहा। आज उनकी स्‍मृति शेष है किंतु वे आज दुनिया के हर एक दिलों में महात्‍मा की तरह ज़िन्‍दा हैं और हमेशा रहेंगे। बापू को राष्‍ट्रपिता का सम्‍मान मिला और मंडेला राष्‍ट्रपति पदस्‍थ हुए। उन्‍हें भावभीनी श्रद्धांजलि। 

शनिवार, 16 नवंबर 2013

सचिन की ऐतिहासिक विदाई


'सचिन' एक नाम, एक मान एक सम्‍मान एक कीर्तिमान। क़दम-क़दम पर जैसे कीर्तिमानों के फूल बिछे जा रहे हों। क्रिकिट में हर रन एक कीर्तिमान था उनका। अब उस दिन देखिए 14 नवम्‍बर 2013 का दिन। कीर्तिमान लिखने वाले शायद जानते हैं या नहीं लेकिन मैंने इस ऐतिहासिक कीर्तिमान का जोड़ ऐसे बैठाया है। शायद आपको भी अच्‍छा लगे। 14 नवम्‍बर को जब सचिन विदाई के आखिरी मैच में उतर रहे थे, उनके साथ एक कीर्तिमान चल रहा था। वे तब तक टेस्‍ट क्रिकिट में 15847 रन बना चुके थे। यही अंक एक कीर्तिमान बन गया। उनकी आज़ादी का, जिसके लिए आखिरी टेस्‍ट  शृंखला खेली जा रही थी। जी हाँ, इन अंकों को अलग करके देखें 15  8  47 यानि देश की आज़ादी का दिन 15 अगस्‍त '47। और इस क्रिकिट बाँकुरे का भी आज़ादी का दिन 15-8-47 यानि 15847 रन बनते ही तय हो गया। उसे मूर्तरूप दे दिया गया।
शानदारी 74 रन की ठोस शुरुआत दे कर भारत की जीत प्रशस्‍त करने में उनका योगदान भी ऐतिहासिक बन गया।
कहते हैं जब ऊपर वाला देता है तो छप्‍पर फाड़ कर देता है। और ऐसा ही हुआ। भारत के सर्वोच्‍च सम्‍मान 'भारत रत्‍न' के लिए भी खिलाड़ियों को सम्‍मान के रास्‍ते खुल गये। भले ही हॉकी के जादूगर ध्‍यानचंद भी इस दौड़ में शामिल हैं, किन्‍तु आज इस हर हिन्‍दुस्‍तानी के दिल की आवाज के आगे सत्‍ता ने भी सम्‍मान से सचिन को भारत रत्‍न की घोषणा कर एक अनोखा सम्‍मान दे दिया। अभूतपूर्व कृत्‍य करने वालों को ही तो दिया जाता है भारत रत्‍न। खेल में भले ही विज्ञापनों से आमदनी की अथाह बौछार होती है, किन्‍तु सचिन जैसे बेदाग खिलाड़ी कम ही होंगे।
सचिन को शुभकामनायें देने वाले करोड़ों लोगों में हम क्‍यों पीछे रहें। आइये इस कीर्तिपुरुष को सलाम करें।
सचिन अनोखा दे गए, एक और सम्‍मान।
घोषित भारत रत्‍न से, खुश है हिन्‍दुस्‍तान। 
खुश है हिन्‍दुस्‍तान, करोड़ों का दिल जीता।
तुमने किया कमाल, खेल को मिली सुभीता।
कह 'आकुल' कविराय, अनोखा लेखा जोखा।
पहला भारत रत्‍न, खिलाड़ी सचिन अनोखा।

बुधवार, 18 सितंबर 2013

'आकुल' का लघुकथा संग्रह 'अब रामराज्‍य आएगा !!' का विमोचन उज्‍जैन में

'आकुल' को *भारतीय भाषा रत्‍न* से भी सम्‍मानित किया जाएगा
कोटा। फ्रेण्‍ड्स हेल्‍पलाइन, कोटा के सौजन्‍य से प्रकाशित डा0 गोपाल कृष्‍ण भट्ट 'आकुल' की नई पुस्‍तक लघुकथा संग्रह 'अब राम राज्‍य आएगा !!' छप कर तैयार है। इसका लोकार्पण पौराणिक नगरी उज्‍जैन (अवंतिका) में 13-14 दिसम्‍बर को आयोजित विक्रमशिला हिन्‍दी विद्यापीठ, गांधीनगर, भागलपुर (बिहार) के 18वें अधिवेशन में 14 दिसम्‍बर को रामनाथ सेवा आश्रम के विशाल प्रांगण में एक भव्‍य समारोह में लोकार्पित किया जाएगा। इस अधिवेशन में अखिल भारतीय स्‍तर के चुनिन्‍दा लगभग 150 प्रबुद्ध साहित्‍यकारों, कलाकारों, विद्वानों को सारस्‍वत सम्‍मान प्रदान किया जाएगा। श्री 'आकुल' के लघुकथा संग्रह के विमोचन के लिए विद्यापीठ के कुलसचिव डा0 देवेन्‍द्रनाथ शाह से स्‍वीकृति मिल गयी है। इस अधिवेशन में श्री 'आकुल' को *भारतीय भाषा रत्‍न* सारस्‍वत सम्‍मान भी प्रदान किया जाएगा। 'आकुल' की यह चौथी पुस्‍तक है। 100 पृष्‍ठीय इस संग्रह में लघुकथा, बोधकथा प्रेरक प्रसंग आदि 35 कथाओं का संग्रह है। हेल्‍पलाइन के प्रबंध सम्‍पादक एवं मानद सचिव श्री नरेंद्र कुमार चक्रवर्ती ने बताया कि संग्रह सशक्‍त सम सामयिक घटनाओं का जखीरा है जिसमें सत्‍यघटनाओं और वर्तमान भारत की दशा दिशा, भारतीय सभ्‍यता और संस्‍कृति के अक्षुण्‍ण दर्शन का लघुकथाओं के माध्‍यम से जीवंत चित्रण किया गया है। इस लघुकथा संग्रह में भूमिका राजस्‍थान के मूर्धन्‍य वरिष्‍ठ साहित्‍यकार एवं शिक्षाविद् पं0 गदाधर भट्ट ने लिखी है।  
  

सोमवार, 22 जुलाई 2013

सान्निध्य: गुरुवे नम:

सान्निध्य: गुरुवे नम:: 1 अक्षर ज्ञान दिवाय कै, उँगली पकड़ चलाय। पार लगाये गुरू या, केवट पार लगाय।।1।। 2 बिन गुरुत्‍व धरती नहीं, धुर बिन चले न चाक। गुरु...

रविवार, 21 जुलाई 2013

जिज्ञासा के माध्‍यम से युगबोध कराता श्रेष्‍ठ काव्‍य संकलन है 'क्‍यों'

आइये श्री चक्र के ही शब्‍दों से ही उनकी पुस्‍तक *क्‍यों* की शुरुआत करें और फि‍र कहें अपनी कुछ बाते कहें- एक अकेला शब्‍द *क्‍यों* ही आपकी जिज्ञासा के लिए पर्याप्‍त है। इसलिए यह भी तय है कि जहाँ जिज्ञासा है वहा आशा है------‘ 
नहीं इसे समीक्षा नहीं समझें। आपको उनके भीतर उठ रहे *क्‍यों* का ज्‍वार सम‍झने के लिए ही पढ़ने की जिज्ञासा उत्‍पन्‍न करनी पड़ेगी। पहले उनकी पुस्‍तकों के कुछ अंश- (वसीयत) से- ‘’जिंदगी भर--- पिता ने----कवच बनकर---- बेटे को सहेजा------लेकिन---- पु्त्र कोसता रहा----- जन्‍मदाता पिता को-----और---- सोचता रहा----- जाने कब लिखी जाएगी वसीयत मेरे नाम--‘’ प्रश्‍न चिह्न ‘?’ खड़ा किया है उन्‍होंने उन बच्‍चों की उच्‍छृंखलता पर जो अपनी असीमित आवश्‍यकताओं की पूर्ति अपने पिता द्वारा पूरी किये जाने को अपना अधिकार समझते हैं----या----उन पिताओं के लिए जिनसे चूक हो गयी ऐसे संस्‍कार देने में जहाँ पिता के जूते बेटे के पैरों में आते ही वह मित्र हो जाता है और बेटा समझने लग जाये कि मुझे अब पिता के कंधे पर बोझ नहीं कंधे से कंधा मिला कर चलना होगा--- उनका उत्‍तरदायित्‍व खत्‍म अब मेरा कर्तव्‍य आरंभ। उनकी दूसरी रचना देखें – (माँ बाप का साथ) से- ‘’समय के साथ----बदलाव आवश्‍यक है-----लेकिन---सब कुछ बदलकर---भूगोल तो मिट सकता है-----पर---- इतिहास नहीं--------क्‍योंकि-----इतिहास मस्तिष्‍क में होता है----इ्रसलिए-----एक सुझाव और दूँ------नये घर में-----सपाट दीवारों के साथ---------एक कोन में ही सही-----एक आला रहने दो------जहाँ------दीपक की रोशनी बनकर---माँ हमेशा तुम्‍हारे साथ होगी।‘’ फि‍र एक *क्‍यों* माँ, अंकुरित पहले बीज से ही उसे सहेजती है पर बेटा क्‍यों भूल जाता है उसे किसी हवा में है ऐसी ताकत जो भुला देती है माँ की असीमित तकलीफों को जो कभी गाहे बगाहे उसने देखी सुनी और माँ या पिता द्वारा बताई गई होगी----क्‍यों होता है ऐसा ? पिता मौन रह सकता है किंतु माँ की तड़प मौन रह कर भी अहसास करा जाती है। (जुल्‍म) से- ‘’---लेकिन---यह भी तो तय है-----कि-----तुम्‍हारा मौन----सदियों से चली आ रही---तुम्‍हारी वंश परम्‍परा को------खत्‍म कर सकता है-------इसलिए-----जुल्‍म सहने का इतिहास नहीं----बल्कि—जुल्‍म खत्‍म करने का इतिहास बनाओ और -----अमर हो जाओ।‘’ जुल्‍म पर चक्र का यह क्‍यों मेरी कविता से समझ में आ सकता है ---*आज समाज क्‍यों टूटते जा रहे हैं----मौन के कारण-------आज संस्‍कार क्‍यों खत्‍म होते जा रहे हैं----------मौन के कारण--------आज आदमी क्‍यों बदल रहा है----------मौन के कारण----------आज युवा क्‍यों आवेग में है----------मौन के कारण---------कोई नहीं बोलता कि क्‍यों कर कर रहे हो-----ऐसा आज तक नहीं हुआ---------बदलो मगर ऐसे भी नहीं कि इतिहास बदल जाये-----और तुम इतिहास में उन पन्‍नों को ढूँढ़ भी न पाओ।* (मेरी रचना मौन के कारण से) ऐसी अनेकों रचनायें प्रश्‍न चिह्न नहीं यक्ष प्रश्‍न खड़ा करती हैं। सचमुच उनहोंने ऐसे विषय उठाये हैं जो इस पुस्‍तक को यादगार बनायेंगे-----इन प्रश्‍नों को पढ़ना आत्‍मसात करना अपने अहं की तुष्टि के लिए अत्‍यावश्‍यक है-----जैसे (समय) से- ‘’घड़ी की सूइयाँ----पीछे करके-----स्‍वयं को संतुष्‍ट करना------कि----मैंने समय को-------वश में कर लिया है----‘’समय के साथ न चलने के लिए खड़ा होता एक प्रश्‍न *क्‍यों* (हम किन्‍नर हैं) से- ‘’गर्भधारण न कर पाना-------हमारी शारीरिक नपुंसकता नहीं-----बल्कि-----तुम्‍हारी मानसिक नपुंसकता है-------क्‍योंकि-------शरीर से अधिक------मन की नपुंसकता खतरनाक होती है-------इसलिए---हम बहुत खुश हैं-------भले ही हम किन्‍नर है’’ किताब की सबसे बड़ी कविता है—इस का शीर्षक भले ही हम किन्‍नर होता तो और प्रभाव डालती---- शीर्षक हमें इंगित करता है *क्‍यों---क्‍या तुम?’ इस पूरी पुस्‍तक को व्‍यंगय के संदर्भ में भी देखा जा सकता है। क्‍यों का प्रश्‍न करते करते कवि ने अपना दुख भी व्‍यक्‍त किया है ‘कवि का दुख’ मेंनन्‍हीं बूँद, नदी की आत्‍मकथा, बीनने वाले, जींस और टॉप, पथ प्रदर्शक आदि कवितायें हर बदलते युवा को अपनी जमीं न भूलने की हिदायत देती हैं-----कि हम कहीं इस *क्‍यों* ‘को ढूँढ़ते ढूँढ़ते खो न जायें? डा0 ओम शिव ओम अम्‍बर ने अपनी भूमिका में उन्‍हें अशिव का संहार करने को संकल्पित कवि बताया है, सच है। कविताओं की अनेकों पुस्‍तकों में यह पुस्‍तक *क्‍यों* सचमुच श्री चक्र को काव्‍य जगत् के अग्रणी कवियों में साथ बैठने का आग्रह करती है। उनकी पिछली पुस्‍तक साहित्‍यकार- 5 के बाद की यह उनकी हाल ही में प्रकाशित पुस्‍तक है।- आकुल 

बुधवार, 5 जून 2013

सान्निध्य: लगता है तुम आ रहे हो


सान्निध्य: लगता है तुम आ रहे हो: लगता है तुम आ रहे हो, आँचल में छिपा लूँगी अभिव्‍यक्ति उन्‍वान (चित्र)- 59 ये चाँद तुम्‍हें देखकर नज़र तुम्‍हें लगा दे न पीठ कि...

सोमवार, 3 जून 2013

साज़ नहीं रहे। मगर उनकी आवाज़ आज भी गूँज रही है।

साज़ जबलपुरी को श्रद्धांजलि


उनकी पुस्‍तक 'किरचें' के उनके ही जज्‍़बातों से उन्‍हें श्रद्धांजलि दे रहा हूँ-आकुल

(1)
अपनी हस्‍ती भी है कोई हस्‍ती
जी रहे हैं मगर जबरदस्‍ती
एक लम्‍हा न बढ़ सका तुझसे
ज़िन्‍दगी देखी तेरी तंग दस्‍ती
ज़िन्‍दगी दे के मौत पाई है
चीज़ महँगी थी मिल गई सस्‍ती
मौत ने ला दिया बुलंदी पर
वरना हस्‍ती की क्‍या रही हस्‍ती

(2)
चंदन दास जी के एलबम 'लाइफ स्‍टोरी वॉल्‍यूम 1, 'अरमान' और तमन्‍ना में शामिल उनकी 2 ग़ज़लों (गीतों)  के बोल प्रस्‍तुत हैं-
(1)
तन्‍हा न अपने आपको अब पाइए जनाब
मेरी ग़ज़ल को साथ लिए जाइए जनाब।
नग़्मों की बारिशों में कहीं भीगने चलें,
मौसम की आरज़ू को न ठुकराइये जनाब।
रिश्‍तों को भूल जाना तो आसान है मगर,
पहले ख़ुद अपने आपको समझाइये जनाब।
ऐसा न हो थमे हुए आँसू छलक पड़ें,
रुख़सत के वक्‍़त मुझको न समझाइये जनाब।
मैं 'साज़' हूँ ये याद रहे इसलिए कभी,
मेरे ही शेर मुझको सुना जाइये जनाब।

(2)
मैंने मुँह को कफ़न में छुपा जब लिया,
तब उन्‍हें मुझसे मिलने की फुरसत मिली।
हाले दिल पूछने जब वो घर से चले ,
रास्‍ते में उन्‍हें मेरी मैयत मिली।

वो जफ़ा करके भी क़ाबिले क़द्र है,
मुझको मेरी वफ़ा का सिला यह मिला।
जीते जी मैं तो रुसवा रहा उम्र भर,
बाद मरने के भी मुझको तोहमत मिली।

मेरी मैयत को दीवाने की लाश है ,
ऐसा कहकर शहर में घुमाया गया।
इस तरह उनको शोहरत ख़ुदा की क़सम,
मेरी रुसवाइयों की बदौलत मिली।

एक ही शाख पर 'साज़' दो ग़ुल खिले ,
चाल क़िस्‍मत की लेकिन ज़रा देखिये।
एक ग़ुल क़ब्र पर मेरी शर्मिन्‍दा है,
एक को उनकी ज़ुल्‍फ़ों में इज्‍़ज़त मिली।  

पिछले दिनों साज़ नहीं रहे। मगर उनकी आवाज़ आज भी गूँज रही है। उनके साथ चंद घंटों का ही था, जब वे कोटा आए थे भारतेंदु समिति में आयोजित सम्‍मान समारोह में और एक छोटी सी काव्‍य गोष्‍ठी में उनसे रूबरू हुआ और वे छा गये। उन्‍होंने अपनी पुस्‍तक 'किरचें' भेंट की। जो आज एक धरोहर है उनकी मेरे पास। उनकी ग़जलों से 2 ग़ज़लें चंदनदास जी ने अपनी  3 एलबम रिलीज़ में शामिल किये हैं। ये हैं-  तमन्‍ना (2011), अरमान (2008)  और लाइफ स्‍टोरी (2008)। चंदनदासजी के इन तीनों एलबम में उनकी ग़ज़ल हैं। तमन्‍ना में उन्‍होंने मैंने मुँह को कफ़न में छुपा जब लिया गाया है।  तन्‍हा न अपने आपको अब पाइये ज़नाब    लिखी ग़ज़ल चंदनदासजी की 'अरमान' एलबम में है। तन्‍हा न अपना उनके अन्‍य एलबम लाइफ स्‍टोरी वोल्‍यूम-1 में भी है। आपकी अन्‍य पुस्‍तकें 'मिज़राब' (ग़ज़ल संग्रह), शर्म इनको मगर नहीं आती (लेख संग्रह) हैं। सम्‍पादित पुस्‍तकों में 'पीले वरक़ में रखे गुलाब' (समवेत काव्‍य संकलन), अभिव्‍यक्ति (समवेत काव्‍य संकलन) काफी चर्चित रहे हैं। उनके गीतों पर क्लिक कर उनके गीत सुने जा सकते हैं। 

रविवार, 2 जून 2013

नवगीत की पाठशाला: १२. नवल बधाई


नवगीत की पाठशाला: १२. नवल बधाई
पुष्‍प गुच्‍छ सुगंधित
मधुमय फल खिरनी से
मधुकर के अनुगुंजन
उच्‍छृंखल हिरनी से
वृक्षावलि से हरियाली
पथ पथ पर छाई
नवल बधाई।

मंगलवार, 28 मई 2013

दृढ़ व्‍यक्तित्‍व के धनी हैं डा0 रघुनाथ मिश्र

    डा0 रघुनाथ मिश्र पर लिखने को जब-जब भी क़लम उठाई है, वह जड़ हो गयी। कुछ लोगों पर लिखना आसान नहीं होता, क्‍योंकि मेरी आँखों के आगे रघुनाथ मिश्र एक रूप नहीं, अनेकों रूपों में, मैंनें उनको देखा ही नहीं, मैंनें उन्‍हें जिया भी है। व़े दृढ़ व्‍यक्तित्‍व के धनी हैं, वे उत्‍कर्ष के सोपान हैं, वे सहज मार्ग के अनुयायी संत नज़र आते हैं, कंटकीर्ण उनके जीवन में कुछ है ही नहीं, वे सफल सामाजिक प्राणी हैं, वे प्रेमी हैं, वे बहुत भावुक भी हैं। वे दम्‍भी नहीं, सत्‍य को स्‍वीकार करने में वे पहल करने वालों में हैं। वह सहज में विचलित हो जाने वाले, बाल स्‍वभाव वाले भी हैं। वे हठी भी हैं, क्‍योंकि वे सच्‍चे हैं। सिंहावलोकन उनकी ऊर्जा है। यही कारण है कि वे कोई कार्य अधूरा नहीं छोड़ते। वार्तालाप उनका कुलिश प्रभंजन है, जिसकी तपन से लोग उनसे दूर भागते हैं। उन जैसा बनने के लिए कितने समर्पण की आवश्‍यकता होती है, यह कोई उनके साथ रह कर धैर्य से सीखे। यह कमी मेरे भीतर भी है, पर जब भी विचलित होता हूँ, उनसे अवश्‍य मिलता हूँ, एक अनोखी ऊर्जा मुझे मिलती है तब मुझे। वे कभी बाल सखा बन कर मुझसे पेश आते हैं, तो कभी मुझे जरूरत से ज्‍यादा सम्‍मान देते हैं। कभी मुझे अपने जैसा जीने का साहस देते दृष्टिगत होते हैं, तो कभी अपना दर्द बाँटते मेरे सामने रो पड़ते है। उनके सामने मुझ में धैर्य न जाने कहाँ से आ जाता है। वो अलग बात है कि जलेस की हमारी योजनायें बनती बिगड़ती रहती हैं, किन्‍तु उसे अमली ज़ामा पहनाने के लिए हम मूर्तरूप नहीं दे पाते। यही कारण है कि जिस शख्‍स ने मज़दूर संघों मे चेतना की मशाल
जलाई और कंधे से कंधा मिला कर न्‍याय के लिए सत्‍ता तक को चुनौती दी, आज अकेला न हो कर भी अकेला है, यह कड़वा सच है। जनवादी लेखक संघ के संस्‍थापक सदस्‍यों में से हैं वे। आज उन सब से दूर रह कर भी, हाड़ौती अंचल में अपनी एक अलग पहचान बनाये हुए हैं, कोई उन्‍हें आज तक डिगा नहीं पाया। ‘जनवाद के पुरोधा’ रघुनाथ सहाय मिश्र, प्‍यार से जिन्‍हें रघुनाथ मिश्र और साहित्‍य संसार उन्‍हें डा0
रघुनाथ मिश्र के नाम से जानता है।
यूँ ही नहीं बन जाता कोई पुरोधा। उनमें ये गुण मैंने तब देखे, जब मुझे सौभाग्‍य मिला, उनकी रचनाओं का सम्‍पादन कर, उनकी पहली और एक मात्र पुस्‍तक बनाने का। डा0 मिश्र ने दशकों तक रचनायें लिखीं थीं, जिन्‍हें ढूँढ़-ढूँढ कर निकाला गया। उनकी पहली पुस्‍तक ‘सोच ले तू किधर जा रहा है’। यह पुस्‍तक, एक चुनौती देती है, जीने का मार्ग चयन करने की। पूरी तरह जनवाद से ओतप्रोत, पर रचना कर्मी श्री मिश्र मशगू़ल रहे, जनवादी क्रांति में आम आदमी की समस्‍याओं में जूझते, उनसे जुड़ते, लोगों को जोड़ने में, एक राह प्रशस्‍त करने में, जो कंटकीर्ण हो या फूलों से भरी, उन्‍होंने न मौसम देखा, न उम्र; न वक्‍त देखा, न वाक़या, बस रचनाधर्मिता की राह पर चलते रहे, चाहे वह राह, एक स्‍वस्‍थ और जागरूक समाज की संरचना की हो या साहित्‍य सृजन की। कभी नहीं सोचा कि प्रतिष्‍ठा के लिए एकाध पुस्‍तक का प्रकाशन करूँ। सैंकड़ों नुक्‍कड़ नाटक खेले, रंगमच पर हर रूप जिया, किंतु साहित्‍य के क्षेत्र में किसी प्रतिष्‍ठा की अभिलाषा उन्‍हें कभी नहीं रही। उनका जीवन दर्शन था मुफ़लिसों के बीच बैठ कर उनके दुख-सुख की सुनना। फ़ाक़ाकशी के मंज़र भी देखे उन्‍होंने।
डा0 रघुनाथ मिश्र, ग़ज़लों के प्रतिनिधि रचनाकार हैं, ग़ज़ल उनका शग़ल है। हिंदी ग़ज़ल पर वह लंबी बात कर सकते है। वे मुक़म्‍मल दोहाकार भी हैं। किसी भी विषय पर बिना तैयारी किये बोलना, उनकी स्‍वाभाविक प्रकृति है, जो ज्ञान और अनुभव की देन है। वे बहुत ही सफल अधिवक्‍ता, अभिभाषक और वकील रहे हैं। अर्थ भले ही तीनों के एक ही हों पर प्रकृति हर शब्‍द की शब्‍दार्थ की तरह अलग-अलग है। श्री मिश्रा ने आजीविका के इन तीनों प्ररूपों में सफलता प्राप्‍त की है। वे शहर के वरिष्‍ठ अभिभाषक ही नहीं, वरिष्‍ठ साहित्‍यकार के रूप में भी जाने जाते हैं। युवा कवियों को हमेशा वे प्रेरणा देते हैं, वे असफलता को भी सफलता के आईने से देख कर, चतुराई से सँभल जाते हैं, यह विशेषता प्राय: कम लोगों में देखने को मिलती है। डा0 मिश्र का इसमें सानी नहीं। अपनी बात मनवाने में वे उस्‍ताद हैं। बहुत कुछ लिखा जा सकता है उन पर, इसलिए इतना लिख कर ही इतिश्री कर रहा हूँ-
      बचा के रखा है मैंनें / उनके लिए कुछ क़तरों को /कब काम आ जाय / उनसे वफ़ा न कर सकूँ / तो जफ़ा भी / न हो जाये कहीं मुझसे।
श्री पंकज पटेरिया सम्‍पदित 'शब्‍द ध्‍वज' में श्री रघुनाथ मिश्र पर प्रकाशित मेरे मूल आलेख के प्रकाशित अंश। 'शब्‍द ध्‍वज' का 27 मार्च 2013 को प्रकाशित अंक डॉ0 रघुनाथ मिश्र पर आधारित था।- आकुल     

मंगलवार, 14 मई 2013

ऐसे रचनाकारों का बहिष्‍कार करें

   ऐसा सुना भी था कि लोग गोष्ठियों में दूसरों की रचना पढ़ कर वाहवाही लूटते हैं। लाइब्रेरी से पुस्‍तकें चुराते हैं। यह उनका जुनून हो सकता है, साहित्‍य के प्रति उनका बेहद रुझान हो सकता है, किंतु किसी की रचना को अपने नाम से प्रकाशित करवाना (भले तोड़ मरोड़ कर) कदापि उचित नहीं है। ऐसे रचनाकारों का बहिष्‍कार होना चाहिए। आप भी श्री आर0 सी0 शर्मा 'आरसी' के इस संदेश को पढ़ कर 'सुरेंद्र शर्मा, जयपुर' को अपने विचार प्रेषित करें, उन्‍हें आगाह करें, यह चोरी एक ऐसा अपराध है जिसकी सज़ा ताउम्र उन्‍हें छलनी करती रहेगी। वे साहित्‍य समाज में अपना मुँह छिपाते फि‍रेंगे और एक रचनाकार अपनी मौत से पहले मर जाएगा। स्‍वस्‍थ रचना करें और अपना अलग स्‍थान बनायें। 'मधुमती' जैसी साहित्‍य अकादमी की पत्रिका में ऐसी त्रुटि जबकि यह कविता पहले श्री आर0 शर्मा0 आरसी के नाम से छप चुकी है, वहाँ के सम्‍पादकीय मंडल पर प्रश्‍नचिह्न खड़ा करती है। सभी पत्र पत्रिकाओं के सम्‍पादक इससे सचेत हों और बिना तसदीक किये, बिना स्‍वरचित का प्रमाण लिए, रचनाएँ कितनी भी उत्‍कृष्‍ट क्‍यों न हों, नहीं छापें। ऐसे दुष्‍कृत्‍यों से मूल लेखक के मन को आघात पहुँचता है। कोटा से प्रकाशित प्रतिष्ठिति पत्रिका 'दृष्टिकोण' में ऐसा हो चुका है, प्रकाशन से पूर्व संदेह होने पर उसे प्रकाशित नहीं किया गया। रचनाकर्म में संलग्‍न रचनाकार को कहाँ फुरसत है कि विशाल साहित्‍य और प्रकाशन की दुनिया की प्रत्‍येक पत्रिका को जाँचता, पढ़ता रहे कि कहीं उसकी रचना का दुरुपयोग तो नहीं हो रहा। यह सुधि पाठकों व सम्‍पादकों का विशेष उत्‍तरदायित्‍व है कि वह ऐसे  चोर रचनाकारों पर नज़र रखें और उनका बहिष्‍कार करें। सुरेन्‍द्र शर्मा को भी चाहिए कि वे हृदय में स्‍वयं को टटोलें और यदि ऐसा कृत्‍य सही है तो श्री 'आरसी' से क्षमा माँगे और उनके ब्‍लॉग पर खेद व्‍यक्‍त करते हुए साहित्‍य की गरिमा को क्षति पहुँचाने के लिए सभी साहित्‍यकारों से रूबरू हों-आकुल

     दोस्तों आज थोड़ा मन दुखी है,कारण कोइ विशेष नहीं परन्तु आज मन केवल इस बात से दुखी हो रहा है की कुछ लोग केवल छपने की खातिर (छपास )रचनाकारों की रचनाएं चोरी करके या तो उसमें थोड़ा सा रद्दोबदल करके या हूबहू प्रतिष्ठित पत्रिकाओं को भेज देते है और सम्पादक भी उनको छापने में गुरेज नहीं करते |आज राज० साहित्य अकादमी की प्रतिष्ठित मासिक पत्रिका "मधुमती "का मई २०१३ का अंक देखा और अचानक पेज संख्या १०९ पर आकर निगाह ठिठक गयी और देखा तो जयपुर के किसी सुरेन्द्र शर्मा के नाम से एक गीत छपा था जो कि मेरे गीत
आर0 सी0 शर्मा0 'आरसी'
की नक़ल के अलावा और कुछ नहीं थाऔर यही गीत आज सेकुछ पूर्व इसी पत्रिका में मेरे नाम से छप चुका है जब डा० श्रीमती अजित गुप्ता अध्यक्ष थीं
|पता नहीं सुरेन्द्र शर्मा मधूमती के नियमित पाठक हैं या नहीं परन्तु मैं ८-१० वर्षों मधुमती का नियमित पाठक हूँ व् प्रतिमाह मेरे घर आती है|अगर उनको इतना पसंद था मेरा गीत तो मुझसे कह देते मैं उनके नाम कर देता अपना गीत |परन्तु साहित्यकार होकर चोरी शोभा नहीं देती |

मैं कोटा व जयपुर के समस्त साहित्यकार बंधुओं से इस मंच से (फेसबुक)अपील करता हूँ की ऐसे व्यक्ति(सुरेन्द्र शर्मा ) का बहिष्कार करें जो चोरी के साहित्य से नाम कमाना चाहते हैं |मैं यहाँ उनका फोन न० व पता दे रहा हूँ साथ ही अपना गीत (जो ५०--६० पत्रिकाओं में छप भी चुका है) भी आप लोगों के साथ शेयर कर रहा हूँ ताकि आप ऐसे व्यक्ति को फोन द्वाराएवं व्यक्तिगत रूप से समझा सकें की वो अच्छा काम नहीं कर रहे|उनका फोन न० है ०9314445539 पता है :-सुरेन्द्र शर्मा 54-Aविजय नगर प्रथम -करतारपुर जयपुर- 302006 .फैसला आप सभी पर छोड़ते हुए |आर० सी० शर्मा "आरसी"

श्री आर सी शर्मा 'आरसी' के फेसबुक खाते से साभार।   

शुक्रवार, 3 मई 2013

भारतीय फि‍ल्‍म इतिहास के सौ बरस पर मेरे पसंदीदा चुनिंदा सौ गीत



भारतीय सिनेमा नेआज सौ बरस पूरे कर लिये। मूक फि‍ल्‍मों से बोलती फि‍ल्‍मों और संगीतमय
फि‍ल्‍मों से आज तक का संगीत सफर दिन दूनी रात चौगुनी सफलता के साथ आगे बढ़ रहा है।
भारतीय सिनेमा के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्‍य में
 मुंबई में दादा साहब फालके की प्रतिमा के साथ
एक समारोह में ए0 आर0 रहमान व अन्‍य फि‍ल्‍मी हस्तियाँ 
आज भारतीय फि‍ल्‍मों और अदाकारों को आज अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर ख्‍याति प्राप्‍त हो रही है। कौन भूल सकता है आज भी 'मुगल-ए-आज़म, मेरा नाम जोकर, शोले, जंजीर, वक्‍त, गाँधी, हक़ीक़त, हीर-राँझा, नागिन, लैला-मजनूँ, क्रांतिवीर, सौदागर, घातक, देवदास, हिना,  वीर-ज़ारा आदि।  आज बॉलिवुड को दुनिया में कौन नहीं जानता। दुनिया के हर कोने में भारतीय मौजूद है, वह भारत की हिन्‍दी फि‍ल्‍मों का दीवाना है। पड़ौसी देश पाकिस्‍तान के साथ हमारे भले ही हमारे राजनीति और कूटनीति सम्‍बंध कैसे भी हों किंतु कला और संगीत को कोई सीमाओं में नहीं बाँध सका है।
मेरी संगीत यात्रा के 25 बरस बॉलिवुड के संगीत का समर्पित रहे हैं। 1980 से 2005 तक का मेरा संगीत सफर आर्केष्‍ट्रा के माध्‍यम से आज भी मेरी स्‍मृति में संग्रहीत है। यहाँ प्रस्‍तुत हैं, वे गीत जो मैंने आर्केस्‍ट्रा समूहों के साथ बजाये और आज भी मेरे पसंदीदा गीतों में हैं। आप भी सुनिये और सोचिए कि कितना अनुपम संगीत है, हमारी भारतीय फि‍ल्‍मों का जिनमें अनुकरणीय योगदान है संगीतकार नौशाद,मदनमोहन, एस0 डी0 बर्मन, आर0 डी0 बर्मन,  लक्ष्‍मीकांत प्‍यारेलाल, कल्‍याणजी आनंदजी, सलिल चौधरी, शंकर जयकिशन,खैयाम, सपन जगमोहन, सोनिक ओमी, शिव हरि, नदीम श्रवण, बप्‍पी लाहिरी, पं0रविशंकर आदि शख्सियतों का, जिनका अवदान चिर स्‍मरणीय रहेगा, और उन गीतकारों का जिन्‍होंने यादगार गीत दिये  कवि प्रदीप, नीरज, हसरत जयपुरी, शैलेंद्र, मजरूह सुल्‍तानपुरी, कैफ़ी आज़मी,आनंद बख्‍शी, राजा मेंहदी अली खाँ, आनंद बख्‍शी, गुलज़ार आदि जिनके गीतों को गाया और उनकी आवाज अमर हो गयी जैसे मोहम्‍मद रफी, मुकेश, किशोर, शमशाद बेगम, बेगम अख्‍तर, मदन मोहन आदि। आज बॉलिवुड में ऐसा रत्‍न मोज़ूद है जो आज हॉलिवुड में भी नहीं, वह है स्‍वर सम्राज्ञी भारत रत्‍न लता मंगेशकर
आइये उन गीतों को यू ट्यूब पर सुनें और संग्रह करें, मेरे पसंदीदा सौ गीत, आशा है आपको भी पसंद आएँगे-  1- सौ साल पहले मुझेतुमसे प्‍यार था 2- मेरे मेहबूब कयामत होगी 3- हँसता हुआ नूरानी चेहरा 4- वो जबयाद आए बहुत याद आए 5- तू छुपी है कहाँ मैं तड़पता यहाँ 6- मुझे तेरी मुहब्‍बत कासहारा मिल गया होता 7- ये परबतों के दायरे ये शाम का धुँआ 8- बहारो फूल बरसाओ 9- इक प्‍यार का नग्‍मा है 10- पानी रे पानी 11- पंख होते तो उड़ आती रे 12- सुनो सजना पपीहे ने 13- याद न जाये बीते दिनों की 14- ये दुनिया ये महफि‍ल मेरे काम की नहीं 15- चले जाना जरा ठहरो किसी का दिल मचलता है 16- ऐ भाई जरा देख के चलो 17- जानेकहाँ गये वो दिन 18- जीना यहाँ मरना यहाँ 19- दिल करे रुक जा रे रुक जा यहीं पेकहीं 20- रहा गर्दिशों में हर दम 21- चलो इक बार फि‍र से अजनबी बन जायें हम दोनों 22- आज इस दर्ज पिला दे कि न कुछ याद रहे 23- झनक झनक तोरे बाजे पायलिया 24- गीतगाता हूँ मैं गुनगुनाता हूँ मैं 25- आजा तुझको पुकारे मेरे गीत रे 26- आजा रे प्‍यारपुकारे 27- दिल ने फि‍र याद किया 28- दिल आज शायर है ग़म आज नग्‍मा है शब ये ग़ज़ल हैसनम 29- चूड़ी नहीं मेरा दिल है 30- ओ मेरी ओ मेरी ओ मेरी शर्मीली 31- मेघा छायेआधी रात 32- मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरा न कोई 33- हमको मन की शक्ति देना मन विजयकरें 34- जागो मोहन प्‍यारे 35- मीत ना मिला रे मन का 36- मैं तो चला जिधर चले रस्‍ता 37- चला जाता हूँ किसी की धुन में धड़कते दिल के तराने लिए 38- जिन्‍दगी इक सफर हैसुहाना 39- मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू 40- रूप तेरा मस्‍ताना प्‍यार मेरादीवाना 41- ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं हम क्‍या करें 42- बहारो मेरा जीवन भीसँवरो 43- हे तेरे साथ मेरी वफ़ा मैं नहीं तो क्‍या 44-तू चंदा मैं चाँदनी 45- दिल क्‍या करे जब किसी को किसी से प्‍यार हो जाये 46- कि आजा तेरी याद आई 47- मार दिया जाये कि छोड़ दिया जाये 48- हाय शरमाऊँ किस किस को बताऊँ 49- अकेले अकेले कहाँ जा रहे हो 50- पत्‍थर केसनम तुझे हमने मुहब्‍बत का खुदा माना 51- ये समाँ समाँ है ये प्‍यार का किसी केइंतज़ार का, दिल न चुरा ले कहीं मेरा मौसम बहार का 52- तू जहाँ जहाँ चलेगा मेरासाया साथ होगा 53- दीवानों से ये मत पूछो दीवानों पे क्‍या गुजरी है 54- ये तो सचहै कि भगवान है 55- बाबूजी धीरे चलना प्‍यार में जरा सम्‍हलना 56- सुहानी चाँदनीरातें हमें सोने नहीं देती 57- होठों पे ऐसी बात में छुपा के चली आई 58- हुस्‍नहाजिर है मुहब्‍बत की सज़ा पाने को, कोई पत्‍थर से ना मारे मेरे दीवाने को 59- मैंशायर तो नहीं 60- न तुम हमें जानो न हम तुम्‍हें जाने 61- तुझसे नाराज नहीं जिन्‍दगीहैरान हूँ 62- आजा रे अब मेरा दिल पुकारा रो रो के ग़म भी हारा 63- छोड़ दे सारीदुनिया किसी के लिए 64- चंदन सा बदन चंचल चितवन 65- दुनिया बनाने वाले क्‍या तेरेमन में समाई काहे को दुनिया बनाई 66- चला भी आ आजा रसिया ओ जाने वाले आजा तेरी यादसताये 67- खुदा भी आसमा से जम जमीं पर देखता होगा 68- कहीं दीप जले कहें दिल 69-मेरे नैना सावन भादों फि‍र भी मेरा मन प्‍यासा 70- हमें और जीने की चाहत न होती 71- आजा आई बहार दिल है बेकरार ओ मेरे राजकुमार तेरे बिन रहा न जाये 72- मेरा प्‍यारभी तू है ये बहार भी तू है 73- याहू चाहे कोई मुझे जंगली कहे 74- जिन्‍दगी कैसी हैपहेली हाए  75- रोते हुए आते हैं सब 76- ना मुँह छिपा के जियो और न सर झुका के जियो  77- छलकायें जाम आइये आपकी आँखों के नाम 78- इक दिन बिकजाएगा माटी के मोल 79- छू कर मेरे मन को किया तूने क्‍या इशारा 80- नीले नीले अंबरपे चाँद जब आए 81- तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं 82- सुहानी रात ढल चुकीना जाने तुम कब आओगी 83- मैं हूँ खुशरंग हिना 84- देर न हो जाये कहीं देर न हो जाए 85- वादा करले साजना तेरे बिन मैं न रहूँ 86- जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा 87-परदेसी परदेसी जाना नहीं 88- नैनों में बदरा छाये 89- यारा सिली सिली 90- ये शहरहै अमन का 91- ऐ मेरे हमसफर 92- आया तेरे दर पर दीवाना 93- धरती सुनहरी अंबर नीलाहर मौसम रंगीला ऐसा देश है मेरा 94- हम तुम युग युग से ये गीत मिलन के  95- तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रकखा क्‍याहै 96- ये रेशमी जुल्‍फ़ें ये शरबती आँखें 97- आके तेरी बाहों में हर शाम लगेसिंदूरी 98- चुरा लिया है तुमने जो दिल को 99- ओ बेकरार दिल हो चुका है मुझकोआँसुओं से प्‍यार 100- अच्‍छा तो हम चलते हैं

ऐसे ही बढ़ता रहे हमारा सिनेमा । मेरी शुभकामनायें।


u tube , wikipidia और सुलेखा डॉट कॉम से साभार।  

रविवार, 28 अप्रैल 2013

कोटा के ख्‍़याततनाम कवि और अनुवादक श्री अरुण सेदवाल नहीं रहे

कोटा। भारतीय रक्षा लेखा सेवा से अपर महानियंत्रक लेखा के पद से 2003 में सेवानिवृत्‍त हुए और पिछले दस वर्षों से कोटा के साहित्‍य समाज में अपनी गहरी पैठ बनाये हुए हिंदी अग्रेजी और राजस्‍थानी भाषा के कवि, अनुवादक श्री अरुण सेदवाल का शनिवार 27 अप्रेल को अचानक निधन
अरुण सेदवाल (1943-2013)
हो गया। भरे पूरे परिवार को छोड़ कर गये श्री सेदवाल कोटा के हर कवि सम्‍मेलन, कवि गोष्ठियों, साहित्यिक कार्यक्रमों में सदैव अपनी उपस्थिति दर्ज कराते थे। अनेकों पत्र पत्रिकाओं, संकलनों में उनकी ऊर्जस्‍वी और प्रगतिशील रचनायें प्रकाशित होती रहती थीं। आपकी 3 पुस्‍तकें 1979 में ‘अविकल्‍प’, 2003 में ‘करवट लेता समय’ और 2007 में ‘व्‍यर्थ गई प्रार्थनाएँ’ प्रकाशित हो चुकी थीं। आपकी एक बालकथा 'रामू एंड रोबो' (अंग्रेजी में) नेशनल बुक ट्रस्‍ट द्वारा प्रकाशित हुई थी। आपने राजस्‍थानी कवि प्रेम जी प्रेम की पुस्‍तक ‘म्‍हारी कवितावाँ’ का अंग्रेजी में ‘रूट्स एंड अदर पोएम्‍स’ के नाम से अनुवाद किया था। पिछले दिनों शांति भारद्वाज के प्रसिद्ध उपन्‍यास ‘उड़ जा रे सुआ’ का अंग्रेजी में अनुवाद उनकी विलक्षण प्रतिभा का दर्शन था। यह पुस्‍तक काफी चर्चित रही थी। देश विदेश की सम्‍पादित पुस्‍तकों में आपकी रचनायें छपती रहती थीं, जिनमें प्रमुख हैं 1977 में प्रकाशित प्रणव वंद्योपाध्‍याय की ‘हंड्रेड इंडियन पोएट्स’, डेविड रे (अमेरिका) की 1983 में प्रकाशित पुस्‍तक ‘एंथोलॉजी ऑफ न्‍यू लेटर्स ऑन इंडियन लिटरेचर’ में उनकी अंग्रेजी कविता छपी थी, जगदीश चतुर्वेदी की ‘हिन्‍दी पोएट्री टुडे’ में भी 1983 में आपकी अंग्रेजी में कविता प्रकाशित हुई थी। अन्‍य सम्‍पादित प्रमुख पुस्‍तकों यथा प्रेमजी प्रेम सम्‍पादित ‘विंधग्‍या ज्‍यो मोती’ का(1975), हरिवंश राय बच्‍चन सम्‍पादित ‘हिन्‍दी की प्रतिनिधि कविताएँ (1981), डॉ0 नारायण दत्‍त पालीवाल की ‘ज्‍योति कलश (1980)में और डा0 कन्‍हैयालाल नंदन की ‘हिन्‍दी उत्‍सव’ 92007) में आपकी प्रतिभा के दर्शन मिलते हैं। आप केंद्रीय साहित्‍य अकादमी के लिए राजस्‍थानी भाषा के व्‍याकरण व अन्‍य राजस्‍थानी अनुवाद पर भी कार्य कर रहे थे। 2003 में सेवानिवृत्ति के बाद उन्‍होंने अपने आपको पूरी तरह से साहित्‍य ओर समाज को समर्पित कर दिया था। 2008 में प्रकाशित जनवादी लेखक संघ कोटा के सृजन वर्ष में प्रकाशित हाड़ौती के जनवादी कवियों की प्रतिनिधि रचनाकारों में भी आप शामिल थे। रक्षा सेवा में लेखा विभाग से जुड़े होने के कारण भ्रष्‍टाचार में लिप्‍त देश में फैली विषमताओं पर चिंतित श्री सेदवाल ने इस पुस्‍तक में अपनी वेदना को ‘एक बकरे की व्‍यथा’ में प्रस्‍तुत किया है। यह कविता उनको समर्पित 'सान्निध्‍य दर्पण’ में आप पढ़ सकते है। जनवदी लेखक संघ कोटा जिला व शहर इकाई के सभी सदस्‍यों की ओर से श्री सेदवाल को श्रद्धांजलि।
  

गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

बॉलिवुड की बीरबहूटी सी मखमली आवाज की मलिका शमशाद बेगम

मेरी संगीत यात्रा के 1980 से 1985 के दौर में जिस शख्सियत का एक खास मकाम रहा है, वह थीं शमशाद बेगमजी। सचमुच बीरबहूटी सी मखमली अहसास की आवाज की मलिका। ऑर्केस्‍ट्रा का मेरा सफर जब गुजरात के स्‍टेज, थियेटर्स पर से गुजरा उस समय गायक और गायिकाओं में उन्‍हें बहुत इज्‍़ज़त बख्‍़शी जाती थी, जो अनेक आवाजों में फि‍ल्मी गीतों को गाया करते थे। जिनमें मेल आवाज में मुकेशजी प्रमुख थे और फीमेल आवाज में शमशाद बेगमजी। शमशाद बेगमजी के इस गीत के 
गायिका स्‍व0 शमशाद बेगम 
मुखड़ों से ऑर्केस्‍ट्रा के कार्यक्रमों की अक्‍सर शुरुआत होती थी 'धरती को आकाश पुकारे'--या--आवाज दे कहाँ है-------इसके बाद शुरु होती थी संगीत संध्‍या------ उद्धोषक की पर्दे के पीछे से अमीन सयानी की हूबहू नकल में आवाज आती------बहिनो और भाइयो------। शमशाद बेगम जी की आवाज के लिए मुझे याद आती है जूनागढ़ की गायिका ‘श्रीमती प्रतिभा ठाकर’ मेहुल म्‍यूजिकल ग्रुप में उनका एक ऊँचे दर्जे का मकाम था। वे बहुत अच्‍छा गाती थीं। उनके साथ मुझे शमशाद बेगमजी के गीतों में कीबोर्ड बजाने का मौका मिला। उनके गाये गीत 'बूझ मेरा क्‍या नाम रे, नदी किनारे गाँव रे-----' और 'लेके पहला पहला प्‍यार' ----- आज भी मेरे जेहन में झंकृत होते हैं। झनकती हुई आवाज की मलिका शमशाद बेगम की आवाज का जादू उन दिनों इतना था कि उनके गाये गीतों में संगीत की हूबहू धुन उतार कर प्रतिमा जी के साथ बजाना एक चुनौती भरा होता था। तलत मेहमूद और शमशादजी का गाया दो गाना 'मिलते ही आँखें दिल हुआ दीवाना किसी का' भी उस समय बड़ी शिद्दत से गाया जाता था। बहुत ही ख्‍यातनाम गीत गाये हैं उन्‍होंने जैसे फि‍ल्‍म आग का ‘काहे कोयल शोरमचाये रे’, फि‍ल्‍म बैजू बावरा का ‘दूर कोई गाये धुन से सुनाये—‘, फि‍ल्‍म पतंगा का ‘मेरे पिया गये रंगून’, फि‍ल्‍म मदर इंडिया का ‘गाड़ी वाले गाड़ी धीरे हाँक रे’, फि‍ल्‍म मुग़ले आज़म का ‘तेरी महफि‍ल में किस्‍मत आजमा कर हम भी देखेंगे’ आदि। शमशाद बेगम का एक गीत आज भी मुझे बहुत पसंद है, जिसमें कई गायिकाओं के बीच उनकी आवाज अलग ही आकर्षित करती है। पंजाबी लोकगीत की तर्ज पर संगीत रत्‍न स्‍व0 मदन मोहन द्वारा संगीतबद्ध गीत ‘नाचे अंग वे---छलके रंग वे---लाएगामेरा देवर---आहा---गोरे गाल वाली---सावा---लंबे बाल वाली------ओय होय----बाँकी चालवाली------'  फि‍ल्‍म ‘हीर राँझा’ का यह गीत मेरे पसंदीदा कोरस गीतों में आज भी मुझे बहुत पसंद है। बाद में स्‍थायी रूप से राजस्‍थान में कोटा में बसने के बाद अपनी अंतिम संगीत यात्रा 1985 से 2000 तक में एक गायक ‘आजाद भारती’ (स्‍व0) को कौन भुला पाएगा। वे भी शमशाद बेगमजी की आवाज में कई गीत गाया करते थे। आर्केस्‍ट्रा में उनके स्‍टेज पर आते ही पहला गीत 'सैंया दिलमें आना रे, आके फि‍र ना जाना रे---‘ से शुरुआत होती थी। वे पहले शख्‍स थे जो मेल आवाज में कलाकारों की हूबहू नकल तो करते ही थे पर फीमेल आवाज में लताजी, आशाजी और विशेष रूप से शमशाद बेगमजी के गीतों में उनका कोई जवाब नहीं था। उनके साथ बजाये गीतों ‘लेके पहला पहला प्‍यार’ और ‘कजरा मोहब्‍बत वाला’ मैं कभी नहीं भूल सकता। ठुमरी गायिका बेगम अख्‍तर और शमशाद बेगम जी को भारतीय फि‍ल्‍मी और संगीत इतिहास में कौन भूल पाएगा।
आज वे नहीं हैं, लेकिन संगीत प्रेमी उन्‍हें कभी नहीं भुला पायेंगे। बरसात में जब रिमझिम बरसती बरखा में जब कभी बीरबहूटी (राम जी की डोकरी) को देखेंगे उन्‍हें याद आएगी मखमली आवाज की मलिका शमशाद बेगमी जी। हाल ही में हमारे बीच नहीं रहीं ‘शमशाद बेगमजी’ को मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि। 

(आग्रह- स्‍व0 शमशाद बेगम जी के बारे में उनके चित्र के नीचे लिखे नाम को क्लिक करेंगे तो आप उनकी सम्‍पूर्ण जीवनी के बारे में जान सकते हैं। उनके गाये गीतों के मुखड़ों पर क्लिक करेंगे तो 'यू ट्यूब' पर उन गीतों को  सीधे  वीडियो देख सुन सकते हैं। सुनें और उन्‍हें  अपनी श्रद्धांजलि दें।- आकुल

सान्निध्य: है हक़ीक़त और कुछ


सान्निध्य: है हक़ीक़त और कुछ: समय नहीं है कहना यह नज़ीर बस बतौर है। एकजुट होना ही होगा आँधियों का दौर है। कितनी गिनाएँ खामियाँ कब तलक़ चर्चे करें, हर सियासी दौर मे...

शनिवार, 20 अप्रैल 2013

सान्निध्य: कैसा ज़ुनून है यह


सान्निध्य: कैसा ज़ुनून है यह: Bangluru Blast  कभी आतंकियों से और कभी दुष्‍कर्मियों से। हैराँ है, पशेमाँ है वतन, इनकी बेशर्मियों से।। कैसा ज़ुनून है यह, कैसी हवा च...