रविवार, 23 दिसंबर 2012

सनसनी के दो पहलू और आप

'दिल्‍ली को शर्मसार करती घटना और सचिन का एक दिवसीय क्रिकेट से संन्‍यास' आपके लिए कितना उपयोगी?-आकुल
      सप्‍ताह की दो सनसनीखेज खबरें, जिनसे आम आदमी पर सीधा असर दिखाई दिया। 18 दिसम्‍बर को दिल्‍ली में बस में मेडिकल छात्रा के साथ दुर्दान्‍त मानवों द्वारा सामूहिक बलात्‍कार की घटना और आज क्रिकेट के महामानव सचिन द्वारा एक दिवसीय क्रिकेट से संन्‍यास की घोषणा। यूँ  तो गुजरात में मोदी की जीत, भारत रत्‍न पंडित रविशंकर के निधन पर भी चर्चायें हुईं, किंतु दिल्‍ली की घटना और सचिन की अचानक घोषणा का प्रभाव ज्‍यादा दिखाई दिया। एक मानव की घिनौनी मानसिकता को उजागर कर गयी, दूसरी घटना चौंका गई। देश में फैले आक्रोश से सारे देश का ध्‍यान राजधानी की शर्मनाक घटना पर केंद्रित था। मीडिया द्वारा दिल्‍ली की घटना को बढ़चढ़ कर दिखाने से खुद की गिरफ्त में फँसे हुए शायद दूसरी घटना पर ध्‍यान आकर्षित कराने से घाव पर मरहम की तरह सचिन के संन्‍यास की घटना ने थोड़ा सा ध्‍यान आम आदमी का भटकाया। शायद इससे आक्रोश में थोड़ी राहत मिले और मीडिया भी चैन की साँस ले। मैं ही नहीं दिल्‍ली की घटना से पूरा देश आहत है। इसकी भर्त्‍सना तो होनी ही चाहिए। 
सचिन तेंदुलकर 
     ईश्‍वर द्वारा सबसे बुद्धिमान बनाये गये मनुष्‍य से ऐसा हो गया जो पशु भी नहीं करते। इसलिए इसे पाशविक तो नहीं ही कहा जायेगा। महामानव की तरह क्रिकेट में पूजे जाने वाले सचिन पर दिन पर दिन संन्‍यास के लिए बढ़ते जा रहे दबाव चलते सचिन द्वारा लिये गये इस निर्णय, एक दिवसीय क्रिकेट में संन्‍यास की घटना ने आम क्रिकेट प्रेमी को चौंका दिया। उसने यह तो नहीं चाहा था कि सचिन ऐसा और ऐसे समय पर निर्णय ले जब भारतीय क्रिकेट की चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्‍तान क्रिकेट टीम भारत आ रही है और टेस्‍ट क्रिकेट में जूझ रही टीम इंडिया और इंग्‍लेंड की नयी एक दिवसीय  टीम से खिताब नहीं बचा पाई टीम इंडिया बुरे दौर से गुज़र रही है।
दिल्‍ली की घटना ऐसी है, जिसका शब्‍दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। करना पड़े तो सभी शब्‍द भावनाशून्‍य और नाटकीय लगेंगे। अब मनुष्‍य के मनुष्‍य के प्रति लंबे समय तक मधुर सम्‍बन्‍धों के बारे में सोचने के लिए विवश करने का आग्रह करती है, यह घटना। उधर सचिन ने देश के लिए, भारतीय क्रिकेट के लिए कितना भी किया हो, लोग हमेशा किसी से यह चाहें कि वह जादुई कारनामे दिखाता रहे, नहीं तो वह अयोग्‍य है, तो कितना ठीक है? तुरत-फुरत में लिया गया निर्णय हो या सोच समझ कर लिया गया निर्णय पर हो गया, एक दिवसीय क्रिकेट में अपना लोहा मनवाने वाले सचिन का बल्‍ला अब मौन हो गया।

वैसे तो अपनों से तो प्रताड़ित होता ही रहता है व्‍यक्ति, अब अजनबी से भी सौहार्दपूर्ण वातावरण की कैसे आशा करेंगे हम? कौन किस वेश में आपसे क्‍या उम्‍मीद लगाये बैठा है? कैसे जानेंगे हम? क्‍या हम संवेदनहीन हो जायें? क्‍या हमारे सांस्‍कृतिक मूल्‍यों का अवमूल्‍यन होने लगा है? नारी ही क्‍यों, ऐसे किसी भी कृत्‍य जिसकी मनुष्‍य से कल्‍पना करना भी सोच से परे हो्, ऐसे अत्‍याचारों से हम क्‍या दर्शाना चाहते हैं? यह आक्रोश किसके लिए है, किसको हम क्‍या कहना क्‍या बताना चाहते है? यह कोई वैज्ञानिक फतांसी फि‍ल्‍म की घटना नहीं है, कि उँगली कटने या घाव लगने से उँगली वापिस आ जाती है या घाव क्षणों में भर जाता है। यह पुलिस का भी नहीं, राजनेताओं का भी नहीं, कानूनविज्ञों का भी नहीं, यह काम हमें स्‍वयं को सोच कर उस पर अमल करने का है, कि हम कैसा समाज, कैसा राज्‍य, कैसा देश चाहते है? सांस्‍कृतिक मूल्‍यों का ग्राफ, जो कम से कमतर होता जा रहा है, उसे ऊँचा उठाना है, तो हमें जागरूक होना होगा। हमें नैतिक शिक्षा, आत्‍मरक्षा के लिए सब कुछ कर गुजरने के लिए कमर कसनी होगी। पौराणिक अनुमानों पर दृष्टि डालें, तो कलयुग का यह प्रथम चरण है, आगे इससे भी बदतर होना है, तो फि‍र हर वक्‍त दिमाग चैतन्‍य रखने की आदत डालनी होगी। सिंहावलोकन करते रहने की आदत डालनी होगी। अब स्‍वतंत्रता की कसौटी पर खरा उतरना होगा हम सब को।
लंदन के तुसाद संग्रलाय में मोम के सचिन 
उधर टीम इंडिया को भी अपनी साख बचाने, फि‍र ऊँचा उठने के लिए कुछ ऐसा ही करना होगा। आज नहीं तो कल सचिन को जाना ही था और सचिन जैसे सभी दिग्‍गजों को जाना ही होगा। अंग्रेजों की बिल्‍कुल नये खिलाड़ियों से सजी टी-20 टीम से भारतीय क्रिकेटरों, अधिकारियों को ऐसा ही कुछ करना और सीखना होगा। आज सचिन गये हैं, तो कल सहवाग, धोनी, हरभजन सिंह, ज़हीर को जाना ही होगा।
पुलिस पर अनचाहा दबाव और खेल में राजनीति दोनों ही देश के सांस्‍कृतिक वातावरण को प्रदूषित कर रहे हैं, जिसका प्रतिरोध आम आदमी आक्रोश बता कर, रैलियाँ निकाल कर, आंदोलन करके ही तो कर सकता है? इसे विदेशी ताकतें किस रूप में लेती हैं? आर्थिक जगत् पर इसके क्‍या प्रभाव होंगे? राजनैतिक हलकों में इसे कैसे परिवर्तन की दृष्टि से देखा जा रहा होगा? समय बतायेगा। वैसे वर्तमान सरकार पर दो मार तो जबर्दस्‍त पड़ी है। पहली गुजरात में मोदी की जीत उसका वर्चस्‍व, आम आदमी में ऐसे नेता की चाहत और दूसरी दिल्‍ली की मर्मान्‍तक घटना।
कौनसे परिवर्तन का सूचक है यह। माया कैलेण्‍डर तो समाप्‍त हो गया किंतु थोड़ा सा संकेत तो दे ही गया। संक्रांति समीप ही है, देखे सूरज का घोड़ा कौनसी तरफ भागता है? सनसनी के इन दोनों पहलुओं पर आप भी गौर करें और आत्‍ममंथन करें कि आप कितने सुरक्षित है? आपकी प्रतिष्‍ठा भी एक न एक दिन संन्‍यास लेगी। आपकी युवापीढ़ी को आप क्‍या संदेश देना चाहेंगे?

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

डा0 मिश्र को भारतीय भाषा रत्‍न सम्‍मान और 'आकुल' को विद्या वाचस्‍पति की उपाधि

कोटा। 14 दिसम्‍बर को मौनतीर्थ उज्‍जैन में हुए विक्रमशिला विद्यापीठ के साहित्‍य सम्‍मान समारोह में सैंकड़ों को साहित्‍यकारों, रचनाकारों को सम्‍मानित किया गया। हर वर्ष की भाँति इस बार भी पावन शिप्रा नदी के तट पर बसा मौन तीर्थ उज्‍जैन 13 और 14 दिसम्‍बर 2012 को साहित्‍य रस में डूबा रहा। विक्रमशिला विद्यापीठ गांधीनगर, भागलपुर बिहार के वार्षिक सम्‍मान समारोह में अखिल भारतीय साहित्‍यकारों का सम्‍मान किया गया। 13 दिसम्‍बर को सांगठनिक चर्चा और 14 को साहित्‍य सम्‍मान समारोह आयोजित हुआ।
मंचासीन कुलाधिपति संतश्री डा0 सुमनभाई, मानस भूषण, कुलपति तेज नारायण कुशवाहा, प्रतिकुलपति डा0 सुभाष वधान, कुलसचिव डा0 देवेन्‍द्रनाथ साह, साहित्यिक पत्रिका *कर्मनिष्‍ठा* के सम्‍पादक डा0 मोहन तिवारी आनंद द्वारा पधारे सभी साहित्‍यकारों का सम्‍मान किया गया।
सम्‍मान समारोह में वयोवृद्ध साहित्‍यकार आचार्य भगवत दुबे को महाकवि से अलंकृत किया गया। कार्यक्रम में वरिष्‍ठ साहित्‍यकार जबलपुर से गार्गी शरण मिश्र मराल, साज़ जबलपुरी, अशोक पण्‍ड्या, राजकुमार सुमित्र, बरेली से डा0 राजीव श्रीवास्‍तव, बल्‍लारी कर्नाटक से डा0 जयसिंह अलवरी, कोटा से डा0 रघुनाथ मिश्र, दौसा के डा0 सलिल, भोपाल से श्री संतराम ‘संत’, डा0 मोहन आनंद तिवारी, झाँसी से सुश्री सागर, सुश्री साहिल आदि लगभग 65 से 70 साहित्‍यकारों को भारत गौरव, भारतीय भाषा रत्‍न, साहित्‍य शिरोमणि, विद्यावाचस्‍पति आदि से सम्‍मानित किया गया। इस समारोह में मुख्‍य अतिथि जिला जज इंदोर थे। मंच पर कार्यक्रम का संचालन चंद्रदेव पाण्‍डेय ने किया।  
कोटा के श्री गोपाल कृष्‍ण भट्ट ‘आकुल’ इस कार्यक्रम में नहीं जा पाये थे, किन्‍तु उनके प्रतिनिधि के रूप में डा0 रघुनाथ मिश्र ने 'विद्या वाचस्‍पति' उपाधि प्राप्‍त की।  डा0 मिश्र को भी इस सम्‍मान समारोह में 'भारतीय भाषा रत्‍न' से सम्‍मानित किया गया। पिछले वर्ष श्री मिश्र को विद्यापीठ की तरफ से 'विद्यावाचस्‍पति' से सम्‍मानित किया गया था। कोटा पहुँच कर श्री ‘आकुल’ को डा0 मिश्र ने  अपने परिवार के मध्‍य मैडल, स्‍मृति चिह्न और उपाधि दे कर बधाई दी। आकुल ने भी उनका हृदय से आभार व्‍यक्‍त किया।

बुधवार, 19 दिसंबर 2012

नवगीत की पाठशाला: ९. समय का पहिया चलता जाये

नवगीत की पाठशाला: ९. समय का पहिया चलता जाये: जीवन का संगीत सुनाये समय का पहिया चलता जाये उल्लासों से भरे हुए मन कुछ करने को उत्साहित मन उच्छवासों को कोने कर, कुछ पाने को हैं विचलि...