रविवार, 28 अप्रैल 2013

कोटा के ख्‍़याततनाम कवि और अनुवादक श्री अरुण सेदवाल नहीं रहे

कोटा। भारतीय रक्षा लेखा सेवा से अपर महानियंत्रक लेखा के पद से 2003 में सेवानिवृत्‍त हुए और पिछले दस वर्षों से कोटा के साहित्‍य समाज में अपनी गहरी पैठ बनाये हुए हिंदी अग्रेजी और राजस्‍थानी भाषा के कवि, अनुवादक श्री अरुण सेदवाल का शनिवार 27 अप्रेल को अचानक निधन
अरुण सेदवाल (1943-2013)
हो गया। भरे पूरे परिवार को छोड़ कर गये श्री सेदवाल कोटा के हर कवि सम्‍मेलन, कवि गोष्ठियों, साहित्यिक कार्यक्रमों में सदैव अपनी उपस्थिति दर्ज कराते थे। अनेकों पत्र पत्रिकाओं, संकलनों में उनकी ऊर्जस्‍वी और प्रगतिशील रचनायें प्रकाशित होती रहती थीं। आपकी 3 पुस्‍तकें 1979 में ‘अविकल्‍प’, 2003 में ‘करवट लेता समय’ और 2007 में ‘व्‍यर्थ गई प्रार्थनाएँ’ प्रकाशित हो चुकी थीं। आपकी एक बालकथा 'रामू एंड रोबो' (अंग्रेजी में) नेशनल बुक ट्रस्‍ट द्वारा प्रकाशित हुई थी। आपने राजस्‍थानी कवि प्रेम जी प्रेम की पुस्‍तक ‘म्‍हारी कवितावाँ’ का अंग्रेजी में ‘रूट्स एंड अदर पोएम्‍स’ के नाम से अनुवाद किया था। पिछले दिनों शांति भारद्वाज के प्रसिद्ध उपन्‍यास ‘उड़ जा रे सुआ’ का अंग्रेजी में अनुवाद उनकी विलक्षण प्रतिभा का दर्शन था। यह पुस्‍तक काफी चर्चित रही थी। देश विदेश की सम्‍पादित पुस्‍तकों में आपकी रचनायें छपती रहती थीं, जिनमें प्रमुख हैं 1977 में प्रकाशित प्रणव वंद्योपाध्‍याय की ‘हंड्रेड इंडियन पोएट्स’, डेविड रे (अमेरिका) की 1983 में प्रकाशित पुस्‍तक ‘एंथोलॉजी ऑफ न्‍यू लेटर्स ऑन इंडियन लिटरेचर’ में उनकी अंग्रेजी कविता छपी थी, जगदीश चतुर्वेदी की ‘हिन्‍दी पोएट्री टुडे’ में भी 1983 में आपकी अंग्रेजी में कविता प्रकाशित हुई थी। अन्‍य सम्‍पादित प्रमुख पुस्‍तकों यथा प्रेमजी प्रेम सम्‍पादित ‘विंधग्‍या ज्‍यो मोती’ का(1975), हरिवंश राय बच्‍चन सम्‍पादित ‘हिन्‍दी की प्रतिनिधि कविताएँ (1981), डॉ0 नारायण दत्‍त पालीवाल की ‘ज्‍योति कलश (1980)में और डा0 कन्‍हैयालाल नंदन की ‘हिन्‍दी उत्‍सव’ 92007) में आपकी प्रतिभा के दर्शन मिलते हैं। आप केंद्रीय साहित्‍य अकादमी के लिए राजस्‍थानी भाषा के व्‍याकरण व अन्‍य राजस्‍थानी अनुवाद पर भी कार्य कर रहे थे। 2003 में सेवानिवृत्ति के बाद उन्‍होंने अपने आपको पूरी तरह से साहित्‍य ओर समाज को समर्पित कर दिया था। 2008 में प्रकाशित जनवादी लेखक संघ कोटा के सृजन वर्ष में प्रकाशित हाड़ौती के जनवादी कवियों की प्रतिनिधि रचनाकारों में भी आप शामिल थे। रक्षा सेवा में लेखा विभाग से जुड़े होने के कारण भ्रष्‍टाचार में लिप्‍त देश में फैली विषमताओं पर चिंतित श्री सेदवाल ने इस पुस्‍तक में अपनी वेदना को ‘एक बकरे की व्‍यथा’ में प्रस्‍तुत किया है। यह कविता उनको समर्पित 'सान्निध्‍य दर्पण’ में आप पढ़ सकते है। जनवदी लेखक संघ कोटा जिला व शहर इकाई के सभी सदस्‍यों की ओर से श्री सेदवाल को श्रद्धांजलि।
  

गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

बॉलिवुड की बीरबहूटी सी मखमली आवाज की मलिका शमशाद बेगम

मेरी संगीत यात्रा के 1980 से 1985 के दौर में जिस शख्सियत का एक खास मकाम रहा है, वह थीं शमशाद बेगमजी। सचमुच बीरबहूटी सी मखमली अहसास की आवाज की मलिका। ऑर्केस्‍ट्रा का मेरा सफर जब गुजरात के स्‍टेज, थियेटर्स पर से गुजरा उस समय गायक और गायिकाओं में उन्‍हें बहुत इज्‍़ज़त बख्‍़शी जाती थी, जो अनेक आवाजों में फि‍ल्मी गीतों को गाया करते थे। जिनमें मेल आवाज में मुकेशजी प्रमुख थे और फीमेल आवाज में शमशाद बेगमजी। शमशाद बेगमजी के इस गीत के 
गायिका स्‍व0 शमशाद बेगम 
मुखड़ों से ऑर्केस्‍ट्रा के कार्यक्रमों की अक्‍सर शुरुआत होती थी 'धरती को आकाश पुकारे'--या--आवाज दे कहाँ है-------इसके बाद शुरु होती थी संगीत संध्‍या------ उद्धोषक की पर्दे के पीछे से अमीन सयानी की हूबहू नकल में आवाज आती------बहिनो और भाइयो------। शमशाद बेगम जी की आवाज के लिए मुझे याद आती है जूनागढ़ की गायिका ‘श्रीमती प्रतिभा ठाकर’ मेहुल म्‍यूजिकल ग्रुप में उनका एक ऊँचे दर्जे का मकाम था। वे बहुत अच्‍छा गाती थीं। उनके साथ मुझे शमशाद बेगमजी के गीतों में कीबोर्ड बजाने का मौका मिला। उनके गाये गीत 'बूझ मेरा क्‍या नाम रे, नदी किनारे गाँव रे-----' और 'लेके पहला पहला प्‍यार' ----- आज भी मेरे जेहन में झंकृत होते हैं। झनकती हुई आवाज की मलिका शमशाद बेगम की आवाज का जादू उन दिनों इतना था कि उनके गाये गीतों में संगीत की हूबहू धुन उतार कर प्रतिमा जी के साथ बजाना एक चुनौती भरा होता था। तलत मेहमूद और शमशादजी का गाया दो गाना 'मिलते ही आँखें दिल हुआ दीवाना किसी का' भी उस समय बड़ी शिद्दत से गाया जाता था। बहुत ही ख्‍यातनाम गीत गाये हैं उन्‍होंने जैसे फि‍ल्‍म आग का ‘काहे कोयल शोरमचाये रे’, फि‍ल्‍म बैजू बावरा का ‘दूर कोई गाये धुन से सुनाये—‘, फि‍ल्‍म पतंगा का ‘मेरे पिया गये रंगून’, फि‍ल्‍म मदर इंडिया का ‘गाड़ी वाले गाड़ी धीरे हाँक रे’, फि‍ल्‍म मुग़ले आज़म का ‘तेरी महफि‍ल में किस्‍मत आजमा कर हम भी देखेंगे’ आदि। शमशाद बेगम का एक गीत आज भी मुझे बहुत पसंद है, जिसमें कई गायिकाओं के बीच उनकी आवाज अलग ही आकर्षित करती है। पंजाबी लोकगीत की तर्ज पर संगीत रत्‍न स्‍व0 मदन मोहन द्वारा संगीतबद्ध गीत ‘नाचे अंग वे---छलके रंग वे---लाएगामेरा देवर---आहा---गोरे गाल वाली---सावा---लंबे बाल वाली------ओय होय----बाँकी चालवाली------'  फि‍ल्‍म ‘हीर राँझा’ का यह गीत मेरे पसंदीदा कोरस गीतों में आज भी मुझे बहुत पसंद है। बाद में स्‍थायी रूप से राजस्‍थान में कोटा में बसने के बाद अपनी अंतिम संगीत यात्रा 1985 से 2000 तक में एक गायक ‘आजाद भारती’ (स्‍व0) को कौन भुला पाएगा। वे भी शमशाद बेगमजी की आवाज में कई गीत गाया करते थे। आर्केस्‍ट्रा में उनके स्‍टेज पर आते ही पहला गीत 'सैंया दिलमें आना रे, आके फि‍र ना जाना रे---‘ से शुरुआत होती थी। वे पहले शख्‍स थे जो मेल आवाज में कलाकारों की हूबहू नकल तो करते ही थे पर फीमेल आवाज में लताजी, आशाजी और विशेष रूप से शमशाद बेगमजी के गीतों में उनका कोई जवाब नहीं था। उनके साथ बजाये गीतों ‘लेके पहला पहला प्‍यार’ और ‘कजरा मोहब्‍बत वाला’ मैं कभी नहीं भूल सकता। ठुमरी गायिका बेगम अख्‍तर और शमशाद बेगम जी को भारतीय फि‍ल्‍मी और संगीत इतिहास में कौन भूल पाएगा।
आज वे नहीं हैं, लेकिन संगीत प्रेमी उन्‍हें कभी नहीं भुला पायेंगे। बरसात में जब रिमझिम बरसती बरखा में जब कभी बीरबहूटी (राम जी की डोकरी) को देखेंगे उन्‍हें याद आएगी मखमली आवाज की मलिका शमशाद बेगमी जी। हाल ही में हमारे बीच नहीं रहीं ‘शमशाद बेगमजी’ को मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि। 

(आग्रह- स्‍व0 शमशाद बेगम जी के बारे में उनके चित्र के नीचे लिखे नाम को क्लिक करेंगे तो आप उनकी सम्‍पूर्ण जीवनी के बारे में जान सकते हैं। उनके गाये गीतों के मुखड़ों पर क्लिक करेंगे तो 'यू ट्यूब' पर उन गीतों को  सीधे  वीडियो देख सुन सकते हैं। सुनें और उन्‍हें  अपनी श्रद्धांजलि दें।- आकुल

सान्निध्य: है हक़ीक़त और कुछ


सान्निध्य: है हक़ीक़त और कुछ: समय नहीं है कहना यह नज़ीर बस बतौर है। एकजुट होना ही होगा आँधियों का दौर है। कितनी गिनाएँ खामियाँ कब तलक़ चर्चे करें, हर सियासी दौर मे...

शनिवार, 20 अप्रैल 2013

सान्निध्य: कैसा ज़ुनून है यह


सान्निध्य: कैसा ज़ुनून है यह: Bangluru Blast  कभी आतंकियों से और कभी दुष्‍कर्मियों से। हैराँ है, पशेमाँ है वतन, इनकी बेशर्मियों से।। कैसा ज़ुनून है यह, कैसी हवा च...

रविवार, 7 अप्रैल 2013

सान्निध्य: मातृभूमि वंदना


सान्निध्य: मातृभूमि वंदना: जननी जन्‍मभूमि भारत माँ, तू है कृपानिधान। शत-शत बार प्रणाम करूँ, रखूँ सदा यह ध्‍यान।। प्रातस्‍स्‍मरणीय मात-पिता-गुरु-जन्‍मभूमि पर मान। ...