गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

बॉलिवुड की बीरबहूटी सी मखमली आवाज की मलिका शमशाद बेगम

मेरी संगीत यात्रा के 1980 से 1985 के दौर में जिस शख्सियत का एक खास मकाम रहा है, वह थीं शमशाद बेगमजी। सचमुच बीरबहूटी सी मखमली अहसास की आवाज की मलिका। ऑर्केस्‍ट्रा का मेरा सफर जब गुजरात के स्‍टेज, थियेटर्स पर से गुजरा उस समय गायक और गायिकाओं में उन्‍हें बहुत इज्‍़ज़त बख्‍़शी जाती थी, जो अनेक आवाजों में फि‍ल्मी गीतों को गाया करते थे। जिनमें मेल आवाज में मुकेशजी प्रमुख थे और फीमेल आवाज में शमशाद बेगमजी। शमशाद बेगमजी के इस गीत के 
गायिका स्‍व0 शमशाद बेगम 
मुखड़ों से ऑर्केस्‍ट्रा के कार्यक्रमों की अक्‍सर शुरुआत होती थी 'धरती को आकाश पुकारे'--या--आवाज दे कहाँ है-------इसके बाद शुरु होती थी संगीत संध्‍या------ उद्धोषक की पर्दे के पीछे से अमीन सयानी की हूबहू नकल में आवाज आती------बहिनो और भाइयो------। शमशाद बेगम जी की आवाज के लिए मुझे याद आती है जूनागढ़ की गायिका ‘श्रीमती प्रतिभा ठाकर’ मेहुल म्‍यूजिकल ग्रुप में उनका एक ऊँचे दर्जे का मकाम था। वे बहुत अच्‍छा गाती थीं। उनके साथ मुझे शमशाद बेगमजी के गीतों में कीबोर्ड बजाने का मौका मिला। उनके गाये गीत 'बूझ मेरा क्‍या नाम रे, नदी किनारे गाँव रे-----' और 'लेके पहला पहला प्‍यार' ----- आज भी मेरे जेहन में झंकृत होते हैं। झनकती हुई आवाज की मलिका शमशाद बेगम की आवाज का जादू उन दिनों इतना था कि उनके गाये गीतों में संगीत की हूबहू धुन उतार कर प्रतिमा जी के साथ बजाना एक चुनौती भरा होता था। तलत मेहमूद और शमशादजी का गाया दो गाना 'मिलते ही आँखें दिल हुआ दीवाना किसी का' भी उस समय बड़ी शिद्दत से गाया जाता था। बहुत ही ख्‍यातनाम गीत गाये हैं उन्‍होंने जैसे फि‍ल्‍म आग का ‘काहे कोयल शोरमचाये रे’, फि‍ल्‍म बैजू बावरा का ‘दूर कोई गाये धुन से सुनाये—‘, फि‍ल्‍म पतंगा का ‘मेरे पिया गये रंगून’, फि‍ल्‍म मदर इंडिया का ‘गाड़ी वाले गाड़ी धीरे हाँक रे’, फि‍ल्‍म मुग़ले आज़म का ‘तेरी महफि‍ल में किस्‍मत आजमा कर हम भी देखेंगे’ आदि। शमशाद बेगम का एक गीत आज भी मुझे बहुत पसंद है, जिसमें कई गायिकाओं के बीच उनकी आवाज अलग ही आकर्षित करती है। पंजाबी लोकगीत की तर्ज पर संगीत रत्‍न स्‍व0 मदन मोहन द्वारा संगीतबद्ध गीत ‘नाचे अंग वे---छलके रंग वे---लाएगामेरा देवर---आहा---गोरे गाल वाली---सावा---लंबे बाल वाली------ओय होय----बाँकी चालवाली------'  फि‍ल्‍म ‘हीर राँझा’ का यह गीत मेरे पसंदीदा कोरस गीतों में आज भी मुझे बहुत पसंद है। बाद में स्‍थायी रूप से राजस्‍थान में कोटा में बसने के बाद अपनी अंतिम संगीत यात्रा 1985 से 2000 तक में एक गायक ‘आजाद भारती’ (स्‍व0) को कौन भुला पाएगा। वे भी शमशाद बेगमजी की आवाज में कई गीत गाया करते थे। आर्केस्‍ट्रा में उनके स्‍टेज पर आते ही पहला गीत 'सैंया दिलमें आना रे, आके फि‍र ना जाना रे---‘ से शुरुआत होती थी। वे पहले शख्‍स थे जो मेल आवाज में कलाकारों की हूबहू नकल तो करते ही थे पर फीमेल आवाज में लताजी, आशाजी और विशेष रूप से शमशाद बेगमजी के गीतों में उनका कोई जवाब नहीं था। उनके साथ बजाये गीतों ‘लेके पहला पहला प्‍यार’ और ‘कजरा मोहब्‍बत वाला’ मैं कभी नहीं भूल सकता। ठुमरी गायिका बेगम अख्‍तर और शमशाद बेगम जी को भारतीय फि‍ल्‍मी और संगीत इतिहास में कौन भूल पाएगा।
आज वे नहीं हैं, लेकिन संगीत प्रेमी उन्‍हें कभी नहीं भुला पायेंगे। बरसात में जब रिमझिम बरसती बरखा में जब कभी बीरबहूटी (राम जी की डोकरी) को देखेंगे उन्‍हें याद आएगी मखमली आवाज की मलिका शमशाद बेगमी जी। हाल ही में हमारे बीच नहीं रहीं ‘शमशाद बेगमजी’ को मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि। 

(आग्रह- स्‍व0 शमशाद बेगम जी के बारे में उनके चित्र के नीचे लिखे नाम को क्लिक करेंगे तो आप उनकी सम्‍पूर्ण जीवनी के बारे में जान सकते हैं। उनके गाये गीतों के मुखड़ों पर क्लिक करेंगे तो 'यू ट्यूब' पर उन गीतों को  सीधे  वीडियो देख सुन सकते हैं। सुनें और उन्‍हें  अपनी श्रद्धांजलि दें।- आकुल

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