शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2011

अरुण श्रीवास्तव ‘मुन्ना जी’ नहीं रहे

हम सब साथ साथ के सहयोगी प्रकाशन, झांसी से प्रकाशित होने वाली कायस्थ समाज की लोकप्रिय ‘चित्रांश ज्योति’के संस्थापक व प्रकाशक झांसी निवासी श्री अरुण श्रीवास्तव ‘मुन्ना जी’ का गत् 5 अक्तूबर, 2011 को लखनऊ स्थित मेडिकल कालेज में एक बीमारी के चलते आकस्मिक निधन हो गया। वह 52 वर्ष के थे। अपने पीछे वह पत्नी सहित दो नाबालिग बच्चे छोड़ गए हैं। आप लगभग तीन दशकों तक दैनिक जागरण, झांसी के संपादकीय विभाग में कार्य करते हुए बतौर लेखक मुख्यतः70-90 के दशक में रेडियो के अलावा दैनिक जागरण सहित धर्मयुग, लोटपोट, बाल भारती, दीवाना तेज, पराग, फिल्मी दुनिया, माधुरी आदि विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े रहे थे। विभिन्न पत्र/पत्रिकाओं में प्रकाशित ‘आपके अटपटे प्रश्न और मुन्नाजी के चटपटे उत्तर’ आपका लोकप्रिय स्तंभ रहा था। इस स्तंभ के अंतर्गत पाठकों के अटपटे प्रश्नों के जवाब में आपके चटपटे व काव्यात्मक उत्तर उस समय बेहद लोकप्रिय रहे थे। आपने किशोरावस्था में ही लेखन व पत्रकारिता शुरू कर दी थी और उसी समय ‘मृगपाल’ नामक एक मासिक पत्रिका का संपादन भी प्रारम्भ कर दिया था। आपको लेखन व पत्रकारिता के अलावा गायन व समाज सेवा का भी शौक था। आपने झांसी जिले में कायस्थ समाज के उत्थान के लिए भी अनेक कार्यक्रम आयोजित किए और अंतिम समय तक कायस्थ समाज की पात्रिका ‘चित्रांश ज्योति’ का प्रकाशन भी करते रहे। आपको विभिन्न उल्लेखनीय कार्यों के चलते अनेक सम्मान भी प्राप्त थे। आप अत्यन्त मिलनसार व सामाजिक प्रकृति के व्यक्ति थे। आपके आकस्मिक निधन से आपके हजारों चाहने वाले दुखी व स्तब्ध हैं।

गुरुवार, 13 अक्टूबर 2011

शब्‍द दो तुम मैं लि‍खूँगा

आज आक्रोश दि‍न पर दि‍न बढ़ रहा है। बात काश्‍मीर की हो या भ्रष्‍टाचार की,जन समस्‍याओं की हो या महँगाई की,राजनीति‍ की हो या साहि‍त्‍य की,आम आदमी इतना त्रस्‍त हो चला है कि‍ धैर्य छूटने लगा है,हाथ में जलजले उठाने को तैयार है वह,आँखों में वहशत को देख कर लगता है कि‍ भवि‍ष्‍य में कुछ अनि‍ष्‍ट होने वाला है,न्‍यायाधीश बेबस अपने नि‍र्णयों की धज्‍जि‍याँ उड़ते देख रहे हैं,कि‍स का गुस्‍सा कि‍स पर उतर रहा है,नगरपालि‍काओं में मूलभूत आवश्‍यकताओं के लि‍ए लोग सड़कों पर उतरने लगे हैं, हिंसक प्रवृत्‍ति‍याँ बढ़ रही हैं, रक्षक भक्षक बन रहे हैं, भ्रष्‍ट लोग अब जैसे एक ही दि‍न में पूरी देश को लूट कर भागने की फ़ि‍राक़ में हैं, गुण्‍डागर्दी हद कर रही है, उत्‍तर प्रदेश में तानाशाही फ़लक़ पर है, संवि‍धान के मूल अधि‍कार केवल कागज़ों में मुँह छि‍पा रहे हैं। क्‍या इसी को रौरव कहते हैं, पुराणों में वर्णि‍त एक नर्क। पूरे देश पर धीरे धीरे एक अभेद्य वायरस का जमावड़ा होने लगा है, याद आ रहा है अंग्रेजी फि‍ल्‍म 'इनडि‍पेंडेंस डे' जि‍समें दूसरे ग्रह के प्राणि‍यों ने अमेरि‍का पर अपना जाल फैलाया और कि‍स तरह से जाँबाज़्रों ने देश को फि‍र एक आज़ादी में हवा लेने के लि‍ए अपनी जाँ की बाज़ी लगाई। आज अपने देश में फि‍र एक जनक्रांति‍ की आवश्‍यकता महसूस की जा रही है, पर इसके पहले और कि‍तना रक्‍तपात--- यह आप और हमें सोचना है।

शब्द दो तुम मैं लि‍खूँगा, इक अमि‍ट इति‍हास फि‍र।
याद रक्खेगा तुम्हें अपना वतन हर साँस फि‍र।।
कब तलक सोते रहोगे,वक्त की आवाज़ है।
साहि‍लों की मौज़ों में तूफानों का अंदाज़ है।
कर दो तुम नाकाम उन शैतानों की हर कोशि‍शें।
कर दो तुम ख़ाति‍र वतन, क़ुर्बान अब हर ख्‍वाहि‍शें।
खूँरेज़ी का दौर है, दुश्मन नहीं कमज़ोर है।
बि‍जलि‍यों का शोर है, ग़म की घटा घनघोर है।
अपनी हर तकलीफ़ को मोहरा बना कर कि‍श्त दी।
उसको ना मुँह की पड़े, जो तुमने ना शि‍कस्त दी।
फि‍र बढ़ेगा हौसला, दुश्मन का तुम ये जान लो।
फि‍र लि‍खेगा खून से लथपथ कहानी जान लो।
हाथ दो उड़ने को दूँगा मैं नई परवाज़ फि‍र।
याद रक्खेगा तुम्हें अपना वतन हर साँस फि‍र।।

सान्निध्य: वि‍श्‍व दृष्‍टि‍ दि‍वस

सान्निध्य: वि‍श्‍व दृष्‍टि‍ दि‍वस: बचें दृष्टि से दृष्टि‍‍दोष संकट फैला है चहुँ दि‍श। नि‍कट, दूर या सूक्ष्म दृष्टि‍ सिंहावलोकन हो चहुँ दिश।। दृष्टि‍ लगे या दृष्टि पड़े जब डि‍...

शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2011

सान्निध्य: कितने रावण मारे अब तक

सान्निध्य: कितने रावण मारे अब तक: कितने रावण मारे अब तक कितने कल संहारे मन के भीतर बैठे रावण को ना मार सका रे तेरी अंतरात्मा षड् रिपु में पड़ी हुई है इसीलिए यह धारा रावणों से...

शनिवार, 1 अक्टूबर 2011

सान्निध्य: दशहरा

सान्निध्य: दशहरा: सुनहुँ राम वानर सेना संग सीमा में घुस आये। घोर नि‍नाद देख चहुँदि‍स सेना नायक घबराये।। कुंभकरण संग मेघनाद समरांगण स्‍वर्ग सि‍धारे। बलशाली से...

बुधवार, 28 सितंबर 2011

शक्ति की अधि‍ष्‍ठात्री देवी माँ दुर्गा

आश्विन शुक्ल दशमी मास के शुक्ल पक्ष के शुरुआती नौ दि‍न भारतीय संस्कृति‍ में नवरात्र के नाम से शक्ति‍ की पूजा के लि‍ए नि‍र्धारि‍त है
इन दि‍नों शक्ति ‍की अधि‍ष्ठात्री देवी माता दुर्गा की आराधना, उपासना व अर्चना की जाती है। 1- शैलपुत्री 2- ब्रह्मचारि‍णी 3-चंद्रघंटा 4-कूष्मादण्डा 5-स्कन्दमाता 6- कात्यायनी 7- कालरात्रि‍ 8- महागौरी 9- सि‍द्धि‍दात्री। ये नौ रूप दुर्गा के ही अन्य प्रतीक हैं, जो शक्‍ति‍ ‍ के सशक्त संबल हैं। दुर्गा का अर्थ ही है-दुर्गम, कठि‍नता से प्राप्ति के योग्य शक्ति‍।
दुर्गा के आठ हाथों में से सात हाथों में शक्ति के प्रतीक चि‍ह्न हैं। शंख, चक्र, गदा, पद्म, त्रि‍शूल, खड्.ग व धनुषबाण। आठवाँ हाथ ऊँ से अंकि‍त खाली व आशीर्वाद का प्रतीक है। आशीर्वाद भी स्वयं एक महाशक्ति है, जो प्रेरि‍का व नि‍र्माण करने वाली है। योग दर्शन में आठ प्रकार की सि‍द्धि‍याँ, शक्तियाँ मानी गईं हैं- अणि‍मा, गरि‍मा, लघि‍मा, महि‍मा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशि‍त्व, एवं वशि‍त्व। ये सब अनादि‍,अनंत व अखण्ड स्वरूपा, आदि‍ति‍नमि‍का माता दुर्गा के ही प्रति‍रूप हैं।
इस शक्ति‍‍ स्वरूपा माता की हुंकार को वैदि‍क ऋचाओं में भी सुना जा सकता है। ‘वागाम्भृतणी सूक्तं (ऋग्वेद) के आठ मंत्र दुर्गा माँ के नि‍खि‍ल स्वरूप व समस्त शक्तियों के प्रति‍नि‍धि‍ रूप है। ब्रह्मा,वि‍ष्णु व महेश, जो जगत् के क्रमश: नि‍र्माता, पालयि‍ता व संहर्ता के रूप में जाने जाते हैं- इन सब देवताओं की शक्ति को माता दुर्गा ने अपने हाथों में समेट रखा है। ब्रह्मा के चारों अस्त्र-शस्त्र, शंख-चक्र, गदा-पद्म, दुर्गा के नि‍यंत्रण में हैं।
शंख- शंख प्रतीक है स्फूर्ति‍ एवं चेतना का। शंखनाद युवाओं में प्राण फूँक देता है। कुरुक्षेत्र के समरांगण में भी सभी ने अपने शंखों को फूँका था। ‘शंख दध्मौ प्रतापवान्।‘ (गीता) श्रीकृष्‍ण का पांचजन्य‍ समाज के (पाँचों जनों)(पाँच पाण्डखवों) को जागरूक करता था।
चक्र- चक्र काल व गति‍ का प्रतीक है। केन्द्र बि‍न्दु व केन्द्र के चारों ओर की परि‍धि‍ के माध्यम से सम्पूर्ण जगत् व ब्रह्माण्ड का प्रति‍नि‍धि‍ रूप है चक्र। अखण्ड कराल ‘काल’ जो सबको पीछे छोड़ जाता है, महाशक्तिज का रूप है।
गदा- गदा को त्रोटक, प्रस्फोटक, भंजक व वि‍ध्वं‍सकारी माना गया है, अत: यह शक्ति भी महामाया में ही नि‍हि‍त है।
त्रि‍शूल व धुनष- त्रि‍शूल व धनुष, पि‍नाकपाणि‍, त्रि‍शूलधारी शि‍व के अस्त्र हैं। त्रि‍नेत्र भगवान् शि‍व को त्रि‍शूल त्रि‍लोक के तीनों दु:खों का संहारक है। रुद्र शि‍व के लि‍ए, दुर्गा धनुष की डोर खींच लेती हैं- ‘अहं रुद्राय धनुरातनोमि‍’ (ऋग्वेद) के इस मंत्र की छाया में दुर्गा के स्वरूप को देखा जा सकता है, जि‍सके बि‍ना शि‍व शव के रूप में परि‍णत है। यजुर्वेद का रुद्राध्यामय भी रुद्र की महि‍मा का द्योतक है।
पद्म- पद्म यानि‍ कमल खि‍लता हुआ सौंदर्य है। वि‍ध्वंस के पश्चात् सुंदरतम नि‍र्माण का यह प्रतीक है। यह शक्ति‍माँ दुर्गा में ही नि‍हि‍त है।
खड्.ग- यानि‍ तलवार भी तुरंत वार का प्रतीक है। राक्षसों के झुंडों के मुंडों का कर्तक होने के कारण यह दुर्गा माता के हाथ की शोभा व शृंगार है। अष्टभुजाधारि‍णी, राक्षसमर्दि‍नी, आशीर्वाददात्री, माता दुर्गा सिंहासना है, यानि‍ सिंह पर आसीन है। सिंह पशुराज है। मानवेतर प्राणि‍यों की भी वे कर्त्री-धर्त्री हैं। इस तथ्य को इससे दर्शाया गया है- समग्रत: वि‍वि‍ध अस्त्र-शस्त्रों के माध्यम से दुर्गा माता का जो शक्ति ‍स्वरूप उभारा गया है, वह अप्रति‍म व अनुपम है।
नवरात्र में दुर्गा पूजा के माध्य‍म से वस्तुत: शक्ति‍ का ध्यान कि‍या जाता है, क्योंकि‍ ‘शक्तिर्यस्त्र वि‍राजते से बलवान् स्थू‍लेषू क: प्रत्यय:’ अर्थात् जो व्यक्‍ति‍‍ शक्तित‍मान् है, वही बलवान् व वि‍जयवान् है।
(नवरात्र उपासना, फ्रेण्‍ड्स हेल्‍पलाइन, कोटा के प्रकाशन से साभार)