बुधवार, 5 जून 2013
सान्निध्य: लगता है तुम आ रहे हो
सान्निध्य: लगता है तुम आ रहे हो: लगता है तुम आ रहे हो, आँचल में छिपा लूँगी अभिव्यक्ति उन्वान (चित्र)- 59 ये चाँद तुम्हें देखकर नज़र तुम्हें लगा दे न पीठ कि...
सोमवार, 3 जून 2013
साज़ नहीं रहे। मगर उनकी आवाज़ आज भी गूँज रही है।
साज़ जबलपुरी को श्रद्धांजलि

उनकी पुस्तक 'किरचें' के उनके ही जज़्बातों से उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा हूँ-आकुल
(1)
अपनी हस्ती भी है कोई हस्ती
जी रहे हैं मगर जबरदस्ती
एक लम्हा न बढ़ सका तुझसे
ज़िन्दगी देखी तेरी तंग दस्ती
ज़िन्दगी दे के मौत पाई है
चीज़ महँगी थी मिल गई सस्ती
मौत ने ला दिया बुलंदी पर
वरना हस्ती की क्या रही हस्ती
(2)
चंदन दास जी के एलबम 'लाइफ स्टोरी वॉल्यूम 1, 'अरमान' और तमन्ना में शामिल उनकी 2 ग़ज़लों (गीतों) के बोल प्रस्तुत हैं-
(1)
तन्हा न अपने आपको अब पाइए जनाब।
मेरी ग़ज़ल को साथ लिए जाइए जनाब।
नग़्मों की बारिशों में कहीं भीगने चलें,
मौसम की आरज़ू को न ठुकराइये जनाब।
रिश्तों को भूल जाना तो आसान है मगर,
पहले ख़ुद अपने आपको समझाइये जनाब।
ऐसा न हो थमे हुए आँसू छलक पड़ें,
रुख़सत के वक़्त मुझको न समझाइये जनाब।
मैं 'साज़' हूँ ये याद रहे इसलिए कभी,
मेरे ही शेर मुझको सुना जाइये जनाब।
(2)
मैंने मुँह को कफ़न में छुपा जब लिया,
तब उन्हें मुझसे मिलने की फुरसत मिली।
हाले दिल पूछने जब वो घर से चले ,
रास्ते में उन्हें मेरी मैयत मिली।
वो जफ़ा करके भी क़ाबिले क़द्र है,
मुझको मेरी वफ़ा का सिला यह मिला।
जीते जी मैं तो रुसवा रहा उम्र भर,
बाद मरने के भी मुझको तोहमत मिली।
मेरी मैयत को दीवाने की लाश है ,
ऐसा कहकर शहर में घुमाया गया।
इस तरह उनको शोहरत ख़ुदा की क़सम,
मेरी रुसवाइयों की बदौलत मिली।
एक ही शाख पर 'साज़' दो ग़ुल खिले ,
चाल क़िस्मत की लेकिन ज़रा देखिये।
एक ग़ुल क़ब्र पर मेरी शर्मिन्दा है,
एक को उनकी ज़ुल्फ़ों में इज़्ज़त मिली।
पिछले दिनों साज़ नहीं रहे। मगर उनकी आवाज़ आज भी गूँज रही है। उनके साथ चंद घंटों का ही था, जब वे कोटा आए थे भारतेंदु समिति में आयोजित सम्मान समारोह में और एक छोटी सी काव्य गोष्ठी में उनसे रूबरू हुआ और वे छा गये। उन्होंने अपनी पुस्तक 'किरचें' भेंट की। जो आज एक धरोहर है उनकी मेरे पास। उनकी ग़जलों से 2 ग़ज़लें चंदनदास जी ने अपनी 3 एलबम रिलीज़ में शामिल किये हैं। ये हैं- तमन्ना (2011), अरमान (2008) और लाइफ स्टोरी (2008)। चंदनदासजी के इन तीनों एलबम में उनकी ग़ज़ल हैं। तमन्ना में उन्होंने मैंने मुँह को कफ़न में छुपा जब लिया गाया है। तन्हा न अपने आपको अब पाइये ज़नाब लिखी ग़ज़ल चंदनदासजी की 'अरमान' एलबम में है। तन्हा न अपना उनके अन्य एलबम लाइफ स्टोरी वोल्यूम-1 में भी है। आपकी अन्य पुस्तकें 'मिज़राब' (ग़ज़ल संग्रह), शर्म इनको मगर नहीं आती (लेख संग्रह) हैं। सम्पादित पुस्तकों में 'पीले वरक़ में रखे गुलाब' (समवेत काव्य संकलन), अभिव्यक्ति (समवेत काव्य संकलन) काफी चर्चित रहे हैं। उनके गीतों पर क्लिक कर उनके गीत सुने जा सकते हैं।

उनकी पुस्तक 'किरचें' के उनके ही जज़्बातों से उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा हूँ-आकुल
(1)
अपनी हस्ती भी है कोई हस्ती
जी रहे हैं मगर जबरदस्ती
एक लम्हा न बढ़ सका तुझसे
ज़िन्दगी देखी तेरी तंग दस्ती
ज़िन्दगी दे के मौत पाई है
चीज़ महँगी थी मिल गई सस्ती
मौत ने ला दिया बुलंदी पर
वरना हस्ती की क्या रही हस्ती
(2)
चंदन दास जी के एलबम 'लाइफ स्टोरी वॉल्यूम 1, 'अरमान' और तमन्ना में शामिल उनकी 2 ग़ज़लों (गीतों) के बोल प्रस्तुत हैं-
(1)
तन्हा न अपने आपको अब पाइए जनाब।
मेरी ग़ज़ल को साथ लिए जाइए जनाब।
नग़्मों की बारिशों में कहीं भीगने चलें,
मौसम की आरज़ू को न ठुकराइये जनाब।
रिश्तों को भूल जाना तो आसान है मगर,
पहले ख़ुद अपने आपको समझाइये जनाब।
ऐसा न हो थमे हुए आँसू छलक पड़ें,
रुख़सत के वक़्त मुझको न समझाइये जनाब।
मैं 'साज़' हूँ ये याद रहे इसलिए कभी,
मेरे ही शेर मुझको सुना जाइये जनाब।
(2)
मैंने मुँह को कफ़न में छुपा जब लिया,
तब उन्हें मुझसे मिलने की फुरसत मिली।
हाले दिल पूछने जब वो घर से चले ,
रास्ते में उन्हें मेरी मैयत मिली।
वो जफ़ा करके भी क़ाबिले क़द्र है,
मुझको मेरी वफ़ा का सिला यह मिला।
जीते जी मैं तो रुसवा रहा उम्र भर,
बाद मरने के भी मुझको तोहमत मिली।
मेरी मैयत को दीवाने की लाश है ,
ऐसा कहकर शहर में घुमाया गया।
इस तरह उनको शोहरत ख़ुदा की क़सम,
मेरी रुसवाइयों की बदौलत मिली।
एक ही शाख पर 'साज़' दो ग़ुल खिले ,
चाल क़िस्मत की लेकिन ज़रा देखिये।
एक ग़ुल क़ब्र पर मेरी शर्मिन्दा है,
एक को उनकी ज़ुल्फ़ों में इज़्ज़त मिली।
पिछले दिनों साज़ नहीं रहे। मगर उनकी आवाज़ आज भी गूँज रही है। उनके साथ चंद घंटों का ही था, जब वे कोटा आए थे भारतेंदु समिति में आयोजित सम्मान समारोह में और एक छोटी सी काव्य गोष्ठी में उनसे रूबरू हुआ और वे छा गये। उन्होंने अपनी पुस्तक 'किरचें' भेंट की। जो आज एक धरोहर है उनकी मेरे पास। उनकी ग़जलों से 2 ग़ज़लें चंदनदास जी ने अपनी 3 एलबम रिलीज़ में शामिल किये हैं। ये हैं- तमन्ना (2011), अरमान (2008) और लाइफ स्टोरी (2008)। चंदनदासजी के इन तीनों एलबम में उनकी ग़ज़ल हैं। तमन्ना में उन्होंने मैंने मुँह को कफ़न में छुपा जब लिया गाया है। तन्हा न अपने आपको अब पाइये ज़नाब लिखी ग़ज़ल चंदनदासजी की 'अरमान' एलबम में है। तन्हा न अपना उनके अन्य एलबम लाइफ स्टोरी वोल्यूम-1 में भी है। आपकी अन्य पुस्तकें 'मिज़राब' (ग़ज़ल संग्रह), शर्म इनको मगर नहीं आती (लेख संग्रह) हैं। सम्पादित पुस्तकों में 'पीले वरक़ में रखे गुलाब' (समवेत काव्य संकलन), अभिव्यक्ति (समवेत काव्य संकलन) काफी चर्चित रहे हैं। उनके गीतों पर क्लिक कर उनके गीत सुने जा सकते हैं।
रविवार, 2 जून 2013
नवगीत की पाठशाला: १२. नवल बधाई
नवगीत की पाठशाला: १२. नवल बधाई
पुष्प गुच्छ सुगंधित
मधुमय फल खिरनी से
मधुकर के अनुगुंजन
उच्छृंखल हिरनी से
वृक्षावलि से हरियाली
पथ पथ पर छाई
नवल बधाई।
मधुकर के अनुगुंजन
उच्छृंखल हिरनी से
वृक्षावलि से हरियाली
पथ पथ पर छाई
नवल बधाई।
मंगलवार, 28 मई 2013
दृढ़ व्यक्तित्व के धनी हैं डा0 रघुनाथ मिश्र
डा0 रघुनाथ मिश्र पर लिखने को जब-जब भी क़लम उठाई है, वह जड़
हो गयी। कुछ लोगों पर लिखना आसान नहीं होता, क्योंकि मेरी आँखों के आगे रघुनाथ
मिश्र एक रूप नहीं, अनेकों रूपों में, मैंनें उनको देखा ही नहीं, मैंनें उन्हें जिया
भी है। व़े दृढ़ व्यक्तित्व के धनी हैं, वे उत्कर्ष के सोपान हैं, वे सहज मार्ग
के अनुयायी संत नज़र आते हैं, कंटकीर्ण उनके जीवन में कुछ है ही नहीं, वे सफल
सामाजिक प्राणी हैं, वे प्रेमी हैं, वे बहुत भावुक भी हैं। वे दम्भी नहीं, सत्य
को स्वीकार करने में वे पहल करने वालों में हैं। वह सहज में विचलित हो जाने वाले,
बाल स्वभाव वाले भी हैं। वे हठी भी हैं, क्योंकि वे सच्चे हैं। सिंहावलोकन उनकी
ऊर्जा है। यही कारण है कि वे कोई कार्य अधूरा नहीं छोड़ते। वार्तालाप उनका कुलिश
प्रभंजन है, जिसकी तपन से लोग उनसे दूर भागते हैं। उन जैसा बनने के लिए कितने
समर्पण की आवश्यकता होती है, यह कोई उनके साथ रह कर धैर्य से सीखे। यह कमी मेरे
भीतर भी है, पर जब भी विचलित होता हूँ, उनसे अवश्य मिलता हूँ, एक अनोखी ऊर्जा
मुझे मिलती है तब मुझे। वे कभी बाल सखा बन कर मुझसे पेश आते हैं, तो कभी मुझे
जरूरत से ज्यादा सम्मान देते हैं। कभी मुझे अपने जैसा जीने का साहस देते
दृष्टिगत होते हैं, तो कभी अपना दर्द बाँटते मेरे सामने रो पड़ते है। उनके सामने
मुझ में धैर्य न जाने कहाँ से आ जाता है। वो अलग बात है कि जलेस की हमारी योजनायें
बनती बिगड़ती रहती हैं, किन्तु उसे अमली ज़ामा पहनाने के लिए हम मूर्तरूप नहीं दे
पाते। यही कारण है कि जिस शख्स ने मज़दूर संघों मे चेतना की मशाल
जलाई और कंधे से
कंधा मिला कर न्याय के लिए सत्ता तक को चुनौती दी, आज अकेला न हो कर भी अकेला
है, यह कड़वा सच है। जनवादी लेखक संघ के संस्थापक सदस्यों में से हैं वे। आज उन
सब से दूर रह कर भी, हाड़ौती अंचल में अपनी एक अलग पहचान बनाये हुए हैं, कोई उन्हें
आज तक डिगा नहीं पाया। ‘जनवाद के पुरोधा’ रघुनाथ सहाय मिश्र, प्यार से जिन्हें
रघुनाथ मिश्र और साहित्य संसार उन्हें डा0
रघुनाथ मिश्र के नाम से जानता है।
यूँ ही नहीं बन जाता कोई पुरोधा। उनमें ये गुण मैंने तब
देखे, जब मुझे सौभाग्य मिला, उनकी रचनाओं का सम्पादन कर, उनकी पहली और एक मात्र
पुस्तक बनाने का। डा0 मिश्र ने दशकों तक रचनायें लिखीं थीं, जिन्हें ढूँढ़-ढूँढ
कर निकाला गया। उनकी पहली पुस्तक ‘सोच ले तू किधर जा रहा है’। यह पुस्तक,
एक चुनौती देती है, जीने का मार्ग चयन करने की। पूरी तरह जनवाद से ओतप्रोत, पर
रचना कर्मी श्री मिश्र मशगू़ल रहे, जनवादी क्रांति में आम आदमी की समस्याओं में
जूझते, उनसे जुड़ते, लोगों को जोड़ने में, एक राह प्रशस्त करने में, जो कंटकीर्ण हो
या फूलों से भरी, उन्होंने न मौसम देखा, न उम्र; न वक्त देखा, न वाक़या, बस रचनाधर्मिता की राह पर चलते रहे, चाहे वह राह, एक
स्वस्थ और जागरूक समाज की संरचना की हो या साहित्य सृजन की। कभी नहीं सोचा कि
प्रतिष्ठा के लिए एकाध पुस्तक का प्रकाशन करूँ। सैंकड़ों नुक्कड़ नाटक खेले,
रंगमच पर हर रूप जिया, किंतु साहित्य के क्षेत्र में किसी प्रतिष्ठा की अभिलाषा
उन्हें कभी नहीं रही। उनका जीवन दर्शन था मुफ़लिसों के बीच बैठ कर उनके दुख-सुख की
सुनना। फ़ाक़ाकशी के मंज़र भी देखे उन्होंने।

बचा के रखा है मैंनें / उनके लिए कुछ क़तरों को /कब काम
आ जाय / उनसे वफ़ा न कर सकूँ / तो जफ़ा भी / न हो जाये कहीं मुझसे।
श्री पंकज पटेरिया सम्पदित 'शब्द ध्वज' में श्री रघुनाथ मिश्र पर प्रकाशित मेरे मूल आलेख के प्रकाशित अंश। 'शब्द ध्वज' का 27 मार्च 2013 को प्रकाशित अंक डॉ0 रघुनाथ मिश्र पर आधारित था।- आकुल
मंगलवार, 14 मई 2013
ऐसे रचनाकारों का बहिष्कार करें
ऐसा सुना भी था कि लोग गोष्ठियों में दूसरों
की रचना पढ़ कर वाहवाही लूटते हैं। लाइब्रेरी से पुस्तकें चुराते हैं। यह उनका
जुनून हो सकता है, साहित्य के प्रति उनका बेहद रुझान हो सकता है, किंतु किसी की रचना को अपने नाम से प्रकाशित करवाना (भले तोड़ मरोड़ कर) कदापि उचित नहीं है। ऐसे
रचनाकारों का बहिष्कार होना चाहिए। आप भी श्री आर0 सी0 शर्मा 'आरसी' के इस संदेश को पढ़ कर 'सुरेंद्र शर्मा, जयपुर' को अपने विचार प्रेषित करें, उन्हें आगाह करें, यह चोरी एक ऐसा अपराध है जिसकी सज़ा ताउम्र उन्हें छलनी करती रहेगी। वे
साहित्य समाज में अपना मुँह छिपाते फिरेंगे और एक रचनाकार अपनी मौत से पहले मर
जाएगा। स्वस्थ रचना करें और अपना अलग स्थान बनायें। 'मधुमती' जैसी साहित्य
अकादमी की पत्रिका में ऐसी त्रुटि जबकि यह कविता पहले श्री आर0 शर्मा0 आरसी के नाम से छप चुकी है, वहाँ के सम्पादकीय मंडल पर प्रश्नचिह्न खड़ा
करती है। सभी पत्र पत्रिकाओं के सम्पादक इससे सचेत हों और बिना तसदीक किये, बिना स्वरचित
का प्रमाण लिए, रचनाएँ कितनी भी उत्कृष्ट क्यों न हों, नहीं छापें।
ऐसे दुष्कृत्यों से मूल लेखक के मन को आघात पहुँचता है। कोटा से प्रकाशित प्रतिष्ठिति पत्रिका 'दृष्टिकोण' में ऐसा हो चुका है, प्रकाशन से पूर्व संदेह होने पर उसे प्रकाशित नहीं किया गया। रचनाकर्म में संलग्न
रचनाकार को कहाँ फुरसत है कि विशाल साहित्य और प्रकाशन की दुनिया की प्रत्येक
पत्रिका को जाँचता, पढ़ता रहे कि कहीं उसकी रचना का दुरुपयोग तो
नहीं हो रहा। यह सुधि पाठकों व सम्पादकों का विशेष उत्तरदायित्व है कि वह ऐसे
चोर रचनाकारों पर नज़र रखें और उनका बहिष्कार करें। सुरेन्द्र शर्मा को
भी चाहिए कि वे हृदय में स्वयं को टटोलें और यदि ऐसा कृत्य सही है तो श्री 'आरसी' से क्षमा माँगे
और उनके ब्लॉग पर खेद व्यक्त करते हुए साहित्य की गरिमा को क्षति पहुँचाने के
लिए सभी साहित्यकारों से रूबरू हों-आकुल
दोस्तों आज थोड़ा मन
दुखी है,कारण कोइ विशेष नहीं परन्तु आज मन केवल इस बात से दुखी हो रहा
है की कुछ लोग केवल छपने की खातिर (छपास )रचनाकारों की रचनाएं चोरी करके या तो
उसमें थोड़ा सा रद्दोबदल करके या हूबहू प्रतिष्ठित पत्रिकाओं को भेज देते है और सम्पादक भी उनको छापने में गुरेज नहीं करते |आज राज० साहित्य अकादमी की प्रतिष्ठित
मासिक पत्रिका "मधुमती "का मई २०१३ का अंक देखा और अचानक पेज संख्या १०९
पर आकर निगाह ठिठक गयी और देखा तो जयपुर के किसी सुरेन्द्र शर्मा के नाम से एक गीत
छपा था जो कि मेरे गीत ![]() |
आर0 सी0 शर्मा0 'आरसी' |
मैं कोटा व जयपुर के समस्त साहित्यकार बंधुओं से इस मंच से (फेसबुक)अपील करता
हूँ की ऐसे व्यक्ति(सुरेन्द्र शर्मा ) का बहिष्कार करें जो चोरी के साहित्य से नाम
कमाना चाहते हैं |मैं यहाँ उनका फोन न० व पता दे रहा हूँ साथ ही अपना गीत (जो
५०--६० पत्रिकाओं में छप भी चुका है) भी आप लोगों के साथ शेयर कर रहा हूँ ताकि आप
ऐसे व्यक्ति को फोन द्वाराएवं व्यक्तिगत रूप से समझा सकें की वो अच्छा काम नहीं कर
रहे|उनका फोन
न० है ०9314445539 पता है :-सुरेन्द्र शर्मा 54-Aविजय नगर प्रथम
-करतारपुर जयपुर- 302006 .फैसला आप सभी पर छोड़ते हुए |आर० सी० शर्मा
"आरसी"
श्री आर सी शर्मा 'आरसी' के फेसबुक खाते से साभार।
श्री आर सी शर्मा 'आरसी' के फेसबुक खाते से साभार।
शुक्रवार, 3 मई 2013
भारतीय फिल्म इतिहास के सौ बरस पर मेरे पसंदीदा चुनिंदा सौ गीत
भारतीय सिनेमा नेआज सौ बरस पूरे कर लिये। मूक फिल्मों से बोलती फिल्मों और संगीतमय
फिल्मों
से आज तक का संगीत सफर दिन दूनी रात चौगुनी सफलता के साथ आगे बढ़ रहा है।
आज भारतीय
फिल्मों और अदाकारों को आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त हो रही
है। कौन भूल सकता है आज भी 'मुगल-ए-आज़म, मेरा नाम जोकर, शोले, जंजीर, वक्त, गाँधी, हक़ीक़त, हीर-राँझा, नागिन, लैला-मजनूँ, क्रांतिवीर, सौदागर, घातक, देवदास, हिना, वीर-ज़ारा आदि। आज बॉलिवुड को दुनिया में कौन नहीं जानता। दुनिया के हर कोने में भारतीय मौजूद
है, वह भारत की हिन्दी फिल्मों का दीवाना है। पड़ौसी देश पाकिस्तान के साथ
हमारे भले ही हमारे राजनीति और कूटनीति सम्बंध कैसे भी हों किंतु कला और संगीत को
कोई सीमाओं में नहीं बाँध सका है।
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भारतीय सिनेमा के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में मुंबई में दादा साहब फालके की प्रतिमा के साथ एक समारोह में ए0 आर0 रहमान व अन्य फिल्मी हस्तियाँ |
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आइये उन गीतों को यू
ट्यूब पर सुनें और संग्रह करें, मेरे पसंदीदा सौ गीत, आशा है आपको भी पसंद आएँगे- 1- सौ साल पहले मुझेतुमसे प्यार था 2- मेरे मेहबूब कयामत होगी 3- हँसता हुआ नूरानी चेहरा 4- वो जबयाद आए बहुत याद आए 5- तू छुपी है कहाँ मैं तड़पता यहाँ 6- मुझे तेरी मुहब्बत कासहारा मिल गया होता 7- ये परबतों के दायरे ये शाम का धुँआ 8- बहारो फूल बरसाओ 9-
इक प्यार का नग्मा है 10- पानी रे पानी 11- पंख होते तो उड़ आती रे 12- सुनो सजना पपीहे ने 13- याद न जाये बीते दिनों की 14- ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नहीं
15- चले जाना जरा ठहरो किसी का दिल मचलता है 16- ऐ भाई जरा देख के चलो 17- जानेकहाँ गये वो दिन 18- जीना यहाँ मरना यहाँ 19- दिल करे रुक जा रे रुक जा यहीं पेकहीं 20- रहा गर्दिशों में हर दम 21- चलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनों
22- आज इस दर्ज पिला दे कि न कुछ याद रहे 23- झनक झनक तोरे बाजे पायलिया 24- गीतगाता हूँ मैं गुनगुनाता हूँ मैं 25- आजा तुझको पुकारे मेरे गीत रे 26- आजा रे प्यारपुकारे 27- दिल ने फिर याद किया 28- दिल आज शायर है ग़म आज नग्मा है शब ये ग़ज़ल हैसनम 29- चूड़ी नहीं मेरा दिल है 30- ओ मेरी ओ मेरी ओ मेरी शर्मीली 31- मेघा छायेआधी रात 32- मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरा न कोई 33- हमको मन की शक्ति देना मन विजयकरें 34- जागो मोहन प्यारे 35- मीत ना मिला रे मन का 36- मैं तो चला जिधर चले रस्ता
37- चला जाता हूँ किसी की धुन में धड़कते दिल के तराने लिए 38- जिन्दगी इक सफर हैसुहाना 39- मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू 40- रूप तेरा मस्ताना प्यार मेरादीवाना 41- ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं हम क्या करें 42- बहारो मेरा जीवन भीसँवरो 43- हे तेरे साथ मेरी वफ़ा मैं नहीं तो क्या 44-तू चंदा मैं चाँदनी 45- दिल क्या करे जब किसी को किसी से प्यार हो जाये 46- कि आजा तेरी याद आई 47- मार दिया जाये कि छोड़ दिया जाये
48- हाय शरमाऊँ किस किस को बताऊँ 49- अकेले अकेले कहाँ जा रहे हो 50- पत्थर केसनम तुझे हमने मुहब्बत का खुदा माना 51- ये समाँ समाँ है ये प्यार का किसी केइंतज़ार का, दिल न चुरा ले कहीं मेरा मौसम बहार का 52- तू जहाँ जहाँ चलेगा मेरासाया साथ होगा 53- दीवानों से ये मत पूछो दीवानों पे क्या गुजरी है 54- ये तो सचहै कि भगवान है 55- बाबूजी धीरे चलना प्यार में जरा सम्हलना 56- सुहानी चाँदनीरातें हमें सोने नहीं देती 57- होठों पे ऐसी बात में छुपा के चली आई 58- हुस्नहाजिर है मुहब्बत की सज़ा पाने को, कोई पत्थर से ना मारे मेरे दीवाने को 59- मैंशायर तो नहीं 60- न तुम हमें जानो न हम तुम्हें जाने 61- तुझसे नाराज नहीं जिन्दगीहैरान हूँ 62- आजा रे अब मेरा दिल पुकारा रो रो के ग़म भी हारा 63- छोड़ दे सारीदुनिया किसी के लिए 64- चंदन सा बदन चंचल चितवन 65- दुनिया बनाने वाले क्या तेरेमन में समाई काहे को दुनिया बनाई 66- चला भी आ आजा रसिया ओ जाने वाले आजा तेरी यादसताये 67- खुदा भी आसमा से जम जमीं पर देखता होगा 68- कहीं दीप जले कहें दिल 69-मेरे नैना सावन भादों फिर भी मेरा मन प्यासा 70- हमें और जीने की चाहत न होती
71- आजा आई बहार दिल है बेकरार ओ मेरे राजकुमार तेरे बिन रहा न जाये 72- मेरा प्यारभी तू है ये बहार भी तू है 73- याहू चाहे कोई मुझे जंगली कहे 74- जिन्दगी कैसी हैपहेली हाए 75- रोते हुए आते हैं सब 76- ना मुँह छिपा के जियो और न सर झुका के जियो 77- छलकायें जाम आइये आपकी आँखों के नाम 78- इक दिन बिकजाएगा माटी के मोल 79- छू कर मेरे मन को किया तूने क्या इशारा 80- नीले नीले अंबरपे चाँद जब आए 81- तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं 82- सुहानी रात ढल चुकीना जाने तुम कब आओगी 83- मैं हूँ खुशरंग हिना 84- देर न हो जाये कहीं देर न हो जाए
85- वादा करले साजना तेरे बिन मैं न रहूँ 86- जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा 87-परदेसी परदेसी जाना नहीं 88- नैनों में बदरा छाये 89- यारा सिली सिली 90- ये शहरहै अमन का 91- ऐ मेरे हमसफर 92- आया तेरे दर पर दीवाना 93- धरती सुनहरी अंबर नीलाहर मौसम रंगीला ऐसा देश है मेरा 94- हम तुम युग युग से ये गीत मिलन के 95- तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रकखा क्याहै 96- ये रेशमी जुल्फ़ें ये शरबती आँखें 97- आके तेरी बाहों में हर शाम लगेसिंदूरी 98- चुरा लिया है तुमने जो दिल को 99- ओ बेकरार दिल हो चुका है मुझकोआँसुओं से प्यार 100- अच्छा तो हम चलते हैं।
ऐसे ही बढ़ता रहे हमारा सिनेमा । मेरी शुभकामनायें।
ऐसे ही बढ़ता रहे हमारा सिनेमा । मेरी शुभकामनायें।
u tube , wikipidia और सुलेखा डॉट कॉम से साभार।
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