बुधवार, 5 सितंबर 2018

गीतिका शतक 'चलो प्रेम का दूर क्षितिज तक पहुँचाएँ संदेश' का लोकार्पण


छंद शास्‍त्र की कसौटी पर लिखी सार्थक गीतिकाओं का संग्रह है 
'चलो प्रेम का दूर क्षितिज तक पहुँचाएँ संदेश’

                                    
(शिल्‍प की पृष्‍ठभूमि)
एक समय था दोहा, चौपाई, कवित्‍त का खूब चलन था.
छंद शास्‍त्र निष्‍णात सुकवि थे, हर फन का स्‍वच्‍छंद गगन था. 
चाटुकारिता, व्‍यंग्‍य, हास्‍य प्रमुख हुए आयोजन अब सब,
मुक्‍त छंद कविताएँ नाचें जिन पर छंदों का बंधन था.
(कथ्‍य की पृष्‍ठभूमि)
एक समय था तप उपासना योग शांति के थे सुख साधन.
धरती पर थे खूब सघन वन गुरुकुल संकुल थे गोचारण.
पर विकास के पथ पर चल मानवता खोई सबसे पहले,
जब से हमने छला प्रकृति को तब से खोया है अपनापन.





उपर्युक्‍त दोनों मुक्‍तकों को लोकार्पित काव्‍य कृति गीतिका शतक की पृष्‍ठभूमि बताते हुए कृतिकार डॉ. गोपालकृष्‍ण भट्ट ‘आकुल’ ने कहा कि आज देश में जहाँ एक और शिक्षा का स्‍तर गिर रहा है, तकनीकी शिक्षा की भेड़चाल में माता-पिता ने बच्‍चों से बड़ी महत्‍वाकांक्षायें पाल रखी हैं,परिणाम स्‍वरूप बच्‍चे आत्‍महत्‍या तक कर रहे हैं, संयुक्‍त परिवार अब एकल परिवार हो गए हैं फलस्‍वरूप घरों में बच्‍चे और बूढ़े असुरक्षित हैं, दुष्‍कर्म की प्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं, मानवीय मूल्‍यों का ह्रास हो रहा है, प्रदूषित वातावरण, विकास की दौड़ में यदि हमने कुछ खोया है तो वह है अपनापन. इस अपनापन को पुन: पाने और वसुधैवकुटुम्‍बकम की अवधारणा को साकार करने के लिए प्रेम का संदेश क्षितिज तक पहुँचाने का प्रयास किया है.
समारोह का संचालन करते पं. विजय जोशी

मदर टेरेसा शिक्षण संस्‍थान के सभागार में रविवार, 2 सितम्‍बर, दोपहर 3 बजे जलेस व राष्‍ट्रीय कवि चौपाल, कोटा इकाई के संयुक्‍त तत्‍वावधान में प्रो. औंकारनाथ चतुर्वेदी की अध्‍यक्षता में मुख्‍य अतिथि यूआईटी के राजकीय सार्वजनिक पुस्‍तकालयाध्‍यक्ष एवं तीन अन्‍य विशिष्टि अतिथियों के साथ सरस्‍वती के चित्र के समक्ष पुष्‍पमाला पहना कर दीप प्रज्‍ज्‍वलन के साथ लोकार्पण समारोह आरंभ हुआ. सर्वप्रथम मंच पर बिराजमान अतिथियों का स्वागत ‘पवित्रा’ पहना कर किया गया. मंच का संचालन कर रहे शहर के जाने माने कथाकार व समीक्षक पं. विजय जोशी ने इस परम्‍परा को पुष्टिमार्गीय सम्‍प्रदाय में गुरु-शिष्‍य परम्‍परा की भारतीय संस्‍कृति को पोषित करती दक्षिणा और आशीर्वाद के समन्‍वय का प्रतीक बताया. उन्‍होंने कहा कि इस रेशमी सूत्र से बनी माला से अतिथियों का ऐसा अलौकिक स्‍वागत कोटा में कभी भी देखने में नहीं आया. पुस्‍तक का विमोचन भी एक और अलौकिक परम्‍परा के रूप में हुआ. उन्होंने बताया कि हमारे घरों में पवित्र ग्रंथों को रेशमी वस्‍त्र से बनी थैली में रखा जाता है, इसी क्रम में अतिथियों ने गोटे की किनारी लगी  रेशमी वस्‍त्र  से बनी थैली में से निकाल कर पुस्‍तक को लोकार्पित किया.  पुस्‍तक विमोचन की आज की परम्‍परा के बिल्‍कुल विपरीत भारतीय संस्‍कृति को जीवंत करती परम्‍परा का दर्शन कराते हुए हुए इस पुस्‍तक विमोचन की अलौकिक परम्‍परा को देखकर सभागार में बैठे साहित्‍यकारों ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ स्‍वागत किया और भूरि-भूरि प्रशंसा की.
       कृति परिचय में समीक्षा करते हुए राजकीय कला महाविद्यालय के प्रोफेसर विवेक मिश्र ने कृति को आज प्रकाशित हो रहे साहित्‍य से बिल्‍कुल अलग हिन्‍दी छंद साहित्‍य का परिचय कराने वाली अनुपम कृति बताया. विशिष्‍ट अतिथि डॉ. रघुनाथ मिश्र ‘सहज’ ने ‘आकुल’ की कृति के संदर्भ में बताया कि नाम के अनुरुप सभी सौ गीतिकाओं में किसी न किसी रूप में कोई न कोई संदेश छिपा है, जो कवि की रचनाधर्मिता की सार्थकता है. अपने उद्बोधन में विशिष्‍ट तिथि चिकित्‍सक व वरिष्‍ठ साहित्‍यकार
वि. अ. श्री योगेन्‍द्र शर्मा
कृति पर समीक्षा करते प्रो. विवेक मिश्रा
वि. अ. डा. अशोक मेहता
डॉ. अशोक मेहता ने ‘आकुल’ की पुस्‍तक में हर गीतिका में समस्‍या और उसके समाधान की अनोखी पहल को पुस्‍तक का मर्म बताया. मदर टेरेसा शिक्षण संस्‍थान के निदेशक और समारोह में विशिष्‍ट अतिथि के रूप में उपस्थिति श्री योगेंद्र शर्मा ने शिक्षण संस्‍थाओं में शिक्षा के साथ साथ साहित्‍य की आवश्‍यकता पर जोर दिया जो छात्रों के चहुँमुखी विकास में सहायक बताया. छंद और अलंकार के नाम और वर्णन व हर रचना में दृष्‍टांतों के सुंदर प्रयोग ने इस पुस्‍तक को नाम के अनुरुप एक सार्थक प्रयोग के लिए उन्‍होंने ‘आकुल’ को बधाई दी कृतिकार का परिचय कोटा से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका ‘दृष्टिकोण’ के प्रबंध सम्‍पादक एवं आकुल के परममित्र श्री नरेंद्र चक्रवर्ती ने दिया.

उन्‍होंने बताया कि ‘आकुल’ चहुँमुखी’ प्रतिभा के धनी हैं, आपने साहित्‍य की हर विधा में कलम चलाई है. आरंभ में संगीत में कीबोर्ड प्‍लेयर के रूप में देश-विदेश में ख्‍याति अर्जित करने के बाद कोटा में स्‍थाई रूप से बस जाने के बाद कोटा की साहित्‍य उर्वर धरा पर उन्‍होंने स्‍थाई निवास बनाया और साहित्‍य में स्‍थापित हुए. आपकी साहित्‍य की विधा नाटक, लघुकथा, गीत, नवगीत, कविताओं पर 6 पुस्‍तकें प्रकाशित हुईं. गीतिकाओं लोकार्पित पुस्‍तक उनकी सातवीं पुस्‍तक है. वे वर्गपहेली बनाने में भी सिद्धहस्‍त एवं पारंगत है. अब तक उनकी लगभग 7 हजार हिंदी व अंग्रेजी वर्गपहेलियाँ देश की प्रतिष्ठित समाचार पत्रों प्रकाशित हो चुकी हैं, जिस पर उन्‍हें ‘क्रॉसवर्ड विज़र्ड’ सम्‍मान भी मिला है. अखिल भारतीय स्‍तर पर उन्‍हें साहित्‍य क्षेत्र के अनेक साहित्यिक सम्‍मान व उपाधियाँ मिली हैं जिनमें प्रमुख है साहित्‍य श्री, साहित्‍य मार्तण्‍ड, साहित्‍य शिरोमणि, गुरु ठाकुर रवींद्रनाथ टैगोर सम्‍मान, कलम कलाधर,  विद्या वाचस्‍पति, विद्योत्‍तमा साहित्य सम्‍मान आदि.
आकुल कृति के बारे में बताते हुए
कृति के संदर्भ में बहुत संक्षेप में ‘आकुल’ ने बताया कि मौन और वाचालता के मध्‍य चली आरही हमारी भारतीय छंद साहित्य परम्‍परा महाभारत, रामायण और रामचरित मानस से शिखर पहुँच कर आज लौट कर हाइकू तक पहुँच गई है. संस्‍कृत से उद्धृत हिंदी छंद साहित्‍य को आज हाशिये पर डाल दिया गया है. उसकी पुनसंस्‍थापना के लिए यह एक प्रयास है. हिंदी साहित्‍य के पुरोधा पं. नरेंद्र शर्मा के शब्‍दों में ‘जब जब गद्य कमजोर हुआ है, कविता ने जन्‍म लिया, जब कविता कमजोर हुई गीत ने जन्‍म लिया.’ उनके कथन का सत्‍य बताते हुए आकुल ने आगे कहा कि गीत भी कहीं कमजोर हुआ है तभी गीत के बाद साहित्‍य की यात्रा ने दो विधाओं को जन्‍म दिया वह थी गीतिका और नवगीत. नवगीत, समृद्ध हो कर कविता की ओर लौटती हुई गीत की यात्रा है. गीतिका हमारे छंद साहित्‍य को पोषित करती हुई गज़ल की तरह हिंदी को उच्‍च शिखर पर पहुँचा सकती है. आकुल ने रचना विधान में शिल्‍प की साधना के लिए सूक्ष्‍म से सूक्ष्‍म कमियों को दूर करने के छंद के विधान की प्राथमिकता पर जोर देते हुए इसकी जानकारी को रचनाकारों के लिए अत्‍यावश्‍यक बताया और अनेक छंदों, शिल्‍प की बारीकियों और उनके विधान के बारे में संक्षेप में बता कर अपनी इस पुस्‍तक में आज प्रेम के संदेश को जानवर के माध्‍यम से देते हुए अपनी पहली गीतिका को गुनगुनाकर सुनाया 
‘‘समझता जानवर भी है जगत में प्‍यार की भाषा.
उसे लेना न देना है कि क्‍या संसार की भाषा.
उसी का हो लिया है वह, मिला जिससे भी अपनापन,
तुरत ही सीख जाता है वह, सहज मनुहार की भाषा.’’  
                                                                                        (छंद- विधाता)

मुख्‍य अतिथि यू.आई.टी. सार्वजनिक पुस्‍तकालयध्‍यक्ष डॉ. दीपक श्रीवास्‍तव ने डॉ. ‘आकुल’ की पुस्‍तक पर चकित होते हुए उनकी कृति पर प्रफुल्लित होते हुए कहा कि ऐसी पुस्‍तकें भारत के हर पुस्‍तकालय में होनी चाहिए और आज के तकनीकी साधन संसाधनों से युक्‍त लाइब्रेरियों में इन पुस्‍तकों के माध्‍यम से लेखकों कवियों को जोड़ा जा रहा है और  मेरा पूरा प्रयास रहेगा कि यदि आप मुझे सहयोग दें तो मैं इसको देश में चारों ओर भिजवाने में आपकी मदद करूँगा ताकि हमारे भारतीय छंद साहित्‍य, काव्‍य परम्‍परा का विकास हो सके और हर कवि, साहित्‍यकार की पहचान बने.
अध्‍यक्षीय उद्बोधन देते हुए प्रो. औंकारनाथ चतुर्वेदी

  
अपने अध्यक्षीय प्रवचन में प्रख्‍यात व्‍यंग्‍यकार और वरिष्‍ठ साहितयकार प्रोफेसर औंकारनाथ चवुर्वेदी ने कहा कि रचना कृतिकार का पुत्र होता है, उसका वंश चलाता है, उसको आगे ले जाता है, और उसके जाने के बाद, उसका परिचय स्‍थापित करता है, और आज हमारे हिंदी जगत् की एक बहुमूल्‍य कृति का लोकार्पण हुआ है. रस, छंद, अलंकार, से समृद्ध यह एक ऐसी पुस्‍तक है जो हिंदी साहित्‍य में दुर्लभ है. मैंने आज तक ऐसी पुस्‍तक ही नहीं देखी, जिसमें छंद का परिचय दिया गया हो, छंद के नाम के साथ साथ उसका विधान लिखा गया हो. उन्‍होंने पुस्‍तकालयाध्‍यक्ष और मुख्‍य अतिथि को सम्‍बोधित करते हुए कहा- ‘डा. श्रीवास्‍तव, कोटा लेखकों की कर्मभूमि है, आज राजस्‍थान के सभी शहरों में साहित्यिक कृतियाँ लगभग समाप्‍त हो चली हैं, सार्थक गोष्ठियाँ समाप्‍त हो गई हैं, लेकिन मेरे शहर में 52 के 52 इतवार जाग्रत रहते हैं. कहीं पर लोकार्पण हो रहा है, कहीं पर गोष्ठियाँ हो रही हैं. यहाँ की साहित्‍य परम्‍परा का मर्म है – जो घर बाले आपनो चले हमारे साथ.’ हिंदी लिखना, हिंदी के साथ जीना और पुराने संस्‍कारों और पूर्व जन्‍म की तपस्‍या का फल है कि कोई व्‍यक्ति हिंदी का लेखक बनता है. आज 90 प्रतिशत लोग झोली खोले हुए दुनिया को समेटने में लगे हुए हैं, केवल हिंदी लेखक कवि ऐसा है जो अपना ही आत्‍मदान करते हुए अपने वेतन का बहुत बड़ा अंश सिर्फ पुस्‍तक प्रकाशन में लगा देता है, पुस्‍तक प्रकाशन करता है, सत्‍यनारायण की पंजीरी की तरह पुस्‍तक भी बाँटता है. ‘बिन हरि कृपा मिले नहिं संता.’ यहपुस्‍तक लोकार्पण के साथ संत समागम का पुण्‍य अवसर है, जहाँ साधनारत साहित्‍य साधक एक मांगलिक कार्य के लिए उपस्थित है. यह पुस्‍तक कवि ‘आकुल’ के सकारात्‍मक एवं विशाल हृदय का परिचय देती है. कवि आकुल छंद अलंकारों के लोकप्रिय विद्वान् हैं, जिन्‍हें रचना साहित्यिक परिवार के संस्‍कार में मिला है. वर्तमान संदर्भ में आज भी श्री गदाधर भट्ट, री रघुराज सिंह हाड़ा और गोपाल कृष्‍ण भट्ट ‘आकुल’ झालावाड़ के कीर्तिस्‍तम्‍भ के साथ हिंदी साहित्‍य जगत् के लोकप्रिय विद्वान, लेखक कवि, समीक्षक हैं. एक साधक के रूप में लिखी यह पुस्‍तक ‘चलो प्रेम का .......’ एक महत्‍वपूर्ण कृति है. इस पुस्‍तक में पुरोवाक् में आचार्य संजीव वर्मा सलिल, जबलपुर, अभिमत में प्रो0 विश्‍वम्‍भर शुक्‍ल, लखनऊ, श्री राकेश मिश्र, लखीमपुर खीरी, डॉ. रघुनाथ मिश्र ‘सहज’ वरिष्‍ठ साहित्‍यकार, कोटा, पुस्‍तक समीक्षा में प्रोफेसर विवेक मिश्र इस पुस्‍तक का वास्‍तविक परिचय कराती है, उन्‍होंने इसकी विस्‍तार से समीक्षा की है. आकुल जी के आत्‍मकथ्‍य के बाद कुछ भी कहने को नहीं रहता. बस यही कि इसमें छंद शास्‍त्र की कसौटी पर लिखी सार्थक रचनायें हैं, जो वर्षों तक सुरक्षित रहेंगी, याद रखी जायेंगी, कि 21वीं शताब्‍दी में छंद निष्‍णात कवि रहे हैं, जिन्‍होंने काव्‍य मूल्‍यों के साथ समझौता नहीं किया, डॉ. आकुल यशस्‍वी रचनाकार हैं, छंद शास्‍त्र पर उनका एकाधिकार है, प्रणाम करता हूँ, यशस्‍वी हों, और निरंतर काव्‍य साधना में लगे रहें, अभी हिंदी जगत् में एक और दुष्‍यंत कुमार की आवश्‍यकता है.         

लोकार्पण में पधारे साहित्‍यकार बंधु
                  
           समारोह में शहर के जाने माने साहित्यकार श्री अरविंद सोरल, भगवती प्रसाद गौतम, डॉ. नलिन, डॉ. फरीद अहमद फरीद, रामेश्‍वर शर्मा रामू भैया, वेदप्रकाश परकाश, शकूर अनवर, आनंद हजारी, ब्रजेंद्र सिंह झाला पुखराज, मदन मोहन शर्मा ‘सजल’, सुनेल से पधारी कवयित्री आशारानी जैन, संस्‍कार भारती के अरुणकांत शर्मा, महामंत्री, श्री मनोज गौतम, सेवानिवृत्‍त चिकित्‍साधिकारी डॉ. आर. डी. वर्मा अधिवक्‍ता श्री बी.सी. मालवीय, मदर टेरेसा संस्थान के कई शिक्षक व कार्यकर्ता उपस्थित थे.
धन्‍यवाद ज्ञापन श्री नरेंद्र चक्रवर्ती जी ने किया.             

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