रविवार, 11 दिसंबर 2016

इस वर्ष का स्‍व0 गौरीशंकर कमलेश राजस्‍थानी भाषा पुरस्‍कार पूर्ण शर्मा ‘पूरण’ की पुस्‍तक ‘’मेटहु तात जनक परितापा’ को

सारस्वत सम्‍मान प्रोफेसर औंकारनाथ चतुर्वेदी, वरिष्‍ठ साहित्‍यकार श्री अरविंद सोरल और 
श्री रामेश्‍वर ‘रम्‍मू भैया’ को
तीन पुस्‍तकों राजस्‍थानी उपन्‍यास 'नुगरी', यात्रा संस्‍मरण 'ओल्‍यूँ ई ओल्‍यूँ' और 'नोटबदी चालीसा' गुटका का लोकार्पण भी 

राजस्‍थानी उपन्‍यास 'नुगरी' और संस्‍मरण 'ओल्‍यूँ ई ओल्‍यू' का विमोचन करते बायें से संचालक एवं कवि श्री रामेश्‍वर शर्मा 'रम्‍मू भैया', समारोह सचिव श्री सुरेंद्र शर्मा, संस्‍थान की निदेशिका एवं स्‍व. गौरीशंकर कमलेश की पत्‍नी श्रीमती कमला कमलेश, मुख्‍य अतिथि श्री करतार योगी, समारोह अध्‍यक्ष डा. हेमराज मीणा, 'नुगरी' के लेखक श्री जितेंद्र निर्मोही, स्‍व. गौरीशंकर राजस्‍थानी पुरस्‍कार से पुरस्‍कृत लेखक पूर्ण शर्मा 'पूरण,वरिष्‍ठ साहित्‍यकार श्री अरविंद सोरल और प्रख्‍यात व्‍यंग्‍यकार प्रोफेसर औंकारनाथ चतुर्वेदी
कोटा.  कोटा के प्रख्‍यात राजस्‍थानी साहित्‍यकार स्‍व. गौरीशंकर कमलेश की स्‍मृति में राजस्‍थानी भाषा पुरस्‍कार एवं सम्‍मान का 23वाँ संस्‍करण प्रतिवर्ष की भाँति इस वर्ष भी कोटा में इंद्रा मार्केट में उनके स्‍वनिवास पर उनके शिक्षण संस्‍थान ज्ञान भारती संस्‍थान के सभाकक्ष में 10 दिसम्‍बर को सोल्‍लास सम्‍पन्‍न हुआ. इस वर्ष का यह गौरवपूर्ण राजस्‍थानी पुरस्‍कार एवं सम्‍मान प्रख्‍यात राजस्‍थानी भाषा के साहित्‍यकार श्री पूर्ण शर्मा को उनकी पोथी ‘’मेटहु तात जनक परितापा’’ पर दिया गया. साथ ही स्‍व. गौरीशंकर कमलेश के परम मित्र प्रख्‍यात व्‍यंग्‍यकार,  शिक्षाविद्, चिंतक एवं वरिष्‍ठ साहित्‍यकार प्रोफेसर औंकारनाथ चतुर्वेदी, वरिष्‍ठ साहित्‍यकार श्री अरविंद सोरल को सारस्‍वत सम्‍मान और तीन पोथियों का विमोचन यथा कोटा के वरिष्‍ठ कथाकार श्री जितेन्‍द्र निर्मोही के राजस्‍थानी उपन्‍यास ‘नुगरी’, स्‍व. कमलेश की पत्‍नी श्रीमती कमला कमलेश की केदारनाथ यात्रा का संस्‍मरण ग्रंथ ‘’ओल्‍यूँ ई ओल्‍यूँ’’  और प्रख्‍यात आशुकवि और संचालक चालीसा रचनाओं के लेखक श्री रामेश्‍वर शर्मा रम्‍मू भैया के ‘’नोटबंदी चालीसा’’ गुटका के विमोचन समारोह का आकर्षण थे. इस समारोह के मुख्‍य अतिथि थे जयपुर के प्रसिद्ध शिक्षण संस्‍थान वसंत वैली के संस्‍थापक एवं 200 से अधिक हिंदी अंग्रेजी की पुस्‍तकों के रचयिता साहित्‍यकार डा. करतार योगी और समारोह के अध्‍यक्ष आगरा के प्रख्‍यात भाषा साहित्‍य के पोषक अंतर्राष्‍ट्रीय ख्‍याति प्राप्‍त पूर्वोत्‍तर भारत में अनेक राज्‍यों में हिन्‍दी व अन्‍य आंचलिक भाषा के उत्‍थान व उन्‍नयन व उन्‍हें संचित कर एक विश्‍वस्‍तर पर लुप्‍त होती भारतीय भाषाओं को सहेजने के लिए संकल्पित साहित्‍यकार डा. हेमराज मीणा.
दीप प्रज्‍ज्‍वलन और माँँ सरस्‍वती व स्‍व. गौरीशंकर कमलेश
के चित्र को माल्‍यार्पण करते अतिथि गण व श्रीमती कमलेश
सरस्‍वती वंदना गाते कार्यक्रम
संयोजक कवि आनंद हजारी
दोपहर 2 बजे समारोह का आरंभ अतिथियों को मंचासीन किये जाने से आरंभ हुआ. मंच पर समारोह अध्‍यक्ष डा. हेमराज मीणा, मुख्‍य अतिथि डा. करतार योगी, समारोह की निदेशक स्‍व. कमला कमलेश, सम्‍मानित होने वाले साहित्‍यकार प्रोफेसर औंकारनाथ चतुर्वेदी, श्री अरविंद सोरल, संस्‍थान के सचिव स्‍व. कमलेश के पुत्र एवं अधिवक्‍ता श्री सुरेन्‍द्र शर्मा थे और सम्‍मान समारोह के पुरस्‍कार सचिव श्री जितेन्‍द्र निर्मोही थे. कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा माँ सरस्‍वती को माल्‍यार्पण एवं दीप प्रज्‍ज्‍वलन कर किया गया. साथ ही  स्‍व. गौरीशंकर कमलेश के चित्र को भी पुष्‍पहार पहना कर किया गया. कार्यक्रम के संयोजक कोटा के जानेमाने हिंदी-राजस्‍थानी के कवि एवं व्‍यंग्‍यकार श्री आनंद हजारी ने ‘’ वीणापाणि माँ कल्‍याणी, महिमा बेदाँ ने बखाणी’’ माँ सरस्‍वती की राजस्‍थानी में वंदना कर समारोह का शुभारंभ किया. वंदना के पश्‍चात् सभी अतिथियों का माल्‍यार्पण कर स्‍वागत किया गया. इस समारोह के बारे में संस्‍थान के सचिव श्री सुरेंद्र शर्मा ने संक्षिप्‍त में जानकारी देते हुए बताया कि यह 23वाँ सम्‍मान समारोह है. उनके पिता का स्‍वप्‍न था कि राजस्‍थानी भाषा कहीं लुप्‍त न हो जाए, उसके दिनों-दिन प्रगति, उत्‍थान और इतिहास को लंबे समय तक याद रखा जाए और हाड़ौती अंचल में यह भाषा फले फूले, उनकी स्‍मृति में 1993 में उनके निधन के बाद स्‍थापित कर आरंभ किया गया. इस समारोह में कोटा व राजस्‍थान के अनेकों साहित्‍यकारों जिनमें स्‍व. शांति भारद्वाज ‘राकेश’, श्री अम्बिकादत्‍त, आदि अनेकों प्रख्‍यात साहित्‍यकार सम्‍मानित किये गये हैं.
कवि रम्‍मू भैया के गुटका 'नोटबंदी चालीसा' का विमोचन करते अतिथि
संचालन कर रहे रम्‍मू भैया ने कहा कि यह कार्यक्रम तीन सत्र में चलेगा. पहले सत्र में तीन पुस्‍तकों का लोकार्पण और उनके रचनाकारों व पुस्‍तक का परिचय, दूसरे सत्र में मुख्‍य सम्‍मान स्‍व. गौरीशंकर कमलेश राजस्‍थानी भाषा पुरस्‍कार सम्‍मान प्रदान करना एवं तीसरे सत्र में साहित्‍यकारों का सारस्‍वत सम्‍मान. इस कड़ी में पहले सत्र में साहित्‍यकार श्री जितेंद्र निर्मोही के उपन्‍यास ‘नुगरी’ का परिचय प्रोफेसर राधेश्‍याम मेहर ने दिया. उन्होंने बताया कि आज समाज में नारी आज भी संघर्ष की एक प्रतिमूर्ति है. इस उपन्‍यास में एक कमसिन नारी के शराबी आदमी के साथ विवाह, कम उम्र में विधवा हो जाने के बाद किस तरह उसने अपने जीवन में संघर्ष किया, सा‍माजिक अंधविश्‍वास, विषमताएँ, प्रताड़नाओं और गरीबी के बीच आजीविका के लिए कदम-कदम पर उसकी अस्मिता को बचाये रखने के लिए साहसपूर्ण उठाये गये कदमों के बीच नायिका ‘’लाडबाई’’ की सामाजिक परिवेश में नारी की दशा व दुर्दशा की लड़ाई का राजस्‍थानी भाषा में कलम द्वारा उकेर कर अनेकों सवाल खड़े किये हैं जिसमें आज भी स्‍त्री पुरषों के मध्‍य कमजोर व बदलते सम्‍बंधों के बारे में तथा नायिका द्वारा रूढिवादी परम्‍परा को तोड़ने के संघर्ष पर उन्‍होंने सशक्‍त और बेबाक कलम चलाई है.
'नोटबंदी चालीसा' पढ़ते हुए श्रोता कविगण व अतिथि 
कथानाक गद्यकार, निबंधकार जितेंद्र निर्मोही को राजस्‍थानी भाषा के साहित्‍यकारों यथा श्रीमतीकमला कमलेश, स्‍व. शांति भारद्वाज ‘राकेश’, श्री प्रहलाद सिंह जी, श्री अतुल कनक के क्रम में प्रथम पंक्ति में खड़ा करता है. उपन्‍यासकार ने प्रतीकात्‍मक रूप में नारी की दशा दिशा, दुर्दशा पर सार्थक अभिव्‍यक्ति की है. उन्‍होंने उपन्‍यास को स्‍व. शांति भारद्वाज ‘राकेश’ के उपन्‍यास ‘’उड़ जा रे सुवा’’ से तुलनात्‍मक वर्णन भी किया. उन्होंने अंत में बताया कि प्रख्‍यात राजस्‍थान साहित्‍य अकादमी से सम्‍मानित साहित्‍यकार श्री प्रेमजीप्रेम के उपन्‍यास ‘’सेली छाँव खजूर की‘’ से आरंभ हुई राजस्‍थानी गद्य साहित्‍य की कथा यात्रा का उत्‍तरोत्‍तर बढ़ता सशक्‍त प्रभाव यहाँ के राजस्‍थानी साहित्‍यकारों में बढ़ना एक संतोष का विषय है. श्री मेहर ने वक्‍तव्‍य हाड़ौती भाषा में पढ़ कर सुनाया. उसके बाद अतिथियों द्वारा पुस्‍तक ‘’नुगरी’’ का विमोचन किया गया. इसी क्रम में श्रीमती कमलेश के संस्‍मरण ‘‘ओल्‍यूँ ई ओल्‍यूँ’’ का विमोचन भी किया गया. यह पुस्‍तक उनके केदारनाथ तीर्थ के पर्यटन का संस्‍मरण है. तीसरी पुस्‍तक श्री रामेश्‍वर शर्मा’ रम्‍मू भैया’ के चालीसा गुटका ‘’नोटबंदी चालीसा’ का विमोचन सुंदरकांड की भाँति गा कर किया गया. सभी उपस्थित साहित्‍यकारों को गुटका वितरत की गई. छंद की प्रथम पंक्ति रम्‍मू भैया ने गाई उसी लय में दूसरी पंक्ति उपस्थित साहित्‍यकारों ने उच्‍चारण कर उनका साथ दिया. 40 छंदों की इस छोटी सी गुटका के माध्‍यम से आज पूरे देश में चल रही नोटबंदी की लहर का सभी ने
श्री पूर्णशर्मा पूर्ण को स्‍व.गौरी शंकर कमलेश राजस्‍थानी भाषा पुरस्‍कार
प्रदान करते स्‍व. गौरीशंकर कमलेश केे परिवारज
पूरा आनंद उठाया और उनकी सामयिक चालीसा रचना के लिए तालियाँ बजा कर साधुवाद दिया.
श्री पूरण का परिचय देते
श्री जितेंद्र निर्मोही
दूसरे सत्र में इस वर्ष के स्‍व. गौरीशंकर कमलेश राजस्‍थानी भाषा पुरस्‍कार एवं सम्‍मान श्री पूर्ण शर्मा को दिया गया.  श्री पूरण शर्मा का परिचय श्री जितेंद्र निर्मोही ने पढ़ कर सुनाया. हनुमागढ़ अंचल के राजस्‍थानी परिवेश में निवास कर रहे श्री पूर्ण शर्मा ने उनकी पुरस्‍कृत पुस्‍तक पर चिंतन दर्शाते हुए कहा कि वे एक प्रयोगवादी राजस्‍थानी कथाकार हैं. उनकी पुस्‍तक में आम आदमी और मजदूर वर्ग के आदमी की जिज्ञासाओं, सम सामयिक समस्‍याओं व संघर्ष को उन्‍होंने अपनी कलम से गहराई से उकेरा है, आमजन की कुंठा और पीड़ा लिखने के साथ साथ  समाज को चेतना भी प्रदान की है.  उन्‍हें स्‍व. कमलेश की पत्‍नी श्रीमती कमला कमलेश, उनके पुत्र श्री सुरेंद्र शर्मा, उनकी पुत्रवधू, पौत्र पौत्रियों व परिवार के अन्‍य सदस्‍यों द्वारा स्‍मृति चिह्न, शॉल, श्रीफल, पुष्‍पपत्र प्रदान कर सम्‍मानित किया गया.
प्रोफेसर औंकारनाथ चतुर्वेदी का
परिचय देते साहित्‍यकार  कवि
 श्री भगवत प्रसाद जादौन मंयंक
अगले सत्र में साहित्यकारों को सारस्‍वत सम्‍मान दिया गया. सर्व प्रथम प्रोफेसर औंकारनाथ चतुवे्रदी को सम्‍मानित किया गया. श्री चतुर्वेदी का परिचय साहित्‍यकार डा. अतुल चतुर्वेदी द्वारा दिया जाना था किंतु उनकी अनुपस्थिति के कारण परिचय शहर के ही प्रख्‍यात साहित्यकार काव्‍य की सभी विधाओं में निष्‍णात कवि भगवत सिंह जादौन ‘मयंक’ ने पढ़ कर सुनाया. उन्‍होंने बताया कि प्रखर वक्‍ता, व्‍यंग्‍यकार श्रीऔंकारनाथ चतुर्वेदी अपने परिवार में सभी भाई बहिनों में छठे स्‍थान पर हैं, जिस कारण उन्‍हें
प्रोफेसर औंकारनाथ चतुर्वेदी को सारस्‍वत सम्‍मान देते
 अतिथि व परिवारजन
 परिवार का रवींद्रनाथ टेगोर भी कहा जाता है, क्‍योंकि गुरू रवींद्र नाथ टेगौर भी अपने परिवार में सभी भाई बहिनों में छठे स्‍थान पर थे. संत परम्‍परा के साधक उनके पिता श्री अयोध्‍यानाथ चतुर्वेदी के परिवार में साहित्यिक प्रशासनिक स्‍तर का बाहुल्‍य रहा था, उनके सभी भाई राजपत्रित अधिकारी रहे हैं और वे स्‍वयं अध्‍यापक 
से अध्‍यापन सेवा से आरंभ हो कर व्‍याख्‍याता बने और प्रोफेसर के रूप में सेवानिवृत्‍त हुए. उनको राजकीय महाविद्यालय, कोटा के पहले पीएच.डी. प्राप्‍त करने वाले शोधार्थी का भी गौरव प्राप्‍त है. उनके अधीन 6 शोधार्थी पीएच.डी कर चुके हैं. आप प्रखर वक्‍ता, व्‍यंग्‍यकार रहे हैं. उनकों अनेक सम्‍मानों उपाधियों से नवाजा गया है. उनकी सभी व्‍यंग्‍य पुस्‍तकें यथा ‘ढाई आखर’, ‘अब दादुर वक्‍ता भये’, ‘आँखिन देखी’, ‘मेरे तो सत्‍ता गोपाल’, ‘महा ठगनी हम जानी’ आदि किसी न किसी उच्‍च स्‍तरीय साहित्यिक संस्‍थानों द्वारा पुरस्‍कृत हुई हैं. वे सफल आयोजक भी रहे हैं, स्‍व. सूर्यमल्‍ल मिश्रण शताब्‍दी स्‍मारिका और स्‍व. लज्‍जाराम मेहता स्‍मारिका व उन स्‍वतंत्रता सेनानी और साहित्‍यकार द्वय पर  उन्‍होंने
अपना वक्‍तव्‍य देते प्रोफेसर
औंकारनाथ चतुर्वेदी 
 ऐतिहासिक कार्यक्रम आयोजित किये हैं. उनका व्‍यंग्‍य निबंध ‘कबीरा ठगाइये’ और कहानी ‘माँ’ बहुत चर्चित रही है. हाल ही में हाड़ौती के प्रख्‍यात संत पीपा पर राजस्‍थान के सभी आकाशवाणी केंद्रो से 2 अक्‍टूबर 16 को एक साथ एक मात्र वार्ता प्रसारित हुई. उनकी 200 से अधिक आकाशवाणी वार्ताएँ, नाटक, आलेख आदि कोटा, जयपुर आदि आकाशवाणी से समय समयपर प्रसारित हुए हैं. अपने वक्‍तव्‍य में श्री चतुर्वेदी ने बताया कि गौरी शंकर कमलेश मेरे घनिष्‍ठ मित्र थे. उस दौर में जब हिंदी साहित्‍य सम्‍मेलन की परीक्षायें हुआ करती थी उनमें पास होने पर विशारदों और साहित्‍य रत्‍नों को राष्‍ट्रीय स्‍तर पर मान्‍यता प्राप्‍त थी. श्री कमलेश अपने थैले में उस परीक्षा के लिए फार्म रख कर हिंदी के लिए कवियों साहित्‍यकारों को प्रोत्‍साहित किया करते थे. उसी समय उनकी संस्‍थान के नाम के लिए हमने चर्चा की और विश्‍वभारती की तर्ज पर ज्ञान भारती नाम करण कर संस्‍था का मार्ग प्रशस्‍त किया था. उन्‍होंने कहा कि अच्‍छे 

साहित्‍यकार को अच्‍छा वक्‍ता होना चाहिए. जिसके लिए उन्‍होंने कहा कि इसके 
अपना वक्‍तव्‍य देते साहित्‍यकार
श्री अरविंद सोरल
लिए अध्‍ययन बहुत जरूरी है. स्‍वयं को सौभाग्‍यशाली मानते हुए उन्‍होंने कहा कि कोटा में पूरे वर्ष सभी 52 रविवारों को कभी साहित्‍य गोष्ठियाँँ, कभी समीक्षायें, कभी पुस्‍तकों का विमोचन होता रहता है. यह गौरव की बात है. उन्‍होंने स्‍व. गौरीशंकर कमलेश के परिवार को सम्‍मान के लिए आभार व्‍यक्‍त्‍ा किया. स्‍व. कमलेश के पूरे परिवार द्वारा स्‍मृति चिह्न, शॉल, श्रीफल, पुष्‍पपत्र प्रदान कर सम्‍मानित किया गया. इसी क्रम में कोटा के साहित्‍यकार अरविंद सोरल को सम्‍मानित किया गया. श्री सोरल का जीवन परिचय व साहित्यिक यात्रा का परिचय कोटा के उदीयमान कवि डा. ओम नागर ने पढ़ कर सुनाया. उनके सरल व्‍यक्तित्‍व और साहित्यिक अवदान पर चर्चा करते हुए उन्‍होंने बताया 
कि पचास वर्षीय साहित्यिक सेवा में उन्‍होंने समाज और देश की ज्‍वलंत समस्‍याओं पर कलम चलाई है और उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि अभी तक कभी भी उन्‍होंने किसी कागज या पुस्‍तक से पढ़ कर अपनी कोई रचना नहीं सुनाई, जो भी सुनाया वह उन्‍हें कंठस्‍थ है, उनहोंने कभी भी रचना पढ़ कर नहीं सुनाई. ओम नागर ने उनकी कालजयी रचना ‘खैर कोई बात नहीं’’ सुना कर वाणी को विश्राम दिया. श्री सोरल को भी श्री कमलेश परिवार और अतिथियों ने स्‍मृति चिह्न, शॉल, श्रीफल, पुष्‍पपत्र प्रदान कर सम्‍मानित किया. इसके बाद श्री रम्‍मू भैया का सम्‍मान किया गया. श्री रामेश्‍वर शर्मा ‘’रम्‍मू भैया’’  का  परिचय प्रख्‍यात कवि श्री भगवती प्रसाद गौतम ने पढ़ कर सुनाया. उन्‍होंने बताया कि आपका बाल्‍यकाल राजनीति परिवेश में गुजरा. राजस्‍थान विधान सभा के अनुभवी व कुशल विधायक हिंदी के यशस्‍वी जिला प्रमुख एवं भारत सेवक समाज के वायस चेयरमेन रहे भॅवर लालजी शर्मा के पुत्र हैं श्री रामेश्‍वर शर्मा. उनके साथ विडम्‍बना 
वरिष्‍ठ साहित्‍यकार श्री अरविंद सोरल को सम्‍मानित करते परिवारजन
श्री रम्‍मू भैया का परिचय देते कवि
श्री भगवती प्रसाद गौतम 
यह रही कि वे साइंस बॉयलॉजी के साथ स्‍नातक डिग्री लेने वाला यह रचनाकार कवि बन गया.  उन्‍हें साहित्‍य की प्रेरणा मिली प्रख्‍यात साहित्‍यविद् श्री हरिवल्‍लभ ‘हरि’ से. वे उनके गुरु भी थे और मार्गदर्शक भी. पाठशाला में बालसभा के लिए लिखी उनकी पहली रचना ‘’इक दिन मैंने सपना देखा, देखा उसमें लाल बहादुर, कूद पड़ा जो कुरुक्षेत्र में...खड़्गों पर खड्ग चलाता वह...दिखा अचानक चाऊ एन लाई....अब तो उसकी शामत आई....’’ रचना  से उनकी साहित्‍य प्रतिभा को श्री हरिवल्‍लभजी ने परखा और उनका साहित्यिक यात्रा का मार्ग प्रशस्‍त हुआ. हिंदी और हाड़ौती भाषा पर समान अधिकार से आशुकवि बन कर उन्‍होंने ‘’रम्‍मू भैया’’ बन कर लोगों का प्रेम बटोरा. उनकी चौदह काव्‍य कृतियाँ व 50 से ज्‍यादा चालीसायें प्रकाशित हो चुकी हैं. स्‍मृति चिह्न, शॉल, श्रीफल, पुष्‍पपत्र प्रदान कर स्‍व. गौरीशंकर कमलेश परिवार व अतिथियों ने उन्हें भी सम्‍मानित किया.   
वक्‍तव्‍य देते डा. करतार योगी
समारोह के तीसरे सत्र में मुख्‍य अतिथि डा. करतार सिंह योगी और अध्‍यक्षता कर रहे डा. हेमराज मीणा को सम्‍मानित किया गया. सम्‍मान से पहले उक्‍त दोनों महानुभावों का परिचय संचालन कर रहे श्री रम्‍मू भैया ने दिया. श्री करतार सिंह जी के बारे में उनहोंने बताया कि श्री करतार सिंह जी जयपुर में वंसत वैली शिक्षण संस्‍थान संचालित करते हैं, जिसमें उनके परिवार के सभी सदस्‍य राजकीय सेवा से त्‍यागपत्र दे कर जुड़े हुए हैं तथा भारतीय संस्‍कारों से ओतप्रोत गुरुकुल परम्‍परा की तरह हिंदी व अंग्रेजी माध्‍यम से बच्‍चों को संस्‍कार व शिक्षा प्रदान की जाती है. इस संस्थान में बच्चे गुडमॉर्निंग नहीं कहते बल्कि बड़ों व अतिथियों को प्रणाम करते हैं व चरण स्‍पर्श करते है. लगभग 500 छात्रों को शिक्षा प्रदान कर रहे श्री करतार सिंह जी योगी एक संत 

महात्‍मा की तरह इस उत्‍तरदायित्‍व को बखूबी निभा रहे हैं. श्री योगी 200 से अधिक हिंदी व अ्ंग्रेजी की किताबे लिख चुके हैं. डा. हेमराज मीणा का परिचय 
मुख्‍य अतिथि डा. करतार योगी को सम्‍मानित करताा परिवार 
देते हुए श्री रम्‍मू भैया ने बताया कि सपोतरा के पास एक छोटे से गाँव में निवास कर विश्‍व भाषा साहित्‍यकोष संस्‍थान को स्‍थापित करने में जुटे एक यशस्‍वी साहित्‍यकार हैं. आप राजस्‍थान के सपोतरा के समीप एक गाँव निवास कर अब हिन्‍दी व भारत की सभी आंचलिक भाषाओं का विश्‍वकोष तैयार करने में संलनग्‍न हैं. आपने अपनी राजकीय सेवा 25 वर्ष तक मध्‍यभारत, उत्‍तर भारत और पूर्वोत्‍तर भारत में रह कर 25 राज्‍यों में अपनी सेवा दी व वहाँ के आंचलिक परिवेश के अध्‍ययन के साथ आदिवासी जातियों व उनकी भाषा पर अध्‍ययन करते हुए जीवन व्‍यतीत किया और अब वे सेवानिवृत्‍त हो कर अपने गाँव में साहित्‍य की सेवा कर रहे हैं. श्री करतार ने अपने संक्षिप्‍त वक्‍तव्‍य में हाड़ौती की भाषा को समृद्ध और मीठी बताया और अपनी जीवन यात्रा का संक्षिप्‍त परिचय दिया. श्री हेमराज मीणा ने अपने विस्‍तृत वक्‍तव्‍य में जनजाति बोलियाँ, संस्‍कृति का का गहन अध्‍ययन का विशेष उल्‍लेख करते हुए अपने गृह क्षेत्र में विश्‍वहिन्‍दी कोश की स्‍थापना की चर्चा की. उन्होंने ज्ञानभारती संस्‍थान और पधारे हुए अ‍तिथियों व साहित्‍यकारों का अभिवादन किया और बताया कि कोटा के समीप इंद्रगढ़ और उसके समीप दौलतपुरा उनका ननिहाल है. इसलिए हाड़ौती का सम्‍बंध मेरा बहुत पुराना है. उनहोंन कहा कि यहाँ के साहित्‍य शिल्‍पी,
समारोह अध्‍यक्ष डा. हेमराज मीणा को सम्‍मानित करते
समारोह निदेशिका श्रीमती कमला कमलेश एवं सचिव श्री सुरेंद्र शर्मा
 साहित्‍यकर्मियों को यह ध्‍यान रखना होगा कि हम आज जिस असांस्‍कृतिक दौर से गुजर रहे हैं, सांस्‍कृतिक चेतना लुप्‍त होती जा रही है, कोटा हाड़ौती क्षेत्र में यह चेतना जाग्रत है इसके लिए कोटा का साहित्‍य समाज धन्‍यवाद का पात्र है. उन्‍होंने कहा कि सौभाग्‍य की बात है कि मैं अपने समाज का पहला प्रोफेसर हूँ. मैंने पूरा जीवन हिंदी को अर्पित कर दिया. मैं शमशेर बहादुर कवि व त्रिलोचन शास्‍त्री के साथ तीन वर्ष तक रहा, प्रख्‍यात निबंधकार श्री विद्यानिवास  का शिष्‍य रहा हूँ उन्ही के अधीन मैंने पीएच.डी की, डा. नगेंद्र, डा. विजेंद्र स्‍नातक, प्रो0 जगदीश कुमार, डा. भोलानाथ तिवारी सभी गुरुजनों की कृपा मुझ पर रही. अब मैं विश्‍व हिंदी पुस्‍तकालय की स्‍थापना में संलग्‍न हूँ, जितना भी पैसा सेवानिवृत्ति पर मुझे मिला लगभग 60 लाख इसी कार्य को समर्पित कर दिया है. केंद्रीय विश्‍व हिंदी संस्‍थान विश्‍व का पहला हिंदी संस्‍थान रहा है जिसकी विश्‍व 
वक्‍तव्‍य देते डा. हेमराज मीणा
हिंदी के क्षेत्र में तमाम राष्‍ट्रीय अंतर्राष्‍ट्रीय आयोजनों में जिसकी बहुत प्रभावशाली भूमिका रही है. मेरी अधिकतर सेवा यहाँ से बाहर ही रही है, विशेषरूप से पूर्वोत्‍तर भारत में  चाहे वह सिक्किम हो, त्रिपुरा हो, आसाम हो, मेघालय हो, चाहे मणिपुर हो, मिजोरम हो, चाहे नागालेण्‍ड हो यहाँ की सभी संस्‍थाओं और लगभग 5000 विद्यार्थियों से मैं सीधे जुड़ा हुआ हूँ. हम शीघ्र ही पूर्वोत्‍तर हिंदी साहित्‍य महोत्‍सव की तैयारी में ल गे हुए हैं.  हम कोशिश में हैं कि वह ऐसा महोत्‍सव हो कि जो लघु हिंदी विश्‍व सम्‍मेलन जैसा हो. उनहोंने बताया कि केंद्रीय हिंदी संस्‍थान राजस्‍थानी का एक शब्‍दकोश भी तैयार कर रहा है. और न केवल राजस्‍थानी का बल्कि हिन्‍दी और हिन्‍दी भाषा की 52 या 55 जनपदीय बोलियों के शब्‍दों पर शब्‍दकोश तैयार कर रहा है क्‍योंकि यह जनपदीय बोलियाँ एक एक करके नष्‍ट हो रही हैं, उसमें हाड़ौती भी है राजस्‍थान की आंचलिक बोलियाँ भी उनमें शामिल हैं. आप सब भी राजनीतिज्ञों, नेताओं, उच्‍च अधिकारियों व राज्‍य की मुख्‍य मंत्रीजी जिनका राजस्‍थान व विशेष हाड़ौती से विशेष सम्‍बंध है सशक्‍त मीडिया के माध्‍यम से यह बात पहुँचानी चाहिए कि कोटा में हाड़ौती साहित्‍य अकादमी की स्‍थापना कोटा में होनी चाहिए. जब कर्नाटक के साहित्‍यकार और कर्नाटक राज्‍य सरकार कन्‍नड़ विश्‍वकोश तैयार कर सकती है, जब आंध्रप्रदेश और तैलंगाना साहित्‍यकार व वहाँ की राज्‍य सरकार तैलगू विश्‍वकोश तैयार कर सकते हैं, जब गुजरात के साहित्‍यकार और गुजरात राज्‍य सरकार गुजराती विश्‍व कोश  तेयार कर सकती है और असम जैसे राज्‍य के साहित्‍यकार, लेखक और सरकार और असम साहित्‍य सभा 55 खंडों में असमिया विश्‍वकोश तैयार कर सकती है तो राजस्‍थान के साहित्‍यकार और राजस्‍थान सरकार राजस्‍थानी विश्‍वकोष क्‍यों तैयार नहीं कर सकती. जब तक राजस्‍थानी भाषा, साहित्‍य और संस्‍कृति का प्रामाणिक विश्‍वकोष तैयार नहीं होगा  तब तक विश्‍वस्‍तर पर
समारोह के अंत में सभी का आभार ज्ञापित करतीं समारोह व
इस ज्ञानभारती संस्‍थान की निदेशिका श्रीमती कमला कमलेश
 राजस्‍थानी को सम्‍मान, गौरव और मान्‍यता दिलाने में हमारे सामने बहुत सारी अड़चने आती रहेंगी. इस पर भी आप लोगों को विचार करना होगा. एक बहुत गंभीर बात भी आप से कह देना चाहता हूँ कि मैं लेंग्‍वेज इंस्‍टीट्यूट में काम करने वाला आदमी हूँ, मैं पिछले 25 वर्षों से जनजाति रूढि़यों, बोलियों, व संस्‍कृति पर कार्य कर रहा हूँ. 

अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर एक बहुत गहरा षडयंत्र चल रहा है, तमाम शक्तिशाली राष्‍ट्र नहीं चाहते कि संयुक्‍त राष्‍ट्रसंघ की भाषा बने हिंदी. भोजपुरी, राजस्‍थानी भाषाओं को भारतीय अष्‍टम अनुसूची में सम्मिलित किये जाने से राष्‍ट्रभाषा के लिए हिंदी इससे बहुत प्रभावित होगी. अंत में उन्‍होंने साहित्‍यकारों से उनके विश्‍व हिंदी कोश संस्‍थान से जुड़ने के लिएापित करने में जुटे एक यशस्‍वी सशस्‍वी  ाहित्‍यकोष संस्‍थान के  आग्रह किया. दोनों ने स्‍मृति चिह्न, शॉल, श्रीफल, पुष्‍प पत्र और सम्‍मान प‍त्र देकर सम्‍मानित किया गया.
कार्यक्रम का समापन ज्ञान भारती परिवार एवं मुख्‍य अतिथि व अध्‍यक्ष द्वारा जीवन व कृति परिचय देने वाले साहित्‍यकारों यथा श्री भगवत सिंह जादौन ‘मयंक’, श्री भगवती प्रसाद गौतम, डा. ओम नागर, श्री जितेंद्र निर्मोही, श्री आनंद हजारी को स्‍मृति चिह्न देकर सम्‍मानित किया गया.
कार्यक्रम में नगर के प्रख्‍यात साहित्‍यकार शायर, श्री बशीर अहमद 'मयूख', इंद्रबिहारी सक्‍सैना, श्री सी.एम. उपाध्‍याय, श्री मुकट मणिराज, श्री शिवराज श्रीवास्‍तव, शकूर अनवर, चांद शेरी, राजेंद्र पँवार, नरेंद्र चक्रवर्ती ‘मोती’, कवि सरल, हितेश व्‍यास, शहर व हाड़ौती सम्‍भाग के अनेक साहित्‍यकार शिक्षक, विद्वान् एवं विदुषियाँ उपस्थित थीं.  

अंत में समारोह की निदेशिका श्रीमती कमला कमलेश द्वारा आभार व्‍यक्‍त किया गया. समापन के बाद सभी साहित्‍यकार एक दूसरे से मिलें अपनी साहित्यिक रचनाओं का आदान-प्रदान भी किया गया. एक अल्‍पाहार का आयोजन भी रखा गया था. भी अल्‍पाहर ले कर विदा हुए.    
उपस्थित साहित्‍यकार एवं अतिथि गण. श्री बशीर अहमद मयूख, श्री इंद्रबिहार सक्‍सैना, श्री भगवती प्रसाद गौतम,  पीछे की पंक्ति में श्री मुकुट मणिराज, डा. ओम नागर, श्री सी.एम. उपाध्‍याय, श्री आनंद हजारी, श्री अनमोल, श्री शिवराज श्रीवास्‍तव, शकूर अनवर आदि 

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब लिखा है आपने 👌 👌 👌 👌

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  2. शानदार समाचार बनाने के लिए और बेहतर-सचित्र प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई प्रिय आकुल.
    -डॉ.रघुनाथ मिश्र 'सहज'

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  3. शानदार प्रस्तुति. हार्दिक बधाई.
    -डॉ.रघुनाथ मिश्र 'सहज'

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