आज आक्रोश दिन पर दिन बढ़ रहा है। बात काश्मीर की हो या भ्रष्टाचार की,जन समस्याओं की हो या महँगाई की,राजनीति की हो या साहित्य की,आम आदमी इतना त्रस्त हो चला है कि धैर्य छूटने लगा है,हाथ में जलजले उठाने को तैयार है वह,आँखों में वहशत को देख कर लगता है कि भविष्य में कुछ अनिष्ट होने वाला है,न्यायाधीश बेबस अपने निर्णयों की धज्जियाँ उड़ते देख रहे हैं,किस का गुस्सा किस पर उतर रहा है,नगरपालिकाओं में मूलभूत आवश्यकताओं के लिए लोग सड़कों पर उतरने लगे हैं, हिंसक प्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं, रक्षक भक्षक बन रहे हैं, भ्रष्ट लोग अब जैसे एक ही दिन में पूरी देश को लूट कर भागने की फ़िराक़ में हैं, गुण्डागर्दी हद कर रही है, उत्तर प्रदेश में तानाशाही फ़लक़ पर है, संविधान के मूल अधिकार केवल कागज़ों में मुँह छिपा रहे हैं। क्या इसी को रौरव कहते हैं, पुराणों में वर्णित एक नर्क। पूरे देश पर धीरे धीरे एक अभेद्य वायरस का जमावड़ा होने लगा है, याद आ रहा है अंग्रेजी फिल्म 'इनडिपेंडेंस डे' जिसमें दूसरे ग्रह के प्राणियों ने अमेरिका पर अपना जाल फैलाया और किस तरह से जाँबाज़्रों ने देश को फिर एक आज़ादी में हवा लेने के लिए अपनी जाँ की बाज़ी लगाई। आज अपने देश में फिर एक जनक्रांति की आवश्यकता महसूस की जा रही है, पर इसके पहले और कितना रक्तपात--- यह आप और हमें सोचना है।
शब्द दो तुम मैं लिखूँगा, इक अमिट इतिहास फिर।
याद रक्खेगा तुम्हें अपना वतन हर साँस फिर।।
कब तलक सोते रहोगे,वक्त की आवाज़ है।
साहिलों की मौज़ों में तूफानों का अंदाज़ है।
कर दो तुम नाकाम उन शैतानों की हर कोशिशें।
कर दो तुम ख़ातिर वतन, क़ुर्बान अब हर ख्वाहिशें।
खूँरेज़ी का दौर है, दुश्मन नहीं कमज़ोर है।
बिजलियों का शोर है, ग़म की घटा घनघोर है।
अपनी हर तकलीफ़ को मोहरा बना कर किश्त दी।
उसको ना मुँह की पड़े, जो तुमने ना शिकस्त दी।
फिर बढ़ेगा हौसला, दुश्मन का तुम ये जान लो।
फिर लिखेगा खून से लथपथ कहानी जान लो।
हाथ दो उड़ने को दूँगा मैं नई परवाज़ फिर।
याद रक्खेगा तुम्हें अपना वतन हर साँस फिर।।
शब्द दो तुम मैं लिखूँगा, इक अमिट इतिहास फिर।
याद रक्खेगा तुम्हें अपना वतन हर साँस फिर।।
कब तलक सोते रहोगे,वक्त की आवाज़ है।
साहिलों की मौज़ों में तूफानों का अंदाज़ है।
कर दो तुम नाकाम उन शैतानों की हर कोशिशें।
कर दो तुम ख़ातिर वतन, क़ुर्बान अब हर ख्वाहिशें।
खूँरेज़ी का दौर है, दुश्मन नहीं कमज़ोर है।
बिजलियों का शोर है, ग़म की घटा घनघोर है।
अपनी हर तकलीफ़ को मोहरा बना कर किश्त दी।
उसको ना मुँह की पड़े, जो तुमने ना शिकस्त दी।
फिर बढ़ेगा हौसला, दुश्मन का तुम ये जान लो।
फिर लिखेगा खून से लथपथ कहानी जान लो।
हाथ दो उड़ने को दूँगा मैं नई परवाज़ फिर।
याद रक्खेगा तुम्हें अपना वतन हर साँस फिर।।
a good patriotic song badhai
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