शनिवार, 15 सितंबर 2018

सूचना प्रोद्योगिकी गाँवों तक पहुँच गई है, बस ग्रामोत्‍थान के लिए इसका प्रयोग यदि सफल हुआ तो देश शिखर पर होगा- डॉ. लखन शर्मा

हिंदी दिवस पर भव्‍य समारोह में 'आकुल' सम्‍मानित ।
उनकी गीतिका के पोस्‍टर का भी विमोचन,
जो लाइब्रेरी में स्‍वागत कक्ष में लगाया जाएगा
  14 सितम्‍बर, 2018 को हिंदी दिवस के उपलक्ष्‍य में राजकीय पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय सार्वजनिक मण्‍डल पुस्‍तकालय, कोटा के सभागार में सम्‍भाग स्‍तरीय राजभाषा हिंदी दिवस सम्‍मेलन 2018 अपराह्न चार बजे आरंभ हुआ. सभी पधारे अतिथियों को पुस्‍तकालय के द्वार पर कुंकुम तिलक लगा कर स्‍वागत किया गया.
मंचस्‍थ प्रमुख वक्‍ता कला महाविद्यालय की सह आचार्य त्रिमूर्ति
मंचस्‍थ अतिथि अध्‍यक्ष एवं अन्‍य
मंडल पुस्‍तकालय अध्‍यक्ष डॉ. दीपक कुमार श्रीवास्‍तव ने समारोह में पधारे समारोह अध्‍यक्ष सेवानिवृत्‍त संयुक्‍त निदेशक जनसंपर्क एवं स्‍वतंत्र पत्रकार डॉ.प्रभात कुमार सिंघल, मुख्‍य अतिथि शिक्षाविद् डॉ. लखन शर्मा, विशिष्‍ट अतिथि कोटा की साहित्‍य त्रैमासिक पत्रिका ‘दृष्टिकोण’ के प्रबंध सम्‍पादक श्री नरेंद्र कुमार चक्रवर्ती, विशिष्‍ट अतिथि वरिष्‍ठ पत्रिकार श्री मनोहर पारीक, प्रमुख वक्‍ता कला महाविद्यालय, कोटा के सह आचार्य डॉ. मनीषा शर्मा, सह आचार्य डॉ.अनीता वर्मा और सह आचार्य डॉ. विवेक मिश्र को मंचस्‍थ किया.
माँ शारदे के समक्ष माल्‍यार्पण एवं दीप प्रज्‍ज्‍वलन करते अतिथि
आरंभ में कार्यक्रम का संचालन कर रहे कँवर बिहारी दीक्षित जी ने समारोह का विधिवत् प्रारंभ करने के लिए कथाकार, समीक्षक और शहर के ख्‍यात संचालक श्री विजय जोशी को भार सौंपा. कार्यक्रम का आरंभ सभी अतिथियों द्वारा माँ सरस्‍वती की माल्‍यार्पण और दीप प्रज्‍ज्‍वलन कर किया गया. माँ सरस्‍वती की स्‍तुति ‘सुर से मैं वंदन करती हूँ, शब्‍द तुझे अर्पण करती हूँ..’ पुस्‍तकालय की सहायक पुस्‍तकालय अध्‍यक्ष श्रीमती शशि जैन ने सस्‍वर गा कर समारोह में ऊर्ज प्रवाहित कर दी. माँ सरस्‍वती के आह्वान के पश्‍चात् मंच सचालन कर रहे श्री विजय जोशी ने कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए कहा कि माँ सरस्‍वती के आह्वान के पश्‍चात् जैसा कि हमारी संस्‍कृति है ‘अतिथि देवो भव’ अतिथियों का स्‍वागत करने के लिए उन्होंने पुस्‍तकालयाध्‍यक्ष डॉ. श्रीवास्‍तव व अन्‍य पधारे गणमान्‍य व्‍यक्तियों को, सभी अतिथियों को तिलक-पुष्‍पहार पहना कर सम्‍मान करने के लिए एक एक कर आमंत्रित किया. अतिथियों का स्वागत गान ‘इनके माथे पे तिलक लगाना, इनके गले में माला पहनाना, ये हमारे अतिथि हैं, इनके स्‍वागत में पलकें बिछाना...’ शशिजी ने सस्‍वर पाठ कर समारोह को संगीतमय बना दिया.
अतिथियों के स्‍वागत के बाद विधिवत् समारोह की भूमिका बताते हुए संचालक श्री विजय जोशी ने कहा कि वर्तमान संदर्भों में हिंदी भाषा के बारे में भारतेंदु हरिश्‍चंद्र का यह प्रख्‍यात दोहा आज जैसे चरितार्थ है ‘निज भाषा उन्‍नति लहे सब
संचालन करते विजय जोशी
उन्नति को मूल’ बिन निज भाषा के उन्‍नति संभव नहीं है, निश्चित ही हम बैसाखी के सहारे आगे अवश्‍य बढ़ जाते हैं, लेकिन मूल रूप से हमारे विकास का पदार्पण होना चाहिए, वह अपनी निज भाषा में ही होता है. उन्‍होंने कहा कि बालक अपना आरंभिक ज्ञान बचपन से माँ शब्‍द से करता है, माँ से ही वह संसार का जानने के लिए विकास के चरणों में आगे बढ़ता है, क्‍योंकि माँ के गर्भ से ही वह निज भाषा और संस्‍कार का सूत्रपात करता है. उन्होंने सुभद्रा के गर्भ में अभिमन्‍यु की कथा का उदाहरण दे कर बताया कि कैसे उसने चक्रव्‍यूह में प्रवेश की शिक्षा गर्भ में ही ली, उन्‍होंने आज के हिंदी के विकास, वर्तमान संदर्भों को अपने शब्‍दों में सभागार में उपस्थित जनों को कहने के लिए कला महाविद्यालय,कोटा की सह आचार्य श्रीमती अनीता वर्मा को मंच पर उद्बोधन के लिए बुलाया. डॉ. अनीता वर्मा ने कहा कि हिंदी केवल भाषा ही नहीं वह हमारे मान, सम्‍मान, हमारी प्रतिष्‍ठा का द्योतक है. कोई भी राष्‍ट्र, कोई भी जीवंत समाज अपनी भाषा के दम पर ही पहचान पाता है, क्‍यों भाषा अभिव्‍यक्ति
प्रमुख वक्‍ता सह आचार्यडॉ. मनीषा शर्मा
प्रमख्‍ुा वक्‍ता सह आचार्य डॉ. अनिता वर्मा
की संवाहक होती है. उन्‍होंने कहा कि पुस्‍तकालयों का महत्‍व आज भी है, पर समय के साथ चलने के साथ वर्तमान में सूचना एवं संचार माध्‍यमों व तकनीकी के साथ कदम ताल करते हुए भी चलना होगा. कला महाविद्यालय, कोटा की ही सह आचार्य श्रीमती मनीषा शर्मा ने कहा कि हिंदी दिवस व हिंदी भाषा का प्रश्‍न ‘भारत गौरव का नित ध्‍यान रहे, हम भी कुछ हैं, यह ज्ञान रहे.....‘ मैथिली शरण गुप्‍त जी की यह बात दुहराते हुए कहूँगी कि हमें अपनी मातृभाषा का भी मान रखना होगा. उन्‍होंने रामायण के वाक्‍य का भी दृष्‍टांत देते हुए कहा- -जननी जन्‍मभूमिश्च स्‍वर्गादपि गरीयसी’’ कि भगवान राम को भी अपनी जन्‍मभूमि सभी वैभवों से सर्वोच्‍च व प्‍यारी थी. उन्‍होंने बताया कि हमें इस मानसिकता को दूर करना होगा कि हिंदी अंग्रेजी से श्रेष्‍ठ है, हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी. संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ में हमारे पूर्व प्रधानमंत्री ने भाषण अपनी राष्‍ट्र की भाषा हिंदी में दिया था, फिर वह कहाँ श्रेष्‍ठ नहीं है, इसलिए हमें हिंदी की मार्यादा के लिए अपनी भूमि, अपनी भाषा से जुड़ना होगा और अपनी मातृभाषा को सँभालना होगा. उन्‍होंने अंत में कहा कि स्‍वतंत्रता के समय जो राज भाषा समिति बनाई गयी थी उसे पंद्रह वर्ष का समय दिया गया था, आज दुनिया में अ‍धिकतर देशों में हिंदी पढ़ाई जा रही है, अनेक विश्‍वविद्यालय इस भाषा को गंभीरता से ध्‍यान दे रहे हैं, अब राजभाषा समिति को हिंदी को राष्‍ट्र भाषा बनाये जाने के लिए अपनी अनुशंसा कर देनी चाहिए.
प्रमुख वक्‍ता सह आचार्य डॉ.विवेक मिश्र
अपने वक्‍तव्‍य में कला महाविद्यालय के ही सह आचार्य डॉ. विवेक मिश्र ने कहा कि हम सब हिंदी से जुड़े हुए लोग हैं, मेरा यह दृढ़ता के साथ मानना है कि आपके भीतर आत्‍मसम्‍मान होगा, तो आप न केवल अपनी भाषा की सर्जना करेंगे, अपने आप को भी मुक्‍त करेंगे. भाषा का काम होता है आपको अपने बंधन में बाँधना, जिसके तहत आप अपनी भाषा का उन्‍नयन करते हैं और पूर्णत: सीखने पर फिर आपको मुक्‍त कर देती है. आज भी हम भले ही अंग्रेजी जानते हैं पर जब बोलते हैं तो हिंदी को सोच कर बोलते हैं, हिंदी की तरह अंग्रेजी धाराप्रवाह नहीं बोल पाते, यह अपनी भाषा से जुड़े होने का प्रमाण है. हिंदी हम भारतीयों के लिए सार्वभौमिक भाषा है, इसके बिना हमारा अस्तित्‍व कुछ भी नहीं.
पोस्‍टर, पुस्‍तकालय के स्‍वागत कक्ष में लगेगा
अपने विद्रोह स्‍वर में विशिष्‍ट अतिथि श्री नरेंद्र चक्रवती ने बताया कि हमारी भाषा आज सभी देश सीखना चाहते हैं, क्‍योंकि आज विज्ञापन वाद और बाजारवाद के कारण भारत उनका तकनीकी व्‍यापारिक क्षेत्र है और भाषा हमें उस बाजार वाद में स्‍थापित करने के लिए आवश्‍यक है, इसलिए वे लोग हिंदी सीख रहे हैं, उसी प्रकार आज की महती आवश्‍यकता है कि हम भी उनकी तरह अपनी हिंदी के ही माध्‍यम से वर्तमान सूचना एवं प्रोद्योगिकी को अपना कर विश्‍व में अपना एक स्‍थान अपना एक बाजार स्‍थापित कर सकते हैं. हिंदी का उद्भव संस्‍कृति से हुआ कालांतर में धीरे धीरे हिंदी का स्‍वरूप छंदों व भक्ति रचनाओं के माध्‍यम से विकसित हुआ, मुगलकाल में अरबी फारसी के कारण हिंदी के ही रूप में उर्दू स्‍थापित हुई क्‍योंकि राष्‍ट्र भी भाषा के माध्‍यम से ही जनता के मध्‍य सेतु का कार्य करता है. मुगल शासन में उर्दू/अरबी/फारसी राष्‍ट्र की प्रशासनिक भाषा बनी, हिंदी उर्दू के रूप में जन जन की भाषा बनी, बाद में अंग्रेजी शासन में अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ा, और स्‍वतंत्रता प्राप्‍ति के समय हमारे देश में सभी भाषाओं की अपनी लोक भाषा अवश्‍य थी किंतु प्रशासनिक स्‍तर पर हिंदी को पूरा समर्थन नहीं बन पाया और हिंदी को राष्‍ट्र भाषा के स्‍थान पर राजभाषा का दर्जा दिया गया. आज सूचना एवं प्रोद्योगिकी के क्रांतिकारीपरिवर्तन के कारण पुन: अवसर है कि हम हिंदी को शीघ्र एक मकाम तक पहुँचा पायेंगे क्‍योंकि आज यह क्रांति गाँव गाँव पहुँच चुकी है, कम्‍प्‍यूटर, मोबाइल फोन आज छोटे से छोटा व्‍यक्ति इस्‍तेमाल करता है और उसके हिंदी स्‍वरूप को चयन कर अपनी जरूरत बना चुका है,
मुख्‍य अतिति पं. लखन शर्मा ने कहा कि हमारी हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है, तकनीकी के क्षेत्र में यदि हम समर्थ हो गये तो हम जीत जायेंगे. भाषा का प्रश्‍न है तो हर युग में भाषा ने ही राज किया है, यदि किसी देश को खत्‍म करना है तो उसकी भाषा को विकृत कर दो, खत्‍म कर दो वह देश स्‍वत: खत्‍म हो जाएगा.
मुख्‍य अतिथि डॉ.लखन शर्मा उद्बोधन देते हुए
अपने अध्‍यक्षीय भाषण में अध्‍यक्ष डॉ. प्रभात सिंघल ने कहा कि आज हिंदी की सूचना एवं प्रोद्योगिकी से टक्‍कर है. भाषा तो अपना स्‍थान धीरे धीरे बना ही रही है, उसे सहेजने और उसके मान सम्‍मान व प्रतिष्‍ठा के लिए ज्‍यादा प्रयास जरूरी नहीं, जरूरी है हमें आज की सूचना व प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ने की है ताकि हम स्‍थापित हो सकें. आज मोबाइल क्रांति इसका उदाहरण है.
इसके साथ ही पुस्‍तकालय के पाठकों के लिए आयोजित प्रतियोगिता के परिणाम प्रमुख निर्णायक  साहित्‍यकार डॉ. गोपाल कृष्‍ण भट्ट ‘आकुल’ ने घोषित किये और अतिथियों ने सभी को प्रशस्ति पत्र, स्‍मृति चिह्न दे कर सम्‍मानित किया. नारा लेखन में श्री भगवान प्रजापत, प्रथम, रामावतार नागर, द्वितीय, सुश्री रूबिना आरा,तृतीय, श्री महावीर वर्मा को सांत्‍वना पुरस्‍कार, निबंध लेखन में श्री मनोज सेन, प्रथम, श्री सागर सोनी द्वितीय, महावीर वर्मा, तृतीय, श्री भगवान प्रजापत, श्रीमती डिम्‍पल लोधा, श्री योगेन्‍द्र सिंह मीना को सांत्‍वना पुरस्‍कार, श्रुतिलेखन प्रतियोगिता में श्रीमती डिम्‍पल लोधाप्रथम सुश्री अनिता सैजवाल, द्वितीय , सुश्री शिवानी सोनी, तृतीय सुश्री साक्षी जैन, सुश्री रूबिना आरा, श्री रामावतार नागर को सांत्‍वना पुरस्‍कार दिये गये. आयोजित नेट / जे.आर.एफ. परीक्षा में अर्हता प्राप्‍त करने पर श्री रमाशंकर शर्मा, साहित्यकार, श्री विकास मालव, प्रतियोगी परीक्षार्थी, सुश्री निशा गुप्‍ता शोधार्थी को राजभाषा हिंदी सम्‍मान पत्र प्रदान किया गया. सुश्री अभिलाषा थोलम्बिया को नवोदित कवयित्री का सम्‍मान पत्र दिया गया. नाइजीरिया से भारत आए हिंदी का ज्ञान अर्जित करने पर नव साक्षर सम्‍मान से माइकेल इसीयू को सम्‍मानित किया गया.
'आकुल' को सम्‍मान करते अतिथि

हिंदी भाषा सेवी सम्‍मान के लिए पधारे सभी अतिथियों डॉ. मनीषा वर्मा, सह आचार्य (हिंदी) प्रमुख वक्‍ता डॉ. विवेक मिश्रसह आचार्य (हिंदी) प्रमुख वक्‍ता डॉ. अनिता वर्मासह आचार्य (हिंदी) प्रमुख वक्‍ता, डॉ. गोपाल कृष्‍ण भट्ट ‘आकुल’, साहित्‍यकार, प्रतियोगिताओं के प्रमुख निर्णायक, श्री नरेन्‍द्र कुमार चक्रवर्ती प्रबंध सम्‍पादक दृष्टिकोण, विशिष्‍ट अतिथि, श्री विजय जोशी, कथाकार एवं समीक्षक (संचालक), डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, सेवानिवृत्‍त संयुक्‍त निदेशक जनसम्‍पर्क एवं स्‍वतंत्र पत्रकार (अध्‍यक्ष), डॉ. लखन शर्मा, शिक्षाविद् (मुख्‍य अतिथि), श्रीमती सीमा घोष, शिक्षाविद् एवं सामाजिक कार्यकर्ता, श्री कँवर बिहारी दीक्षित, उद्घोषक, श्री सलीम अफरीदी, शायर, डॉ.योगेंद्र शर्मा, निदेशक शिशु भारती शिक्षा समूह, श्री मनोहर पारीक, वरिष्‍ठ पत्रकार (विशिष्‍ट अतिथि), को सम्‍मानित किया गया. श्री योगेन्‍द्र सिंह तँवर को कम्‍प्‍यूटर अनुप्रयोग के लिए प्रशस्ति पत्र देकर  सम्‍मानित किया गया. कवि शायर शकूर अनवर ने हिंदी पर एक नज्‍म प्रस्‍तुत की
'पुस्‍तक' पर लिखी गीतिका के पोस्‍टर का विमोचन करतेहुए अतिथि
इसी क्रम में मण्‍डल पुस्‍तकालय अध्‍यक्ष के आभार प्रदर्शन के पूर्व पुस्‍तकालय के लिए डॉ. गोपाल कृष्‍ण भट्ट ‘आकुल’ द्वारा ‘पुस्‍तक’ शब्‍द पर रचित एक गीतिका के पोस्‍टर का विमोचन किया गया, जो पुस्‍तकालय के स्‍वागत कक्ष में लगाया जाएगा. 
हिंदी सेवी सम्‍मान पत्र एवं स्‍मृतिचिह्न
अध्‍यक्ष प्रभात कुमार सिंघल के साथ डॉ. श्रीवास्‍तव
आभार प्रदर्शित करते हुए डॉ.दीपक श्रीवास्‍तव ने सभी का नाम ले कर कहा कि मुझे खुशी है कि जिसे भी बुलाया यहाँ आकर उन्‍होंने मुझे कृतार्थ किया है. उन्‍होंने कहा है कि आपको यह जानकर प्रसन्‍नता होगी कि आज हमारा पुस्‍तकालय भी सूचना प्रोद्योगिकी से कदम ताल चल कर चल रहा है. यूनिकोड के बारे में बताते हुए कहा कि एक ऐसा कोड सब में सार्वभौमिक रूप से रूपांतरित कर देता है, कमाल देखें इसे जो लोग देख नहीं पाते, बुजुर्ग लोग बिना चश्‍मा पढ़ नहीं पाते, अब किताबें बोल उठेंगी, हिंदी ओसीआर एक सोफ्टवेयर है उसे लोड करिये , किसी भी किताब को स्‍केन कर उसे उसमें लोड कर दीजिए, वह यूनिकोड में बदल जायेगी, प्‍ले टेक वाच लगाइये और पूरी किताब को पढ़ लीजिए. उन्‍होंने लाइब्रेरी में तकनीकी के इस्‍तेमाल के बारे में भी बताया और पधारे सभी पाठकों, अतिथियों, सम्‍मानित प्रतिभाओं को धन्‍यवाद दिया.
समारोह अल्‍पाहार के साथ सम्‍पन्‍न हुआ.


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