13-14 दिसम्बर 2011 को विक्रमशिला विद्यापीठ, भागलपुर बिहार का सोलहवाँ अधिवेशन महाकाल की नगरी उज्जैन में मौन तीर्थ के प्रांगण में भव्य समारोह में सम्पन्न हुआ। अधिवेशन का प्रथम दिन साहित्यकारों को सम्मान,कई पुस्तकों का लोकार्पण और हिन्दी भाषा के उत्थान पर चर्चाओं में बीता।
भगवान् श्रीकृष्ण,बलराम,सुदामा की विद्याध्ययन स्थली सांदीपनी आश्रम के समीप ही मौनतीर्थ गंगाघाट के चित्रकूट प्रांगण में आयोजित यह अधिवेशन उज्जैन के साहित्य प्रेमियों व पधारे साहित्यातिथियों पर एक छाप छोड़ गया। अधिवेशन के प्रथम दिन के प्रथम सत्र में हिन्दी के विकास व उन्नयन हेतु विद्वानों ने अपने अपने विचार रखे। श्रीमौनी बाबा वेद विद्यालय के बटुकों द्वारा‘भद्रं कर्णेभि शृणुयाम्---' मंगल स्वरों द्वारा मंगलाचरण से कार्यक्रम का आरंभ हुआ। तदुपरांत विक्रमशिला विद्यापीठ की जय हो, भारत ज्योर्तिमय हो’का गायन सुश्री ललिता, सुश्री जयश्री और सुश्री हरिप्रिया ने कर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। विद्यापीठ के कुलसचिव श्री देवेन्द्र नाथ शाह द्वारा विद्यापीठ द्वारा हिन्दी भाषा के विकास और उन्नयन के उद्देश्य से की गई सेवाओं एवं भावी योजनाओं पर प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया। इस सोलहवें राष्ट्रीय सारस्वत समारोह के प्रतिवेदन में श्री शाह ने बताया कि 7 दिसम्बर 1969 को विश्व आदिम व्रात्य संस्कृति से अभिभूत अंगप्रदेश (भागलपुर) बटेश्वरनाथ लोकतीर्थ में डा0 तेजनारायण कुशवाहा द्वारा इस पीठ की स्थापना की गयी। ज्ञातव्य है कि बिहार के भागलपुर जिले में ही पाल राजवंश के राजा धर्मपाल(783-820)के समय विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी। उस समय दर्शन,व्याकरण,तर्कशास्त्र,मेटा फिजिक्स के अलावा तंत्रविद्या का वह एक बड़ा केन्द्र था। बख्तियार खिलजी द्वारा नालंदा के समय यह तबाह कर दिया गया। विद्यापीठ की भावी योजनाओं में इस पीठ को पुन: विश्वविद्यालय का दर्जा दिलाने के लिए ठोस योजनायें बनाई जायेंगी। इस आयोजन के लिए उन्होंने संतश्री डा0सुमनभाई का आभार माना। द्वितीय दिवस पर सांगठनिक सत्र में नये कुलाधिपति के रूप में संतश्री डा0सुमनभाईजी का मनोनयन हुआ, जो उज्जैनवासियों के लिए अपार हर्ष का विषय था। अस्वस्थता के बावजूद संस्थापक कुलपति डा0कुशवाहा ने उपस्थित हो कर उज्जैनवासियों का आभार प्रदर्शन किया। प्रथम दिवस के इस सत्र में संतश्री द्वारा विद्यापीठ को एक कम्यूटर भेंट दिया गया। अतिथियों के उद्बोधन में पंजाब के अमरसिंह वधान ने कहा कि यह पहला आश्रम है तथा डॉ0 सुमनभाई ऐसे पहले मर्मज्ञ विद्वान् हैं जिन्होंने भारतीय विश्वाविद्यालयों को महाकवि कालिदास की विदुषी पत्नी तिलोत्तमा के साहित्य के शोध की चुनौती दी है। यदि हम कालिदास के साहित्य पर गर्व करते हैं, तो विद्योत्तामा के साहित्य पर शोध कर के दिखायें। उन्होंने आह्वान किया कि दूसरी भाषाओं को राष्ट्रभाषा हिन्दी पर हावी न होने दें, सांस्कृतिक गुलामी स्वीकार न करें। रूड़की से पधारे हिन्दी के विद्वान् साहित्यकार डा0गोपान नारसन ने कहा कि मौनतीर्थ अध्यात्म की शिक्षा के माध्यम से आदर्श चरित्र का पाठ पढ़ा रहा है। महर्षि पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय,उज्जैन के पूर्व कुलपति डा0 मोहन गुप्त ने कहा कि भाषा व्यक्तित्व के विकास में सहायक होती है। आज अंग्रेजी भी विकृत होती जा रही है। राष्ट्र में हिन्दी भाषा के विघटन की प्रक्रिया आरंभ हो गयी है, इसलिए हमें चेतना होगा, उसे सुप्रतिष्ठित करना होगा। उन्होंने कहा कि आज हिन्दी, के समक्ष दो खतरे हैं- पहला अंग्रेजी के शब्दों की भरमार और अखबारों में अंग्रेजी के शब्दों व शीर्षकों का प्रयोग और दूसरा दूसरी भाषायें हिन्दी से तुलना करते हुए आगे बढ़ रही है। आज हिन्दी लेखन को आन्दोलन का रूप देना होगा।
मौनतीर्थ की ओर से श्री कुशवाहा को स्मृति चिह्न भेंट किया गया। सत्र की अध्यक्षता हिसार के रामनिवास मानव ने की। प्रथम दिवस के अपराह्न सत्र में सुदूर अंचलों से पधारे सौ से अधिक साहित्यकारों को विभिन्न उपाधियों और सम्मानों से अलंकृत किया गया। संतश्री डा0सुमनभाई, डा0 श्याम लाल उपाध्याय, कोलकाता, डा0 सुरजीत सिंह जोवन, नई दिल्ली सहित 18 साहित्यकारों को पीठ का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत गौरव’ प्रदान किया गया। श्रीमती अर्चना सुमन, श्री नीलमेघ चतुर्वेदी, मुंबई के चंद्रकान्त गोसालिया, दैनिक भास्कर उज्जैन के स्थानीय सम्पादक श्री विवेक चौरसिया, कोटा के वरिष्ठ साहित्यकार रघुनाथ मिश्र, डॉ0 नलिन सहित 108 साहित्यकारों को 'विद्या वाचस्पति' की उपाधि से सम्मानित किया गया। अन्य साहित्यकारों में बहराइच के डा0 अशोक गुलशन, प्रदीप चक्रवर्ती प्रचण्ड, कोटा के गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’ सहित 21 साहित्यकारों को 'साहित्य शिरोमणि’ से अलंकृत किया गया। 76 विद्वानों को विद्यासागर 2011, 33 विद्वानों को भारतीय भाषा रत्न, डॉ0 प्रेमानन्द सरस्वती इन्दौर सहित 4 को महाकवि, 20 को कवि शिरोमणि, 11 को पत्रकार शिरोमण, 14 समाज सेवियों को समाज सेवी रत्न और 11 को अंग गौरव की उपाधियों के साथ स्मृति चिह्न,प्रशस्ति पत्र और साहित्य भेंट किया गया। मंचासीन अतिथियों के साथ विद्यापीठ के कुलपति डा0तेजनारायण कुशवाहा ने ‘पीठवार्ता’ पुस्तक का विमोचन किया।
द्वितीय दिवस का मूल आकर्षण था मानस भूषण डा0संतश्री सुमनभाई का कुलाधिपति के रूप में मनोनयन। इस ताजपोशी के समय उज्जैन के गणमान्य नागरिक, साहित्यकार, पीठ के सभी सांगठनिक सदस्य और कार्यकर्ता मौजूद थे। पीठ के कुलपति श्री कुशवाहा ही रहेंगे। प्रतिकुलपति पंजाब के डा0 अमर सिंह वधान को मुकुट, शाल, पुष्प हार पहनाकर तथा शील्ड प्रदान कर ताजपोशी की गयी।
भगवान् श्रीकृष्ण,बलराम,सुदामा की विद्याध्ययन स्थली सांदीपनी आश्रम के समीप ही मौनतीर्थ गंगाघाट के चित्रकूट प्रांगण में आयोजित यह अधिवेशन उज्जैन के साहित्य प्रेमियों व पधारे साहित्यातिथियों पर एक छाप छोड़ गया। अधिवेशन के प्रथम दिन के प्रथम सत्र में हिन्दी के विकास व उन्नयन हेतु विद्वानों ने अपने अपने विचार रखे। श्रीमौनी बाबा वेद विद्यालय के बटुकों द्वारा‘भद्रं कर्णेभि शृणुयाम्---' मंगल स्वरों द्वारा मंगलाचरण से कार्यक्रम का आरंभ हुआ। तदुपरांत विक्रमशिला विद्यापीठ की जय हो, भारत ज्योर्तिमय हो’का गायन सुश्री ललिता, सुश्री जयश्री और सुश्री हरिप्रिया ने कर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। विद्यापीठ के कुलसचिव श्री देवेन्द्र नाथ शाह द्वारा विद्यापीठ द्वारा हिन्दी भाषा के विकास और उन्नयन के उद्देश्य से की गई सेवाओं एवं भावी योजनाओं पर प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया। इस सोलहवें राष्ट्रीय सारस्वत समारोह के प्रतिवेदन में श्री शाह ने बताया कि 7 दिसम्बर 1969 को विश्व आदिम व्रात्य संस्कृति से अभिभूत अंगप्रदेश (भागलपुर) बटेश्वरनाथ लोकतीर्थ में डा0 तेजनारायण कुशवाहा द्वारा इस पीठ की स्थापना की गयी। ज्ञातव्य है कि बिहार के भागलपुर जिले में ही पाल राजवंश के राजा धर्मपाल(783-820)के समय विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी। उस समय दर्शन,व्याकरण,तर्कशास्त्र,मेटा फिजिक्स के अलावा तंत्रविद्या का वह एक बड़ा केन्द्र था। बख्तियार खिलजी द्वारा नालंदा के समय यह तबाह कर दिया गया। विद्यापीठ की भावी योजनाओं में इस पीठ को पुन: विश्वविद्यालय का दर्जा दिलाने के लिए ठोस योजनायें बनाई जायेंगी। इस आयोजन के लिए उन्होंने संतश्री डा0सुमनभाई का आभार माना। द्वितीय दिवस पर सांगठनिक सत्र में नये कुलाधिपति के रूप में संतश्री डा0सुमनभाईजी का मनोनयन हुआ, जो उज्जैनवासियों के लिए अपार हर्ष का विषय था। अस्वस्थता के बावजूद संस्थापक कुलपति डा0कुशवाहा ने उपस्थित हो कर उज्जैनवासियों का आभार प्रदर्शन किया। प्रथम दिवस के इस सत्र में संतश्री द्वारा विद्यापीठ को एक कम्यूटर भेंट दिया गया। अतिथियों के उद्बोधन में पंजाब के अमरसिंह वधान ने कहा कि यह पहला आश्रम है तथा डॉ0 सुमनभाई ऐसे पहले मर्मज्ञ विद्वान् हैं जिन्होंने भारतीय विश्वाविद्यालयों को महाकवि कालिदास की विदुषी पत्नी तिलोत्तमा के साहित्य के शोध की चुनौती दी है। यदि हम कालिदास के साहित्य पर गर्व करते हैं, तो विद्योत्तामा के साहित्य पर शोध कर के दिखायें। उन्होंने आह्वान किया कि दूसरी भाषाओं को राष्ट्रभाषा हिन्दी पर हावी न होने दें, सांस्कृतिक गुलामी स्वीकार न करें। रूड़की से पधारे हिन्दी के विद्वान् साहित्यकार डा0गोपान नारसन ने कहा कि मौनतीर्थ अध्यात्म की शिक्षा के माध्यम से आदर्श चरित्र का पाठ पढ़ा रहा है। महर्षि पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय,उज्जैन के पूर्व कुलपति डा0 मोहन गुप्त ने कहा कि भाषा व्यक्तित्व के विकास में सहायक होती है। आज अंग्रेजी भी विकृत होती जा रही है। राष्ट्र में हिन्दी भाषा के विघटन की प्रक्रिया आरंभ हो गयी है, इसलिए हमें चेतना होगा, उसे सुप्रतिष्ठित करना होगा। उन्होंने कहा कि आज हिन्दी, के समक्ष दो खतरे हैं- पहला अंग्रेजी के शब्दों की भरमार और अखबारों में अंग्रेजी के शब्दों व शीर्षकों का प्रयोग और दूसरा दूसरी भाषायें हिन्दी से तुलना करते हुए आगे बढ़ रही है। आज हिन्दी लेखन को आन्दोलन का रूप देना होगा।
मौनतीर्थ की ओर से श्री कुशवाहा को स्मृति चिह्न भेंट किया गया। सत्र की अध्यक्षता हिसार के रामनिवास मानव ने की। प्रथम दिवस के अपराह्न सत्र में सुदूर अंचलों से पधारे सौ से अधिक साहित्यकारों को विभिन्न उपाधियों और सम्मानों से अलंकृत किया गया। संतश्री डा0सुमनभाई, डा0 श्याम लाल उपाध्याय, कोलकाता, डा0 सुरजीत सिंह जोवन, नई दिल्ली सहित 18 साहित्यकारों को पीठ का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत गौरव’ प्रदान किया गया। श्रीमती अर्चना सुमन, श्री नीलमेघ चतुर्वेदी, मुंबई के चंद्रकान्त गोसालिया, दैनिक भास्कर उज्जैन के स्थानीय सम्पादक श्री विवेक चौरसिया, कोटा के वरिष्ठ साहित्यकार रघुनाथ मिश्र, डॉ0 नलिन सहित 108 साहित्यकारों को 'विद्या वाचस्पति' की उपाधि से सम्मानित किया गया। अन्य साहित्यकारों में बहराइच के डा0 अशोक गुलशन, प्रदीप चक्रवर्ती प्रचण्ड, कोटा के गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’ सहित 21 साहित्यकारों को 'साहित्य शिरोमणि’ से अलंकृत किया गया। 76 विद्वानों को विद्यासागर 2011, 33 विद्वानों को भारतीय भाषा रत्न, डॉ0 प्रेमानन्द सरस्वती इन्दौर सहित 4 को महाकवि, 20 को कवि शिरोमणि, 11 को पत्रकार शिरोमण, 14 समाज सेवियों को समाज सेवी रत्न और 11 को अंग गौरव की उपाधियों के साथ स्मृति चिह्न,प्रशस्ति पत्र और साहित्य भेंट किया गया। मंचासीन अतिथियों के साथ विद्यापीठ के कुलपति डा0तेजनारायण कुशवाहा ने ‘पीठवार्ता’ पुस्तक का विमोचन किया।
द्वितीय दिवस का मूल आकर्षण था मानस भूषण डा0संतश्री सुमनभाई का कुलाधिपति के रूप में मनोनयन। इस ताजपोशी के समय उज्जैन के गणमान्य नागरिक, साहित्यकार, पीठ के सभी सांगठनिक सदस्य और कार्यकर्ता मौजूद थे। पीठ के कुलपति श्री कुशवाहा ही रहेंगे। प्रतिकुलपति पंजाब के डा0 अमर सिंह वधान को मुकुट, शाल, पुष्प हार पहनाकर तथा शील्ड प्रदान कर ताजपोशी की गयी।
समाचार संग्रहण -प्राथमिक्ता आधारित चयन-संछिप्त किन्तु विषयवस्तु का समग्र समावेश. ये विशेषता है भाई गोपाल कृष्ण भट्ट "आकुल" के समाचार लेखन की और यहाँ इन सारी विशेषताओं का निर्वहन बखूबी किया गया दृष्टिगोचर हो रहा है.सचित्र, चित्ताकैशक,प्रत्येक द्रिष्टि से समग्र- समुचित- सुन्दर समाचार प्रस्तुति के लिए आकुल को हार्दिक बधाई व असीम शुभ कामनाएं.
जवाब देंहटाएं-रघुनाथ मिश्र