गुरुवार, 26 जनवरी 2012
सान्निध्य: कुछ इस तरह मनायें छब्बीस जनवरी इस बार
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रविवार, 15 जनवरी 2012
उज्जैन में विक्रमशिला विद्यापीठ का सोलहवाँ अधिवेशन सम्पन्न। कुलाधिपति का मनोनयन। कोटा के रघुनाथ मिश्र, डॉ नलिन और आकुल भी सम्मानित
13-14 दिसम्बर 2011 को विक्रमशिला विद्यापीठ, भागलपुर बिहार का सोलहवाँ अधिवेशन महाकाल की नगरी उज्जैन में मौन तीर्थ के प्रांगण में भव्य समारोह में सम्पन्न हुआ। अधिवेशन का प्रथम दिन साहित्यकारों को सम्मान,कई पुस्तकों का लोकार्पण और हिन्दी भाषा के उत्थान पर चर्चाओं में बीता।
भगवान् श्रीकृष्ण,बलराम,सुदामा की विद्याध्ययन स्थली सांदीपनी आश्रम के समीप ही मौनतीर्थ गंगाघाट के चित्रकूट प्रांगण में आयोजित यह अधिवेशन उज्जैन के साहित्य प्रेमियों व पधारे साहित्यातिथियों पर एक छाप छोड़ गया। अधिवेशन के प्रथम दिन के प्रथम सत्र में हिन्दी के विकास व उन्नयन हेतु विद्वानों ने अपने अपने विचार रखे। श्रीमौनी बाबा वेद विद्यालय के बटुकों द्वारा‘भद्रं कर्णेभि शृणुयाम्---' मंगल स्वरों द्वारा मंगलाचरण से कार्यक्रम का आरंभ हुआ। तदुपरांत विक्रमशिला विद्यापीठ की जय हो, भारत ज्योर्तिमय हो’का गायन सुश्री ललिता, सुश्री जयश्री और सुश्री हरिप्रिया ने कर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। विद्यापीठ के कुलसचिव श्री देवेन्द्र नाथ शाह द्वारा विद्यापीठ द्वारा हिन्दी भाषा के विकास और उन्नयन के उद्देश्य से की गई सेवाओं एवं भावी योजनाओं पर प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया। इस सोलहवें राष्ट्रीय सारस्वत समारोह के प्रतिवेदन में श्री शाह ने बताया कि 7 दिसम्बर 1969 को विश्व आदिम व्रात्य संस्कृति से अभिभूत अंगप्रदेश (भागलपुर) बटेश्वरनाथ लोकतीर्थ में डा0 तेजनारायण कुशवाहा द्वारा इस पीठ की स्थापना की गयी। ज्ञातव्य है कि बिहार के भागलपुर जिले में ही पाल राजवंश के राजा धर्मपाल(783-820)के समय विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी। उस समय दर्शन,व्याकरण,तर्कशास्त्र,मेटा फिजिक्स के अलावा तंत्रविद्या का वह एक बड़ा केन्द्र था। बख्तियार खिलजी द्वारा नालंदा के समय यह तबाह कर दिया गया। विद्यापीठ की भावी योजनाओं में इस पीठ को पुन: विश्वविद्यालय का दर्जा दिलाने के लिए ठोस योजनायें बनाई जायेंगी। इस आयोजन के लिए उन्होंने संतश्री डा0सुमनभाई का आभार माना। द्वितीय दिवस पर सांगठनिक सत्र में नये कुलाधिपति के रूप में संतश्री डा0सुमनभाईजी का मनोनयन हुआ, जो उज्जैनवासियों के लिए अपार हर्ष का विषय था। अस्वस्थता के बावजूद संस्थापक कुलपति डा0कुशवाहा ने उपस्थित हो कर उज्जैनवासियों का आभार प्रदर्शन किया। प्रथम दिवस के इस सत्र में संतश्री द्वारा विद्यापीठ को एक कम्यूटर भेंट दिया गया। अतिथियों के उद्बोधन में पंजाब के अमरसिंह वधान ने कहा कि यह पहला आश्रम है तथा डॉ0 सुमनभाई ऐसे पहले मर्मज्ञ विद्वान् हैं जिन्होंने भारतीय विश्वाविद्यालयों को महाकवि कालिदास की विदुषी पत्नी तिलोत्तमा के साहित्य के शोध की चुनौती दी है। यदि हम कालिदास के साहित्य पर गर्व करते हैं, तो विद्योत्तामा के साहित्य पर शोध कर के दिखायें। उन्होंने आह्वान किया कि दूसरी भाषाओं को राष्ट्रभाषा हिन्दी पर हावी न होने दें, सांस्कृतिक गुलामी स्वीकार न करें। रूड़की से पधारे हिन्दी के विद्वान् साहित्यकार डा0गोपान नारसन ने कहा कि मौनतीर्थ अध्यात्म की शिक्षा के माध्यम से आदर्श चरित्र का पाठ पढ़ा रहा है। महर्षि पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय,उज्जैन के पूर्व कुलपति डा0 मोहन गुप्त ने कहा कि भाषा व्यक्तित्व के विकास में सहायक होती है। आज अंग्रेजी भी विकृत होती जा रही है। राष्ट्र में हिन्दी भाषा के विघटन की प्रक्रिया आरंभ हो गयी है, इसलिए हमें चेतना होगा, उसे सुप्रतिष्ठित करना होगा। उन्होंने कहा कि आज हिन्दी, के समक्ष दो खतरे हैं- पहला अंग्रेजी के शब्दों की भरमार और अखबारों में अंग्रेजी के शब्दों व शीर्षकों का प्रयोग और दूसरा दूसरी भाषायें हिन्दी से तुलना करते हुए आगे बढ़ रही है। आज हिन्दी लेखन को आन्दोलन का रूप देना होगा।
मौनतीर्थ की ओर से श्री कुशवाहा को स्मृति चिह्न भेंट किया गया। सत्र की अध्य
क्षता हिसार के रामनिवास मानव ने की। प्रथम दिवस के अपराह्न सत्र में सुदूर अंचलों से पधारे सौ से अधिक साहित्यकारों को विभिन्न उपाधियों और सम्मानों से अलंकृत किया गया। संतश्री डा0सुमनभाई, डा0 श्याम लाल उपाध्याय, कोलकाता, डा0 सुरजीत सिंह जोवन, नई दिल्ली सहित 18 साहित्यकारों को पीठ का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत गौरव’ प्रदान किया गया। श्रीमती अर्चना सुमन, श्री नीलमेघ चतुर्वेदी, मुंबई के चंद्रकान्त गोसालिया, दैनिक भास्कर उज्जैन के स्थानीय सम्पादक श्री विवेक चौरसिया, कोटा के वरिष्ठ साहित्यकार रघुनाथ मिश्र, डॉ0 नलिन सहित 108 साहित्यकारों को 'विद्या वाचस्पति' की उपाधि से सम्मानित किया गया। अन्य साहित्यकारों में बहराइच के डा0 अशोक गुलशन, प्रदीप चक्रवर्ती प्रचण्ड, कोटा के गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’ सहित 21 साहित्यकारों को 'साहित्य शिरोमणि’ से अलंकृत किया गया। 76 विद्वानों को विद्यासागर 2011, 33 विद्वानों को भारतीय भाषा रत्न, डॉ0 प्रेमानन्द सरस्वती इन्दौर सहित 4 को महाकवि, 20 को कवि शिरोमणि, 11 को पत्रकार शिरोमण, 14 समाज सेवियों को समाज सेवी रत्न और 11 को अंग गौरव की उपाधियों के
साथ स्मृति चिह्न,प्रशस्ति पत्र और साहित्य भेंट किया गया। मंचासीन अतिथियों के साथ विद्यापीठ के कुलपति डा0तेजनारायण कुशवाहा ने ‘पीठवार्ता’ पुस्तक का विमोचन किया।
द्वितीय दिवस का मूल आकर्षण था मानस भूषण डा0संतश्री सुमनभाई का कुलाधिपति के रूप में मनोनयन। इस ताजपोशी के समय उज्जैन के गणमान्य नागरिक, साहित्यकार, पीठ के सभी सांगठनिक सदस्य और कार्यकर्ता मौजूद थे। पीठ के कुलपति श्री कुशवाहा ही रहेंगे। प्रतिकुलपति पंजाब के डा0 अमर सिंह वधान को मुकुट, शाल, पुष्प हार पहनाकर तथा शील्ड प्रदान कर ताजपोशी की गयी।
भगवान् श्रीकृष्ण,बलराम,सुदामा की विद्याध्ययन स्थली सांदीपनी आश्रम के समीप ही मौनतीर्थ गंगाघाट के चित्रकूट प्रांगण में आयोजित यह अधिवेशन उज्जैन के साहित्य प्रेमियों व पधारे साहित्यातिथियों पर एक छाप छोड़ गया। अधिवेशन के प्रथम दिन के प्रथम सत्र में हिन्दी के विकास व उन्नयन हेतु विद्वानों ने अपने अपने विचार रखे। श्रीमौनी बाबा वेद विद्यालय के बटुकों द्वारा‘भद्रं कर्णेभि शृणुयाम्---' मंगल स्वरों द्वारा मंगलाचरण से कार्यक्रम का आरंभ हुआ। तदुपरांत विक्रमशिला विद्यापीठ की जय हो, भारत ज्योर्तिमय हो’का गायन सुश्री ललिता, सुश्री जयश्री और सुश्री हरिप्रिया ने कर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। विद्यापीठ के कुलसचिव श्री देवेन्द्र नाथ शाह द्वारा विद्यापीठ द्वारा हिन्दी भाषा के विकास और उन्नयन के उद्देश्य से की गई सेवाओं एवं भावी योजनाओं पर प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया। इस सोलहवें राष्ट्रीय सारस्वत समारोह के प्रतिवेदन में श्री शाह ने बताया कि 7 दिसम्बर 1969 को विश्व आदिम व्रात्य संस्कृति से अभिभूत अंगप्रदेश (भागलपुर) बटेश्वरनाथ लोकतीर्थ में डा0 तेजनारायण कुशवाहा द्वारा इस पीठ की स्थापना की गयी। ज्ञातव्य है कि बिहार के भागलपुर जिले में ही पाल राजवंश के राजा धर्मपाल(783-820)के समय विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी। उस समय दर्शन,व्याकरण,तर्कशास्त्र,मेटा फिजिक्स के अलावा तंत्रविद्या का वह एक बड़ा केन्द्र था। बख्तियार खिलजी द्वारा नालंदा के समय यह तबाह कर दिया गया। विद्यापीठ की भावी योजनाओं में इस पीठ को पुन: विश्वविद्यालय का दर्जा दिलाने के लिए ठोस योजनायें बनाई जायेंगी। इस आयोजन के लिए उन्होंने संतश्री डा0सुमनभाई का आभार माना। द्वितीय दिवस पर सांगठनिक सत्र में नये कुलाधिपति के रूप में संतश्री डा0सुमनभाईजी का मनोनयन हुआ, जो उज्जैनवासियों के लिए अपार हर्ष का विषय था। अस्वस्थता के बावजूद संस्थापक कुलपति डा0कुशवाहा ने उपस्थित हो कर उज्जैनवासियों का आभार प्रदर्शन किया। प्रथम दिवस के इस सत्र में संतश्री द्वारा विद्यापीठ को एक कम्यूटर भेंट दिया गया। अतिथियों के उद्बोधन में पंजाब के अमरसिंह वधान ने कहा कि यह पहला आश्रम है तथा डॉ0 सुमनभाई ऐसे पहले मर्मज्ञ विद्वान् हैं जिन्होंने भारतीय विश्वाविद्यालयों को महाकवि कालिदास की विदुषी पत्नी तिलोत्तमा के साहित्य के शोध की चुनौती दी है। यदि हम कालिदास के साहित्य पर गर्व करते हैं, तो विद्योत्तामा के साहित्य पर शोध कर के दिखायें। उन्होंने आह्वान किया कि दूसरी भाषाओं को राष्ट्रभाषा हिन्दी पर हावी न होने दें, सांस्कृतिक गुलामी स्वीकार न करें। रूड़की से पधारे हिन्दी के विद्वान् साहित्यकार डा0गोपान नारसन ने कहा कि मौनतीर्थ अध्यात्म की शिक्षा के माध्यम से आदर्श चरित्र का पाठ पढ़ा रहा है। महर्षि पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय,उज्जैन के पूर्व कुलपति डा0 मोहन गुप्त ने कहा कि भाषा व्यक्तित्व के विकास में सहायक होती है। आज अंग्रेजी भी विकृत होती जा रही है। राष्ट्र में हिन्दी भाषा के विघटन की प्रक्रिया आरंभ हो गयी है, इसलिए हमें चेतना होगा, उसे सुप्रतिष्ठित करना होगा। उन्होंने कहा कि आज हिन्दी, के समक्ष दो खतरे हैं- पहला अंग्रेजी के शब्दों की भरमार और अखबारों में अंग्रेजी के शब्दों व शीर्षकों का प्रयोग और दूसरा दूसरी भाषायें हिन्दी से तुलना करते हुए आगे बढ़ रही है। आज हिन्दी लेखन को आन्दोलन का रूप देना होगा।
मौनतीर्थ की ओर से श्री कुशवाहा को स्मृति चिह्न भेंट किया गया। सत्र की अध्य

द्वितीय दिवस का मूल आकर्षण था मानस भूषण डा0संतश्री सुमनभाई का कुलाधिपति के रूप में मनोनयन। इस ताजपोशी के समय उज्जैन के गणमान्य नागरिक, साहित्यकार, पीठ के सभी सांगठनिक सदस्य और कार्यकर्ता मौजूद थे। पीठ के कुलपति श्री कुशवाहा ही रहेंगे। प्रतिकुलपति पंजाब के डा0 अमर सिंह वधान को मुकुट, शाल, पुष्प हार पहनाकर तथा शील्ड प्रदान कर ताजपोशी की गयी।
शनिवार, 14 जनवरी 2012
सरिता लोक सेवा संस्थान ग्राम सहनिवाँ का दसवाँ साहित्य सम्मान समारोह गौसेसिंहपुर में सम्पन्न। पत्र ‘धोपाप’ का भी विमोचन। आकुल सम्मानित
दहेज की बलिवेदी पर चढ़ी बाला सरिता की स्मृति में स्थापित सरिता लोक सेवा संस्थान ग्राम सहनिवाँ पो0गौसेसिंहपुर जिला सुल्तानपुर में संस्थान का दसवाँ सम्मान समारोह माध्यमिक विद्यालय गौसेसिंहपुर में 6 नवम्बर2011 को सम्पन्न हुआ। संस्थान का सर्वोच्च सम्मान कीर्तिभारती सम्मान विक्रमशिला विद्यापीठ,भागलपुर बिहार के कुलसचिव देवेन्द्र नाथ शाह को दिया गया। लगभग 18साहित्यकार कवियों को विभिन्न सम्मानों व पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। भारत भूषण सम्मान भोपाल के प्रख्यात चित्रकार नवल जायसवाल को,स्व0रामकृपाल पाण्डेय सम्मान गोण्डा के प्रख्यात कथावाचक साहित्यकार श्री संतशरण त्रिपाठी को दिया गया। ज्ञानचन्द्र मर्मज्ञ सौहार्द सम्मान मैनपुरी के श्री सतीशचन्द्र मिश्र को व बहराइच के प्रख्यात समाज सेवी स्व0पंडित ब्रजबहादुर पाण्डेय सम्मान मासिक साहित्यिक पत्रिका कर्मनिष्ठा के सम्पादक डा0मोहन तिवारी आनन्द को दिया गया। श्री तिवारी को यह सम्मान पंडितजी के पुत्र प्रख्यात ग़ज़लकार साहित्यकार डा0अशोक‘गुलशन’द्वारा प्रायोजित था,जिसमें उन्होंने पत्रपुष्प,शाल व प्रशस्ति पत्र दे कर उन्हें सम्मानित किया। पहले स
त्र में साहित्यकारों को सम्मानित किया गया। साहित्य मार्तण्ड सम्मान डा0ओम प्रकाश हयारण,झाँसी और गोपाल कृष्ण भट्ट‘आकुल’कोटा को प्रदान किया गय। हिमाचल के अनन्त आलोक एवं महाराजगंज के डा0उमेश कुमार पटेल‘श्रीश’को साहित्य गौरव सम्मान प्रदान किया गया। काव्य कुमुद सम्मान फर्रूखाबाद के प्रदीपकुमार चक्रवर्ती और रघुनंदन प्रसाद दीक्षित को दिया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री रामार्य पाठक थे तथा अध्यक्षता चंद्रशेखर शुक्ल उर्फ'बेबी भैया'ने की। साहित्य सम्मान समारोह का संचालन श्री संतशरण त्रिपाठी कर रहे थे। सर्वप्रथम संस्थान के संस्थापक डा0कृष्णमणि चतुर्वेदी मैत्रेय ने संस्थान के बारे में संक्षिप्त में बताया और यह भी बताया कि किस तरह उनकी पुत्री सरिता को दहेज के लालचियों ने काल के क्रूर हाथों में झौंक दिया। तभी से इस जघन्य काण्ड को नहीं दोहराया जाये,उन्होंने साहित्य की अलख जगाकर, इसके माध्यम से नई जन जाग्रति का शंखनाद किया है। इस समारोह में बाद में पाप की मुक्ति के लिए प्रख्यात इस क्षेत्र के नाम‘धोपाप’ पर श्री मैत्रेय के पहले‘धोपाप’नाम के मासिक पत्र का भी विमोचन किया गया। ‘धोपाप’नामकरण के बारे में बताते हुए श्री मैत्रेय ने बताया कि भगवान् श्री राम लंका विजय के बाद लौटते समय लंकापति रावण की'ब्रह्महत्या'के पाप को धोने के लिए यहाँ से गुजरती हुई सरयू नदी के मध्य बहती धारा में स्नान करने के पश्चात् ही अयोध्या के लिए रवाना हुए थे। इस तीर्थ पर किंवदंती है कि उस समय इस तीर्थ के महात्म्य को बताने के लिए ऋषियों ने काले कौए को बीचधार में डुबो कर श्री राम को बताया,वह काक श्याम वर्ण से गौर वर्ण का हो गया। श्याम वर्ण शाप व धब्बे का द्योतक है और गौर वर्ण पाप से मुक्ति का,तब श्रीराम ने बीच धार में स्नान किया। तभी से यह तीर्थ‘धोपाप’के नाम से प्रसिद्ध है। द्वितीय सत्र में देर रात तक कवि सम्मेलन आयोजित हुआ। कवि सम्मेलन की अध्यक्षता भोपाल से पधारे पत्रिका कर्मनिष्ठा के सम्पादक और तुलसी साहित्य अकादमी के अध्यक्ष मोहन तिवारी‘आनन्द’ने की। पधारे सभी साहित्यकारों व कवियों ने वीर रस,हास्य,शृंगार और छन्द,ग़जल आदि रचनाओं से दूर दूर से पधारे श्रोतागणों को गुदगुदाया। कवि सम्मेलन का संचालन गोण्डा के प्रख्यात हास्य कवि अल्हड़ गोण्डवी ने किया।

डा0 रामव
ली परवाना स्मृति पर्व सम्मान समारोह खगड़िया में कोटा के डा
0 नलिन और रघुनाथ मिश्र सम्मानित
19-20 नवम्बर 2011 को डा0 रामवली परवाना स्मृति पर्व खगड़िया (बिहार) में हिन्दी भाषा साहित्य़ परिषद् खगड़िया द्वारा आयोजित 11वें महाअधिवेशन में अनेक राज्यों से पधारे हिन्दी साहित्यिकारों को पुरस्कृत किया गया। कोटा के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ0 नलिन को डा0 ध्यानचन्द राय रजत स्मृति सम्मान दिया गया। उन्हें रजत प्रशस्ति पत्र, शाल और स्मृति चिह्न दे कर सम्मानित किया गया। श्री मिश्र को डा0 रामवली परवाना स्मृति पर्व सम्मान दिया गया।


19-20 नवम्बर 2011 को डा0 रामवली परवाना स्मृति पर्व खगड़िया (बिहार) में हिन्दी भाषा साहित्य़ परिषद् खगड़िया द्वारा आयोजित 11वें महाअधिवेशन में अनेक राज्यों से पधारे हिन्दी साहित्यिकारों को पुरस्कृत किया गया। कोटा के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ0 नलिन को डा0 ध्यानचन्द राय रजत स्मृति सम्मान दिया गया। उन्हें रजत प्रशस्ति पत्र, शाल और स्मृति चिह्न दे कर सम्मानित किया गया। श्री मिश्र को डा0 रामवली परवाना स्मृति पर्व सम्मान दिया गया।
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