आइये श्री चक्र के ही शब्दों से ही उनकी पुस्तक *क्यों* की शुरुआत करें और फिर कहें
अपनी कुछ बाते कहें- एक अकेला शब्द *क्यों* ही आपकी जिज्ञासा के लिए पर्याप्त
है। इसलिए यह भी तय है कि जहाँ जिज्ञासा है वहा आशा है------‘
नहीं इसे समीक्षा
नहीं समझें। आपको उनके भीतर उठ रहे *क्यों* का ज्वार समझने के लिए ही पढ़ने की
जिज्ञासा उत्पन्न करनी पड़ेगी। पहले उनकी पुस्तकों के कुछ अंश- (वसीयत) से- ‘’जिंदगी
भर--- पिता ने----कवच बनकर---- बेटे को सहेजा------लेकिन---- पु्त्र कोसता रहा-----
जन्मदाता पिता को-----और---- सोचता रहा----- जाने कब लिखी जाएगी वसीयत मेरे नाम--‘’
प्रश्न चिह्न ‘?’ खड़ा किया है उन्होंने उन बच्चों की उच्छृंखलता पर जो अपनी
असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति अपने पिता द्वारा पूरी किये जाने को अपना अधिकार
समझते हैं----या----उन पिताओं के लिए जिनसे चूक हो गयी ऐसे संस्कार देने में जहाँ
पिता के जूते बेटे के पैरों में आते ही वह मित्र हो जाता है और बेटा समझने लग जाये
कि मुझे अब पिता के कंधे पर बोझ नहीं कंधे से कंधा मिला कर चलना होगा--- उनका उत्तरदायित्व
खत्म अब मेरा कर्तव्य आरंभ। उनकी दूसरी रचना देखें – (माँ बाप का साथ) से- ‘’समय
के साथ----बदलाव आवश्यक है-----लेकिन---सब कुछ बदलकर---भूगोल तो मिट सकता है-----पर----
इतिहास नहीं--------क्योंकि-----इतिहास मस्तिष्क में होता है----इ्रसलिए-----एक
सुझाव और दूँ------नये घर में-----सपाट दीवारों के साथ---------एक कोन में ही
सही-----एक आला रहने दो------जहाँ------दीपक की रोशनी बनकर---माँ हमेशा तुम्हारे
साथ होगी।‘’ फिर एक *क्यों* माँ, अंकुरित पहले बीज से ही उसे सहेजती है पर
बेटा क्यों भूल जाता है उसे किसी हवा में है ऐसी ताकत जो भुला देती है माँ की असीमित
तकलीफों को जो कभी गाहे बगाहे उसने देखी सुनी और माँ या पिता द्वारा बताई गई
होगी----क्यों होता है ऐसा ? पिता मौन रह सकता है किंतु माँ की तड़प मौन रह कर भी
अहसास करा जाती है। (जुल्म) से- ‘’---लेकिन---यह भी तो तय है-----कि-----तुम्हारा
मौन----सदियों से चली आ रही---तुम्हारी वंश परम्परा को------खत्म कर सकता
है-------इसलिए-----जुल्म सहने का इतिहास नहीं----बल्कि—जुल्म खत्म करने का
इतिहास बनाओ और -----अमर हो जाओ।‘’ जुल्म पर चक्र का यह क्यों मेरी कविता से
समझ में आ सकता है ---*आज समाज क्यों टूटते जा रहे हैं----मौन के
कारण-------आज संस्कार क्यों खत्म होते जा रहे हैं----------मौन के
कारण--------आज आदमी क्यों बदल रहा है----------मौन के कारण----------आज युवा क्यों
आवेग में है----------मौन के कारण---------कोई नहीं बोलता कि क्यों कर कर रहे
हो-----ऐसा आज तक नहीं हुआ---------बदलो मगर ऐसे भी नहीं कि इतिहास बदल
जाये-----और तुम इतिहास में उन पन्नों को ढूँढ़ भी न पाओ।* (मेरी रचना मौन के
कारण से) ऐसी अनेकों रचनायें प्रश्न चिह्न नहीं यक्ष प्रश्न खड़ा करती हैं।
सचमुच उनहोंने ऐसे विषय उठाये हैं जो इस पुस्तक को यादगार बनायेंगे-----इन प्रश्नों
को पढ़ना आत्मसात करना अपने अहं की तुष्टि के लिए अत्यावश्यक है-----जैसे (समय)
से- ‘’घड़ी की सूइयाँ----पीछे करके-----स्वयं को संतुष्ट करना------कि----मैंने
समय को-------वश में कर लिया है----‘’समय के साथ न चलने के लिए खड़ा होता एक
प्रश्न *क्यों* (हम किन्नर हैं) से- ‘’गर्भधारण न कर पाना-------हमारी
शारीरिक नपुंसकता नहीं-----बल्कि-----तुम्हारी मानसिक नपुंसकता है-------क्योंकि-------शरीर
से अधिक------मन की नपुंसकता खतरनाक होती है-------इसलिए---हम बहुत खुश
हैं-------भले ही हम किन्नर है’’ किताब की सबसे बड़ी कविता है—इस का शीर्षक
भले ही हम किन्नर होता तो और प्रभाव डालती---- शीर्षक हमें इंगित करता है *क्यों---क्या
तुम?’ इस पूरी पुस्तक को व्यंगय के संदर्भ में भी देखा जा सकता है। क्यों का
प्रश्न करते करते कवि ने अपना दुख भी व्यक्त किया है ‘कवि का दुख’ मेंनन्हीं बूँद, नदी की आत्मकथा, बीनने वाले, जींस और टॉप, पथ प्रदर्शक आदि
कवितायें हर बदलते युवा को अपनी जमीं न भूलने की हिदायत देती हैं-----कि हम कहीं
इस *क्यों* ‘को ढूँढ़ते ढूँढ़ते खो न जायें? डा0 ओम शिव ओम अम्बर ने अपनी भूमिका
में उन्हें अशिव का संहार करने को संकल्पित कवि बताया है, सच है। कविताओं की अनेकों
पुस्तकों में यह पुस्तक *क्यों* सचमुच श्री चक्र को काव्य जगत् के अग्रणी
कवियों में साथ बैठने का आग्रह करती है। उनकी पिछली पुस्तक साहित्यकार- 5 के बाद की यह उनकी हाल ही में प्रकाशित पुस्तक है।- आकुल
कवी सुधीर गुप्ता 'चक्र' की सद्य प्रकाशित 'क्यों' पर सुन्दर उदगार.लेखक को साधुवाद और ब्लोगर 'आकुल' को मंगल कामनाएं-सटीक-सहज मनोभावों को उसी रूप में व्यक्त करने के लिए.
जवाब देंहटाएंडा.रघुनाथ मिश्र 'सहज.