कोटा के ख़्याततनाम कवि और अनुवादक श्री अरुण सेदवाल नहीं रहे
कोटा। भारतीय रक्षा लेखा सेवा से अपर महानियंत्रक लेखा के पद से 2003 में सेवानिवृत्त
हुए और पिछले दस वर्षों से कोटा के साहित्य समाज में अपनी गहरी पैठ बनाये हुए
हिंदी अग्रेजी और राजस्थानी भाषा के कवि, अनुवादक श्री अरुण सेदवाल का शनिवार 27
अप्रेल को अचानक निधन
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अरुण सेदवाल (1943-2013) |
हो गया। भरे पूरे परिवार को छोड़ कर गये श्री सेदवाल कोटा के
हर कवि सम्मेलन, कवि गोष्ठियों, साहित्यिक कार्यक्रमों में सदैव अपनी उपस्थिति
दर्ज कराते थे। अनेकों पत्र पत्रिकाओं, संकलनों में उनकी ऊर्जस्वी और प्रगतिशील
रचनायें प्रकाशित होती रहती थीं। आपकी 3 पुस्तकें 1979 में ‘अविकल्प’, 2003 में ‘करवट
लेता समय’ और 2007 में ‘व्यर्थ गई प्रार्थनाएँ’ प्रकाशित हो चुकी थीं। आपकी एक
बालकथा 'रामू एंड रोबो' (अंग्रेजी में) नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित हुई थी।
आपने राजस्थानी कवि प्रेम जी प्रेम की पुस्तक ‘म्हारी कवितावाँ’ का अंग्रेजी
में ‘रूट्स एंड अदर पोएम्स’ के नाम से अनुवाद किया था। पिछले दिनों शांति
भारद्वाज के प्रसिद्ध उपन्यास ‘उड़ जा रे सुआ’ का अंग्रेजी में अनुवाद उनकी
विलक्षण प्रतिभा का दर्शन था। यह पुस्तक काफी चर्चित रही थी। देश विदेश की सम्पादित
पुस्तकों में आपकी रचनायें छपती रहती थीं, जिनमें प्रमुख हैं 1977 में प्रकाशित प्रणव
वंद्योपाध्याय की ‘हंड्रेड इंडियन पोएट्स’, डेविड रे (अमेरिका) की 1983 में
प्रकाशित पुस्तक ‘एंथोलॉजी ऑफ न्यू लेटर्स ऑन इंडियन लिटरेचर’ में उनकी अंग्रेजी
कविता छपी थी, जगदीश चतुर्वेदी की ‘हिन्दी पोएट्री टुडे’ में भी 1983 में आपकी
अंग्रेजी में कविता प्रकाशित हुई थी। अन्य सम्पादित प्रमुख पुस्तकों यथा
प्रेमजी प्रेम सम्पादित ‘विंधग्या ज्यो मोती’ का(1975), हरिवंश राय बच्चन सम्पादित
‘हिन्दी की प्रतिनिधि कविताएँ (1981), डॉ0 नारायण दत्त पालीवाल की ‘ज्योति कलश
(1980)में और डा0 कन्हैयालाल नंदन की ‘हिन्दी उत्सव’ 92007) में आपकी प्रतिभा
के दर्शन मिलते हैं। आप केंद्रीय साहित्य अकादमी के लिए राजस्थानी भाषा के व्याकरण
व अन्य राजस्थानी अनुवाद पर भी कार्य कर रहे थे। 2003 में सेवानिवृत्ति के बाद
उन्होंने अपने आपको पूरी तरह से साहित्य ओर समाज को समर्पित कर दिया था। 2008
में प्रकाशित जनवादी लेखक संघ कोटा के सृजन वर्ष में प्रकाशित हाड़ौती के जनवादी
कवियों की प्रतिनिधि रचनाकारों में भी आप शामिल थे। रक्षा सेवा में लेखा विभाग से
जुड़े होने के कारण भ्रष्टाचार में लिप्त देश में फैली विषमताओं पर चिंतित श्री
सेदवाल ने इस पुस्तक में अपनी वेदना को ‘एक बकरे की व्यथा’ में प्रस्तुत किया
है। यह कविता उनको समर्पित 'सान्निध्य दर्पण’ में आप पढ़ सकते है। जनवदी लेखक संघ
कोटा जिला व शहर इकाई के सभी सदस्यों की ओर से श्री सेदवाल को श्रद्धांजलि।
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