साज़ जबलपुरी को श्रद्धांजलि
उनकी पुस्तक 'किरचें' के उनके ही जज़्बातों से उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा हूँ-आकुल
(1)
अपनी हस्ती भी है कोई हस्ती
जी रहे हैं मगर जबरदस्ती
एक लम्हा न बढ़ सका तुझसे
ज़िन्दगी देखी तेरी तंग दस्ती
ज़िन्दगी दे के मौत पाई है
चीज़ महँगी थी मिल गई सस्ती
मौत ने ला दिया बुलंदी पर
वरना हस्ती की क्या रही हस्ती
(2)
चंदन दास जी के एलबम 'लाइफ स्टोरी वॉल्यूम 1, 'अरमान' और तमन्ना में शामिल उनकी 2 ग़ज़लों (गीतों) के बोल प्रस्तुत हैं-
(1)
तन्हा न अपने आपको अब पाइए जनाब।
मेरी ग़ज़ल को साथ लिए जाइए जनाब।
नग़्मों की बारिशों में कहीं भीगने चलें,
मौसम की आरज़ू को न ठुकराइये जनाब।
रिश्तों को भूल जाना तो आसान है मगर,
पहले ख़ुद अपने आपको समझाइये जनाब।
ऐसा न हो थमे हुए आँसू छलक पड़ें,
रुख़सत के वक़्त मुझको न समझाइये जनाब।
मैं 'साज़' हूँ ये याद रहे इसलिए कभी,
मेरे ही शेर मुझको सुना जाइये जनाब।
(2)
मैंने मुँह को कफ़न में छुपा जब लिया,
तब उन्हें मुझसे मिलने की फुरसत मिली।
हाले दिल पूछने जब वो घर से चले ,
रास्ते में उन्हें मेरी मैयत मिली।
वो जफ़ा करके भी क़ाबिले क़द्र है,
मुझको मेरी वफ़ा का सिला यह मिला।
जीते जी मैं तो रुसवा रहा उम्र भर,
बाद मरने के भी मुझको तोहमत मिली।
मेरी मैयत को दीवाने की लाश है ,
ऐसा कहकर शहर में घुमाया गया।
इस तरह उनको शोहरत ख़ुदा की क़सम,
मेरी रुसवाइयों की बदौलत मिली।
एक ही शाख पर 'साज़' दो ग़ुल खिले ,
चाल क़िस्मत की लेकिन ज़रा देखिये।
एक ग़ुल क़ब्र पर मेरी शर्मिन्दा है,
एक को उनकी ज़ुल्फ़ों में इज़्ज़त मिली।
पिछले दिनों साज़ नहीं रहे। मगर उनकी आवाज़ आज भी गूँज रही है। उनके साथ चंद घंटों का ही था, जब वे कोटा आए थे भारतेंदु समिति में आयोजित सम्मान समारोह में और एक छोटी सी काव्य गोष्ठी में उनसे रूबरू हुआ और वे छा गये। उन्होंने अपनी पुस्तक 'किरचें' भेंट की। जो आज एक धरोहर है उनकी मेरे पास। उनकी ग़जलों से 2 ग़ज़लें चंदनदास जी ने अपनी 3 एलबम रिलीज़ में शामिल किये हैं। ये हैं- तमन्ना (2011), अरमान (2008) और लाइफ स्टोरी (2008)। चंदनदासजी के इन तीनों एलबम में उनकी ग़ज़ल हैं। तमन्ना में उन्होंने मैंने मुँह को कफ़न में छुपा जब लिया गाया है। तन्हा न अपने आपको अब पाइये ज़नाब लिखी ग़ज़ल चंदनदासजी की 'अरमान' एलबम में है। तन्हा न अपना उनके अन्य एलबम लाइफ स्टोरी वोल्यूम-1 में भी है। आपकी अन्य पुस्तकें 'मिज़राब' (ग़ज़ल संग्रह), शर्म इनको मगर नहीं आती (लेख संग्रह) हैं। सम्पादित पुस्तकों में 'पीले वरक़ में रखे गुलाब' (समवेत काव्य संकलन), अभिव्यक्ति (समवेत काव्य संकलन) काफी चर्चित रहे हैं। उनके गीतों पर क्लिक कर उनके गीत सुने जा सकते हैं।
उनकी पुस्तक 'किरचें' के उनके ही जज़्बातों से उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा हूँ-आकुल
(1)
अपनी हस्ती भी है कोई हस्ती
जी रहे हैं मगर जबरदस्ती
एक लम्हा न बढ़ सका तुझसे
ज़िन्दगी देखी तेरी तंग दस्ती
ज़िन्दगी दे के मौत पाई है
चीज़ महँगी थी मिल गई सस्ती
मौत ने ला दिया बुलंदी पर
वरना हस्ती की क्या रही हस्ती
(2)
चंदन दास जी के एलबम 'लाइफ स्टोरी वॉल्यूम 1, 'अरमान' और तमन्ना में शामिल उनकी 2 ग़ज़लों (गीतों) के बोल प्रस्तुत हैं-
(1)
तन्हा न अपने आपको अब पाइए जनाब।
मेरी ग़ज़ल को साथ लिए जाइए जनाब।
नग़्मों की बारिशों में कहीं भीगने चलें,
मौसम की आरज़ू को न ठुकराइये जनाब।
रिश्तों को भूल जाना तो आसान है मगर,
पहले ख़ुद अपने आपको समझाइये जनाब।
ऐसा न हो थमे हुए आँसू छलक पड़ें,
रुख़सत के वक़्त मुझको न समझाइये जनाब।
मैं 'साज़' हूँ ये याद रहे इसलिए कभी,
मेरे ही शेर मुझको सुना जाइये जनाब।
(2)
मैंने मुँह को कफ़न में छुपा जब लिया,
तब उन्हें मुझसे मिलने की फुरसत मिली।
हाले दिल पूछने जब वो घर से चले ,
रास्ते में उन्हें मेरी मैयत मिली।
वो जफ़ा करके भी क़ाबिले क़द्र है,
मुझको मेरी वफ़ा का सिला यह मिला।
जीते जी मैं तो रुसवा रहा उम्र भर,
बाद मरने के भी मुझको तोहमत मिली।
मेरी मैयत को दीवाने की लाश है ,
ऐसा कहकर शहर में घुमाया गया।
इस तरह उनको शोहरत ख़ुदा की क़सम,
मेरी रुसवाइयों की बदौलत मिली।
एक ही शाख पर 'साज़' दो ग़ुल खिले ,
चाल क़िस्मत की लेकिन ज़रा देखिये।
एक ग़ुल क़ब्र पर मेरी शर्मिन्दा है,
एक को उनकी ज़ुल्फ़ों में इज़्ज़त मिली।
पिछले दिनों साज़ नहीं रहे। मगर उनकी आवाज़ आज भी गूँज रही है। उनके साथ चंद घंटों का ही था, जब वे कोटा आए थे भारतेंदु समिति में आयोजित सम्मान समारोह में और एक छोटी सी काव्य गोष्ठी में उनसे रूबरू हुआ और वे छा गये। उन्होंने अपनी पुस्तक 'किरचें' भेंट की। जो आज एक धरोहर है उनकी मेरे पास। उनकी ग़जलों से 2 ग़ज़लें चंदनदास जी ने अपनी 3 एलबम रिलीज़ में शामिल किये हैं। ये हैं- तमन्ना (2011), अरमान (2008) और लाइफ स्टोरी (2008)। चंदनदासजी के इन तीनों एलबम में उनकी ग़ज़ल हैं। तमन्ना में उन्होंने मैंने मुँह को कफ़न में छुपा जब लिया गाया है। तन्हा न अपने आपको अब पाइये ज़नाब लिखी ग़ज़ल चंदनदासजी की 'अरमान' एलबम में है। तन्हा न अपना उनके अन्य एलबम लाइफ स्टोरी वोल्यूम-1 में भी है। आपकी अन्य पुस्तकें 'मिज़राब' (ग़ज़ल संग्रह), शर्म इनको मगर नहीं आती (लेख संग्रह) हैं। सम्पादित पुस्तकों में 'पीले वरक़ में रखे गुलाब' (समवेत काव्य संकलन), अभिव्यक्ति (समवेत काव्य संकलन) काफी चर्चित रहे हैं। उनके गीतों पर क्लिक कर उनके गीत सुने जा सकते हैं।
मेरा सौभाग्य है, मैँ उनसे दो बार मिला- कोटा और उज्जैन मेँ. कोटा मेँ उन्होँने अपनी पुस्तक 'किरचेँ' मुझे बडे ही सम्मान और प्यार से भेँट की और उन्हेँ जब मैने अपनी किताब, ' सोच ले तू किधर जा रहा है' ( गज़ल सँग्रह) , तो उन्होँ ने मुझे अपने अँक मेँ भर लिया. बाद मेँ उज्जैन मेँ , 'क्या खूब गज़ल कहते हैँ आप डा. रघुनाथ मिश्र जी- मैने पूरी पढ ली है- प्रतिक्रिया अवश्य भेजूँगा आप को जल्दी ही." यह कह कर गले लगा लिया. यह बात दिसम्बर 2012 की है, जब विक्रम शिला हिन्दी विद्यापीठ के अधिवेशन मेँ हम दोनोँ को एक साथ सम्मानित किया गय था. अचानक फकेबूक मेँ पिछले दिनोँ उनके अचानक निधन के समाचार से एक म्बार युँ लगा, जैसी मेरी सांसे भी चली जायेँगी और बमुश्किल अपने आप को नियंत्रित कर पाया और दूरभास पर तुरंत यह दुखद समाचार 'आकुल' को दिया. पुनह उन्हेँ विनम्र श्रद्धांजलि. डा. रघुनाथ मिश्र्
जवाब देंहटाएं