लखनऊ: २६ एवं २७ नवंबर २०११ को अभिव्यक्ति विश्वम् (http://www.abhivyakti-hindi.org/) के सभाकक्ष में आयोजित नवगीत परिसंवाद एवं विमर्श का सफल आयोजन हुआ। इस अवसर पर १८ चर्चित नवगीतकारों सहित नगर के जाने-माने साहित्यकार, अतिथि, वेब तथा मीडिया से जुड़े लोग, संगीतकार व कलाकार उपस्थित थे।
पहले दिन की सुबह कार्यक्रम का शुभारंभ लखनऊ की बीएसएनल के जनरल मैनेजर श्री सुनील कुमार परिहार ने दीप प्रज्वलित कर किया। सरस्वती वंदना रश्मि चौधरी ने पंकज चौधरी की तबला संगत के साथ प्रस्तुत की। दो दिनों के इस कार्यक्रम में प्रतिदिन तीन-तीन सत्र हुए जिसमें अंतिम सत्र मनोरंजन, संगीत और कविता पाठ के रहे। नवगीतों पर आधारित पूर्णिमा वर्मन के फोटो कोलाज की प्रदर्शनी इस कार्यक्रम में आकर्षण का केन्द्र रही।
26 नवंबर का पहला सत्र समय से संवाद शीर्षक से था। इसमें विनय भदौरिया ने अपना शोधपत्र 'नवगीतों में राजनीति और व्यवस्था,' शैलेन्द्र शर्मा ने 'नवगीतों में महानगर,' रमाकांत ने नवगीतों में जनवाद, तथा निर्मल शुक्ल ने अपना शोधपत्र 'क्या नवगीत आज के समय से संवाद करने में सक्षम है 'पढ़ा। अंतिम वक्तव्य वरिष्ठ रचनाकार वीरेंद्र आस्तिक जी और माहेश्वर तिवारी जी ने दिया।
दूसरे सत्र का विषय था- 'नवगीत की पृष्ठभूमि कथ्य-तथ्य, आयाम और शक्ति।' इसमें अवनीश सिंह चौहान ने अपना शोध पत्र 'नवगीत कथ्य और तथ्य,' वीरेन्द्र आस्तिक ने 'नवगीत कितना सशक्त कितना अशक्त,' योगेन्द्र वर्मा ने 'नवगीत और युवा पीढ़ी' और माहेश्वर तिवारी ने 'नवगीत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि' पढ़ा। अंतिम वक्तव्य डॉ ओमप्रकाश सिंह का रहा।
सायं चाय के बाद तीसरे सत्र में आनंद सम्राट के निर्देशन में शोमू, आनंद दीपक और रुचिका ने सुगम संगीत का कार्यक्रम प्रस्तुत किया। यह संगीत कार्यक्रम नवगीतों पर आधारित था। संगीत सम्राट आनंद का था तथा गायक थे रुचिका श्रीवास्तव और दीपक। गिटार और माउथ आर्गन पर संगत शोमू सर ने की। कार्यक्रम में वरिष्ठ गीतकार माहेश्वर तिवारी , कुमार रवीन्द्र एवं पूर्णिमा वर्मन जी के नवगीतों को प्रस्तुत किया गया। इसके बाद पूर्णिमा वर्मन जी ने अपनी पावर पाइंट प्रस्तुति दी जिसका विषय था- हिंदी की इंटरनेट यात्रा अभिव्यक्ति और अनुभूति के साथ नवगीत की पाठशाला, नवगीत और पूर्वाभास तक।
दूसरे दिन का पहला सत्र 'नवगीत वास्तु शिल्प और प्रतिमान विषय पर आधारित था।' इसमें जय चक्रवर्ती ने 'नवगीत का शिल्प विधान,' शीलेन्द्र सिंह चौहान ने 'नवगीत के प्रमुख तत्व', आनंद कुमार गौरव ने 'गीत का प्रांजल रूप है नवगीत,' डॉ ओम प्रकाश सिंह ने 'समकालीन नवगीत के विविध आयाम 'तथा मधुकर अष्ठाना ने 'नवगीत और उसकी चुनौतियां' विषय पर अपना वक्तव्य पढ़ा। अंतिम वक्तव्य वरिष्ठ रचनाकार मधुकर अष्ठाना जी और निर्मल शुक्ल जी ने दिया।
दूसरे सत्र का शीर्षक था- नवगीत और लोक संस्कृति'। इसमें डॉ. जगदीश व्योम ने 'लोकगीतों की संवेदना से प्रेरित नवगीत', श्याम नारायण श्रीवास्तव ने 'नवगीतों में लोक की भाषा के प्रयोग' तथा सत्येन्द्र तिवारी ने 'नवगीत में भारतीय संस्कृति' विषय पर अपना शोधपत्र पढ़ा। दोनो दिनों के इन चारों सत्रों में प्रश्नोत्तर तथा निष्कर्ष भी प्रस्तुत किये गए।
दूसरे दिन के अंतिम सत्र में कविता पाठ का कार्यक्रम था जिसमें उपस्थित रचनाकारों ने भाग लिया। कविता पाठ करने वाले रचनाकारों में थे- संध्या सिंह, राजेश शुक्ल, अवनीश सिंह चौहान, योगेन्द्र वर्मा व्योम, आनंद कुमार गौरव, विनय भदौरिया, रमाकान्त, जय चक्रवर्ती, सत्येन्द्र रघुवंशी, विजय कर्ण, डॉ. अमिता दुबे, शैलेन्द्र शर्मा, सत्येन्द्र तिवारी, श्याम श्रीवास्तव, शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान, डॉ. जगदीश व्योम, पूर्णिमा वर्मन, डॉ. ओम प्रकाश सिंह, मधुकर अष्ठाना, निर्मल शुक्ल, वीरेन्द्र आस्तिक और माहेश्वर तिवारी। इस कार्यक्रम की आयोजक रहीं यशश्वी संपादिका पूर्णिमा वर्मन और संयोजक रहे प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. जगदीश 'व्योम' और अवनीश सिंह चौहान। आभार अभिव्यक्ति पूर्णिमा वर्मन ने की। धन्यवाद ज्ञापन के बाद सभी रचनाकारों को स्मृतिचिह्न प्रदान किये गए।
कार्यक्रम की अन्य तस्वीरें यहाँ क्लिक कर देखी जा सकती हैं-
https://picasaweb.google.com/108497653410225446378/November302011#5680777598452368194
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