रविवार, 25 दिसंबर 2011
सोमवार, 12 दिसंबर 2011
अभिव्यक्ति-२०११: नवगीत परिसंवाद एवं विमर्श
लखनऊ: २६ एवं २७ नवंबर २०११ को अभिव्यक्ति विश्वम् (http://www.abhivyakti-hindi.org/) के सभाकक्ष में आयोजित नवगीत परिसंवाद एवं विमर्श का सफल आयोजन हुआ। इस अवसर पर १८ चर्चित नवगीतकारों सहित नगर के जाने-माने साहित्यकार, अतिथि, वेब तथा मीडिया से जुड़े लोग, संगीतकार व कलाकार उपस्थित थे।
पहले दिन की सुबह कार्यक्रम का शुभारंभ लखनऊ की बीएसएनल के जनरल मैनेजर श्री सुनील कुमार परिहार ने दीप प्रज्वलित कर किया। सरस्वती वंदना रश्मि चौधरी ने पंकज चौधरी की तबला संगत के साथ प्रस्तुत की। दो दिनों के इस कार्यक्रम में प्रतिदिन तीन-तीन सत्र हुए जिसमें अंतिम सत्र मनोरंजन, संगीत और कविता पाठ के रहे। नवगीतों पर आधारित पूर्णिमा वर्मन के फोटो कोलाज की प्रदर्शनी इस कार्यक्रम में आकर्षण का केन्द्र रही।
26 नवंबर का पहला सत्र समय से संवाद शीर्षक से था। इसमें विनय भदौरिया ने अपना शोधपत्र 'नवगीतों में राजनीति और व्यवस्था,' शैलेन्द्र शर्मा ने 'नवगीतों में महानगर,' रमाकांत ने नवगीतों में जनवाद, तथा निर्मल शुक्ल ने अपना शोधपत्र 'क्या नवगीत आज के समय से संवाद करने में सक्षम है 'पढ़ा। अंतिम वक्तव्य वरिष्ठ रचनाकार वीरेंद्र आस्तिक जी और माहेश्वर तिवारी जी ने दिया।
दूसरे सत्र का विषय था- 'नवगीत की पृष्ठभूमि कथ्य-तथ्य, आयाम और शक्ति।' इसमें अवनीश सिंह चौहान ने अपना शोध पत्र 'नवगीत कथ्य और तथ्य,' वीरेन्द्र आस्तिक ने 'नवगीत कितना सशक्त कितना अशक्त,' योगेन्द्र वर्मा ने 'नवगीत और युवा पीढ़ी' और माहेश्वर तिवारी ने 'नवगीत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि' पढ़ा। अंतिम वक्तव्य डॉ ओमप्रकाश सिंह का रहा।
सायं चाय के बाद तीसरे सत्र में आनंद सम्राट के निर्देशन में शोमू, आनंद दीपक और रुचिका ने सुगम संगीत का कार्यक्रम प्रस्तुत किया। यह संगीत कार्यक्रम नवगीतों पर आधारित था। संगीत सम्राट आनंद का था तथा गायक थे रुचिका श्रीवास्तव और दीपक। गिटार और माउथ आर्गन पर संगत शोमू सर ने की। कार्यक्रम में वरिष्ठ गीतकार माहेश्वर तिवारी , कुमार रवीन्द्र एवं पूर्णिमा वर्मन जी के नवगीतों को प्रस्तुत किया गया। इसके बाद पूर्णिमा वर्मन जी ने अपनी पावर पाइंट प्रस्तुति दी जिसका विषय था- हिंदी की इंटरनेट यात्रा अभिव्यक्ति और अनुभूति के साथ नवगीत की पाठशाला, नवगीत और पूर्वाभास तक।
दूसरे दिन का पहला सत्र 'नवगीत वास्तु शिल्प और प्रतिमान विषय पर आधारित था।' इसमें जय चक्रवर्ती ने 'नवगीत का शिल्प विधान,' शीलेन्द्र सिंह चौहान ने 'नवगीत के प्रमुख तत्व', आनंद कुमार गौरव ने 'गीत का प्रांजल रूप है नवगीत,' डॉ ओम प्रकाश सिंह ने 'समकालीन नवगीत के विविध आयाम 'तथा मधुकर अष्ठाना ने 'नवगीत और उसकी चुनौतियां' विषय पर अपना वक्तव्य पढ़ा। अंतिम वक्तव्य वरिष्ठ रचनाकार मधुकर अष्ठाना जी और निर्मल शुक्ल जी ने दिया।
दूसरे सत्र का शीर्षक था- नवगीत और लोक संस्कृति'। इसमें डॉ. जगदीश व्योम ने 'लोकगीतों की संवेदना से प्रेरित नवगीत', श्याम नारायण श्रीवास्तव ने 'नवगीतों में लोक की भाषा के प्रयोग' तथा सत्येन्द्र तिवारी ने 'नवगीत में भारतीय संस्कृति' विषय पर अपना शोधपत्र पढ़ा। दोनो दिनों के इन चारों सत्रों में प्रश्नोत्तर तथा निष्कर्ष भी प्रस्तुत किये गए।
दूसरे दिन के अंतिम सत्र में कविता पाठ का कार्यक्रम था जिसमें उपस्थित रचनाकारों ने भाग लिया। कविता पाठ करने वाले रचनाकारों में थे- संध्या सिंह, राजेश शुक्ल, अवनीश सिंह चौहान, योगेन्द्र वर्मा व्योम, आनंद कुमार गौरव, विनय भदौरिया, रमाकान्त, जय चक्रवर्ती, सत्येन्द्र रघुवंशी, विजय कर्ण, डॉ. अमिता दुबे, शैलेन्द्र शर्मा, सत्येन्द्र तिवारी, श्याम श्रीवास्तव, शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान, डॉ. जगदीश व्योम, पूर्णिमा वर्मन, डॉ. ओम प्रकाश सिंह, मधुकर अष्ठाना, निर्मल शुक्ल, वीरेन्द्र आस्तिक और माहेश्वर तिवारी। इस कार्यक्रम की आयोजक रहीं यशश्वी संपादिका पूर्णिमा वर्मन और संयोजक रहे प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. जगदीश 'व्योम' और अवनीश सिंह चौहान। आभार अभिव्यक्ति पूर्णिमा वर्मन ने की। धन्यवाद ज्ञापन के बाद सभी रचनाकारों को स्मृतिचिह्न प्रदान किये गए।
कार्यक्रम की अन्य तस्वीरें यहाँ क्लिक कर देखी जा सकती हैं-
https://picasaweb.google.com/108497653410225446378/November302011#5680777598452368194
पहले दिन की सुबह कार्यक्रम का शुभारंभ लखनऊ की बीएसएनल के जनरल मैनेजर श्री सुनील कुमार परिहार ने दीप प्रज्वलित कर किया। सरस्वती वंदना रश्मि चौधरी ने पंकज चौधरी की तबला संगत के साथ प्रस्तुत की। दो दिनों के इस कार्यक्रम में प्रतिदिन तीन-तीन सत्र हुए जिसमें अंतिम सत्र मनोरंजन, संगीत और कविता पाठ के रहे। नवगीतों पर आधारित पूर्णिमा वर्मन के फोटो कोलाज की प्रदर्शनी इस कार्यक्रम में आकर्षण का केन्द्र रही।
26 नवंबर का पहला सत्र समय से संवाद शीर्षक से था। इसमें विनय भदौरिया ने अपना शोधपत्र 'नवगीतों में राजनीति और व्यवस्था,' शैलेन्द्र शर्मा ने 'नवगीतों में महानगर,' रमाकांत ने नवगीतों में जनवाद, तथा निर्मल शुक्ल ने अपना शोधपत्र 'क्या नवगीत आज के समय से संवाद करने में सक्षम है 'पढ़ा। अंतिम वक्तव्य वरिष्ठ रचनाकार वीरेंद्र आस्तिक जी और माहेश्वर तिवारी जी ने दिया।
दूसरे सत्र का विषय था- 'नवगीत की पृष्ठभूमि कथ्य-तथ्य, आयाम और शक्ति।' इसमें अवनीश सिंह चौहान ने अपना शोध पत्र 'नवगीत कथ्य और तथ्य,' वीरेन्द्र आस्तिक ने 'नवगीत कितना सशक्त कितना अशक्त,' योगेन्द्र वर्मा ने 'नवगीत और युवा पीढ़ी' और माहेश्वर तिवारी ने 'नवगीत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि' पढ़ा। अंतिम वक्तव्य डॉ ओमप्रकाश सिंह का रहा।
सायं चाय के बाद तीसरे सत्र में आनंद सम्राट के निर्देशन में शोमू, आनंद दीपक और रुचिका ने सुगम संगीत का कार्यक्रम प्रस्तुत किया। यह संगीत कार्यक्रम नवगीतों पर आधारित था। संगीत सम्राट आनंद का था तथा गायक थे रुचिका श्रीवास्तव और दीपक। गिटार और माउथ आर्गन पर संगत शोमू सर ने की। कार्यक्रम में वरिष्ठ गीतकार माहेश्वर तिवारी , कुमार रवीन्द्र एवं पूर्णिमा वर्मन जी के नवगीतों को प्रस्तुत किया गया। इसके बाद पूर्णिमा वर्मन जी ने अपनी पावर पाइंट प्रस्तुति दी जिसका विषय था- हिंदी की इंटरनेट यात्रा अभिव्यक्ति और अनुभूति के साथ नवगीत की पाठशाला, नवगीत और पूर्वाभास तक।
दूसरे दिन का पहला सत्र 'नवगीत वास्तु शिल्प और प्रतिमान विषय पर आधारित था।' इसमें जय चक्रवर्ती ने 'नवगीत का शिल्प विधान,' शीलेन्द्र सिंह चौहान ने 'नवगीत के प्रमुख तत्व', आनंद कुमार गौरव ने 'गीत का प्रांजल रूप है नवगीत,' डॉ ओम प्रकाश सिंह ने 'समकालीन नवगीत के विविध आयाम 'तथा मधुकर अष्ठाना ने 'नवगीत और उसकी चुनौतियां' विषय पर अपना वक्तव्य पढ़ा। अंतिम वक्तव्य वरिष्ठ रचनाकार मधुकर अष्ठाना जी और निर्मल शुक्ल जी ने दिया।
दूसरे सत्र का शीर्षक था- नवगीत और लोक संस्कृति'। इसमें डॉ. जगदीश व्योम ने 'लोकगीतों की संवेदना से प्रेरित नवगीत', श्याम नारायण श्रीवास्तव ने 'नवगीतों में लोक की भाषा के प्रयोग' तथा सत्येन्द्र तिवारी ने 'नवगीत में भारतीय संस्कृति' विषय पर अपना शोधपत्र पढ़ा। दोनो दिनों के इन चारों सत्रों में प्रश्नोत्तर तथा निष्कर्ष भी प्रस्तुत किये गए।
दूसरे दिन के अंतिम सत्र में कविता पाठ का कार्यक्रम था जिसमें उपस्थित रचनाकारों ने भाग लिया। कविता पाठ करने वाले रचनाकारों में थे- संध्या सिंह, राजेश शुक्ल, अवनीश सिंह चौहान, योगेन्द्र वर्मा व्योम, आनंद कुमार गौरव, विनय भदौरिया, रमाकान्त, जय चक्रवर्ती, सत्येन्द्र रघुवंशी, विजय कर्ण, डॉ. अमिता दुबे, शैलेन्द्र शर्मा, सत्येन्द्र तिवारी, श्याम श्रीवास्तव, शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान, डॉ. जगदीश व्योम, पूर्णिमा वर्मन, डॉ. ओम प्रकाश सिंह, मधुकर अष्ठाना, निर्मल शुक्ल, वीरेन्द्र आस्तिक और माहेश्वर तिवारी। इस कार्यक्रम की आयोजक रहीं यशश्वी संपादिका पूर्णिमा वर्मन और संयोजक रहे प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. जगदीश 'व्योम' और अवनीश सिंह चौहान। आभार अभिव्यक्ति पूर्णिमा वर्मन ने की। धन्यवाद ज्ञापन के बाद सभी रचनाकारों को स्मृतिचिह्न प्रदान किये गए।
कार्यक्रम की अन्य तस्वीरें यहाँ क्लिक कर देखी जा सकती हैं-
https://picasaweb.google.com/108497653410225446378/November302011#5680777598452368194
रविवार, 4 दिसंबर 2011
साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी, परियावाँ में जनकवि ‘आकुल’ और रघुनाथ मिश्र सम्मानित
कोटा। 30 अक्टूबर को महाभारत के शिखर शांतनु, मृत्युंजय भीष्म और मत्स्यगंधा की जन्मभूमि परियावाँ में जो उत्तरप्रदेश के प्रातापगढ़ जिले से 60 किमी0 और प्रख्यात संत कृपालुजी महाराज की जन्मभूमि मनगढ़ के समीप ही ग्रामीण अंचल की मनोहारी भरतभूमि परियावाँ में एक महान् वटवृक्ष के नीचे सादे समारोह में महामना मदनमोहन मालवीय पोषित साहित्यिक संस्थान ‘साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी’द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में लगभग 80 साहित्यकारों को सम्मानित किया गया। इस समारोह में अन्य संस्थानों यथा तारिका विचार मंच इलाहाबाद और भारतीय वांग्मय पीठ कोलकाता द्वारा भी साहित्यकारों को सम्मानित किया गया। अकादमी के सचिव श्री वृन्दायवन त्रिपाठी रत्नेश यह जिम्मेदारी 1980 से सम्हाल रहे हैं और प्रतिवर्ष यह समारोह आयोजित हो रहा है, जिसमें अभी तक 500 से भी अधिक साहित्यकारों को सम्मानित किया जा चुका है। 16 प्रान्तों से पधारे साहित्यकार भारत की भाषाई एकता को एक सूत्र में पिरो कर सभी भेदभावों को भुला कर एक मंच के नीचे इकट्ठा हुए। इस वर्ष भी परियावाँ में सभी पधारे साहित्यकारों, कवियों, कलाकारों को सम्मानित किया गया। अकादमी की ओर से यह समारोह 30वें भाषाई एकता सम्मेलन के रूप में आयोजित किया गया।
प्रथम सत्र में माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन के पश्चात् भाषाई एकता पर व्याख्यांन माला का शुभारम्भ किया गया। समारोह की अध्यक्षता भारतीय वांगमय पीठ कोलकाता के सचिव श्री श्यामलाल उपाध्याय थे और कार्यक्रम का संचालन प्रख्यात साहित्यकार बज-बज, कोलकाता से पधारे डॉ0 कुँवर वीर सिह मार्तण्ड थे। कार्यक्रम में कोलकाता के सत्यनारायण सिंह आलोक, इम्फाल से श्री हुइरोम गुणीन्द्र सिंह लैकाई, विजय कुमार शर्मा, मेरठ, इगलास के गाफिल स्वामी, कोटा के श्री रघुनाथ मिश्र, संचालक श्री मार्तण्ड, अध्यक्ष श्री उपाध्याय और कई विद्वानों ने भाषाई एकता पर अपने विचार प्रकट किये। सभी ने एक मत हो कर कहा कि संविधान की अनुसूचियों की भाषाओं को, राजभाषा हिन्दी को राष्ट्रमभाषा के रूप में पहचान बनाने के लिए पहल करनी होगी। आज हिन्दी विश्व के अनेकों विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जा रही है, क्योंकि व्यावसायिक दृष्टि से भारतीय बाजार में पैठ बनाने के लिए भारतीयों को अपना जुड़ाव पैदा करने के लिए हिन्दी का समृद्ध होना अति आवश्ययक है। दूसरे सत्र में विभिन्ऩ सम्मानों को प्रदान किया गया। समारोह में हिन्दी सेवा सम्मान, विवेकानन्दज सम्मान, विद्या वाचस्पति मानद उपाधि, विद्या वारिधि मानद उपाधि, कला मार्तण्ड, हिन्दी गरिमा सम्मान,कबीर सम्मान आदि प्रदान किये गये। राजस्थान से कोटा के जनकवि आकुल को विवेकानन्द सम्मान, श्री मिश्र को विद्या वाचस्पति की मानद उपाधि, रावतसर के श्री मुखराम माकड़ को सुश्री सरस्वती सिंह सुमन स्मृति सम्मान, रावतभाटा से, भवानी मण्डी से राजेश कुमार शर्मा पुरोहित को विद्या वारिधि मानद उपाधि और अलवर के श्री सुमित कुमार जैन को साहित्य महोपाध्याय मानद उपाधि से सम्मानित किया गया। अन्य विभूतियों में कोलकाता के श्री श्यामलाल उपाध्याय को साहित्य महोपाध्याय, श्री अशोक पाण्डेय गुलशन को पं0 जगदीश नारायण त्रिपाठी स्मृति सम्मान, सत्यनारायण सिंह आलोक, फ़ख़्रे आलम खाँ, मेरठ, सुश्री आशा मिश्रा, दतिया, मनोज कुमार वार्ष्णेय मेरठ आदि को विद्या वाचस्पति मानद उपाधि, बिजनौर के मनोज अबोध, गोरखपुर के अशोक कुमार निर्मल, अवधेश शुक्ल, सीतापुर, पूनम शर्मा, जबलपुर आदि को विद्या वारिधि की मानद उपाधि, सुरेश प्रकाश शुक्ल, लखनऊ, सुश्री सीमा गुप्ता, अलवर और पिथौरागढ़ की सुश्री शारदा विदुषी को विवेकानन्द सम्मान प्रदान किया गया। मनोज कुमार वार्ष्णेय, मेरठ को पत्रकार मार्तण्ड पुरस्कार भी प्रदान किया गया।
अकादमी के इस सम्मान समारोह की सहयोगी संस्थाओं तारिका विचार मंच, इलाहाबाद और भारतीय वांगमय पीठ, कोलकाता ने अनेकों साहित्यकारों को सम्मानित किया। वांग्मय पीठ कोलकाता द्वारा अन्य साहित्यकारों के साथ आकुल व श्री रघुनाथ मिश्र को भी कवि गुरु रवीन्द्र नाथ ठाकुर सारस्वत साहित्य सम्मान प्रदान किया गया। तारिका विचार मंच ने श्री मिश्र को पं0 रामकुमार वर्मा सम्मान से सम्मानित किया। दूसरे दिन श्री मार्तण्ड, श्रीमिश्र, आकुल, श्री आलोक और श्री अकेला ने मनगढ़ स्थि्त जगद्गुरु कृपालुजी महाराज के आश्रम जाकर प्रख्यात राधाकृष्ण मंदिर देखा और कृपालुजी महाराज के दर्शन किये, उनके जीवन दर्शन की चित्रमय झांकी देखी और उनका योग आश्रम देखा।
प्रथम सत्र में माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन के पश्चात् भाषाई एकता पर व्याख्यांन माला का शुभारम्भ किया गया। समारोह की अध्यक्षता भारतीय वांगमय पीठ कोलकाता के सचिव श्री श्यामलाल उपाध्याय थे और कार्यक्रम का संचालन प्रख्यात साहित्यकार बज-बज, कोलकाता से पधारे डॉ0 कुँवर वीर सिह मार्तण्ड थे। कार्यक्रम में कोलकाता के सत्यनारायण सिंह आलोक, इम्फाल से श्री हुइरोम गुणीन्द्र सिंह लैकाई, विजय कुमार शर्मा, मेरठ, इगलास के गाफिल स्वामी, कोटा के श्री रघुनाथ मिश्र, संचालक श्री मार्तण्ड, अध्यक्ष श्री उपाध्याय और कई विद्वानों ने भाषाई एकता पर अपने विचार प्रकट किये। सभी ने एक मत हो कर कहा कि संविधान की अनुसूचियों की भाषाओं को, राजभाषा हिन्दी को राष्ट्रमभाषा के रूप में पहचान बनाने के लिए पहल करनी होगी। आज हिन्दी विश्व के अनेकों विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जा रही है, क्योंकि व्यावसायिक दृष्टि से भारतीय बाजार में पैठ बनाने के लिए भारतीयों को अपना जुड़ाव पैदा करने के लिए हिन्दी का समृद्ध होना अति आवश्ययक है। दूसरे सत्र में विभिन्ऩ सम्मानों को प्रदान किया गया। समारोह में हिन्दी सेवा सम्मान, विवेकानन्दज सम्मान, विद्या वाचस्पति मानद उपाधि, विद्या वारिधि मानद उपाधि, कला मार्तण्ड, हिन्दी गरिमा सम्मान,कबीर सम्मान आदि प्रदान किये गये। राजस्थान से कोटा के जनकवि आकुल को विवेकानन्द सम्मान, श्री मिश्र को विद्या वाचस्पति की मानद उपाधि, रावतसर के श्री मुखराम माकड़ को सुश्री सरस्वती सिंह सुमन स्मृति सम्मान, रावतभाटा से, भवानी मण्डी से राजेश कुमार शर्मा पुरोहित को विद्या वारिधि मानद उपाधि और अलवर के श्री सुमित कुमार जैन को साहित्य महोपाध्याय मानद उपाधि से सम्मानित किया गया। अन्य विभूतियों में कोलकाता के श्री श्यामलाल उपाध्याय को साहित्य महोपाध्याय, श्री अशोक पाण्डेय गुलशन को पं0 जगदीश नारायण त्रिपाठी स्मृति सम्मान, सत्यनारायण सिंह आलोक, फ़ख़्रे आलम खाँ, मेरठ, सुश्री आशा मिश्रा, दतिया, मनोज कुमार वार्ष्णेय मेरठ आदि को विद्या वाचस्पति मानद उपाधि, बिजनौर के मनोज अबोध, गोरखपुर के अशोक कुमार निर्मल, अवधेश शुक्ल, सीतापुर, पूनम शर्मा, जबलपुर आदि को विद्या वारिधि की मानद उपाधि, सुरेश प्रकाश शुक्ल, लखनऊ, सुश्री सीमा गुप्ता, अलवर और पिथौरागढ़ की सुश्री शारदा विदुषी को विवेकानन्द सम्मान प्रदान किया गया। मनोज कुमार वार्ष्णेय, मेरठ को पत्रकार मार्तण्ड पुरस्कार भी प्रदान किया गया।
अकादमी के इस सम्मान समारोह की सहयोगी संस्थाओं तारिका विचार मंच, इलाहाबाद और भारतीय वांगमय पीठ, कोलकाता ने अनेकों साहित्यकारों को सम्मानित किया। वांग्मय पीठ कोलकाता द्वारा अन्य साहित्यकारों के साथ आकुल व श्री रघुनाथ मिश्र को भी कवि गुरु रवीन्द्र नाथ ठाकुर सारस्वत साहित्य सम्मान प्रदान किया गया। तारिका विचार मंच ने श्री मिश्र को पं0 रामकुमार वर्मा सम्मान से सम्मानित किया। दूसरे दिन श्री मार्तण्ड, श्रीमिश्र, आकुल, श्री आलोक और श्री अकेला ने मनगढ़ स्थि्त जगद्गुरु कृपालुजी महाराज के आश्रम जाकर प्रख्यात राधाकृष्ण मंदिर देखा और कृपालुजी महाराज के दर्शन किये, उनके जीवन दर्शन की चित्रमय झांकी देखी और उनका योग आश्रम देखा।
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