बेटा सेना में है, इसलिए छ: महीनों
में 20 दिन की छुट्टी मिलती है, तो खुशियों की जैसे बहार आ जाती थी. बहुत दिनों
में मिलने पर मन करता था, चाहा अनचाहा सब मान लिया जाए और जितने भी दिन सामीप्य
के हैं आनंद से बितायें. इससे भी कहीं ज्यादा आजकल उसके आने पर बस उसकी हर बात
मानना उसकी चाहत पूरी करना और हँसी खुशी से वो सब करते या यूँ कहिए उससे भी ज्यादा
करते, जो वह चाहता. अवर्णनीय खुशी अनुभव होती थी. आज दूर रहते हुए भी उसका अपनापन,
आये दिनों फोन पर सोशियल डिस्टेंसिंग की बातें बताना, रहन सहन के तौर तरीके
बताना, क्या करना है क्या नहीं करना है, क्या खाना है क्या नहीं, बाहर तो बिल्कुल
भी नहीं निकलना है वगैरह वगैरह.. इतनी सीख देता है, जैसे हमारा कोई बुजुर्ग
हो उसका फ़र्ज़ जो है...वह डॉक्टर है सेना में.
मेजर पीयूष |
चार साल पूरे होने पर उसकी केप्टेन
से मेजर रैंक पर पदोन्नति हुई. खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह महसूस ही नहीं होने
देता कि हम दूर हैं...वह छोटी छोटी बातें बता कर हमें खुश करता रहता है. उसके मेजर
बनने की खुशी को अपने स्टाफ व बॉस के साथ किस तरह पार्टी कर के कैसे बाँटी...व्हाट्सऐप
पर कंधे पर स्टार्स हटा कर अशोक चिह्न लगाने के वे सजीव चित्र देख कर खुशी से
आँसू बहने लग गये थे हमारे, जैसे पहली बार उसका सेना में चयन होने पर गर्व हुआ था.
हम खुशी से फूले नहीं समा रहे थे. फोन पर वीडियो
कॉल्स के माध्यम से ‘पापा-मम्मी’ अगर छुट्टी ले कर आ भी गया तो कुछ दिन क्वारेंटाइन
में रहना होगा...कहीं आ जा भी नहीं सकेंगे. इस बार नहीं आ रहा हूँ....दिसम्बर तक
आऊँगा...इसी बीच मेरी पी.जी. की तैयारी पूरी है...और पढ़ाई कर रहा हूँ... अक्टूबर
नवम्बर में शायद फॉर्म भरे जायेंगे..ऑनलाइन..फिर जनवरी में परीक्षा है... चयन तो
होना ही है...जहाँ भी एडमीशन होगा... वहीं दो साल रहना है इसलिए साथ में रहेंगे...
आप सब को बुलवा लूँगा...तब तक कोरोना का कोई न कोई समाधान निकल ही जाएगा...”
दूर
लंदन में बेटी है...वहाँ भी कोरोना के कारण कमोबेश स्थिति भारत जैसी ही है... सब
घरों में कैद हैं....जो बाहर घूमते फिरते हैं ख़तरा साथ में ले कर घूमते हैं....
पर बेटी अपने दो बच्चों पति सास और ससुर के साथ पूरी गंभीरता से घर में रह कर ही
समय व्यतीत कर रहे हैं. बच्चे कई तरह के खेल, पज़ल्स, किताबें, मोबाइल गेम्स,
टीवी में किड्स चैनल पर उलझे रहते हैं. सब घर में रहते हैं तो काम थोड़ा बढ़ गया
है पर अच्छा लगता है... कोरोना ने धैर्य से धीरे धीरे काम पूरा करना सिखा दिया
है. कोरोना काल में एक दूसरे की मदद कर खुशी बाँटते हैं.
यह सुन कर, वीडियो कॉल्स पर देख कर
संतोष अनुभव करते हैं कि चलो हमारे बच्चे खुश हैं और क्या चाहिए हमें, हम खुश
हैं.
और जब हम दोनों एक दूसरे को देखते
हैं, तो लगता है हमने भी तो बहुत सी आदतें बदल ली हैं. डबल बैड पर सोया करते थे, अब उसे दो हिस्सों
में बाँट लिया है आमने सामने दो कोनों पर दूरी बना कर सोते हैं. मैं ऊपर की मंजिल
पर जा कर नहाता हूँ..श्रीमतीजी नीचे नहाती हैं और कपड़े आदि धोती हैं. अपने अपने अंतर्वस्त्र
हम स्वयं ही नहाते समय धोते हैं. बाथरूम को भी फिनैल, डेटॉल, लिज़ोल, हार्पिक से
नियमित धोते हैं. सुबह जल्दी उठते हैं ताकि सरकारी गाड़ी हमारे सामने ही
सेनिटाइजे़शन के लिए हमारे सामने ही आए. वे दरवाजों आदि को तो रोज छिड़काव करती है
साथ ही दरवाजे के अंदर खड़ी हमारी कार को भी सेनिटाइज्ड कर जाते हैं. घर में
नौकरानी अब नहीं आती इसलिए बारी बारी से रोज घर के फर्श आदि की सफाई करते हैं.
वैसे तो श्रीमती जी ही करती हैं पर रसोई में मैं भी बर्तनों को कभी सिंक में पड़ा
नहीं रहने देता. श्रीमतीजी रसोई में काम करती हैं तो उनके पास खड़ा खड़ा उन्हें
डिश बनाते देखता रहना अच्छा लगता है. उसका रोज पूछना कि आज क्या बनाना है...
पहले से ज्यादा अच्छा लगता है. कॉलोनी में आने वाले सब्जी के ठेलों से कम ही
सब्जी लेते हैं... श्रीमतीजी को लगभग 40 से 50 तरह के व्यंजन बनाना आता है...सब
का लॉकडाउन में भरपूर आनंद लिया.
हमारे घर में राजस्थानी, ब्रज,
दक्षिण और गुजराती संस्कृति का समावेश है इसलिए इन चारों संस्कृति के भोजन का
आनंद हमने पूरी तरह से उठाया. उत्तपम, इडली सँभार, ढोकले,खमण, पोहे, अरबी के पत्तों
से पत्तरबेलिया, आलू के परॉंठे, दूधी (घीया), मूँग, बेसन आदि का हलवा, दूध फटने
पर छैना (पनीर) के कई आइटम जैसे पनीर टिक्का,पनीर छोले की सब्जी के साथ भठूरे, चार-पाँच
तरह की दाल, रोज किसी न किसी तरह का भात, पुलाव, खीर, पूरी, लच्छा पराँठे, अंकुरित
अनाज (स्प्राउट), कई तरह के पेय, रोज नीबू पानी, दाल-बाटी, श्रीखंड, घर में जमाया
चकत्तेदार दही, छाछ, लस्सी, आम की बरुफी. आम के पापाड़, आम, मावा मिला कर संगम
बरफी, फ्रूट सलाद, ग्रीन सलाद के साथ साथ रोज मिल्क शेक, मैंगोशेक, मिक्स
फ्रूटशेक, आदि न जाने क्या क्या.
लॉकडाउन में श्रीमतीजी द्वारा कढ़ाई कर बनाई गई साड़ियाँ |
श्रीमती जी को काढ़ने बुनने का शौक
है. वे घर की दिनचर्या से निबट कर उसमें उलझ जाती हैं. श्रीमती जी ने सैंकड़ों
मास्क बनाये. बाहर जाने पर चौराहों पर 10-10 मास्क पुलिस वालों को बॉंटने के लिए
दिये. घर के दरवाजे पर सुबह शाम बैठ कर आने जाने वाले बिना मास्क लगाये लोगों को
बाँटे, पड़ौस में भी लगभग दस से पंद्रह घरों में दिये. कॉलोनी में किराने की दुकान
पर रखवा दिये मुफ़्त बाँटने के लिए. लॉक डाउन में शानदार चार साडि़याँ तैयार
कीं. ट्रेस पेपर पर सुंदर डिज़ायन तैयार
कर छपाई की और फिर खूबसूरत कोम्बीनेशन के साथ साड़ियों पर कढ़ाई की. मेरे
ट्राउजर्स बनाये. अपने लिए मैचिंग वाले मास्क तैयार किये.
लॉकडाउन में रचित गुटका |
मैं कम्प्यूटर/मोबाइल पर साहित्यकार
होने के नाते अपने फेसबुक समूह ‘मुक्तक-लोक’, व्हाट्एैप, अपनी टाइमलाइन में उलझ
जाता हूँ. छंद साहित्य पर लिखता हूँ इसलिए रचना प्रवाह सतत बना रहा परिणाम स्वरूप
लॉक डाउन समय में कोरोना (कोविड-19) पर 46 रचनाओं का एक गुटका तैयार कर ऑन लाइन
सैंकड़ों जगह भेजा, समूहों में डाला, व्हाट्सऐप किया... और अनलॉक-1 में मुद्रित
करवा कर शहर में अनेक बुकस्टॉल्स, मॉल्स, आदि पर मुफ़्त बाँटने के लिए दिया.
अपने सभी मिलने वालों को जहाँ भी मिले दिया.
लॉकडाउन में हालाँकि सुरक्षा के साथ
साथ कुछ अनचाहे खर्चे भी बढ़े. जैसे ए.सी. व दिन भर ज्यादा लाइट जलने से बिजली का
बिल हर बार से अधिक आया. पेट्रोल के भाव बढ़ने से फ़्यूल का बिल भी थोड़ा बढ़ा.
आसानी से सप्लाई हुआ पर रसोई गैस का भी खर्चा थोड़ा बढ़ा. साबुन, डिटर्जेन्ट, क्लीनिंग
चीजों का खर्चा बढ़ा.
हॉं, सबसे ज्यादा फ़ायदा यह हुआ कि
प्राकृतिक वातावरण थोड़ा शुद्ध हुआ. सुबह छत पर घूमने की दिनचर्या बनी. घर में
कीड़े मकोड़े, चींटे-चींटी, मच्छर बिल्कुल खत्म हो गये. बरसाती कीड़े भी नहीं
दिखाई दिये. मेढ़क नहीं टर्राये. कॉलोनी में नित्य सफाई हुई. रोज कचरा गाड़ी ने
नियमित कचरा इकट्ठा किया. पेड़ पौधे मुसकुराये. हरियाली बढ़ी. ईंधन का प्रदूषण कम
हुआ.
सबसे
सुखद, घर में रहते हुए दूर रह कर भी हम दिल के ज्यादा समीप आये.
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