बुधवार, 15 जुलाई 2020

लॉकडाउन में घर में दूरी बना कर रहने का अलग ही आनंद मिला


          कहते हैं दूर रहने से आकर्षण बढ़ता है. यह सिद्ध किया लॉकडाउन ने. पत्‍नी जब 10-15 दिन में पीहर से लौटती थी तो स्‍वर्गीय आनंद मिलता था. घर में दूरी बना कर रहने का अलग ही आनंद अनुभव हुआ लॉकडाउन में. लॉकडाउन से अनलॉक तक दूर रहने के कितने ही आनंदों का पहली बार अनुभव किया.

बेटा सेना में है, इसलिए छ: महीनों में 20 दिन की छुट्टी मिलती है, तो खुशियों की जैसे बहार आ जाती थी. बहुत दिनों में मिलने पर मन करता था, चाहा अनचाहा सब मान लिया जाए और जितने भी दिन सामीप्‍य के हैं आनंद से बितायें. इससे भी कहीं ज्‍यादा आजकल उसके आने पर बस उसकी हर बात मानना उसकी चाहत पूरी करना और हँसी खुशी से वो सब करते या यूँ कहिए उससे भी ज्‍यादा करते, जो वह चाहता. अवर्णनीय खुशी अनुभव होती थी. आज दूर रहते हुए भी उसका अपनापन, आये दिनों फोन पर सोशियल डिस्‍टेंसिंग की बातें बताना, रहन सहन के तौर तरीके बताना, क्‍या करना है क्‍या नहीं करना है, क्‍या खाना है क्‍या नहीं, बाहर तो बिल्‍कुल भी नहीं निकलना है वगैरह वगैरह.. इतनी सीख देता है, जैसे हमारा कोई बुजुर्ग हो उसका फ़र्ज़ जो है...वह डॉक्‍टर है सेना में.

मेजर पीयूष
चार साल पूरे होने पर उसकी केप्‍टेन से मेजर रैंक पर पदोन्‍नति हुई. खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह महसूस ही नहीं होने देता कि हम दूर हैं...वह छोटी छोटी बातें बता कर हमें खुश करता रहता है. उसके मेजर बनने की खुशी को अपने स्‍टाफ व बॉस के साथ किस तरह पार्टी कर के कैसे बाँटी...व्‍हाट्सऐप पर कंधे पर स्‍टार्स हटा कर अशोक चिह्न लगाने के वे सजीव चित्र देख कर खुशी से आँसू बहने लग गये थे हमारे, जैसे पहली बार उसका सेना में चयन होने पर गर्व हुआ था. हम खुशी से फूले नहीं समा रहे थे. फोन पर    े पर गर्व के साथ खुशी मिली वीडियो कॉल्‍स के माध्‍यम से ‘पापा-मम्‍मी’ अगर छुट्टी ले कर आ भी गया तो कुछ दिन क्‍वारेंटाइन में रहना होगा...कहीं आ जा भी नहीं सकेंगे. इस बार नहीं आ रहा हूँ....दिसम्‍बर तक आऊँगा...इसी बीच मेरी पी.जी. की तैयारी पूरी है...और पढ़ाई कर रहा हूँ... अक्‍टूबर नवम्‍बर में शायद फॉर्म भरे जायेंगे..ऑनलाइन..फिर जनवरी में परीक्षा है... चयन तो होना ही है...जहाँ भी एडमीशन होगा... वहीं दो साल रहना है इसलिए साथ में रहेंगे... आप सब को बुलवा लूँगा...तब तक कोरोना का कोई न कोई समाधान निकल ही जाएगा...

दूर लंदन में बेटी है...वहाँ भी कोरोना के कारण कमोबेश स्थिति भारत जैसी ही है... सब घरों में कैद हैं....जो बाहर घूमते फि‍रते हैं ख़तरा साथ में ले कर घूमते हैं.... पर बेटी अपने दो बच्‍चों पति सास और ससुर के साथ पूरी गंभीरता से घर में रह कर ही समय व्‍यतीत कर रहे हैं. बच्‍चे कई तरह के खेल, पज़ल्‍स, किताबें, मोबाइल गेम्‍स, टीवी में किड्स चैनल पर उलझे रहते हैं. सब घर में रहते हैं तो काम थोड़ा बढ़ गया है पर अच्‍छा लगता है... कोरोना ने धैर्य से धीरे धीरे काम पूरा करना सिखा दिया है. कोरोना काल में एक दूसरे की मदद कर खुशी बाँटते हैं.  
यह सुन कर, वीडियो कॉल्‍स पर देख कर संतोष अनुभव करते हैं कि चलो हमारे बच्‍चे खुश हैं और क्‍या चाहिए हमें, हम खुश हैं.

और जब हम दोनों एक दूसरे को देखते हैं, तो लगता है हमने भी तो बहुत सी आदतें बदल ली हैं.  डबल बैड पर सोया करते थे, अब उसे दो हिस्‍सों में बाँट लिया है आमने सामने दो कोनों पर दूरी बना कर सोते हैं. मैं ऊपर की मंजिल पर जा कर नहाता हूँ..श्रीमतीजी नीचे नहाती हैं और कपड़े आदि धोती हैं. अपने अपने अंतर्वस्‍त्र हम स्‍वयं ही नहाते समय धोते हैं. बाथरूम को भी फि‍नैल, डेटॉल, लिज़ोल, हार्पिक से नियमित धोते हैं. सुबह जल्‍दी उठते हैं ताकि सरकारी गाड़ी हमारे सामने ही सेनिटाइजे़शन के लिए हमारे सामने ही आए. वे दरवाजों आदि को तो रोज छिड़काव करती है साथ ही दरवाजे के अंदर खड़ी हमारी कार को भी सेनिटाइज्‍ड कर जाते हैं. घर में नौकरानी अब नहीं आती इसलिए बारी बारी से रोज घर के फर्श आदि की सफाई करते हैं. वैसे तो श्रीमती जी ही करती हैं पर रसोई में मैं भी बर्तनों को कभी सिंक में पड़ा नहीं रहने देता. श्रीमतीजी रसोई में काम करती हैं तो उनके पास खड़ा खड़ा उन्‍हें डिश बनाते देखता रहना अच्‍छा लगता है. उसका रोज पूछना कि आज क्‍या बनाना है... पहले से ज्‍यादा अच्‍छा लगता है. कॉलोनी में आने वाले सब्‍जी के ठेलों से कम ही सब्‍जी लेते हैं... श्रीमतीजी को लगभग 40 से 50 तरह के व्‍यंजन बनाना आता है...सब का लॉकडाउन में भरपूर आनंद लिया.

हमारे घर में राजस्‍थानी, ब्रज, दक्षिण और गुजराती संस्‍कृति का समावेश है इसलिए इन चारों संस्‍कृति के भोजन का आनंद हमने पूरी तरह से उठाया. उत्‍तपम, इडली सँभार, ढोकले,खमण, पोहे, अरबी के पत्‍तों से पत्‍तरबेलिया, आलू के परॉंठे, दूधी (घीया), मूँग, बेसन आदि का हलवा, दूध फटने पर छैना (पनीर) के कई आइटम जैसे पनीर टिक्‍का,पनीर छोले की सब्‍जी के साथ भठूरे, चार-पाँच तरह की दाल, रोज किसी न किसी तरह का भात, पुलाव, खीर, पूरी, लच्‍छा पराँठे, अंकुरित अनाज (स्‍प्राउट), कई तरह के पेय, रोज नीबू पानी, दाल-बाटी, श्रीखंड, घर में जमाया चकत्‍तेदार दही, छाछ, लस्‍सी, आम की बरुफी. आम के पापाड़, आम, मावा मिला कर संगम बरफी, फ्रूट सलाद, ग्रीन सलाद के साथ साथ रोज मिल्‍क शेक, मैंगोशेक, मिक्‍स फ्रूटशेक, आदि न जाने क्‍या क्‍या.  

लॉकडाउन में श्रीमतीजी द्वारा कढ़ाई कर बनाई गई साड़ि‍याँ
श्रीमती जी को काढ़ने बुनने का शौक है. वे घर की दिनचर्या से निबट कर उसमें उलझ जाती हैं. श्रीमती जी ने सैंकड़ों मास्‍क बनाये. बाहर जाने पर चौराहों पर 10-10 मास्‍क पुलिस वालों को बॉंटने के लिए दिये. घर के दरवाजे पर सुबह शाम बैठ कर आने जाने वाले बिना मास्‍क लगाये लोगों को बाँटे, पड़ौस में भी लगभग दस से पंद्रह घरों में दिये. कॉलोनी में किराने की दुकान पर रखवा दिये मुफ़्त बाँटने के लिए. लॉक डाउन में शानदार चार साडि़याँ तैयार कीं.  ट्रेस पेपर पर सुंदर डिज़ायन तैयार कर छपाई की और फि‍र खूबसूरत कोम्‍बीनेशन के साथ साड़ि‍यों पर कढ़ाई की. मेरे ट्राउजर्स बनाये. अपने लिए मैचिंग वाले मास्‍क तैयार किये.


लॉकडाउन में रचित गुटका
मैं कम्‍प्‍यूटर/मोबाइल पर साहित्‍यकार होने के नाते अपने फेसबुक समूह ‘मुक्‍तक-लोक’, व्‍हाट्एैप, अपनी टाइमलाइन में उलझ जाता हूँ. छंद साहित्‍य पर लिखता हूँ इसलिए रचना प्रवाह सतत बना रहा परिणाम स्‍वरूप लॉक डाउन समय में कोरोना (कोविड-19) पर 46 रचनाओं का एक गुटका तैयार कर ऑन लाइन सैंकड़ों जगह भेजा, समूहों में डाला, व्‍हाट्सऐप किया... और अनलॉक-1 में मुद्रित करवा कर शहर में अनेक बुकस्‍टॉल्‍स, मॉल्‍स, आदि पर मुफ़्त बाँटने के लिए दिया. अपने सभी मिलने वालों को जहाँ भी मिले दिया.
लॉकडाउन में हालाँकि सुरक्षा के साथ साथ कुछ अनचाहे खर्चे भी बढ़े. जैसे ए.सी. व दिन भर ज्‍यादा लाइट जलने से बिजली का बिल हर बार से अधिक आया. पेट्रोल के भाव बढ़ने से फ़्यूल का बिल भी थोड़ा बढ़ा. आसानी से सप्‍लाई हुआ पर रसोई गैस का भी खर्चा थोड़ा बढ़ा. साबुन, डिटर्जेन्‍ट, क्‍लीनिंग चीजों का खर्चा बढ़ा.

हॉं, सबसे ज्‍यादा फ़ायदा यह हुआ कि प्राकृतिक वातावरण थोड़ा शुद्ध हुआ. सुबह छत पर घूमने की दिनचर्या बनी. घर में कीड़े मकोड़े, चींटे-चींटी, मच्‍छर बिल्‍कुल खत्‍म हो गये. बरसाती कीड़े भी नहीं दिखाई दिये. मेढ़क नहीं टर्राये. कॉलोनी में नित्‍य सफाई हुई. रोज कचरा गाड़ी ने नियमित कचरा इकट्ठा किया. पेड़ पौधे मुसकुराये. हरियाली बढ़ी. ईंधन का प्रदूषण कम हुआ.

सबसे सुखद, घर में रहते हुए दूर रह कर भी हम दिल के ज्‍यादा समीप  आये.
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बुधवार, 26 फ़रवरी 2020

सान्निध्य: 'आकुल' का गीतिका शतक 'चलो प्रेम का दूर क्षितिज तक ...

सान्निध्य: 'आकुल' का गीतिका शतक 'चलो प्रेम का दूर क्षितिज तक ...: ' हिंदी भूषण श्री सम्मान ' से भी सम्मानित 'आकुल' 25 से अधिक राज्‍यों और पड़ौसी मित्र देश नेपाल से पधारे अतिथियों और साह...

सान्निध्य: दिनांक 19 से 24 फरवरी 2020 कोटा से धर्मशाला की साह...

सान्निध्य: दिनांक 19 से 24 फरवरी 2020 कोटा से धर्मशाला की साह...: हिमाचल प्रदेश सरकार के पर्यटन विभाग का होटल 'कश्‍मीर हाउस' जहाँ साहित्‍याश्रय 2020 समारोह आयोजित हुआ धर्मशाला (हि.प्र.) में 21...

सोमवार, 12 नवंबर 2018

शनिवार, 15 सितंबर 2018

सूचना प्रोद्योगिकी गाँवों तक पहुँच गई है, बस ग्रामोत्‍थान के लिए इसका प्रयोग यदि सफल हुआ तो देश शिखर पर होगा- डॉ. लखन शर्मा

हिंदी दिवस पर भव्‍य समारोह में 'आकुल' सम्‍मानित ।
उनकी गीतिका के पोस्‍टर का भी विमोचन,
जो लाइब्रेरी में स्‍वागत कक्ष में लगाया जाएगा
  14 सितम्‍बर, 2018 को हिंदी दिवस के उपलक्ष्‍य में राजकीय पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय सार्वजनिक मण्‍डल पुस्‍तकालय, कोटा के सभागार में सम्‍भाग स्‍तरीय राजभाषा हिंदी दिवस सम्‍मेलन 2018 अपराह्न चार बजे आरंभ हुआ. सभी पधारे अतिथियों को पुस्‍तकालय के द्वार पर कुंकुम तिलक लगा कर स्‍वागत किया गया.
मंचस्‍थ प्रमुख वक्‍ता कला महाविद्यालय की सह आचार्य त्रिमूर्ति
मंचस्‍थ अतिथि अध्‍यक्ष एवं अन्‍य
मंडल पुस्‍तकालय अध्‍यक्ष डॉ. दीपक कुमार श्रीवास्‍तव ने समारोह में पधारे समारोह अध्‍यक्ष सेवानिवृत्‍त संयुक्‍त निदेशक जनसंपर्क एवं स्‍वतंत्र पत्रकार डॉ.प्रभात कुमार सिंघल, मुख्‍य अतिथि शिक्षाविद् डॉ. लखन शर्मा, विशिष्‍ट अतिथि कोटा की साहित्‍य त्रैमासिक पत्रिका ‘दृष्टिकोण’ के प्रबंध सम्‍पादक श्री नरेंद्र कुमार चक्रवर्ती, विशिष्‍ट अतिथि वरिष्‍ठ पत्रिकार श्री मनोहर पारीक, प्रमुख वक्‍ता कला महाविद्यालय, कोटा के सह आचार्य डॉ. मनीषा शर्मा, सह आचार्य डॉ.अनीता वर्मा और सह आचार्य डॉ. विवेक मिश्र को मंचस्‍थ किया.
माँ शारदे के समक्ष माल्‍यार्पण एवं दीप प्रज्‍ज्‍वलन करते अतिथि
आरंभ में कार्यक्रम का संचालन कर रहे कँवर बिहारी दीक्षित जी ने समारोह का विधिवत् प्रारंभ करने के लिए कथाकार, समीक्षक और शहर के ख्‍यात संचालक श्री विजय जोशी को भार सौंपा. कार्यक्रम का आरंभ सभी अतिथियों द्वारा माँ सरस्‍वती की माल्‍यार्पण और दीप प्रज्‍ज्‍वलन कर किया गया. माँ सरस्‍वती की स्‍तुति ‘सुर से मैं वंदन करती हूँ, शब्‍द तुझे अर्पण करती हूँ..’ पुस्‍तकालय की सहायक पुस्‍तकालय अध्‍यक्ष श्रीमती शशि जैन ने सस्‍वर गा कर समारोह में ऊर्ज प्रवाहित कर दी. माँ सरस्‍वती के आह्वान के पश्‍चात् मंच सचालन कर रहे श्री विजय जोशी ने कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए कहा कि माँ सरस्‍वती के आह्वान के पश्‍चात् जैसा कि हमारी संस्‍कृति है ‘अतिथि देवो भव’ अतिथियों का स्‍वागत करने के लिए उन्होंने पुस्‍तकालयाध्‍यक्ष डॉ. श्रीवास्‍तव व अन्‍य पधारे गणमान्‍य व्‍यक्तियों को, सभी अतिथियों को तिलक-पुष्‍पहार पहना कर सम्‍मान करने के लिए एक एक कर आमंत्रित किया. अतिथियों का स्वागत गान ‘इनके माथे पे तिलक लगाना, इनके गले में माला पहनाना, ये हमारे अतिथि हैं, इनके स्‍वागत में पलकें बिछाना...’ शशिजी ने सस्‍वर पाठ कर समारोह को संगीतमय बना दिया.
अतिथियों के स्‍वागत के बाद विधिवत् समारोह की भूमिका बताते हुए संचालक श्री विजय जोशी ने कहा कि वर्तमान संदर्भों में हिंदी भाषा के बारे में भारतेंदु हरिश्‍चंद्र का यह प्रख्‍यात दोहा आज जैसे चरितार्थ है ‘निज भाषा उन्‍नति लहे सब
संचालन करते विजय जोशी
उन्नति को मूल’ बिन निज भाषा के उन्‍नति संभव नहीं है, निश्चित ही हम बैसाखी के सहारे आगे अवश्‍य बढ़ जाते हैं, लेकिन मूल रूप से हमारे विकास का पदार्पण होना चाहिए, वह अपनी निज भाषा में ही होता है. उन्‍होंने कहा कि बालक अपना आरंभिक ज्ञान बचपन से माँ शब्‍द से करता है, माँ से ही वह संसार का जानने के लिए विकास के चरणों में आगे बढ़ता है, क्‍योंकि माँ के गर्भ से ही वह निज भाषा और संस्‍कार का सूत्रपात करता है. उन्होंने सुभद्रा के गर्भ में अभिमन्‍यु की कथा का उदाहरण दे कर बताया कि कैसे उसने चक्रव्‍यूह में प्रवेश की शिक्षा गर्भ में ही ली, उन्‍होंने आज के हिंदी के विकास, वर्तमान संदर्भों को अपने शब्‍दों में सभागार में उपस्थित जनों को कहने के लिए कला महाविद्यालय,कोटा की सह आचार्य श्रीमती अनीता वर्मा को मंच पर उद्बोधन के लिए बुलाया. डॉ. अनीता वर्मा ने कहा कि हिंदी केवल भाषा ही नहीं वह हमारे मान, सम्‍मान, हमारी प्रतिष्‍ठा का द्योतक है. कोई भी राष्‍ट्र, कोई भी जीवंत समाज अपनी भाषा के दम पर ही पहचान पाता है, क्‍यों भाषा अभिव्‍यक्ति
प्रमुख वक्‍ता सह आचार्यडॉ. मनीषा शर्मा
प्रमख्‍ुा वक्‍ता सह आचार्य डॉ. अनिता वर्मा
की संवाहक होती है. उन्‍होंने कहा कि पुस्‍तकालयों का महत्‍व आज भी है, पर समय के साथ चलने के साथ वर्तमान में सूचना एवं संचार माध्‍यमों व तकनीकी के साथ कदम ताल करते हुए भी चलना होगा. कला महाविद्यालय, कोटा की ही सह आचार्य श्रीमती मनीषा शर्मा ने कहा कि हिंदी दिवस व हिंदी भाषा का प्रश्‍न ‘भारत गौरव का नित ध्‍यान रहे, हम भी कुछ हैं, यह ज्ञान रहे.....‘ मैथिली शरण गुप्‍त जी की यह बात दुहराते हुए कहूँगी कि हमें अपनी मातृभाषा का भी मान रखना होगा. उन्‍होंने रामायण के वाक्‍य का भी दृष्‍टांत देते हुए कहा- -जननी जन्‍मभूमिश्च स्‍वर्गादपि गरीयसी’’ कि भगवान राम को भी अपनी जन्‍मभूमि सभी वैभवों से सर्वोच्‍च व प्‍यारी थी. उन्‍होंने बताया कि हमें इस मानसिकता को दूर करना होगा कि हिंदी अंग्रेजी से श्रेष्‍ठ है, हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी. संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ में हमारे पूर्व प्रधानमंत्री ने भाषण अपनी राष्‍ट्र की भाषा हिंदी में दिया था, फिर वह कहाँ श्रेष्‍ठ नहीं है, इसलिए हमें हिंदी की मार्यादा के लिए अपनी भूमि, अपनी भाषा से जुड़ना होगा और अपनी मातृभाषा को सँभालना होगा. उन्‍होंने अंत में कहा कि स्‍वतंत्रता के समय जो राज भाषा समिति बनाई गयी थी उसे पंद्रह वर्ष का समय दिया गया था, आज दुनिया में अ‍धिकतर देशों में हिंदी पढ़ाई जा रही है, अनेक विश्‍वविद्यालय इस भाषा को गंभीरता से ध्‍यान दे रहे हैं, अब राजभाषा समिति को हिंदी को राष्‍ट्र भाषा बनाये जाने के लिए अपनी अनुशंसा कर देनी चाहिए.
प्रमुख वक्‍ता सह आचार्य डॉ.विवेक मिश्र
अपने वक्‍तव्‍य में कला महाविद्यालय के ही सह आचार्य डॉ. विवेक मिश्र ने कहा कि हम सब हिंदी से जुड़े हुए लोग हैं, मेरा यह दृढ़ता के साथ मानना है कि आपके भीतर आत्‍मसम्‍मान होगा, तो आप न केवल अपनी भाषा की सर्जना करेंगे, अपने आप को भी मुक्‍त करेंगे. भाषा का काम होता है आपको अपने बंधन में बाँधना, जिसके तहत आप अपनी भाषा का उन्‍नयन करते हैं और पूर्णत: सीखने पर फिर आपको मुक्‍त कर देती है. आज भी हम भले ही अंग्रेजी जानते हैं पर जब बोलते हैं तो हिंदी को सोच कर बोलते हैं, हिंदी की तरह अंग्रेजी धाराप्रवाह नहीं बोल पाते, यह अपनी भाषा से जुड़े होने का प्रमाण है. हिंदी हम भारतीयों के लिए सार्वभौमिक भाषा है, इसके बिना हमारा अस्तित्‍व कुछ भी नहीं.
पोस्‍टर, पुस्‍तकालय के स्‍वागत कक्ष में लगेगा
अपने विद्रोह स्‍वर में विशिष्‍ट अतिथि श्री नरेंद्र चक्रवती ने बताया कि हमारी भाषा आज सभी देश सीखना चाहते हैं, क्‍योंकि आज विज्ञापन वाद और बाजारवाद के कारण भारत उनका तकनीकी व्‍यापारिक क्षेत्र है और भाषा हमें उस बाजार वाद में स्‍थापित करने के लिए आवश्‍यक है, इसलिए वे लोग हिंदी सीख रहे हैं, उसी प्रकार आज की महती आवश्‍यकता है कि हम भी उनकी तरह अपनी हिंदी के ही माध्‍यम से वर्तमान सूचना एवं प्रोद्योगिकी को अपना कर विश्‍व में अपना एक स्‍थान अपना एक बाजार स्‍थापित कर सकते हैं. हिंदी का उद्भव संस्‍कृति से हुआ कालांतर में धीरे धीरे हिंदी का स्‍वरूप छंदों व भक्ति रचनाओं के माध्‍यम से विकसित हुआ, मुगलकाल में अरबी फारसी के कारण हिंदी के ही रूप में उर्दू स्‍थापित हुई क्‍योंकि राष्‍ट्र भी भाषा के माध्‍यम से ही जनता के मध्‍य सेतु का कार्य करता है. मुगल शासन में उर्दू/अरबी/फारसी राष्‍ट्र की प्रशासनिक भाषा बनी, हिंदी उर्दू के रूप में जन जन की भाषा बनी, बाद में अंग्रेजी शासन में अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ा, और स्‍वतंत्रता प्राप्‍ति के समय हमारे देश में सभी भाषाओं की अपनी लोक भाषा अवश्‍य थी किंतु प्रशासनिक स्‍तर पर हिंदी को पूरा समर्थन नहीं बन पाया और हिंदी को राष्‍ट्र भाषा के स्‍थान पर राजभाषा का दर्जा दिया गया. आज सूचना एवं प्रोद्योगिकी के क्रांतिकारीपरिवर्तन के कारण पुन: अवसर है कि हम हिंदी को शीघ्र एक मकाम तक पहुँचा पायेंगे क्‍योंकि आज यह क्रांति गाँव गाँव पहुँच चुकी है, कम्‍प्‍यूटर, मोबाइल फोन आज छोटे से छोटा व्‍यक्ति इस्‍तेमाल करता है और उसके हिंदी स्‍वरूप को चयन कर अपनी जरूरत बना चुका है,
मुख्‍य अतिति पं. लखन शर्मा ने कहा कि हमारी हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है, तकनीकी के क्षेत्र में यदि हम समर्थ हो गये तो हम जीत जायेंगे. भाषा का प्रश्‍न है तो हर युग में भाषा ने ही राज किया है, यदि किसी देश को खत्‍म करना है तो उसकी भाषा को विकृत कर दो, खत्‍म कर दो वह देश स्‍वत: खत्‍म हो जाएगा.
मुख्‍य अतिथि डॉ.लखन शर्मा उद्बोधन देते हुए
अपने अध्‍यक्षीय भाषण में अध्‍यक्ष डॉ. प्रभात सिंघल ने कहा कि आज हिंदी की सूचना एवं प्रोद्योगिकी से टक्‍कर है. भाषा तो अपना स्‍थान धीरे धीरे बना ही रही है, उसे सहेजने और उसके मान सम्‍मान व प्रतिष्‍ठा के लिए ज्‍यादा प्रयास जरूरी नहीं, जरूरी है हमें आज की सूचना व प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ने की है ताकि हम स्‍थापित हो सकें. आज मोबाइल क्रांति इसका उदाहरण है.
इसके साथ ही पुस्‍तकालय के पाठकों के लिए आयोजित प्रतियोगिता के परिणाम प्रमुख निर्णायक  साहित्‍यकार डॉ. गोपाल कृष्‍ण भट्ट ‘आकुल’ ने घोषित किये और अतिथियों ने सभी को प्रशस्ति पत्र, स्‍मृति चिह्न दे कर सम्‍मानित किया. नारा लेखन में श्री भगवान प्रजापत, प्रथम, रामावतार नागर, द्वितीय, सुश्री रूबिना आरा,तृतीय, श्री महावीर वर्मा को सांत्‍वना पुरस्‍कार, निबंध लेखन में श्री मनोज सेन, प्रथम, श्री सागर सोनी द्वितीय, महावीर वर्मा, तृतीय, श्री भगवान प्रजापत, श्रीमती डिम्‍पल लोधा, श्री योगेन्‍द्र सिंह मीना को सांत्‍वना पुरस्‍कार, श्रुतिलेखन प्रतियोगिता में श्रीमती डिम्‍पल लोधाप्रथम सुश्री अनिता सैजवाल, द्वितीय , सुश्री शिवानी सोनी, तृतीय सुश्री साक्षी जैन, सुश्री रूबिना आरा, श्री रामावतार नागर को सांत्‍वना पुरस्‍कार दिये गये. आयोजित नेट / जे.आर.एफ. परीक्षा में अर्हता प्राप्‍त करने पर श्री रमाशंकर शर्मा, साहित्यकार, श्री विकास मालव, प्रतियोगी परीक्षार्थी, सुश्री निशा गुप्‍ता शोधार्थी को राजभाषा हिंदी सम्‍मान पत्र प्रदान किया गया. सुश्री अभिलाषा थोलम्बिया को नवोदित कवयित्री का सम्‍मान पत्र दिया गया. नाइजीरिया से भारत आए हिंदी का ज्ञान अर्जित करने पर नव साक्षर सम्‍मान से माइकेल इसीयू को सम्‍मानित किया गया.
'आकुल' को सम्‍मान करते अतिथि

हिंदी भाषा सेवी सम्‍मान के लिए पधारे सभी अतिथियों डॉ. मनीषा वर्मा, सह आचार्य (हिंदी) प्रमुख वक्‍ता डॉ. विवेक मिश्रसह आचार्य (हिंदी) प्रमुख वक्‍ता डॉ. अनिता वर्मासह आचार्य (हिंदी) प्रमुख वक्‍ता, डॉ. गोपाल कृष्‍ण भट्ट ‘आकुल’, साहित्‍यकार, प्रतियोगिताओं के प्रमुख निर्णायक, श्री नरेन्‍द्र कुमार चक्रवर्ती प्रबंध सम्‍पादक दृष्टिकोण, विशिष्‍ट अतिथि, श्री विजय जोशी, कथाकार एवं समीक्षक (संचालक), डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, सेवानिवृत्‍त संयुक्‍त निदेशक जनसम्‍पर्क एवं स्‍वतंत्र पत्रकार (अध्‍यक्ष), डॉ. लखन शर्मा, शिक्षाविद् (मुख्‍य अतिथि), श्रीमती सीमा घोष, शिक्षाविद् एवं सामाजिक कार्यकर्ता, श्री कँवर बिहारी दीक्षित, उद्घोषक, श्री सलीम अफरीदी, शायर, डॉ.योगेंद्र शर्मा, निदेशक शिशु भारती शिक्षा समूह, श्री मनोहर पारीक, वरिष्‍ठ पत्रकार (विशिष्‍ट अतिथि), को सम्‍मानित किया गया. श्री योगेन्‍द्र सिंह तँवर को कम्‍प्‍यूटर अनुप्रयोग के लिए प्रशस्ति पत्र देकर  सम्‍मानित किया गया. कवि शायर शकूर अनवर ने हिंदी पर एक नज्‍म प्रस्‍तुत की
'पुस्‍तक' पर लिखी गीतिका के पोस्‍टर का विमोचन करतेहुए अतिथि
इसी क्रम में मण्‍डल पुस्‍तकालय अध्‍यक्ष के आभार प्रदर्शन के पूर्व पुस्‍तकालय के लिए डॉ. गोपाल कृष्‍ण भट्ट ‘आकुल’ द्वारा ‘पुस्‍तक’ शब्‍द पर रचित एक गीतिका के पोस्‍टर का विमोचन किया गया, जो पुस्‍तकालय के स्‍वागत कक्ष में लगाया जाएगा. 
हिंदी सेवी सम्‍मान पत्र एवं स्‍मृतिचिह्न
अध्‍यक्ष प्रभात कुमार सिंघल के साथ डॉ. श्रीवास्‍तव
आभार प्रदर्शित करते हुए डॉ.दीपक श्रीवास्‍तव ने सभी का नाम ले कर कहा कि मुझे खुशी है कि जिसे भी बुलाया यहाँ आकर उन्‍होंने मुझे कृतार्थ किया है. उन्‍होंने कहा है कि आपको यह जानकर प्रसन्‍नता होगी कि आज हमारा पुस्‍तकालय भी सूचना प्रोद्योगिकी से कदम ताल चल कर चल रहा है. यूनिकोड के बारे में बताते हुए कहा कि एक ऐसा कोड सब में सार्वभौमिक रूप से रूपांतरित कर देता है, कमाल देखें इसे जो लोग देख नहीं पाते, बुजुर्ग लोग बिना चश्‍मा पढ़ नहीं पाते, अब किताबें बोल उठेंगी, हिंदी ओसीआर एक सोफ्टवेयर है उसे लोड करिये , किसी भी किताब को स्‍केन कर उसे उसमें लोड कर दीजिए, वह यूनिकोड में बदल जायेगी, प्‍ले टेक वाच लगाइये और पूरी किताब को पढ़ लीजिए. उन्‍होंने लाइब्रेरी में तकनीकी के इस्‍तेमाल के बारे में भी बताया और पधारे सभी पाठकों, अतिथियों, सम्‍मानित प्रतिभाओं को धन्‍यवाद दिया.
समारोह अल्‍पाहार के साथ सम्‍पन्‍न हुआ.


बुधवार, 5 सितंबर 2018

गीतिका शतक 'चलो प्रेम का दूर क्षितिज तक पहुँचाएँ संदेश' का लोकार्पण


छंद शास्‍त्र की कसौटी पर लिखी सार्थक गीतिकाओं का संग्रह है 
'चलो प्रेम का दूर क्षितिज तक पहुँचाएँ संदेश’

                                    
(शिल्‍प की पृष्‍ठभूमि)
एक समय था दोहा, चौपाई, कवित्‍त का खूब चलन था.
छंद शास्‍त्र निष्‍णात सुकवि थे, हर फन का स्‍वच्‍छंद गगन था. 
चाटुकारिता, व्‍यंग्‍य, हास्‍य प्रमुख हुए आयोजन अब सब,
मुक्‍त छंद कविताएँ नाचें जिन पर छंदों का बंधन था.
(कथ्‍य की पृष्‍ठभूमि)
एक समय था तप उपासना योग शांति के थे सुख साधन.
धरती पर थे खूब सघन वन गुरुकुल संकुल थे गोचारण.
पर विकास के पथ पर चल मानवता खोई सबसे पहले,
जब से हमने छला प्रकृति को तब से खोया है अपनापन.





उपर्युक्‍त दोनों मुक्‍तकों को लोकार्पित काव्‍य कृति गीतिका शतक की पृष्‍ठभूमि बताते हुए कृतिकार डॉ. गोपालकृष्‍ण भट्ट ‘आकुल’ ने कहा कि आज देश में जहाँ एक और शिक्षा का स्‍तर गिर रहा है, तकनीकी शिक्षा की भेड़चाल में माता-पिता ने बच्‍चों से बड़ी महत्‍वाकांक्षायें पाल रखी हैं,परिणाम स्‍वरूप बच्‍चे आत्‍महत्‍या तक कर रहे हैं, संयुक्‍त परिवार अब एकल परिवार हो गए हैं फलस्‍वरूप घरों में बच्‍चे और बूढ़े असुरक्षित हैं, दुष्‍कर्म की प्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं, मानवीय मूल्‍यों का ह्रास हो रहा है, प्रदूषित वातावरण, विकास की दौड़ में यदि हमने कुछ खोया है तो वह है अपनापन. इस अपनापन को पुन: पाने और वसुधैवकुटुम्‍बकम की अवधारणा को साकार करने के लिए प्रेम का संदेश क्षितिज तक पहुँचाने का प्रयास किया है.
समारोह का संचालन करते पं. विजय जोशी

मदर टेरेसा शिक्षण संस्‍थान के सभागार में रविवार, 2 सितम्‍बर, दोपहर 3 बजे जलेस व राष्‍ट्रीय कवि चौपाल, कोटा इकाई के संयुक्‍त तत्‍वावधान में प्रो. औंकारनाथ चतुर्वेदी की अध्‍यक्षता में मुख्‍य अतिथि यूआईटी के राजकीय सार्वजनिक पुस्‍तकालयाध्‍यक्ष एवं तीन अन्‍य विशिष्टि अतिथियों के साथ सरस्‍वती के चित्र के समक्ष पुष्‍पमाला पहना कर दीप प्रज्‍ज्‍वलन के साथ लोकार्पण समारोह आरंभ हुआ. सर्वप्रथम मंच पर बिराजमान अतिथियों का स्वागत ‘पवित्रा’ पहना कर किया गया. मंच का संचालन कर रहे शहर के जाने माने कथाकार व समीक्षक पं. विजय जोशी ने इस परम्‍परा को पुष्टिमार्गीय सम्‍प्रदाय में गुरु-शिष्‍य परम्‍परा की भारतीय संस्‍कृति को पोषित करती दक्षिणा और आशीर्वाद के समन्‍वय का प्रतीक बताया. उन्‍होंने कहा कि इस रेशमी सूत्र से बनी माला से अतिथियों का ऐसा अलौकिक स्‍वागत कोटा में कभी भी देखने में नहीं आया. पुस्‍तक का विमोचन भी एक और अलौकिक परम्‍परा के रूप में हुआ. उन्होंने बताया कि हमारे घरों में पवित्र ग्रंथों को रेशमी वस्‍त्र से बनी थैली में रखा जाता है, इसी क्रम में अतिथियों ने गोटे की किनारी लगी  रेशमी वस्‍त्र  से बनी थैली में से निकाल कर पुस्‍तक को लोकार्पित किया.  पुस्‍तक विमोचन की आज की परम्‍परा के बिल्‍कुल विपरीत भारतीय संस्‍कृति को जीवंत करती परम्‍परा का दर्शन कराते हुए हुए इस पुस्‍तक विमोचन की अलौकिक परम्‍परा को देखकर सभागार में बैठे साहित्‍यकारों ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ स्‍वागत किया और भूरि-भूरि प्रशंसा की.
       कृति परिचय में समीक्षा करते हुए राजकीय कला महाविद्यालय के प्रोफेसर विवेक मिश्र ने कृति को आज प्रकाशित हो रहे साहित्‍य से बिल्‍कुल अलग हिन्‍दी छंद साहित्‍य का परिचय कराने वाली अनुपम कृति बताया. विशिष्‍ट अतिथि डॉ. रघुनाथ मिश्र ‘सहज’ ने ‘आकुल’ की कृति के संदर्भ में बताया कि नाम के अनुरुप सभी सौ गीतिकाओं में किसी न किसी रूप में कोई न कोई संदेश छिपा है, जो कवि की रचनाधर्मिता की सार्थकता है. अपने उद्बोधन में विशिष्‍ट तिथि चिकित्‍सक व वरिष्‍ठ साहित्‍यकार
वि. अ. श्री योगेन्‍द्र शर्मा
कृति पर समीक्षा करते प्रो. विवेक मिश्रा
वि. अ. डा. अशोक मेहता
डॉ. अशोक मेहता ने ‘आकुल’ की पुस्‍तक में हर गीतिका में समस्‍या और उसके समाधान की अनोखी पहल को पुस्‍तक का मर्म बताया. मदर टेरेसा शिक्षण संस्‍थान के निदेशक और समारोह में विशिष्‍ट अतिथि के रूप में उपस्थिति श्री योगेंद्र शर्मा ने शिक्षण संस्‍थाओं में शिक्षा के साथ साथ साहित्‍य की आवश्‍यकता पर जोर दिया जो छात्रों के चहुँमुखी विकास में सहायक बताया. छंद और अलंकार के नाम और वर्णन व हर रचना में दृष्‍टांतों के सुंदर प्रयोग ने इस पुस्‍तक को नाम के अनुरुप एक सार्थक प्रयोग के लिए उन्‍होंने ‘आकुल’ को बधाई दी कृतिकार का परिचय कोटा से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका ‘दृष्टिकोण’ के प्रबंध सम्‍पादक एवं आकुल के परममित्र श्री नरेंद्र चक्रवर्ती ने दिया.

उन्‍होंने बताया कि ‘आकुल’ चहुँमुखी’ प्रतिभा के धनी हैं, आपने साहित्‍य की हर विधा में कलम चलाई है. आरंभ में संगीत में कीबोर्ड प्‍लेयर के रूप में देश-विदेश में ख्‍याति अर्जित करने के बाद कोटा में स्‍थाई रूप से बस जाने के बाद कोटा की साहित्‍य उर्वर धरा पर उन्‍होंने स्‍थाई निवास बनाया और साहित्‍य में स्‍थापित हुए. आपकी साहित्‍य की विधा नाटक, लघुकथा, गीत, नवगीत, कविताओं पर 6 पुस्‍तकें प्रकाशित हुईं. गीतिकाओं लोकार्पित पुस्‍तक उनकी सातवीं पुस्‍तक है. वे वर्गपहेली बनाने में भी सिद्धहस्‍त एवं पारंगत है. अब तक उनकी लगभग 7 हजार हिंदी व अंग्रेजी वर्गपहेलियाँ देश की प्रतिष्ठित समाचार पत्रों प्रकाशित हो चुकी हैं, जिस पर उन्‍हें ‘क्रॉसवर्ड विज़र्ड’ सम्‍मान भी मिला है. अखिल भारतीय स्‍तर पर उन्‍हें साहित्‍य क्षेत्र के अनेक साहित्यिक सम्‍मान व उपाधियाँ मिली हैं जिनमें प्रमुख है साहित्‍य श्री, साहित्‍य मार्तण्‍ड, साहित्‍य शिरोमणि, गुरु ठाकुर रवींद्रनाथ टैगोर सम्‍मान, कलम कलाधर,  विद्या वाचस्‍पति, विद्योत्‍तमा साहित्य सम्‍मान आदि.
आकुल कृति के बारे में बताते हुए
कृति के संदर्भ में बहुत संक्षेप में ‘आकुल’ ने बताया कि मौन और वाचालता के मध्‍य चली आरही हमारी भारतीय छंद साहित्य परम्‍परा महाभारत, रामायण और रामचरित मानस से शिखर पहुँच कर आज लौट कर हाइकू तक पहुँच गई है. संस्‍कृत से उद्धृत हिंदी छंद साहित्‍य को आज हाशिये पर डाल दिया गया है. उसकी पुनसंस्‍थापना के लिए यह एक प्रयास है. हिंदी साहित्‍य के पुरोधा पं. नरेंद्र शर्मा के शब्‍दों में ‘जब जब गद्य कमजोर हुआ है, कविता ने जन्‍म लिया, जब कविता कमजोर हुई गीत ने जन्‍म लिया.’ उनके कथन का सत्‍य बताते हुए आकुल ने आगे कहा कि गीत भी कहीं कमजोर हुआ है तभी गीत के बाद साहित्‍य की यात्रा ने दो विधाओं को जन्‍म दिया वह थी गीतिका और नवगीत. नवगीत, समृद्ध हो कर कविता की ओर लौटती हुई गीत की यात्रा है. गीतिका हमारे छंद साहित्‍य को पोषित करती हुई गज़ल की तरह हिंदी को उच्‍च शिखर पर पहुँचा सकती है. आकुल ने रचना विधान में शिल्‍प की साधना के लिए सूक्ष्‍म से सूक्ष्‍म कमियों को दूर करने के छंद के विधान की प्राथमिकता पर जोर देते हुए इसकी जानकारी को रचनाकारों के लिए अत्‍यावश्‍यक बताया और अनेक छंदों, शिल्‍प की बारीकियों और उनके विधान के बारे में संक्षेप में बता कर अपनी इस पुस्‍तक में आज प्रेम के संदेश को जानवर के माध्‍यम से देते हुए अपनी पहली गीतिका को गुनगुनाकर सुनाया 
‘‘समझता जानवर भी है जगत में प्‍यार की भाषा.
उसे लेना न देना है कि क्‍या संसार की भाषा.
उसी का हो लिया है वह, मिला जिससे भी अपनापन,
तुरत ही सीख जाता है वह, सहज मनुहार की भाषा.’’  
                                                                                        (छंद- विधाता)

मुख्‍य अतिथि यू.आई.टी. सार्वजनिक पुस्‍तकालयध्‍यक्ष डॉ. दीपक श्रीवास्‍तव ने डॉ. ‘आकुल’ की पुस्‍तक पर चकित होते हुए उनकी कृति पर प्रफुल्लित होते हुए कहा कि ऐसी पुस्‍तकें भारत के हर पुस्‍तकालय में होनी चाहिए और आज के तकनीकी साधन संसाधनों से युक्‍त लाइब्रेरियों में इन पुस्‍तकों के माध्‍यम से लेखकों कवियों को जोड़ा जा रहा है और  मेरा पूरा प्रयास रहेगा कि यदि आप मुझे सहयोग दें तो मैं इसको देश में चारों ओर भिजवाने में आपकी मदद करूँगा ताकि हमारे भारतीय छंद साहित्‍य, काव्‍य परम्‍परा का विकास हो सके और हर कवि, साहित्‍यकार की पहचान बने.
अध्‍यक्षीय उद्बोधन देते हुए प्रो. औंकारनाथ चतुर्वेदी

  
अपने अध्यक्षीय प्रवचन में प्रख्‍यात व्‍यंग्‍यकार और वरिष्‍ठ साहितयकार प्रोफेसर औंकारनाथ चवुर्वेदी ने कहा कि रचना कृतिकार का पुत्र होता है, उसका वंश चलाता है, उसको आगे ले जाता है, और उसके जाने के बाद, उसका परिचय स्‍थापित करता है, और आज हमारे हिंदी जगत् की एक बहुमूल्‍य कृति का लोकार्पण हुआ है. रस, छंद, अलंकार, से समृद्ध यह एक ऐसी पुस्‍तक है जो हिंदी साहित्‍य में दुर्लभ है. मैंने आज तक ऐसी पुस्‍तक ही नहीं देखी, जिसमें छंद का परिचय दिया गया हो, छंद के नाम के साथ साथ उसका विधान लिखा गया हो. उन्‍होंने पुस्‍तकालयाध्‍यक्ष और मुख्‍य अतिथि को सम्‍बोधित करते हुए कहा- ‘डा. श्रीवास्‍तव, कोटा लेखकों की कर्मभूमि है, आज राजस्‍थान के सभी शहरों में साहित्यिक कृतियाँ लगभग समाप्‍त हो चली हैं, सार्थक गोष्ठियाँ समाप्‍त हो गई हैं, लेकिन मेरे शहर में 52 के 52 इतवार जाग्रत रहते हैं. कहीं पर लोकार्पण हो रहा है, कहीं पर गोष्ठियाँ हो रही हैं. यहाँ की साहित्‍य परम्‍परा का मर्म है – जो घर बाले आपनो चले हमारे साथ.’ हिंदी लिखना, हिंदी के साथ जीना और पुराने संस्‍कारों और पूर्व जन्‍म की तपस्‍या का फल है कि कोई व्‍यक्ति हिंदी का लेखक बनता है. आज 90 प्रतिशत लोग झोली खोले हुए दुनिया को समेटने में लगे हुए हैं, केवल हिंदी लेखक कवि ऐसा है जो अपना ही आत्‍मदान करते हुए अपने वेतन का बहुत बड़ा अंश सिर्फ पुस्‍तक प्रकाशन में लगा देता है, पुस्‍तक प्रकाशन करता है, सत्‍यनारायण की पंजीरी की तरह पुस्‍तक भी बाँटता है. ‘बिन हरि कृपा मिले नहिं संता.’ यहपुस्‍तक लोकार्पण के साथ संत समागम का पुण्‍य अवसर है, जहाँ साधनारत साहित्‍य साधक एक मांगलिक कार्य के लिए उपस्थित है. यह पुस्‍तक कवि ‘आकुल’ के सकारात्‍मक एवं विशाल हृदय का परिचय देती है. कवि आकुल छंद अलंकारों के लोकप्रिय विद्वान् हैं, जिन्‍हें रचना साहित्यिक परिवार के संस्‍कार में मिला है. वर्तमान संदर्भ में आज भी श्री गदाधर भट्ट, री रघुराज सिंह हाड़ा और गोपाल कृष्‍ण भट्ट ‘आकुल’ झालावाड़ के कीर्तिस्‍तम्‍भ के साथ हिंदी साहित्‍य जगत् के लोकप्रिय विद्वान, लेखक कवि, समीक्षक हैं. एक साधक के रूप में लिखी यह पुस्‍तक ‘चलो प्रेम का .......’ एक महत्‍वपूर्ण कृति है. इस पुस्‍तक में पुरोवाक् में आचार्य संजीव वर्मा सलिल, जबलपुर, अभिमत में प्रो0 विश्‍वम्‍भर शुक्‍ल, लखनऊ, श्री राकेश मिश्र, लखीमपुर खीरी, डॉ. रघुनाथ मिश्र ‘सहज’ वरिष्‍ठ साहित्‍यकार, कोटा, पुस्‍तक समीक्षा में प्रोफेसर विवेक मिश्र इस पुस्‍तक का वास्‍तविक परिचय कराती है, उन्‍होंने इसकी विस्‍तार से समीक्षा की है. आकुल जी के आत्‍मकथ्‍य के बाद कुछ भी कहने को नहीं रहता. बस यही कि इसमें छंद शास्‍त्र की कसौटी पर लिखी सार्थक रचनायें हैं, जो वर्षों तक सुरक्षित रहेंगी, याद रखी जायेंगी, कि 21वीं शताब्‍दी में छंद निष्‍णात कवि रहे हैं, जिन्‍होंने काव्‍य मूल्‍यों के साथ समझौता नहीं किया, डॉ. आकुल यशस्‍वी रचनाकार हैं, छंद शास्‍त्र पर उनका एकाधिकार है, प्रणाम करता हूँ, यशस्‍वी हों, और निरंतर काव्‍य साधना में लगे रहें, अभी हिंदी जगत् में एक और दुष्‍यंत कुमार की आवश्‍यकता है.         

लोकार्पण में पधारे साहित्‍यकार बंधु
                  
           समारोह में शहर के जाने माने साहित्यकार श्री अरविंद सोरल, भगवती प्रसाद गौतम, डॉ. नलिन, डॉ. फरीद अहमद फरीद, रामेश्‍वर शर्मा रामू भैया, वेदप्रकाश परकाश, शकूर अनवर, आनंद हजारी, ब्रजेंद्र सिंह झाला पुखराज, मदन मोहन शर्मा ‘सजल’, सुनेल से पधारी कवयित्री आशारानी जैन, संस्‍कार भारती के अरुणकांत शर्मा, महामंत्री, श्री मनोज गौतम, सेवानिवृत्‍त चिकित्‍साधिकारी डॉ. आर. डी. वर्मा अधिवक्‍ता श्री बी.सी. मालवीय, मदर टेरेसा संस्थान के कई शिक्षक व कार्यकर्ता उपस्थित थे.
धन्‍यवाद ज्ञापन श्री नरेंद्र चक्रवर्ती जी ने किया.