सान्निध्य: दलितों के मसीहा: दलितों के मसीहा, संविधान निर्माता तुम्हें प्रणाम। कोटि-कोटि जन-जन के, जीवनदाता तुम्हें प्रणाम।। हे...
सोमवार, 14 अप्रैल 2014
सान्निध्य: दलितों के मसीहा
सान्निध्य: दलितों के मसीहा: दलितों के मसीहा, संविधान निर्माता तुम्हें प्रणाम। कोटि-कोटि जन-जन के, जीवनदाता तुम्हें प्रणाम।। हे...
मंगलवार, 1 अप्रैल 2014
'आकुल' का लघुकथा संग्रह ‘अब रामराज्य आएगा’ महाकाल की नगरी उज्जैन में 'शब्द प्रवाह साहित्य सम्मान 2014' से पुरस्कृत। उन्हें 'शब्द भूषण' उपाधि से सम्मानित किया गया
कोटा। भारतीय नव संवत्सर 2071 की पूर्व संध्या अवसर, मालवी दिवस और महाकाल की नगरी उज्जैन, मौका था मध्य प्रदेश ही नई देश की उभरती
साहित्यिक त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका ‘शब्द प्रवाह’ के साहित्यिक सम्मान 2014 समारोह एवं कृतियों के विमोचन प्रसंग का। इस
समारोह में किया जाना था 34 साहित्यकारों को 'शब्द प्रवाह साहित्यिक सम्मान 2014'
का सम्मान। प्रतिवर्ष आयोजित इस सम्मान समारोह में प्रथम, द्वितीय, तृतीय व प्रोत्साहन पुरस्कारों से साहित्यकारों की
कृतियों को निर्णायक मंडल के द्वारा चयनित पुस्तकों में से सम्मानार्थ चुना जाता
है और कृतिकार को मानद उपाधियों
से सम्मानित किया जाता है। कोटा के डा0 गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’ के वर्ष 2013 में प्रकाशित लघुकथा संग्रह 'अब रामराज्य आएगा’ को लघुकथा संवर्ग में तृतीय पुरस्कार के लिए चयनित किया गया। उन्हें इस समारोह में ‘शब्द भूषण‘ की मानद उपाधि से भी नवाज़ा गया। इस समारोह में
राजस्थान से दो ही साहितयकारों का चयन किया गया था। दूसरे साहित्यकार थे
रावतभाटा के श्री दिलीप भाटिया। 30 मार्च 2014 को मध्य प्रदेश सामाजिक शोध संस्थान, भरतपुरी के सभागार में समारोह का शुभारंभ अतिथियों व के साथ बुलाकर मंचासीन किया गया। प्रतीक्षित
विशिष्ट अतिथि उज्जैन की प्रख्यात स्त्री रोग विशेषज्ञ डा0 सतिन्दर कौर सलूजा, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन एवं रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर के पूर्व कुलपति प्रो0 रामराजेश मिश्र एवं मुख्य
अतिथि भवभूति पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात वयोवृद्ध वरिष्ठ साहित्यकार, उपन्यासकार एवं कवि व ‘समावर्तन’ पत्रिका के सम्पादक डा0 प्रभात कुमार भट्टाचार्य
के पधारते ही समारोह का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन कर सरस्वती पूजन से किया गया और
सरस्वती वंदना की गई, श्री अरविंद पाठक के सुमधुर गायन से। मंच का
संचालन कर रहे ‘शब्द प्रवाह’ परिवार के प्रख्यात उद्धोषक डा0 सुरेंद्र मीणा ने सर्वप्रथम मंचस्थ अतिथियों का परिचय करवाया और ‘शब्द प्रवाह’ परिवार के सदस्यों द्वारा मंचस्थ अतिथियों का
माल्यार्पण से
अभिनंदन किया गया। पधारे हुए चयनित व सम्मानित किये जाने वाले साहित्यकारों को बारी-बारी से मंच पर बुला कर मंचस्थ अतिथियों द्वारा उत्तरीय, प्रशस्ति पत्र और स्मृति चिह्न दे कर सम्मानित किया गया। पधारे
साहित्यकार उज्जैन, पीलीभीत, महू, मुम्बई, मेरठ, पचौर, रायबरेली, बहराइच, ग्वालियर, इंदौर, छिंदवाड़ा ,लखनऊ, गुड़गाँव, आगरा, वैल्लूर, मंडी, सूरत,नागदा, भोपाल, कोरबा आदि स्थानों से थे। दक्षिण से उत्तर और
पश्चिम से पूर्व तक अनेकों राज्यों से पधारे साहित्यकारों को समारोह में सम्मानित
किया गया। महाकाल की नगरी, भगवान श्रीकृष्ण, सुदामा और बलराम के गुरु
संदीपनी के आश्रम और चक्रतीर्थ के नाम से मशहूर इस पवित्र नगरी के आकर्षण से बँधे कई
साहित्यकार यहाँ सपरिवार भी पधारे। कार्यक्रम के दूसरे चरण में डा0 रमेश मीणा द्वारा
कार्यक्रम का परिचय कराया गया। डा0 मीणा ने ‘शब्द प्रवाह साहित्य सम्मान- 2014 के लिए चययनित एवं सम्मानित होने वाले साहित्यकारों और विमोचन की जाने वाली पुस्तकों के बारे में बताया। समारोह में लोकार्पित होने वाली
तीन पुस्तकों में कमलेश व्यास 'कमल' सम्पादित अखिल भारतीय काव्य संग्रह 'शब्द-सागर-2’, श्रीमती कोमल वाधवानी ‘प्रेरणा’ द्वारा लिखित काव्य संग्रह ‘शब्दों के तोरण’ और कमलेश व्यास 'कमल' द्वारा लिखित ‘बेटियाँ’ का विमोचन मंचस्थ अतिथियों द्वारा बारी-बारी से
किया गया। विमोचन के पश्चात् सम्मान समारोह की विधिवत आरंभ किया गया। सर्वप्रथम
उज्जैन के वरिष्ठ वयोवृद्ध कवि श्री अमृत लाल ‘अमृत’ और डा0 श्रीकृष्ण जोशी को साहित्य सेवा सम्मान
से नवाज़ा गया। ऊन्हें प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिह्न और उत्तरीय पहना
कर सम्मानित
किया गया। उसके पश्चात् ‘शब्द प्रवाह साहित्य सम्मान
2014’ में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय पुरस्कारों के लिए चयनित
साहित्यकारों को प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिह्न एवं पुस्तकें दे कर व उत्तरीय
पहना कर पुरस्कृत किया गया। पुरस्कारों के वितरण के पश्चात् विमोचित पुस्तक ‘शब्द सागर-2’ में सम्मिलित रचनाकारों एवं कवियों को मंच पर बुला
कर उत्तरीय पहना कर समृति चिह्न व पुस्तकें भेंट की गईं। कार्यक्रम के तृतीय चरण में मंचस्थ साहित्यकारों
द्वारा अपने उद्गार प्रकट किये गये।
जोधपुर से पधारे ‘मरु गुलशन’ के सम्पादक श्री अनिल अनवर ने साहित्यकारों से भरे सभागार को सम्बोधित करते हुए कहा कि इस समारोह की सफलता का इससे बड़ा और क्या दृष्टांत हो सकता है कि दूर दराज से पधारे साहित्यकारों का श्री संदीप सृजन के आमंत्रण को तहे दिल से स्वीकार किया है। थोड़े से समय में पत्रिका का प्रसार तीव्र गति से बढ़ा है और पत्रिका का कलेवर, 'शब्द प्रवाह' परिवार के प्रयासों का प्रभाव इसमें दृष्टिगोचर होता है। आज जो भी साहित्य लिखा जा रहा है, वह सामयिक और पठनीय है। सभी प्रकार की विधाओं का इसमें समावेश गागर में सागर की तरह समाहित है। उन्होंने आज लिखे जाने वाले साहित्य पर काव्य रचनाओं की मूल विधा छन्दोबद्ध साहित्य से विमुख होते जा रहे युवा साहित्यकारों की ओर ध्यानाकर्षण कराते हुए चिन्ता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि आज युवा साहित्यकार छंद ज्ञान के बिना रचनायें कर रहा है। आज समारोह में प्रथम पुरस्कार से पुरस्कृत ‘भारत दर्शन’ पुस्तक की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि यह पुस्तक घनाक्षरी छंदबद्ध है, जो लेखक का एक ऐतिहासिक प्रयास है, किंतु उनके इस साहित्य को, छंद ज्ञान को क्या उनकी पीढ़ी, उनके पोते पोती सहेज
जोधपुर से पधारे ‘मरु गुलशन’ के सम्पादक श्री अनिल अनवर ने साहित्यकारों से भरे सभागार को सम्बोधित करते हुए कहा कि इस समारोह की सफलता का इससे बड़ा और क्या दृष्टांत हो सकता है कि दूर दराज से पधारे साहित्यकारों का श्री संदीप सृजन के आमंत्रण को तहे दिल से स्वीकार किया है। थोड़े से समय में पत्रिका का प्रसार तीव्र गति से बढ़ा है और पत्रिका का कलेवर, 'शब्द प्रवाह' परिवार के प्रयासों का प्रभाव इसमें दृष्टिगोचर होता है। आज जो भी साहित्य लिखा जा रहा है, वह सामयिक और पठनीय है। सभी प्रकार की विधाओं का इसमें समावेश गागर में सागर की तरह समाहित है। उन्होंने आज लिखे जाने वाले साहित्य पर काव्य रचनाओं की मूल विधा छन्दोबद्ध साहित्य से विमुख होते जा रहे युवा साहित्यकारों की ओर ध्यानाकर्षण कराते हुए चिन्ता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि आज युवा साहित्यकार छंद ज्ञान के बिना रचनायें कर रहा है। आज समारोह में प्रथम पुरस्कार से पुरस्कृत ‘भारत दर्शन’ पुस्तक की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि यह पुस्तक घनाक्षरी छंदबद्ध है, जो लेखक का एक ऐतिहासिक प्रयास है, किंतु उनके इस साहित्य को, छंद ज्ञान को क्या उनकी पीढ़ी, उनके पोते पोती सहेज
पायेंगे या उनका साहित्य उनके साथ ही लुप्तप्राय हो जायेगा। उन्होंने अपनी
पत्रिका ‘मरु गुलशन’ के हाल ही प्रकाशित अंक को नि:शुल्क लेने का
आग्रह किया। अपने व्याख्यान में दो विश्वविद्यालयों के पूर्व कुलपति राम राजेश
ने अपने अनुभव बाँटे और बताया कि यह शिव मंगल सिंह ‘सुमन’ की जन्म और कर्म भूमि है, पौराणिक संतों, गुरुकुल की भूमि है, जहाँ पठन-पाठन एक स्वाघ्याय है, एक दिनचर्या है। श्री सृजन के प्रयासों और 'शब्द प्रवाह'
के साहित्यिक अवदान को श्लाघनीय बताते हुए कहा कि
जहाँ मेरे गुरुवर प्रभात कुमार भट्टाचार्यजी जैसे मूर्द्धन्य साहित्यकार हों और
उनकी यहाँ उपस्थिति इस बात को सार्थक करती है कि उज्जैन में साहित्य समागम, संत समागम से कम नहीं। 'शब्द-प्रवाह' परिवार में
डा0 सुरेंद्र मीणा पहले शोधार्थी थे जिन्हें उन्होंने पीएच0 डी0 की उपाधि से सुशोभित
किया, उन्हें यहाँ मंच से
उद्बोधन करते देख कर गर्व महसूस कर रहा हूँ और जहाँ समृद्ध साहित्यिक माहौल हो शब्द
प्रवाह बहुत प्रगति करेगा। शुभकामनायें देते हुए उन्होने आसन ग्रहण किया। स्त्री
रोग विशेषज्ञ वरिष्ठ चिकित्सक श्रीमती सलूजा ने आज की लोकार्पित पुस्तक 'शब्दों के तोरण' की लेेखिका श्रीमती 'प्रेरणा' के आग्रह पर इस
समारोह में आने का श्री सृजन का प्रस्ताव स्वीकार किया। उन्होंने पिछले 25 वर्षों से श्रीमती प्रेरणा से परिवार की भाँति सहेजे गये सम्बंधों की ऊर्जा को पाले हुए उनकी पुस्तक में नारी उत्थान, भ्रूण हत्या आदि विषय पर लिखी रचनाओं पर उनके प्रयासों को सराहा। कार्यक्रम के अंतिम पड़ाव में अपने अध्यक्षीय भाषाण में श्री प्रभात भट्टाचार्य ने सर्वप्रथम ‘शब्द प्रवाह’ के प्रधान सम्पादक श्री सृजन को बधाई दी, पधारे साहित्यकारों का अभिवादन किया और कहा कि दिन रात चौगुनी करते इस पत्रिका का जुड़ाव अखिल भारतीय स्तर पर नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी भविष्य में होगा, ऐसा मेरा विश्वास है। कुशल साहित्यकारों के जुड़ाव ने इसे इस मकाम तक पहुँचाया है। मैं जानता हूँ कि कैसे पत्रिका निकाली जाती है, कितनी मशक्कत करनी होती है, पत्रिका पुस्तकों का प्रकाशन करना आसान कार्य नहीं। उनका यह यज्ञ अनवरत चलता रहे, मैं हर तरह से उनकी मदद करने को तैयार हूँ। जिन पर श्री रामराजेश जैसे प्रतिष्ठापित कुलपति का वरदहस्त हो वह पत्रिका को स्वत: चलेगी। आज पधारे यहाँ उपस्थित साहित्यकारों के समागम को एक लघु कुंभ कहूँ तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह चमत्कार से कम नहीं। उन्होंने आयोजकों और पधारे साहित्यकारों का अभिनंदन किया। कार्यक्रम के अंत में ‘शब्द प्रवाह’ के प्रधान सम्पादक श्री संदीप सृजन फाफरिया ने सभी पधारे अतिथियों व साहित्यकारों का आभार व्यक्त किया। इससे पूर्व कार्यक्रम के आरंभ में साहित्यकारों से ली गई पर्चियों में उनका परिचय लिखा कर इकट्ठा कर लॉटरी से तीन नाम निकाले गये और उन्हें भी पुस्तक भेंट कर सम्मानित किया गया। सभी साहित्यकारों का एक समूह फोटो सेशन हुआ। समारोह के समापन के बाद सभी पधारे साहित्यकारों ने मालवी संस्कृति का बाफला चूरमा का स्वरुचि भोजन लिया और संदीप सृजन को शुभकामनायें दे कर उनसे विदा ली।
समारोह में आने का श्री सृजन का प्रस्ताव स्वीकार किया। उन्होंने पिछले 25 वर्षों से श्रीमती प्रेरणा से परिवार की भाँति सहेजे गये सम्बंधों की ऊर्जा को पाले हुए उनकी पुस्तक में नारी उत्थान, भ्रूण हत्या आदि विषय पर लिखी रचनाओं पर उनके प्रयासों को सराहा। कार्यक्रम के अंतिम पड़ाव में अपने अध्यक्षीय भाषाण में श्री प्रभात भट्टाचार्य ने सर्वप्रथम ‘शब्द प्रवाह’ के प्रधान सम्पादक श्री सृजन को बधाई दी, पधारे साहित्यकारों का अभिवादन किया और कहा कि दिन रात चौगुनी करते इस पत्रिका का जुड़ाव अखिल भारतीय स्तर पर नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी भविष्य में होगा, ऐसा मेरा विश्वास है। कुशल साहित्यकारों के जुड़ाव ने इसे इस मकाम तक पहुँचाया है। मैं जानता हूँ कि कैसे पत्रिका निकाली जाती है, कितनी मशक्कत करनी होती है, पत्रिका पुस्तकों का प्रकाशन करना आसान कार्य नहीं। उनका यह यज्ञ अनवरत चलता रहे, मैं हर तरह से उनकी मदद करने को तैयार हूँ। जिन पर श्री रामराजेश जैसे प्रतिष्ठापित कुलपति का वरदहस्त हो वह पत्रिका को स्वत: चलेगी। आज पधारे यहाँ उपस्थित साहित्यकारों के समागम को एक लघु कुंभ कहूँ तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह चमत्कार से कम नहीं। उन्होंने आयोजकों और पधारे साहित्यकारों का अभिनंदन किया। कार्यक्रम के अंत में ‘शब्द प्रवाह’ के प्रधान सम्पादक श्री संदीप सृजन फाफरिया ने सभी पधारे अतिथियों व साहित्यकारों का आभार व्यक्त किया। इससे पूर्व कार्यक्रम के आरंभ में साहित्यकारों से ली गई पर्चियों में उनका परिचय लिखा कर इकट्ठा कर लॉटरी से तीन नाम निकाले गये और उन्हें भी पुस्तक भेंट कर सम्मानित किया गया। सभी साहित्यकारों का एक समूह फोटो सेशन हुआ। समारोह के समापन के बाद सभी पधारे साहित्यकारों ने मालवी संस्कृति का बाफला चूरमा का स्वरुचि भोजन लिया और संदीप सृजन को शुभकामनायें दे कर उनसे विदा ली।
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